RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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वो वही सब कहे चले जा रहा था जो घर के बाहर मौजूद भीड़ पहले ही बता चुकी थी मगर विजय के कान उसके शब्द नही सुन रहे थे क्योंकि इस वक़्त उसकी नज़र जगदीश के गले मे पड़े काले धागे पर थी बल्कि... काले धागे पर भी नही, उसमे पिरोइ गयी एक छोटी-सी चाबी पर, उसने पूछा," ये चाबी कहाँ की है "
" य...ये " वो थोड़ा बौखलाया.
चाबी को उसके गले मे देखकर विजय ने इतना अनुमान तो लगा ही लिया था कि जहाँ की भी वो है, उसमे जगदीश की कोई ख़ास ही कीमती चीज़ होनी चाहिए क्योंकि इस तरह गले मे चाबी तो आदमी तभी लटका सकता है और.... उसके बारे मे प्रश्न करने पर वो जिस तरह बौखलाया, उससे तो उसे और शक हो गया इसलिए थोड़े कड़े स्वर मे बोला," उसी के बारे मे पूछ रहा हू "
" मेरी पर्सनल अलमारी की चाबी है साहब "
" कहाँ है वो अलमारी "
" मेरे कामरे मे "
" उसी कमरे मे जिसमे तुम्हारी और उसकी फाइट हुई थी "
" जी "
विजय ने दोनो कमरो के बीच के दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए पूछा," वो कमरा इस दरवाजे के पार है ना "
उसने स्वीकृति मे गर्दन हिलाई.
विजय ने विकास से कहा," इसे खोलना दिलजले "
विकास ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया.
दरवाजा पार करके वे उस कमरे मे पहुचे.
विजय की नज़रो ने बारीकी से निरीक्षण करना शुरू किया.
कमरे की हालत जगदीश को सच्चा सिद्ध कर रही थी.
वहाँ हाथापाई के निशान मौजूद थे.
छत के एक किनारे पर गोली लगने का निशान भी था.
सारे कमरे का निरीक्षण करती विजय की निगाहे उस अलमारी पर जम गयी जिस पर छोटा-सा परंतु मजबूत ताला लटका हुआ था.
बाकी किसी अलमारी मे ताला नही था.
विजय ने वही से दरवाजे के उस पार चारपाई पर लेटे जगदीश से पूछा," तुम्हारे गले मे इसी की चाबी है ना "
उसने फिर स्वीकृति मे गर्दन हिलाई.
" चाबी दो "
" क...क्यो साहब " वो चारपाई से उठ बैठा.
" हम देखना चाहते है कि इसमे ऐसा क्या है जिसकी वजह से तुम इसकी चाबी गले मे लटकाए घूमते हो "
" अजी ग़रीब के ताले मे क्या हो सकता है साहब " चारपाई से उठकर वो दरवाजा पार करके उसी कमरे मे आ गया था," बिटिया के नाम की एक-आध एफडी करा रखी है, एक बीमा पॉलिसी है और बॅंक की किताब है, सब उसकी शादी मे काम आएगा "
" हम उन्हे देख लेंगे तो क्या गजब हो जाएगा "
" य...ये तो नही कहा मैंने "
" तो चाबी दो "
" उसे देखकर क्या करेंगे साहब, आप तो हम पर हुए हमले के कारण आए है ना, उसका भला अलमारी से क्या मतलब "
" जो कहा जा रहा है वो करो " विजय गुर्राया.
जगदीश सहम गया लेकिन उसके चेहरे पर अब भी ऐसे भाव थे जैसे चाबी ना देना चाहता हो और उन्ही भाव ने विजय को और ज़्यादा प्रेरित किया, पुनः गुर्राया," चाबी देते हो या नही "
" देख लीजिए साहब, देख लीजिए इस ग़रीब आदमी ने अपनी अलमारी मे कितनी धन-दौलत छुपा रखी है " नाराज़गी भरे अंदाज मे कहने के साथ उसने गले से काला धागा निकाला और उसमे पिरोइ हुई चाबी से ताला खोलता हुआ बोला," मैं ही दिखा देता हूँ कि इसमे क्या रखा हुआ है, देखिए...ये देखिए, ये एफडी है, ये बॅंक की पासबुक है और ये बीमा पॉलिसी, इनके अलावा कॅश रुपये भी है, कुल जमा 15 हज़ार पाँच सौ, ये सब मैंने बेटी की शादी के लिए जोड़ रखा है, इस पर भी इनकमटेक्स लगाएँगे क्या "
उसका अंदाज ऐसा था जैसे उन लोगो को अलमारी से दूर रखना चाहता हो, शायद इसलिए विजय ने विकास से कहा," अलमारी की तलाशी लो दिलजले "
" तलाशी " वो चिहुका," आप क्या तलाश कर रहे है "
" वही, जिसे तुम छुपाना चाहते हो "
वो हक्का-बक्का रह गया," क...क्या छुपाना चाहता हूँ मैं "
" अभी पता नही लेकिन सामने आ जाना चाहिए "
" मैं कुछ भी नही छुपा रहा हूँ साहब, पता नही आप क्या ढूँढ रहे है, जो था, आपको दिखा चुका हूँ, इसके अलावा तो बस मेरी नौकरी के कागजात और पढ़ाई के सर्टिफिकेट आदि रखे हुए है "
" कुछ नही छुपाना चाहते तो मुझे तलाशी लेने से रोकने की कोशिश क्यो कर रहे हो " कहने के साथ विकास ने उसे एक तरफ हटा दिया.
उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए जैसे अनर्थ होने जा रहा हो, एक से लाख ना चाहता हो कि विकास उसकी अलमारी को हाथ भी लगाए मगर उसके वश मे उसे रोकना नही था.
विकास ने अलमारी का सामान चारपाई पर डालना शुरू कर दिया और सारा सामान चारपाई पर डालने के बाद जब अलमारी के फर्श पर बिच्छा अख़बार भी हटा दिया तो जगदीश बोला," क्या कर रहे है साहब, आख़िर ये कर क्या रहे है आप "
मगर विकास की नज़र अलमारी के फर्श पर मौजूद लोहे के एक छोटे से ढक्कन पर अटक गयी थी.
उसमे एक छोटा-सा कीहोल था.
विकास ने जगदीश से पूछा," इसकी चाबी कहाँ है "
" अरे साहब, उसमे भला क्या रखा है "
विजय ने विकास से पूछा," क्या है दिलजले "
" अलमारी मे एक लॉकर जैसी जगह है गुरु और ये किसी चाबी से खुलेगा "
" कहा है चाबी " विजय ने जगदीश को घूरा.
" काफ़ी दिन से खोई हुई है साहब, मुझे भी उसे खोलने की ज़रूरत नही पड़ी क्योंकि उसमे कुछ है ही नही "
" तुम्हारी बीवी से पूछ लेते है "
" अरे गोमती को क्या पता साहब, उसे तो मैंने सख्ती से इसमे हाथ ना लगाने की हिदायत दे रखी है, अनपढ़ औरत है, पता नही किस ज़रूरी कागज को कहाँ डाल दे "
" चाबी दे रहे हो या लॉकर का ताला तोड़ दे "
" मैंने कहा ना साहब, चाबी खोई हुई है "
" तोड़ दो दिलजले "
विकास को तो हुकुम मिलने की देर थी.
उसने अपना काम शुरू कर दिया और जिस वक़्त वो लॉकर के ताले को तोड़ने की कोशिश कर रहा था उस वक़्त जगदीश के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उस पर आफ़त टूट पड़ने वाली हो लेकिन कुछ कर ना पा रहा हो.
लॉकर टूटा.
विकास ने उसमे हाथ डाला.
गहरे नीले सनीले के कपड़े की एक थैली हाथ मे आई.
विकास ने उसे निकाला और उस वक़्त वो उसे खोल रहा था जब जगदीश पछाड़-सी खाकर विजय के कदमो मे गिर पड़ा और बुरी तरह गिड़गिडता हुआ बोला," उन्हे मत ले जाना साहब, उन्हे मत ले जाना, उन्ही के दम पर तो मैं अपनी बेटी की शादी किसी अच्छे घराने मे करने के सपने देखता रहा हूँ "
" किनकी बात कर रहे हो "
" ये इनकी बात कर रहा है गुरु " कहने के साथ विकास ने थैली मे से निकालकर जो डाइमंड की अंगूठी और सोने की चैन दिखाई तो विजय को अपने संपूर्ण शरीर मे सनसनी-सी दौड़ती महसूस हुई.
वो सनसनी जिसे विकास पहले ही महसूस कर चुका था.
उन दोनो के जहनो मे इसके अलावा और कोई ख़याल नही आया कि ये अंगूठी और चैन कान्हा की होंगी.
विजय थोड़ा-सा झुका और जगदीश का कॉलर पकड़कर उसे उपर उठाता हुआ बोला," तेरे पास कहाँ से आई ये "
" कुछ मत पूछिए साहब, कुछ मत पूछिए " बुरी तरह रो रहा था वो," इन्हे बचाने के लिए ही तो मेरी ये हालत हुई है "
" क्या मतलब "
" इन्हे ही तो लेने आया था वो "
" कौन "
" लाल दाढ़ी वाला "
" उसका इनसे क्या मतलब "
" एक तरह से उसी ने तो दी थी, कहा था, जिस लाश की मैं बात कर रहा हूँ, तुझे उसके गले से एक सोने की चैन और डाइमंड की अंगूठी मिलेगी, वो तेरी, तू रख लेना, बदले मे बस लाश की सूचना पोलीस को देना "
" तो तेरे और उसके बीच ये सौदा हुआ था कि अंगूठी और चैन के बदले तू लाश की सूचना पोलीस को देगा, एक लाख की कोई बात नही हुई थी, वो तूने बनाई थी "
" ब....बनानी पड़ी साहब, ना बनाता तो आप ये ना कहते कि मैंने फ्री मे दाढ़ी वाले का कहना क्यो माना, इसलिए ताकि आपको चैन और अंगूठी की भनक ना लगे, और क्या करता, सच्चाई बता देता तो ये चैन और अंगूठी आपको ना सौंपनी पड़ती, मेरे सारे सपने टूट जाते, इन्हे तभी से अपने पास संभालकर रखे हुए हूँ कि बेटे की शादी के मौके पर बेचुँगा, पर आप इन तक.... "
" मोबाइल कहाँ है "
" मोबाइल कौनसा साहब "
" वो भी तो तुझे उस लाश के पास से ही मिला होगा "
" सच्ची कह रहा हूँ साहब " उसने अपने गले को चुटकी मे भरते हुवे कहा," अपनी बेटी की कसम खाकर कहता हूँ कि मोबाइल तो मुझे कोई नही मिला, बस ये ही दोनो चीज़ें मिली थी "
" इतना हरामी नज़र तो नही आ रहा था तू, जितना निकला "
" मैंने कुछ नही किया साहब, मैंने तो.... "
" लाश से चैन और अंगूठी चुराई, कहता है कि कुछ नही किया "
" मैंने तो वही किया साहब जो लाल दाढ़ी वाले ने कहा था "
" उसकी माँ की थी लाश वो जो तूने उसके कहने से.... "
" मुझे क्या पता साहब किसकी लाश थी, मुझे तो बस ये लगा कि बिना कोई जुर्म किए लाखो का माल हाथ लग रहा है, शान से बेटी की शादी करूँगा, मुझे क्या पता था कि.... "
" और अभी-अभी क्या कहा था तूने " विजय उसकी बात काट कर कहता चला गया," वो इन्ही दोनो चीज़ो को लेने आया था "
" हां साहब, उसने आते ही पूछा था,' वो अंगूठी और चैन कहाँ है' मैंने कह दिया,' अब एक साल बाद कहाँ ढूँढ रहे हो उन्हे, उन्हे तो मैं बेचकर खा भी चुका हूँ'
उसने यकीन नही किया.
कहने लगा,' वे मुझे दे दे, उनकी जगह मैं तुझे उतने पैसे दे दूँगा जितने की वे है क्योंकि उनका तेरे पास रहना ख़तरनाक है'
मैंने फिर अपनी बात दोहरा दी.
उसने आँखे तरेरकार कहा,' सच बोल रहा है ना'
'माँ कसम' मैंने कहा.
तब उसने वही कहा जो पहले ही बता चुका हू, यही कि कुछ लोग आने वाले है, उनसे तुझे यही कहना है कि लाश पर तेरी नज़र इत्तेफ़ाक से पड़ गयी थी लेकिन फिर जाने क्यो उसका विचार बदल गया और उसने मुझे मारने का फ़ैसला कर लिया "
" इस थोड़ी-सी देर मे तू इतने झूठ बोल चुका है, इतनी बातो को घुमा चुका है कि क्या पता, अब भी सच बोल रहा है या झूठ "
" अब क्या झूठ बोलूँगा साहब " वो पूरी तरह टूटा हुआ नज़र आ रहा था," सारे झूठ तो इन्ही को बचाने के लिए बोल रहा था, अपनी जान तक दाँव पर लगा दी मैंने लेकिन नही बचा सका "
" और अब जैल की हवा जो खाएगा "
" ज...जैल " उसके होश उड़ गये," वो क्यो साहब "
" लाश मिलने पर पोलीस को सूचना देना जुर्म नही था लेकिन उससे अंगूठी और चैन चुराकर तूने घृणित जुर्म किया है "
" नही साहब, नही....मुझे माफ़ कर दो " एक बार फिर वो विजय के कदमो मे गिरकर रोने लगा था लेकिन विजय के खाते मे ऐसे लोगो के लिए रहम कहाँ.
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