RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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अंजलि ने तो कह भी दिया," मुझे तो ऐसी कोई चीज़ नही सूझ रही और मुझसे वो कोई चीज़ छुपाते भी नही थे "
" तुम्हे " विजय ने रिप्पी से पूछा.
" आपको ऐसा क्यू लगता है कि जिस चीज़ के लिए किसी ने यहाँ की ऐसी हालत की है वो पापा की ही होगी "
" ये ऑफीस ही तुम्हारे पापा का है "
" ऑफीस क्यू, पूरा घर ही पापा का है " रिप्पी ने कहा," वे अपनी चीज़ कही भी रख सकते थे "
" ये बात बिल्कुल करेक्ट कही तुमने " विजय बोला," पूरा घर बिजलानी साहब का है, वे अपनी कोई भी चीज़ कही भी रख सकते थे, फिर ऑफीस को ही क्यू खंगाला गया, पूरे घर को क्यो नही खंगाला गया, इसका तो एक ही मतलब निकलता है, वो जो कोई भी है, उसे मालूम था कि जिस चीज़ की उसे तलाश है उसे बिजलानी साहब ने अपने ऑफीस मे ही रखा होगा "
" कौन हो सकता है ऐसा आदमी "
" ये सवाल हमे आपसे पूछना चाहिए "
" हमे तो बिल्कुल अनुमान नही है "
" संदीप के बारे मे क्या ख़याल है "
" स...संदीप "
विजय ने इस एक्मात्र शब्द पर ज़ोर दिया," जी "
" उनके बारे मे आपको क्या पता "
" आप सवाल बहुत कर रही है " विजय बोला," कभी ये कि हमे रास्ते के बारे मे कैसे पता, कभी ये कि अंकिता के बारे मे बिजलानी साहब के बदले हुवे विचारो के बारे मे कैसे पता और अब, संदीप के बारे मे क्या पता जबकि हम 100 बातों का एक जवाब दे चुके है, ये कि हमे ऐसी बातो का पता लगाने के पैसे मिलते है, इतने लंबे भाषण का केवल एक ही मतलब है, यही कि, सवाल ना करे बल्कि सवालो के जवाब दे "
" वे अच्छे आदमी नही है " अंजलि के चेहरे पर घृणा फैल गयी थी," लेकिन बिजलानी साहब की हत्या नही कर सकते "
" ये कैसा जवाब हुआ, जब एक आदमी अच्छा है ही नही तो हत्या क्यू नही कर सकता "
" क्योंकि उन्हे ऐसी ज़रूरत ही नही बची है "
" मतलब क्या हुआ इस अटपटी बात का "
" सबकुछ तो वर्षो पहले लूट चुके है वे हमारा " अंजलि कहती चली गयी," अब क्या बचा है जिनके लिए इनकी हत्या करेंगे "
" मतलब "
" जब आपको इतना सब मालूम है तो ये भी मालूम होगा कि रिप्पी के दादाजी की जायदाद को लेकर दोनो भाइयो मे झगड़ा हुआ था, मुक़दमेबाजी भी हुई थी, उस दौर मे अगर बिजलानी साहब की स्वाभाविक मौत भी हो जाती तो भी मुझे यही शक होता कि कही संदीप ने ही तो मर्डर नही कर दिया है लेकिन अब, जबकि वे हमारा सबकुछ हड़प चुके है, क़ानून से भी मुक़दमा जीत चुके है, हमारे बीच कोई संबंध ही नही रहा, ना भाईचारा, ना दुश्मनी, अब भला उन्हे इनका मर्डर करने की क्या ज़रूरत रह गयी है "
" झगड़े की जड़ तो आप ही थी "
" हां, ये सच है, झगड़े की जड़ तो मैं ही थी " अंजलि के चेहरे पर कड़वाहट सी फैलती नज़र आई," बल्कि अगर ये कहा जाए कि झगड़े की जड़ मेरा और अशोक का प्यार था तो ज़्यादा मुनासिब होगा, जब अशोक ने अपने पिता से कहा कि वे मुझसे शादी करना चाहते है तो वे भड़क गये, वे किसी भी हालत मे इस शादी के लिए तैयार नही थे, पर अशोक का कहना था कि वे मेरे बगैर नही जी सकते.
दोनो मे ठन गयी.
संदीप ने उन हालात का फ़ायडा उठाया.
वे ये कहकर पापा को भड़काते रहते की अशोक ने आपकी सुनी ही कब है जो आज सुनेगा.
पर मेरी मदर-इन-लॉ बहुत अच्छी थी.
वे पापा को समझाती रही.
कहती रही कि बच्चे की मर्ज़ी से ही शादी कर दी जाए तो क्या बुराई है और एक दिन उन्हे इसके लिए तैयार कर ही लिया.
शादी हो गयी.
मैं उस घर मे पहुच गयी लेकिन संदीप के दिल मे तो जैसे बरछिया चल रही थी, उन्होने पापा को भड़कना बंद नही किया.
मेरी छोटी-मोटी बातो से उनके कान भरते रहे.
किसी घटना मे अगर मेरी ग़लती नही भी होती थी तो वे उसे पापा के सामने इस तरह से पेश करते थे जैसे मैंने जाने उनका कितना बड़ा अपमान कर दिया हो.
पापा तो पहले ही दिल से मुझे स्वीकार ना कर सके थे.
उस पर संदीप का जहर.
धीरे-धीरे वो जहर पापा की शिराओ मे मेरे लिए नफ़रत बनकर दौड़ने लगा और एक महीने से भी पहले एक दिन ऐसा आ गया कि उन्होने मुझे और अशोक को घर से निकाल दिया.
उस वक़्त पापा ने माँ की भी एक ना सुनी.
अशोक भी बहुत खुद्दार आदमी थे.
मैंने कहा बड़े तो गुस्से मे कह ही देते है, हमे घर नही छोड़ना चाहिए मगर उन्होने मेरी भी एक ना सुनी "
" मगर हम ने तो सुना है कि अशोक बिजलानी साहब शुरू से ही विद्रोही किस्म के थे, अपने पिता की एक नही सुनते थे, पिता चाहते थे कि अशोक पुस्तैनि काम देखे मगर अशोक ने ज़िद करके वकालत की पढ़ाई की, वकील बने "
" इसमे क्या ग़लत किया उन्होने " अंजलि ने पूछा," कोई युवा लड़का अपनी इच्छा से अपना जीवन गुजारना चाहता है, अपनी इच्छा से अपना कॅरियर चुनता है तो इसमे ग़लत क्या है "
विजय को चुप रह जाना पड़ा क्योंकि अंजलि ग़लत नही कह रही थी, वो कहती चली गयी," बस, इसी किस्म की बातो का लाभ उठाकर संदीप पापा के दिल मे जहर भरते थे "
" हम ने सुना है कि आप संयुक्त परिवार मे रहना ही नही चाहती थी, अपने सास-ससुर, जेठ के प्रति आपके दिल मे कोई सम्मान नही था इसलिए सबका अपमान करती रहती थी, यहा तक की अपनी सास का भी अपमान किया और हालात ऐसे बना दिए की आपके ससुर आपको और अशोक को घर से निकाल दे "
" संदीप ने ही कहा होगा, और किससे सुना होगा आपने, आपसे भी उन्होने वही बाते कही है जिन्हे पापा से कहकर उनके दिल मे मेरे और अशोक के प्रति जहर भरते थे, मेरा दिल ही जानता है कि मैं संयुक्त परिवार मे रहने की कितनी ख्वाइश्मन्द थी, लेकिन ऐसा हो ना सका क्योंकि संदीप ऐसा नही चाहते थे "
" क्यो नही चाहते थे "
" इस रहस्य से पापा के उठवाने वाले दिन परदा उठा, तब, जब उनकी वसीयत खोली गयी, छोटे बेटे के नाम फूटी कौड़ी नही की गयी थी, ये था, इनके और मेरे प्रति पापा के दिल मे जहर भरने का कारण, इतना जहर भर दिया गया था कि पापा की अरबो की जायदाद के अकेले मालिक बन बैठे.
अशोक भड़क गये.
इतने ज़्यादा की मेरे समझाने पर भी ना माने, मैंने काफ़ी कहा, हमे किसी की जायदाद का करना ही क्या है, आपका कमाया हुआ आज क्या नही है हमारे पास, एक ही बेटी है, अरबो का क्या करना है मगर वे नही माने, जायदाद मे हिस्सेदारी का मुक़दमा कर दिया लेकिन संदीप की पेशब्ंदी इतनी पुख़्ता थी कि ये उसे वकील होने के बावजूद ना तोड़ सके और मुक़दमा हार गये "
विजय समझ सकता था कि एक ही स्टोरी को दोनो पक्षो द्वारा पेश करने मे इतना फ़र्क तो स्वाभाविक है.
हर पक्ष बात को अपने तरीके से कहता है.
पर एक बात महसूस की थी उसने कि अंजलि ने एक बार भी संदीप के लिए अपशब्द का प्रयोग नही किया था.
तू-तडाक की भाषा तक नही.
उसे एक बार भी उसे नही बल्कि उन्हे ही कहा था.
इसलिए उसे लगा, इस स्टोरी का अंजलि वाला पक्ष सच के ज़्यादा करीब हो सकता है.
काफ़ी देर की चुप्पी के बाद विजय ने कहा," आपको पूरा यकीन है कि बिजलानी साहब की हत्या संदीप बिजलानी ने नही की हो सकती "
" संदीप पर सुई की नोक के बराबर भी यकीन नही है लेकिन फिर वही कहूँगी, अब उन्हे इनकी हत्या करने की क्या ज़रूरत थी "
" बहरहाल, अशोक वकील थे, हो सकता है कि वे जायदाद मे अपना हिस्सा लेने के लिए किसी और जुगत मे लगे हो, इस बारे मे संदीप को भनक लग गयी हो, अशोक की इस बार की तैयारी इतनी पुख़्ता हो कि संदीप को लगा हो कि इस पैंतरे पर वो क़ानूनी लड़ाई मे हार जाएगा इसलिए उसने ऐसी नौबत आने से पहले जड़ को ही ख़तम करने का निस्चय कर लिया हो "
अंजलि एकदम से कुछ ना कह सकी.
विजय की तरफ देखती रह गयी वो.
फिर बोली," मेरे ख़याल से आप कल्पनाएं कर रहे है "
" बेशक, है तो अभी ये कल्पना ही "
" मुझे नही लगता कि ये सच हो सकता है "
" वजह "
" बिजलानी साहब ऐसी कोई तैयारी नही कर रहे थे "
" आपको क्या पता "
" कह चुकी हूँ, वे मुझसे कुछ नही छुपाते थे और..... "
" और "
" मैं जानती हूँ कि वे ये मानते थे कि अब कुछ नही हो सकता, वे अक्सर कहते थे, कम्बख़्त ने ऐसी पेशब्ंदी की है की लड़ने का कोई रास्ता ही नही छोड़ा है "
" हो सकता है कि कोई रास्ता सूझ गया हो "
" सूझता तो मुझे ज़रूर बताते "
" मुमकिन है की ये सोचकर ना बताया हो कि आप फिर समझाने की कोशिश करेंगी, इस झंझट से दूर रहने के लिए कहेंगी "
" आप इस बात पर इतना ज़ोर क्यू डाल रहे है "
" ऑफीस की हालत के कारण "
" मतलब "
" ये कोशिश जायदाद हासिल करने के लिए बिजलानी साहब द्वारा तैयार किए गये उन कागज़ातो को हासिल करने के लिए की गयी हो सकती है, जिनकी वजह से उनका कत्ल किया गया "
अंजलि के दिमाग़ को झटका लगा.
इस बार तो वो विजय की तरफ देखती ही रह गयी.
कुछ बोल ना सकी.
जबकि विजय ने आगे कहा," क्या यहाँ की हालत ये नही बता रही कि किसी ने ऐसे ही किसी डॉक्युमेंट को तलाशने की कोशिश की है "
" है तो ये अब भी कल्पना ही लेकिन.... "
" लेकिन "
" आपके इस तर्क के बाद लगता है कि..... हो सकता है "
इस बार रिप्पी बोली," ऐसा होता तो संदीप ने कागजात हासिल करने की कोशिश पापा के मर्डर से पहले या मर्डर के वक़्त की होती, बाद मे क्यू करता "
विजय ने उसकी तरफ देखा, कहा," तुम अपने ताउजी को उनका नाम लेकर पुकारती हो "
" उसका तो नाम लेने मे भी मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरी जीभ पर किसी ने अंगारे रख दिए हो " रिप्पी के चेहरे पर असीम घृणा के भाव थे," वो मेरा ताउ कैसे हो सकता है जिसने मेरे मम्मी-पापा पर इतने ज़ुल्म किए हो "
" ओके " विजय ने कहा," तुम्हारे सवाल का जवाब ये है कि हो सकता है कि इस बात का ख़याल ही उसे बाद मे आया हो कि मर्डर के साथ-साथ वे कागज भी गायब कर देने चाहिए थे, मुमकिन है कि वे तुम्हारे हाथ लग जाए और तुम उनके बेस पर किसी और वकील के द्वारा मुक़दमा ठोक दो "
" कर तो वो कुछ भी सकता है लेकिन.... "
" लेकिन "
" मुझे तो अब भी यही लगता है कि पापा ने आत्महत्या ही की है और उसकी ज़िम्मेदार मैं हूँ "
" अच्छा एक बात बताइए " एकाएक विजय पुनः अंजलि से मुखातिब हुआ," अगर संदीप आए और आपसे ये कहे कि आपके और रिप्पी के सिर पर भी अब अशोक का साया नही रहा और उसका अपना कोई परिवार नही है, ऐसे हालात मे क्यू ना हम साथ रहे, रिप्पी को अभिभावक मिल जाएगा और उसे परिवार, तो क्या आप इस ऑफर को कबूल करेंगी "
" नही " रिप्पी के दाँत भिन्च गये थे.
विजय ने अंजलि से कहा," हम ने आपसे पूछा है "
" आपके द्वारा की गयी ये एक ऐसी कलपना है जो कभी भी, किसी भी हालत मे साकार नही हो सकती "
विजय ने उसकी आँखो मे आँखे डालकर पूछा था," वो आ नही सकता या आ भी गया तो आप कबूल नही करेंगी "
" वो आएगा ही नही "
" वजह "
" उनकी मौत वाले दिन आया था, रिप्पी ने इतना अपमानित करके भगा दिया कि अब कभी नही आएगा "
" मान लो आ जाए "
" ऐसी बात कैसे मान लूँ जो हो ही नही सकती "
" हो सकती है, उसने ये बात हम से कही है "
अंजलि बुरी तरह चौंकी," आपसे कही है "
" हाँ "
" ये कि वो हमे अपने साथ रखना चाहता है "
" हां "
" हो ही नही सकता "
" हम ने बताया ना, हो चुका है, उसने हम से कहा है, अब तो केवल हम आपके विचार जानना चाहते है "
" नही "
" क्या नही "
" हम किसी हालत मे साथ नही रहेंगे "
" वक़्त बड़े से बड़े जख्म को भर देता है "
" उनके दिए हुए जख्म ऐसे नही है जो भर जाए.... और क्यो रहे, ज़रूरत क्या पड़ी है हमे, हमे क्या कमी है "
" बात आर्थिक सुरक्षा की नही, सामाजिक सुरक्षा की है "
" हमारी सामाजिक सुरक्षा को ही क्या ख़तरा है, कुछ दिनो मे रिप्पी की पढ़ाई पूरी हो जाएगी और ये उनकी कुर्सी संभाल लेगी "
" मतलब आप संदीप के ऑफर को कबूल नही करेंगी "
" किसी कीमत पर नही "
विजय ने ठंडी साँस ली, मुँह से निकला," ओके "
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