RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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" उस वक़्त तो मेरे होश ही उड़ गये जब उसने अपने दूसरे हाथ मे मौजूद रेवोल्वर मेरी कनपटी से सटा दी और बहुत ही ख़तरनाक स्वर मे गुर्राया, उत्सव कहाँ है.
मैं समझ गयी कि वो उत्सव को कोई नुकसान पहुचाने आया है इसलिए इशारे से कहा कि वो घर पर नही है.
वो फिर गुर्राया, झूठ बोलने की कोशिश मत कर, मुझे मालूम है कि वो कुछ ही देर पहले बिजलानी के यहाँ से आया है और इस वक़्त फ्लॅट मे ही है, बस ये बता, कौन से कमरे मे है.
मैंने फिर भी इनकार किया लेकिन तभी अपने कमरे मे मौजूद उत्सव ने मुझे माँ कहकर पुकारा.
मैं उसे सावधान करना चाहती थी लेकिन मुँह से 'गु-गु' की आवाज़ के अलावा कोई आवाज़ ना निकल सकी.
वो समझ चुका था कि उत्सव अपने कमरे मे है.
उसने बहुत ज़ोर से रेवोल्वर मेरे माथे पर मारा.
मेरे हलक से चीख निकली थी मगर उस चीख को उसके हाथ ने मेरे मुँह से बाहर नही निकलने दिया.
उस वक़्त मेरी आँखो के सामने रंग-बिरंगे तारे नाच रहे थे और मैं अपना होश खोती जा रही थी कि उत्सव मुझे पुकारता ड्रॉयिंगरूम मे आ गया, अपनी मिचमिचाती आँखो से मैं बस ये देख पाई कि वो उत्सव की तरफ रेवोल्वर तानते हुवे गरजा था, हिलने की कोशिश की तो दोनो को मार दूँगा.
बस, उसके बाद मुझे कुछ नही पता, मैंने एक धदाम की आवाज़ सुनी थी, वो मेरे फर्श पर गिरने की आवाज़ थी.
मैं बेहोश हो चुकी थी और जब मैं होश मे आई तो..... "
" एक मिनिट.... एक मिनिट " विजय ने उसे टोका," होश मे आने का किस्सा बाद मे बताईएगा, उससे पहले तीज-त्योहार को बताने दीजिए कि आपके बेहोश होने के बाद क्या हुआ "
" मुझे भूख लगी थी, इसलिए बार-बार मा को पुकार रहा था " उत्सव ने कहना शुरू किया," लेकिन जब रेस्पॉन्स ना मिला तो ड्रॉयिंगरूम मे आ गया, यहा का दृश्य देखकर तो होश ही उड़ गये, स्वाभाविक रूप से मेरे मुँह से चीख निकलने वाली थी लेकिन जब उसने रेवोल्वर टानकर हम दोनो को मारने की धमकी दी तो चीख हलक मे ही घुटकर रह गयी.
मुँह खुला का खुला ही रह गया था.
उसने रेवोल्वर हिलाते हुवे कहा था, अंदर चल.
'म...मा' मैंने फर्श पर पड़ी माँ की तरफ देखा.
'कुछ नही हुआ है उसे' वो गुर्राया 'सिर्फ़ बेहोश हुई है, कुछ देर बाद होश मे आ जाएगी'
मेरे मुँह से स्वतः ये शब्द निकले 'तुम वही हो ना जिसने सर के ऑफीस मे कुछ तलाश करने की कोशिश की थी'
'अंदर चल' वो फिर गुर्राया.
मेरी सिट्टी-पिटी गुम हो चुकी थी.
उसका आदेश मानने के अलावा कोई चारा ना था.
मुझे कमरे मे ले जाने के बाद बोला 'कहाँ है वो'
'क्या' मैंने पूछा.
'वही, जिसे मैंने बिजलानी के ऑफीस मे ढूँढने की कोशिश की थी और जिसकी तलाश मे मैं यहाँ आया हूँ'
'म..मुझे क्या पता कि तुम क्या ढूँढ रहे हो'
'ज़्यादा होशियार बनने की कोशिश मत कर, तुझे पता है'
'कसम से' मैं लगभग रो ही पड़ा था 'मुझे नही पता'
'मुझे बेवकूफ़ बनाने की कोशिश मत कर, ऐसा हो ही नही सकता कि तुम तीनो मे से किसी को उसके बारे मे पता ना हो'
मैं इतना ही कह सका 'मुझे नही पता कि तुम किन तीनो की बात कह रहे हो मगर मुझे कुछ नही पता'
लेकिन उसने विश्वास नही किया.
जेब से रेशम की डोरी निकालकर मुझे एक कुर्सी के साथ बाँध दिया, अपनी जेब से निकालकर मेरे मुँह मे एक रुमाल ठूंस दिया, इस कदर की चाहकर भी मुँह से आवाज़ नही निकाल सकता था और तब, उसने मुझे टॉर्चर करने का सिलसिला शुरू कर दिया.
बहुत मारा मुझे.
बार-बार कहे चले जा रहा था कि मुझे उस चीज़ के बारे मे मालूम है और मैं जानबूझकर नही बता रहा हू.
उसने सॉफ-सॉफ कहा था कि अगर मैं उसे नही बताउन्गा तो वो मेरी माँ को मार डालेगा.
पर जब मुझे कुछ पता ही नही था तो बताता क्या.
उसकी पिटाई के कारण कुछ देर तक मैं बेसूध सा हो गया.
जब पुनः सुध मे आया तो देखा, वो मेरे कमरे की तलाशी ले रहा था, ठीक बिजलानी सर के ऑफीस की तरह उसने कमरे मे मौजूद एक-एक चीज़ खंगाल डाली थी.
सारा सामान उलट-पुलट कर दिया था.
लेकिन अपनी इच्छित वस्तु उसे नही मिली थी.
तब उसने पलटकर फिर मेरी तरफ देखा.
करीब आया और फिर पूछने लगा, पता नही किस चीज़ को ढूँढने का जुनून सवार था उसपर.
उसकी भरपूर कोशिश के बावजूद जब मैं कुछ ना बता सका तो शायद उसे यकीन हो गया कि मुझे वास्तव मे कुछ नही मालूम है.
वो चला गया "
विजय ने पूछा," तुम्हे बँधा छोड़कर "
" मुँह मे रुमाल भी ठूँसा छोड़ गया था ताकि चीख ना सकूँ "
" आज़ाद कैसे हुवे "
" मैंने किया " उसकी माँ बोली," होश मे आते ही मैं खड़ी हो गयी थी.
हालाँकि सिर चकरा रहा था मगर मुझे उत्सव की चिंता थी.
दौड़ती हुई उसके कमरे मे पहुचि.
इसकी हालत देखकर हलक से चीख निकल गयी.
झपटकर खोला.
मुँह से रुमाल निकाला.
ये माँ कहकर मुझसे लिपट गया और रोने लगा.
मैं भी रोने लगी थी.
मेरी चीख अगल-बगल के फ्लॅट वालो ने सुन ली थी.
वे अंदर आ गये थे "
उत्सव बोला," तब मैंने माँ से सुपेरिटेंडेंट साहब को फोन करने के लिए कहा, ये भी कहा कि इस बारे मे आपको बता दे "
" हमे क्यों " विजय ने पूछा.
" क्योंकि आप ही इस केस को देख रहे है, आपने ही लाल बालो वाले का ज़िक्र किया था, पर आपका नंबर मेरे पास नही था, सुपेरिटेंडेंट साहब का नंबर अख़बार से लिया "
" खुद फोन क्यो नही किया "
" मैं उस वक़्त ज़्यादा बोलने की हालत मे नही था, मुँह से खून आ रहा था, देख नही रहे, जबड़ा अभी तक सूजा हुआ है "
" दिलजले " एकाएक विजय विकास से मुखातिब होता हुआ बोला," तुलाराशि को फोन करो, वो फ़ौरन से पहले अंकिता और दीपाली की सुरक्षा का इंतज़ाम करे, वहाँ भी ऐसा हो सकता है "
विकास तुरंत अपना मोबाइल निकालकर चालू हो गया.
विजय बगैर किसी से कुछ कहे उत्सव के बेडरूम मे पहुचा.
वहाँ की हालत वैसी ही थी जैसी बिजलानी के ऑफीस की थी, एक कुर्सी, उसके नीचे फर्श पर प्लास्टिक की रस्सी और रुमाल पड़ा हुआ था, विजय ने झुक कर रुमाल उठा लिया.
वो सफेद रंग का ऐसा रुमाल था जिसके चारो तरफ सफेद रंग की पट्टियाँ थी, हल्का-हल्का गीला था वो, विजय समझ सकता था, उस पर उत्सव का थूक लगा हुआ है.
वापिस ड्रॉयिंगरूम मे आया, लगा, इस फ्लॅट, उत्सव या उसकी माँ से अब उसे ऐसी कोई जानकारी मिलने वाली नही है जो उपयोगी हो तो विकास के साथ बाहर निकल गया लेकिन जाते-जाते फ्लॅट के बाहर मौजूद इनस्पेक्टर से ये कहना ना भूला," फिंगरप्रिंट्स वालो को बुलाकर उस सामान से निशान ज़रूर उठवा लेना जो उत्सव के बेडरूम मे बिखरा पड़ा है "
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" क्या कहते हो गुरु " वहाँ से रवाना होते ही विकास ने सवाल किया था," आख़िर वो क्या चीज़ हो सकती है जिसकी तलाश मे वो इस कदर पगलाया घूम रहा है "
" पूछो मत दिलजले, बुद्धि झन्नात हुई पड़ी है "
" एक बात तो तय है "
" उगलो "
" अभी वो चीज़ उसके हाथ नही लगी है जिसकी उसे तलाश है, बिजलानी के ऑफीस मे मिल गयी होती तो उत्सव के घर पहुचने की क्या ज़रूरत थी और ये हम जानते ही है कि उत्सव के घर से उसे वो चीज़ नही मिली है "
विजय ने कोई टिप्पणी नही की.
विकास भी शांत रह गया.
फिर कुछ देर बाद बोला," मैं तो अभी तक ये ही निस्चय नही कर सका हूँ कि अशोक बिजलानी ने स्यूयिसाइड की है या उसकी हत्या की गयी है, आपको क्या लगता है "
" हमे इस पचडे मे पड़ने की जगह अपने मैंन मिशन पर ध्यान देना चाहिए, उस पर, जिसके लिए दडबे से निकले थे "
" मतलब "
" एक लाइन मे कहा जाए तो हमारा मिशन ये पता लगाना है कि कान्हा और मीना का मर्डर सरकार दंपति ने ही किया है या किसी ने उन्हे ट्रॅप किया है "
" बात तो आपकी ठीक है "
" हम वही पता लगाने की तरफ बढ़ रहे है "
" आप तो जगदीश चंडोला के घर जा रहे है "
" इस गुत्थी का जवाब वही मिलेगा "
" वो कैसे "
" ये तो मानोगे कि अगर मीना की लाश ना मिली होती तो सरकार दंपति किसी हालत मे गिरफ़्त मे नही आए होते, भले ही उन्होने कान्हा और मीना का मर्डर किया था या नही "
" ये बात तो सिद्ध हो चुकी है, अगर मीना की लाश ना मिलती तो लोग आज भी ये ही मान रहे होते कि वो कान्हा की चैन और अंगूठी के लालच मे उसकी हत्या करके फरार हो गयी लेकिन.... "
" लेकिन "
" कान्हा-मीना मर्डर केस मे जगदीश चंडोला का इन्वॉल्व्मेंट ही कितना है, सिर्फ़ इतना की अपनी ड्यूटी के तहत कूड़े के ढेर पर कूड़ा डालने गया था, मीना की लाश देखी और वो किया जो उस हालात मे ड्यूटी बनती थी यानी पोलीस को सूचना दे दी "
विजय ने कहा," हमे ये मालूम करना है कि किस्सा इतना ही है या इससे कुछ ज़्यादा है "
" ज़्यादा या कम क्या हो सकता है "
" ऐसा क्यो नही हो सकता की लाश पर उसकी नज़र इत्तेफ़ाक़न या स्वाभाविक रूप से ना पड़ी हो बल्कि किसी ने जानबूझकर पड़वाई हो, उसके द्वारा पोलीस को सूचना देना षड्यंत्र का हिस्सा हो "
" कैसा षड्यंत्र "
" वही, जो किसी ने सरकार दंपति के लिए रचा हो "
" बात अभी भी ठीक से समझ मे नही आई "
" समझने के लिए बचा ही क्या है दिलजले, सीधी-सी बात है, अगर जगदीश चंडोला की नज़र स्वाभाविक रूप से लाश पर पड़ी थी और उसने सच्चे शहरी का कर्तव्य निभाने के तहत उसके बारे मे पोलीस को सूचित किया था तो, इसे सरकार दंपति का दुर्भाग्य माना जाएगा, इसके उलट, यदि जगदीश चंडोला के पीछे कोई था यानी लाश जानबूझकर बरामद की गयी थी तो जाहिर है, सरकार दंपति पर मुसीबतो का पहाड़ उनके दुर्भाग्य के कारण नही गिरा बल्कि गहरी साजिश के तहत गिराया गया.
विकास चुप रह गया.
विजय ने आगे कहा था," मज़े की बात ही ये है दिलजले कि पोलीस ने अपनी इन्वेस्टिगेशन मे जगदीश चंडोला को सबसे उपेक्षित किरदार बनाया हुआ है जबकि हमारे हिसाब से वो सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी है, सीधी-सी बात है, अगर लाश पर उसकी नज़र स्वाभाविक रूप से पड़ी और उसने अपने शरीफ शहरी होने का फर्ज़ निभाया है तो दोषी सरकार दंपति ही है यानी कुदरत ने उन्हे फँसाया है लेकिन अगर जगदीश चंडोला के थ्रू वो लाश किसी ने जानबूझकर बरामद करवाई तो स्वतः सिद्ध हो जाता है कि वे गुनहगार नही बल्कि किसी शातिर खिलाड़ी के षड्यंत्र के शिकार है "
" बात तो ठीक है आपकी लेकिन और भी तो ढेर सारे सवालो के जवाब ढूँढने होंगे, जैसे ये कि, चारो तरफ से बंद फ्लॅट मे कोई बाहरी व्यक्ति मर्डर कैसे कर गया और उन्हे पता क्यो नही लगा "
" ऐसे काई सवालो के जवाब हमारी खोपड़ी मे सेट हो चुके है और बाकियो के ढूँढ लेंगे, अगर एक बार ये क्लियर हो जाए कि वो बेगुनाह है तो ऐसे सवालो के जवाब ढूँढना आसान हो जाएगा "
" ये क्या बात कही आपने की कुछ सवालो के जवाब आपकी खोपड़ी मे सेट हो चुके है, मुझे भी तो कुछ बताइए "
" अभी वक़्त नही आया है " कहने के बाद विजय शांत हो गया और ऐसा शांत हुआ की विकास की काफ़ी कोशिशो के बावजूद मुँह से एक भी शब्द निकालने को तैयार नही हुआ.
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माथा तो विजय-विकास का जगदीश चंडोला के घर के बाहर लगी भीड़ को देखकर ही ठनक गया था, भीड़ मे काफ़ी गहमागहमी थी.
सब काफ़ी उत्तेजित नज़र आ रहे थे.
मुकम्मल मौहोल ये बता रहा था कि कुछ ही देर पहले वहाँ कोई सनसनीखेज घटना घटी है.
पोलीस वाले भी मौजूद थे.
वे इनस्पेक्टर से मिले.
इनस्पेक्टर उन्हे पहचानता था.
ये भी जानता था कि विकास सुपेरिटेंडेंट साहब का बेटा है, इसलिए, बड़े सम्मान के साथ मिला.
घर के अंदर से महिलाओ के रोने की आवाज़े आ रही थी.
" क्या हुआ है " विजय ने इनस्पेक्टर से पूछा.
इनस्पेक्टर ने जब कहा की," किसी ने जगदीश चंडोला नाम के आदमी का मर्डर करने की कोशिश की है " तो विजय-विकास के जिस्म मे सनसनी-सी दौड़ गयी.
एक-दूसरे की तरफ देखा उन्होने.
दोनो की ज़ुबान पर जैसे ताला लटक गया था.
कुछ देर बाद विजय ने पूछा," तुम्हे कैसे पता लगा "
" किसी पड़ोसी ने थाने फोन किया था "
" जगदीश चंडोला किस हालत मे है "
" अभी तो पहुचा ही हूँ सर " उसने बताया," कि आप आ गये, घर के अंदर भी नही जा पाया हूँ "
" आओ, देखते है " कहने के साथ ही विजय उस मकान की तरफ बढ़ गया जिसका प्लास्टर जगह-जगह से उखड़ा हुआ था.
ईंटे चमक रही थी.
उसी की क्यो, वहाँ सभी मकानो की हालत वैसी ही थी, वे क्वॉर्टर नगर निगम ने अपने करम्चारियो को रहने के लिए दे रखे थे और ना जाने कब से उनकी सुध नही ली गयी थी.
अभी वे भीड़ के बीच से गुजर ही रहे थे कि एक युवा लड़के ने इनस्पेक्टर से कहा," मैंने उसे देखा है सर, वो बाइक पर था, लाल रंग के बाल थे उसके, वैसी ही दाढ़ी भी थी "
" क्या किया उसने " विजय ने पूछा.
" आप पूछ रहे है क्या किया, ये पूछिए क्या नही किया उसने " जोश और उत्तेजना मे भरा लड़का कहता चला गया," जगदीश अंकल की जान लेने मे कोई कसर नही छोड़ी उसने, लगातार उनके पीछे भाग रहा था, उन पर दो गोलिया भी चलाई.... "
" दो नही, तीन " एक महिला ने उसकी बात काटी," एक घर के अंदर भी तो चलाई थी, तभी तो हम सब अपने घरो से निकले "
एक बुड्ढ़ा बोला," अगर हम सब इकट्ठा ना हो गये होते तो आज वो जगदीश की लाश बिछाकर ही जाता "
" पर क्यो, वो जगदीश को क्यो मारना चाहता था "
विजय के इस सवाल पर वहाँ सन्नाटा पसर गया.
विजय ने कहा," किसी को पता हो तो बताओ "
" ये तो हमे नही पता " एक अधेड़ बोला," बस इतना जानते है कि उसने कोई कसर नही छोड़ी थी, मैं वहाँ, पेड़ के नीचे बैठा था कि गोली चलने की आवाज़ सुनी, उस वक़्त मैं ये नही समझा था कि गोली चली है, बल्कि सोचा था, किसी बच्चे ने पटाखा छोड़ा है पर उसके तुरंत बाद बचाओ-बचाओ चिल्लाता जगदीश अपने घर से भागता हुआ बाहर निकला, उसके पीछे वो निकला, उसके हाथ मे रेवोल्वर था, मेरे देखते ही देखते उसने जगदीश पर दो गोलिया चलाई, वो तो उसका मुक़द्दर अच्छा था कि एक गोली तो उस पत्थर मे जा लगी जिसके पीछे से भागता हुआ जगदीश उस वक़्त गुजर रहा था, दूसरी उसके उपर से गुजर गयी क्योंकि घबराहट मे जगदीश ठीक उसी वक़्त ठोकर खाकर गिर गया था "
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