RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
40
बहुत ही तनावपूर्ण सन्नाटा छा गया वहाँ.
ऐसा, कि जिसे तोड़ने की हिम्मत कोई नही कर पा रहा था, अंततः इंदु बोली," इजाज़त दो तो मैं कुछ कहूँ विजय "
" हम सिर्फ़ सच सुनना चाहते है "
" मेरे ख़याल से शुभम और संचित सच बोल रहे है "
" किस्सा ख़तम " विजय बोला.
राजन, कंचन और हेमंत ने बुरी तरह चौंक कर इंदु की तरफ देखा था, चेहरो पर ऐसे भाव थे जैसे कह रहे हो कि ये तुम क्या कह रही हो, इंदु ने आगे कहा," लेकिन इसके बावजूद ये बात एकदम झूठ है कि राजन और कंचन के बीच कोई संबंध है या उस रात वैसा कुछ हुआ था, जैसा शुभम और संचित ने बताया "
" दोहरी बात का क्या मतलब हुआ " विजय फिर भन्ना गया.
" विजय, मेरी बात थोड़ी शांति से सुनो "
" सुनाइये "
इंदु ने भूमिका बाँधी," ये तो मानोगे कि औलाद को उसकी माँ से ज़्यादा कोई नही जान सकता "
" क्या मतलब हुआ इस बात का "
" पहले हां या ना कहो, मैं ठीक कह रही हूँ या ग़लत "
" बात ठीक है "
" उस नाते बता रही हू, बचपन से ही कान्हा एक ऐसा लड़का था जिसमे कहानिया गढ़ने की प्रवृत्ति थी, वो ऐसी-ऐसी कहानिया गढ़कर सुना देता था जिन्हे सुनकर सुनने वालो को सहज ही उससे सहानुभूती हो जाती थी जबकि कहानी झूठी होती थी "
थोड़े चौंके हुवे लहजे मे विजय ने पूछा," क्या आप ये कहना चाहती है कि कान्हा ने शुभम और संचित से झूठ बोला था "
" अगर शुभम और संचित ये बात कह रहे है कि कान्हा ने उनसे ये सब कहा था तो मैं दावे के साथ कह सकती हू कि वो बात कान्हा ने उन्हे अपने मन से गढ़कर सुनाई थी "
" अब आप हदें पार कर रही है "
" ऐसा क्यो सोच रहे है आप "
विजय ने कहा," जब आप कान्हा को ही झूठा कहने लगी है तो और हम क्या कह सकते है "
" फ़र्क को नही समझ पा रहे हो विजय, मैं कान्हा को झूठा नही कह रही, ये बता रही हू कि उसकी प्रवृत्ति क्या थी "
" जब सारी आड ख़तम हो गयी तो आपने कान्हा की आड़ ले ली " विजय कहता चला गया," अब कान्हा तो यहाँ आकर ये बताने से रहा कि जो कुछ भी उसने शुभम और संचित से कहा वो सच था या उसकी बनाई हुई कहानी "
" आप उसकी क्लास टीचर से बात कर सकते है " इंदु अपनी बात से पीछे नही हटी," डॉक्टर रजनीश से बात कर सकते है "
" डॉक्टर रजनीश कौन हुआ "
" शहर के प्रसिद्ध पाइकॉलजिस्ट है, कान्हा जब स्कूल से लौटने पर अक्सर मुझसे ये कहने लगा कि आज बस मे उसे फलाना लड़के ने मारा, आज उसने अकेले ही 4 लड़को को चित्त कर दिया तो एक दिन मैं स्कूल पहुच गयी, उसकी क्लास टीचर से कहा कि बस मे रोज ये क्या होता है तो उसने कहा, क्या पिच्छले हफ्ते आप और आपके हज़्बेंड कान्हा को दो दिन की छुट्टी मे गोआ घुमाने ले गये थे, मैंने कहा, नही तो, तब उसने बताया कि पिच्छले हफ्ते कान्हा अपना होमवर्क पूरा करके नही आया था, मैंने कारण पूछा तो उसने यही बताया की गोआ जाने के कारण ऐसा नही कर सका था, मैं ये सुनकर हैरान रह गयी, क्लास टीचर ने कहा, कान्हा मे ये प्रवृत्ति है, कभी वो अपनी किसी ग़लती को छुपाने के लिए, कभी दूसरो की सहानुभूति पाने के लिए और कभी खुद को बहादुर साबित करने के लिए झूठी कहानियाँ गढ़कर सुना देता है, मैंने मालूम कर लिया है क्योंकि दूसरे बच्चो ने मुझसे शिकायत की थी, बस मे कभी वैसी घटनाए नही घटी जैसे उसने आपको बताई है, मेरे ख़याल से आप उसे किसी साइकॉलजिस्ट को दिखाइए, पहले भी काई बच्चो मे ऐसी प्रवृत्ति पाई जाती रही है, ये एक किस्म की बीमारी है जो टीवी बच्चो के दिमाग़ मे परोस रहा है, तब मैं डॉक्टर रजनीश से मिली, उसने क्लास टीचर की बात की पुष्टि की, कहा की आजकल बच्चो मे ये बीमारी आम बात हो गयी है "
विजय सोचने पर मजबूर हो गया क्योंकि ऐसे बच्चो की कयि कहानियाँ वो खुद भी अख़बारो मे पढ़ चुका था.
जहाँ मे उस बच्चे की स्टोरी उभरी जिसने सारे स्कूल मे ये बात फैला दी थी कि उसके पापा रोज उसकी मम्मी को बहुत मारते है क्योंकि पापा एक दूसरी औरत को चाहते है जबकि जाँच मे पता लगा कि एक सिरे से दूसरे सिरे तक वैसा कुछ भी नही था, ना उसके पापा उसकी मम्मी को मारते थे ना ही दूसरी औरत का अस्तित्व था, ये कहानी उसने एक सीरियल को देखकर गढ़ी थी, उस सबको याद करके विजय ने केवल इतना ही कहा," तो आप ये कहना चाहती है कि कान्हा ने वो सब बीमारी के तहत कह दिया होगा "
इंदु बोली," ये बात मैं इस आधार पर कह रही हूँ क्योंकि अच्छी तरह जानती हू कि मैंने किसी भी रात इतनी पी ही नही है कि बेसूध हो गयी होउ "
" और वो.... अपने संबंध मीना से बताने वाली बात " विजय ने कहा," वे संबंध तो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से भी साबित हो चुके है, मौत से पहले दोनो सेक्स कर रहे थे "
" उस संबंध मे मैं कुछ नही कह सकती, डॉक्टर रजनीश के मुताबिक ऐसे बच्चो के बारे मे ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि वे मनगढ़ंत कहानी सुना रहे है या सच बोल रहे है "
" लगता है, डॉक्टर रजनीश से मिलना पड़ेगा "
" मैं उनका अड्रेस दे दूँगी "
" कान्हा की क्लास टीचर का भी "
" ज़रूर "
" अब आपको इनस्पेक्टर राघवन को तो माफ़ कर ही देना चाहिए क्योंकि साबित हो चुका है, वो स्टोरी कम से कम इसने नही गढ़ी थी, जो कहा, शुभम और संचित ने कहा, और उनसे कान्हा ने, ये पता लगाना शेष रहा कि ये बात उसने सच कही थी या बीमारी के कारण गप्प मारने वाली आदत के तहत "
चारो चुप रहे.
विजय ने राघवन से कहा," अब हमे नगर निगम के उस ट्रक ड्राइवर का नाम-पता चाहिए राघवन प्यारे जिसे मीना की लाश सबसे पहले देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था "
" वो आपके जेहन मे कहाँ से आ गया "
" हमारे जेहन के ड्रॉयिंगरूम मे सबकुछ सज़ा रहता है प्यारे, मगर उसे बाहर तभी निकालते है जब ज़रूरत होती है "
" उसका अड्रेस मुझे मुँहज़ुबानी तो याद नही है, इस केस की फाइल मे दर्ज होगा "
" अपने किसी ऐसे चेले-चपाटे को फोन करो जो इस वक़्त थाने मे हो, उससे कहो फाइल मे देखकर उसका नाम-पता बताए "
राघवन ने अपना मोबाइल निकाला, थाने बात की और उसके बाद विजय को बताया," उसका नाम जगदीश चंडोला है "
" अड्रेस "
राघवन ने बता दिया.
-------------------------------------
विजय-विकास जगदीश चंडोला के घर की तरफ निकले थे मगर रास्ते मे ही विजय के मोबाइल पर रघुनाथ का फोन आ गया, रिसीव करते हुवे विजय ने कहा," कहो प्यारे तुलाराशि, क्यो परेशान हो "
" मेरे मोबाइल पर उत्सव की माँ का फोन आया था "
" उत्सव " विजय चौंके बगैर ना रह सका.
" भूल गये, बिजलानी का असिस्टेंट "
" वो तो याद है प्यारे लेकिन क्यूँ " विजय ने पूछा," उसकी माँ का फोन तुम्हारे मोबाइल पर क्यो पधारा "
" रो रही थी, कह रही थी कि किसी लाल दाढ़ी वाले आदमी ने उनके घर मे घुसकर उसकी और उत्सव की बहुत पिटाई की है "
विजय और बुरी तरह चौंका," क्यो "
" ये उसे पता नही था लेकिन शायद उत्सव को पता है क्योंकि दाढ़ी वाले ने उसे दूसरे कमरे मे ले जाकर सवाल-जवाब किए थे "
" फोन तुम्हे ही क्यो किया गया "
" मैंने भी ये सवाल पूछा था, उसने बताया, उत्सव ने आप ही को फोन करने के लिए कहा है और ये भी कहा है कि मैं इस बारे मे मिस्टर. विजय और विकास को बता दूं "
" तुम्हारा नंबर कहाँ से मिला "
" फोन मेरे सरकारी नंबर पर आया था, वो रोज अख़बारो मे छपता है ताकि आम आदमी मुझसे सीधा संपर्क कर सके "
" और कोई जानकारी "
" अभी तो नही है, मैंने इलाक़े के इनस्पेक्टर को भेज दिया है "
" अड्रेस दो प्यारे, हम वहाँ पहुच रहे है "
" मैं भी पहुचु क्या "
" फिलहाल ज़रूरत नही है, अपने इनस्पेक्टर से ज़रूर कह देना कि हमे अपने तरीके से जाँच और पूछताछ करने दे " कहने के तुरंत बाद विजय ने संबंध-विच्छेद किया और विकास से बोला," जगदीश मिया को बाद मे भुगत लेंगे दिलजले, फ्फिलहाल यू-टर्न ले लो "
" क्या हुआ "
जिस वक़्त विजय उसे बता रहा था उस वक़्त उसके मोबाइल पर एसएमएस आने की टोन उभरी.
उसने देखा, रघुनाथ ने उत्सव का अड्रेस भेजा था.
विजय ने विकास को बताया.
" ये लाल बालों वाला तो अपनी सक्रियता मे ज़रूरत से भी ज़्यादा तेज़ी दिखा रहा है गुरु "
" लगता है, उसे बड़ी शिद्दत से किसी चीज़ की तलाश है "
" क्या चीज़ हो सकती है वो "
" फिलहाल ये तो नही कहा जा सकता मगर इतना तय है कि अगर वो चीज़ हमारे हाथ लग गयी तो हम उसकी दाढ़ी नोच लेंगे "
" मतलब "
" शायद उसे ऐसा ही लगता है इसलिए इतना पगलाया हुआ है और हम से पहले उस चीज़ तक पहुचना चाहता है "
विकास चुप रह गया.
उत्सव के घर पहुचने मे 30 मिनिट लगे.
वो आज़ाद रोड पर स्थित, 'चिरंजीवी' नामक बिल्डिंग मे थर्ड फ्लोर पर, थ्री बेडरूम फ्लॅट मे रहता था.
फ्लॅट के बाहर तीसरी मंज़िल पर रहने वाले लोगो की छोटी-सी भीड़ लगी हुई थी.
उनमे महिलाए ज़्यादा थी.
विजय समझ सकता था कि दोपहर के इस वक़्त जेंट्स अपने काम पर होंगे, पुरुषो मे ज़्यादातर रिटाइर किस्म के लोग थे या घारलू नौकर टाइप के.
फ्लॅट के गाते पे दो पोलीस वाले खड़े हुवे थे जो उस छोटी-सी भीड़ को अंदर घुसने से रोकने का काम कर रहे थे.
उन्होने विजय-विकास को भी रोका.
विकास ने पूछा," तुम्हारा इनस्पेक्टर कहाँ है "
" अंदर है " एक ने कहा.
" उनसे कहो, मिस्टर. विजय आए है "
" क्या मैं जान सकता हूँ आप.... "
" जो कहा गया है वो करो " विकास के लहजे मे ऐसी फटकार थी कि वो अपनी बात पूरी ना कर सका और तुरंत अंदर चला गया.
मुश्किल से आधे मिनिट बाद वापिस आकर बोला," साहब ने आपको अंदर बुलाया है "
विजय-विकास ने ड्रॉइग्रूम मे कदम रखते ही देखा, उत्सव और एक अधेड़ औरत ज़ख्मी थे.
समझा जा सकता था कि वो उत्सव की माँ है.
उत्सव कुछ ज़्यादा ही ज़ख्मी था.
जिस्म के काई हिस्सो से खून निकल रहा था.
जबड़े सहित मुँह पर जबरदस्त चोटे थी.
ऐसी हालत थी उसकी जैसे टॉर्चर किया गया हो जबकि माँ के मस्तक पर बस एक गुल्ला पड़ा हुआ था.
उस वक़्त तो वे संभले हुए थे लेकिन हालत बता रही थी कि दोनो खूब रोए है.
इनस्पेक्टर ने विजय-विकास का स्वागत पूरी गरम्जोशी से किया, करता भी क्यो नही, सुपेरिटेंडेंट साहब का फोन जो आ गया था.
" इन लोगो का कहना ये है सर की.... "
इनस्पेक्टर ने कुछ बताने की कोशिश की ही थी कि विजय ने उसकी बात काटकर सपाट लहजे मे कहा," हम आ गये है जनाब, आप फुटास की गोली ले सकते है "
" ज...जी " वो कुछ समझ ना पाया.
विकास ने कहा," हम देख लेंगे, आप थाने जाइए "
" क...क्या अब यहाँ पोलीस की ज़रूरत नही है "
" हम जो आ गये है " विजय ने कहा," पोलीस के ताउ जी "
ना इनस्पेक्टर की कुछ समझ मे आया, ना कुछ कहते बना, थोड़ा संभला तो बस इतना ही कह सका," हम चले जाएँगे तो भीड़ अंदर घुस आएगी, तब शायद आपको दिक्कत हो "
विकास समझ चुका था कि विजय कोई भी कार्यवाही उसकी मौजूदगी मे नही करना चाहता इसलिए इनस्पेक्टर से बोला," आप भी बाहर खड़े हो जाइए और किसी को अंदर ना आने देना "
असमंजस मे फँसा इनस्पेक्टर बाहर चला गया.
" हां तो तीज-त्योहार प्यारे " विजय ने उत्सव से कहा," कौन कबड्डी खेल गया तुम्हारे साथ "
" वो शायद वही था जिसका ज़िक्र आपने बिजलानी सर के ऑफीस मे किया था "
" कैसे कह सकते हो "
" वो लंबा और तांदुरुस्त था, बाल और दाढ़ी लाल थे "
" कैसे आया, तुम उस वक़्त क्या कर रहे थे, शुरू से बताओ "
" उत्सव तभी-तभी आया था, अपने कमरे मे था, मैं किचन मे " उत्सव की माँ बोली," बेल बजी, मैं सीधे स्वाभाव दरवाजा खोलने गयी, खोलते ही जैसे आअफ़त टूट पड़ी, कुछ समझ भी नही पाई थी कि उसका मजबूत हाथ मेरे मुँह पर आ जमा, मैंने चीखने की कोशिश की लेकिन आवाज़ मुँह से बाहर ना निकल सकी, मुझे लिए-लिए वो मुड़ा और दरवाजा वापिस बंद कर दिया "
" फिर "
|