RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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वो आवाक नज़र आ रही थी जबकि अंकिता रोए जा रही थी, बहुत देर तक कमरे मे बस अंकिता के रोने की आवाज़े गूँजती रही, संगया ने उसका मुखड़ा अपने अंक मे छुपा लिया था, करीब 5 मिनिट बाद बोली," वाकयि अच्छा नही हुआ "
" हालाँकि मेरी फ्रेंड ने इस बारे मे कुछ कहा नही लेकिन तब से अब तक मैं उससे आँखे नही मिला पाई हू " अंकिता ने अपना आँसुओ से तर चेहरा उसकी तरफ उठाते हुए कहा," डरती हू कि कही वो ये ना कह दे कि तू मेरे पापा की मौत की ज़िम्मेदार है "
" नही बेहन, ऐसे विचार दिल मे मत लाओ, वे अपनी मौत के ज़िम्मेदार खुद बने, क्यो अपनी बेटी जैसी लड़की, जो उन्हे अंकल कहती ही नही, मानती भी थी पर बुरी नज़र डाली, तुम और कर भी क्या सकती थी, तुमने वही किया जो करना चाहिए था "
" मैंने तो इस बारे मे मम्मी को भी नही बताया, क्या बताउ, हिम्मत ही नही पड़ी.
अंकल की स्यूयिसाइड की जाँच-पड़ताल करने पोलीस आई.
उन्हे अंकल के मोबाइल से मुझे रात-बे-रात फोन करने का रेकॉर्ड मिल गया था.
उस संबंध मे सवाल किए.
मैंने झूठ बोल दिया.
हक़ीकत बताकर अंकल को कैसे रुसवा कर सकती थी.
रहे तो थे नही वे, उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी धूल मे मिला देने का मुझे क्या हक़ था.
तब से अंदर ही अंदर घुट रही थी.
किससे क्या कहती.
तुम आई.
तुम्हारी कहानी सामने आई तो खुद को रोक ना सकी और गुबार फुट पड़ा, मम्मी अक्सर कहती है, कोई यू ही, बगैर किसी बड़ी बात के स्यूयिसाइड नही करता, ज़रूर किसी ने उनका दिल दुखाया होगा, कोई तो होगा उनकी मौत का ज़िम्मेदार, उसे भी इतने अच्छे और नेक आदमी को स्यूयिसाइड करने के लिए मजबूर करने के लिए कभी चैन नही मिलेगा.
कैसे बताउ.
कैसे बताउ मम्मी को कि उस नेक आदमी को स्यूयिसाइड करने के लिए मजबूर करने वाली उनकी बेटी ही है और ये भी सच है कि उसे आजतक चैन नही मिला है "
" तुम फिर वही कहने लगी बेहन, मैंने कहा ना, तुम उनकी मौत की ज़िम्मेदार नही हो "
" वो तो मैं हू " उसने रोते हुए कहा," और रहूंगी "
" कौन थे तुम्हारे बॉस "
" उनका नाम लेकर मैं उन्हे रुसवा नही कर सकती "
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अगली सुबह धनुष्टानकार विजय की कोठी पर पहुचा.
उसे देखते ही विजय बोला," आओ मोंटो प्यारे, क्या हाल है तुम्हारे, यानी कि हमारे सौंपे हुए काम का क्या हुआ "
धनुष्टानकार ने अपने छोटे से कोट की जेब से एक छोटी सी डाइयरी निकाली और उसका एक पेज विजय की आँखो के सामने कर दिया, उस पेज पर केवल इतना ही लिखा था," है "
उस एक्मात्र शब्द को पढ़कर विजय की आँखो मे एक अजीब सी चमक पैदा हुई थी, बोला," यानी हमारा अनुमान दुरुस्त निकला "
धनुष्टानकार बेचारा कुछ बोल तो सकता नही था.
विजय ने सवाल किया," कहाँ खुलता है "
धनुष्टानकार ने छोटा सा पेन निकाला और डाइयरी के उसी पेज पर लिखा," ऑफीस मे "
" कैसे खुलता है "
" रिमोट से "
" कितने बजे गये थे "
" दो बजे " धनुष्टानकार ने लिखा.
" किसी ने देखा तो नही "
धनुष्टानकार ने पुनः लिखा," नही "
" ओके, अब तुम घर जाओ मोंटो प्यारे और इस बारे मे किसी को कुछ मत बताना, दिलजले को भी नही "
धनुष्टानकार आग्यकारी बच्चे की तरह तुरंत वापिस चला गया.
कुछ देर बाद.
" आओ...आओ आशा डार्लिंग " विजय आशा को सुबह-सुबह अपनी कोठी मे आया हुआ देखकर चाहक उठा," आज का सूरज तो कुछ ज़्यादा ही रोशनी लेकर निकला है, वो क्या कहा जाता है ऐसे मौको पर, ये कि, वो आए हमारे घोंसले पर, कभी हम उन्हे, कभी अपने बूचड़खाने को देखते है और अपना माथा पीट-ते है "
" माथा क्यो पीट-ते हो " आशा भी अच्छे मूड मे थी.
" क्योंकि पीटने के लिए और कुछ है ही नही, हम ने 10 साल पहले शादी के लिए कहा था, हमारी बात मान ली होती तो अब तक कम से कम 10 बच्चे होते और हम उन्हे पीट-ते-पीट-ते सालो के गाल लाल कर देते, अपना माथा पीटने की ज़रूरत ना पड़ती "
" बैठने को नही कहोगे "
" अजी सर पर बैठिए हमारे "
आशा मुस्कुराइ," लोग पॅल्को पर बिठाते है, तुम सिर पर "
" अजी झूठ बोलते है साले, भला पॅल्को पर भी कोई किसी को बिठा सकता है, पॅल्को का कचूमर नही निकल जाएगा "
" बात तो ठीक है तुम्हारी " आशा हँसी.
" जबकि सिर पर हम तुम्हे तो क्या, सूमो पहलवान को भी बिठा सकते है, तुम तो फूल हो, कमल का, निशान-ए-ब्ज्प "
" अब काम की बात करे " वो सोफे पर बैठ गयी.
" बिल्कुल, कामदेव तो खुश ही तब होंगे "
" तुम नही मानोगे "
" मान तो तुम नही रही हो जान-ए-मन, अब बताओ 'काम' की बात करने को तुमने कहा या हम ने "
" मैं उस काम की बात नही कर रही थी "
" उसकी नही तो इस काम की बात कर लेते है " विजय कहता चला गया," सुबह-सुबह निकली तो तुम बनकर एकदम टंच हो, छोटे हाथी की सूंड जैसी टाँगो से चिपकी स्काइ कलर की जीन्स, कयि जगह से फटा हुआ सफेद रंग का टॉप, मटरू की दुल्हनिया लग रही हो, फटे हुए कपड़े पहनना तो खैर लेटेस्ट फॅशन है लेकिन जिस्म पर जगह-जगह खरोचे मार लेने का फॅशन कब से आ गया "
" ये खरोचे तुम्हारा काम करने के लिए ज़रूरी थी "
" देखो डार्लिंग, तुमने फिर काम की बात छेड़ दी, हमे लगता है कि तुम काम के चक्कर मे कुछ ज़्यादा ही आ गयी हो "
" अब तुम अंकिता के साथ काम करने के लिए स्वतन्त्र हो "
" मतलब "
" उसका किसी से अफेर नही है "
" हम ने कब कहा किसी का किसी से अफेर है "
" तुमने मुझसे अंकिता के अफेर के बारे मे पता लगाने के लिए नही कहा था, ये भी कहा था कि तुम्हे उसके बॉस पर शक है "
" ओह, अच्छा, वो, तुमने को सुबह-सुबह अंकिता का ज़िक्र छेड़कर हमारे दिल का तबला बजा दिया आशा डार्लिंग और ये सुनकर तो ढोल-मृदंग भी बजने लगे है कि उसकी गुटार-गु हमारे अलावा और किसी से नही चल रही है, अपने बॉस से भी नही "
" लेकिन बॉस उससे चलानी चाहता था "
" एक तरफ़ा रेलवे लाइन "
" हां "
" डीटेल मे बताओ "
आशा ने बता दिया.
विजय ने पूछा," ये सब कैसे पता किया "
आशा ने वो भी बता दिया और बोली," बड़ी नेक बंदी है बेचारी, मुझे रामनगर की बस मे ही नही बिठाया बल्कि बस अड्डे से तभी गयी जब बस रामनगर के लिए रवाना हो गयी, मुझे बीच मे बस रुकवा कर उतरना पड़ा, वहाँ से टॅक्सी करके आई हू "
" शेखावत किसे बनाया "
" अशरफ को "
" सारी बाते अंकिता के ही हलक से निकलवाने के लिए जो टेक्नीक तुमने इस्तेमाल की, वो वाकाई तारीफ के काबिल है डार्लिंग, ये कहा जाए तो ज़रा भी ग़लत ना होगा कि तुमने रुमाल को फाड़ कर धोती बना दी है, जी चाहता है, तुम्हारा मुँह चूम लू "
" तो चूमो ना " उसने शरारती अंदाज मे कहा," रोका किसने है, मैं भी हाजिर हू, मेरा मुँह भी "
" सच्ची-मूची चूम लू " विजय ने ऐसे अंदाज मे पूछा जैसे माँ ने बच्चे से खलेने जाने के लिए कह दिया हो.
आशा को क्योंकि मालूम था कि वो वैसा कुछ भी नही करेगा इसलिए बोली," तुममे इतनी हिम्मत नही है "
" हमारी हिम्मत को मत ललकारना मिस गोगियपाशा " विजय सीना फूला कर बोला," वो तो इतनी है कि तुम्हारा मुँह तो ना पिद्दी है ना पिद्दी का शोरबा, हमारी जलाल-ए-मोहब्बत जाग जाए तो हम हिमालय की चोटी तक को चूम ले "
आशा ने खिलखिलाकर हंसते हुवे कहा," मुझे मालूम है की तुम हिमालय की चोटी को तो चूम सकते हो लेकिन मेरे होंठो को नही "
" हम कहते है ललकारो मत हमे "
" ललकार चुकी हू " वो हँसे जा रही थी.
" आए...तो ये लो.. " कहने के साथ वो सोफे से खड़ा हो गया और बगैर घुटनो को मॉड़े आशा की तरफ बढ़ता हुआ बोला," हम भी ललक गये, आ रहे है तुम्हारे गुलाबी और शरबती होंठो को चूमने, फिर मत कहना कि हम ने कोई नाजायज़ हरकत की है "
" आओ ना, धमका किसे रहे हो, मैं तो तैयार हू "
विजय ठीक उसके सामने पहुच गया, सोफे पर बैठी आशा फेस उपर उठाए उसे देख रही थी, होंठो पर अब भी शरारतपूर्ण मुस्कान थी क्योंकि जानती थी, विजय बकवास भले ही चाहे कितनी भी कर ले मगर जो कह रहा था, कर नही सकता.
विजय ने चेहरा नीचे यानी उसके चेहरे की तरफ झुकाना शुरू कर दिया, उस क्षण, आशा ने विजय के चेहरे पर भावनाओ का उमड़ता तूफान देखा था, आँखो मे तैरते लाल डोरे देखे थे और उसे लगा था, शायद विजय बह गया है, शायद उसके दिल मे भी उसके लिए वो ही भावनाए है जो उसके दिल मे उसके लिए है और शायद आज उसने अपनी उन बनावटी हरकतों के बंधन तोड़ दिए है जिनके आवरण मे वो खुद को छिपाए रखता था, शायद आज वो भी अपनी भावनाओ पर काबू नही रख सका है तभी तो, वो उसके चेहरे पर झुकता ही जा रहा है, झुकता ही जा रहा है.
दोनो के होंठ बेहद करीब आ चुके है.
आशा ने उसकी सांसो को अपने चेहरे पर महसूस किया.
बड़ी ही सुगंधित साँसे लगी थी उसे वे.
सारे शरीर मे गुदगुदी सी होती चली गयी.
अगर आप किसी को चाहते है और वो आपके करीब नही आता और लंबे वक़्त बाद, वो एक दिन आ जाता है तो आप अपनी भावनाओ पर काबू नही रख सकते.
ख़ासतौर पर एक लड़की.
लड़की जिसे चाहती है, दिल की गहराईयो से चाहती है और वो उसे चाहे ना चाहे, वो उसे अंतिम साँस तक चाहती रहती है.
आशा के साथ भी ऐसा ही था.
वो विजय को टूटकर चाहती थी.
तभी तो, ऐसा हुआ कि अभी विजय ने उसके होंठो को चूमा नही था, बस ऐसा एहसास हुआ कि चूमने वाला है कि, सारे जिस्म मे आनंद की ऐसी तरंगे दौड़ गयी की आँखे बंद होती चली गयी.
अब उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने होंठो से विजय के सुलगते हुवे होंठो के टच होने का इंतजार था.
लेकिन.
ऐसा हो ना सका.
क्योंकि ठीक तभी, विजय का मोबाइल घनघना उठा था.
" धत्त तेरे की " विजय के मुँह से निकला," इसे कहते है कांधी के ब्याह को सो जोखो, मुश्किल से मुहूरत निकला, उसमे भी खलल डालने के लिए मोबाइल टपक पड़ा "
अपने जिस्म मे सनसनी-सी महसूस करती आशा ने आँखे खोली तो सीधे खड़े विजय को जेब से मोबाइल निकालते देखा.
अपने अंदर उसे ऐसा लगा जैसे गॅस चूल्हे पर रखे उफनने को तैयार दूध के नीचे से अचानक गॅस हटा ली गयी हो.
सारे ज़ज्बात छिन्न-भिन्न से हो गये जबकि विजय ने मोबाइल पर कहा था," तुम हमेशा उउल-जुलूल टाइम पर फोन करते हो दिलजले, एक मिनिट....बस एक मिनिट बाद नही कर सकते थे, हम राबड़ी चाटने वाले थे कि तुमने उसमे मक्खी डाल दी "
" बड़ी अनोखी खबर है गुरु " दूसरी तरफ से कहा गया.
" अजी भाड़ मे गयी तुम्हारी अनोखी खबर, यहाँ हम जूनियर विजय पैदा करने की तैयारी कर रहे थे कि तुमने अड़ंगी अड़ा दी "
" बिजलानी के घर मे चोरी हुई है "
विजय वास्तव मे चौंका," कौन्से बिजलानी के घर मे "
" अशोक बिजलानी के "
" क्या चुराया गया "
" अभी पता नही लगा है, अंजलि का फोन संबंधित थाने मे आया था, वहाँ के इनस्पेक्टर ने पापा को फोन किया और पापा ने मुझसे कहा कि इस बारे मे आपको बता दूं "
" बड़ा समझदार हो गया है तुलाराशि, तुम पहुचो दिलजले, हम भी फ़ौरन से पहले पहुच रहे है "
" ओके " विकास ने संबंध-विच्छेद कर दिया.
मोबाइल जेब मे रखते विजय ने आशा की तरफ देखा तो जाने क्यो झेंप ने आशा के दिल-ओ-दिमाग़ पर काबू कर लिया, लाज की ज़्याददाती के कारण उसका चेहरा सुर्ख लाल होता चला गया.
उसे लगा, कुछ देर पहले वो कौनसी दुनिया मे पहुच गयी थी.
विजय बोला," मजबूरी है आशा डार्लिंग, फिलहाल जूनियर विजय को पैदा करने की कोशिश को स्थगित करते है "
आशा ने सोचा, ये क्या कह रहा है विजय.
जूनियर विजय.
आह.
कितना मीठा एहसास है.
क्या वास्तव मे ऐसा हो सकता है कि जूनियर विजय उसकी कोख से जनम ले.
ऐसा विजय, जिसका डंका सारे संसार मे बजे.
अपने अंदर ही खो गयी वो, शायद इसलिए कुछ ना कह सकी जबकि विजय कह रहा था," उम्मीद है तुमने हमारे शब्दो पर गौर फर्मा लिया होगा मिस गोगियपाशा, हम ने प्रोग्राम कॅन्सल नही किया है बल्कि स्थगित किया है "
आशा चुप रही.
सूझा ही नही कि क्या कहे.
" चलते है " कहने के बाद विजय कमरे से बाहर चला गया था जबकि आशा वही बैठी रह गयी.
जैसे मूर्ति बन गयी हो.
जैसे सोफे ने जाकड़ लिया हो.
जहाँ मे विचारो का अंधड़ चल रहा था, क्या विजय ने सच कहा कि उसने प्रोग्राम स्थगित किया है, कॅन्सल नही.
आज वो बह गया था.
अपनी भावनाओ पर काबू ना रख पाया.
इसका मतलब, फिर किसी दिन ऐसा दिन आएगा.
नही, वो हमेशा की तरह बकवास कर रहा था.
कभी लगता, वो बह गया था.
कभी लगता, बकवास कर रहा था.
आशा समझ ना सकी कि सच्चाई क्या है.
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