RE: Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री
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रात का वक़्त.
करीब 12 बजे.
हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था.
ऐसे मे, विजय एक ड्यूप्लेक्स मकान की चारदीवारी पर चढ़ा.
पैरो मे करपसोल के जूते थे.
हाथो मे दस्ताने.
जब वो ड्यूप्लेक्स की चारदीवारी से साइड गॅलरी मे कूदा तो उतनी आवाज़ भी नही हुई थी जितनी बिल्ली के कूदने से होती है.
दबे पाँव चलता एक खिड़की के नज़दीक पहुचा.
खिड़की मे लगा एसी ऑन था.
उसने खिड़की के पार देखने की कोशिश की मगर कामयाब ना हो सका क्योंकि खिड़की के पीछे मोटे कपड़े का परदा पड़ा हुआ था.
फिर उसने अपना कान खिड़की के काँच से लगाकर कमरे के अंदर की आवाज़े सुनने की कोशिश की लेकिन उसमे भी सफल ना हो सका क्योंकि अंदर कोई आवाज़ ना थी.
ऑन एसी पर ध्यान दिया.
उससे निकलने वाली गरम हवा को महसूस किया और अपनी जेब से प्लास्टिक की एक बहुत छोटी-सी शीशी निकाली.
शीशी मे कोई तरल पदार्थ था.
उसके ढक्कन पर सुई जितनी मोटी और काफ़ी लंबी चौन्च-सी लगी हुई थी, चौन्च को उसने पीछे की तरफ से एसी के अंदर डाला और ढक्कन कयि बार दबाया.
एसी मे तरल पदार्थ का स्प्रे हुआ.
शीशी वापिस जेब मे रखी और रेडियम डाइयल रिस्ट्वाच पर नज़र डाली, करीब 10 मिनिट तक शांत रहा.
10 मिनिट बाद पॅंट की बेल्ट और पेट के बीच मे फँसा प्लास्टिक का करीब एक फुट लंबा, मजबूत डंडा निकाला.
उसे खोला तो वो 2 फुट का बन गया.
डंडे से उसने ऑन एसी को कमरे की तरफ धकेलना शुरू किया.
हालाँकि ये काम आसान नही था.
उसे काफ़ी ताक़त लगानी पड़ रही थी और एसी अपने बॉक्स से सूत-सूत करके खिसक रहा था लेकिन अंततः वो एसी को कमरे मे गिराने मे सफल हो गया.
उतनी आवाज़ नही हुई थी जितनी उसके फर्श पर गिरने पर होनी चाहिए थी, विजय जानता था कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कमरे मे मोटा कालीन बिच्छा हुआ है और एसी उसी पर गिरा है.
डंडे को पुनः एक फुट का बनाकर उसने बेल्ट और पेट के बीच ठूंस लिया और इसी बीच ये जाँचता रहा कि कमरे के अंदर कोई हुलचल हुई है या नही, कोई हलचल ना पाकर एसी के बॉक्स के नीचे बैठा और उसके खाली स्थान से होता हुआ खिड़की के उस पार यानी कि कमरे के अंदर पहुच गया.
उस कमरे मे, जिसमे बस एक 'गुड नाइट' की रोशनी थी.
उस गुड नाइट की रोशनी जिसे मच्छरो से बचने के लिए एक प्लग मे लगाया गया था.
अंधेरे की अभ्यस्त विजय की आँखो के लिए उतनी रोशनी काफ़ी थी, उसने देखा, कालीन पर गिरा पड़ा एसी अब भी ऑन था और डबल बेड पर राजन सरकार और इंदु सरकार सोए पड़े थे.
कमरे मे अजीब सी स्मेल थी.
कुछ देर तक वो अपने स्थान पर खड़ा ये जाँचता रहा कि इंदु और राजन सरकार के जिस्मो मे कोई हलचल होती है या नही.
फिर, उनके करीब पहुचा.
बकायदा उन्हे झींझोड़कर देखा.
वे बेसूध थे.
विजय ने निसचिंतता के अंदाज मे जेब से टॉर्च निकाली और कमरे की तलाशी लेनी शुरू की.
पता नही किस चीज़ की तलाश थी उसे.
शायद वो चीज़ बहुत छोटी भी हो सकती थी क्योंकि उसने बेड की छोटी-छोटी दराजे भी खंगाल डाली थी.
राजन और इंदु सरकार के सिर के नीचे लगे तकिये ही नही बेड पर बिच्छे गद्दे के नीचे पड़ी चीज़ो को भी जाँच-परख लिया था.
उस कमरे मे इच्छित चीज़ नही मिली तो अंदर की तरफ से बंद चिटकनी खोलकर लॉबी मे पहुचा.
वहाँ, जहाँ डाइनिंग टेबल पड़ी हुई थी.
और फिर वहाँ की ही क्यू, पूरे फ्लॅट की ही तलाशी ले डाली.
कान्हा और मीना के कमरो की ही नही, किचन और बाथरूम की भी, पर जो उसे चाहिए था, वो नही मिला.
थक-हारकर वापिस सरकार दंपति के बेडरूम मे आ गया.
दरवाजे की चिटकनी बंद की.
टॉर्च वापिस रखी और जेब से एक बहुत ही मजबूत तार का बंड्ल निकाला, उस तार को उसने अभी तक ऑन एसी की बॉडी पर लपेटना शुरू किया और जब अच्छी तरह से लपेट चुका तो उसके दो सिरो को पकड़कर खिड़की से बाहर निकल गया.
अब उसने ज़ोर लगाकर तार को खींचना शुरू किया.
एसी क्योंकि भारी था.
खींचना आसान ना था लेकिन विजय भला हार मानने वाला कब था, जैसे निस्चय करके आया था कि ये काम करना ही था, टाइम तो लगा लेकिन अंततः एसी को उसके बॉक्स मे उसी तरह फिक्स करने मे कामयाब हो गया जैसे हटाया जाने से पहले था. तार को वापिस खींचकर बंड्ल की शकल दी और जेब मे रख लिया, संतुष्ट होने के बाद वो ड्यूप्लेक्स से बाहर आ गया.
मगर ज़्यादा दूर नही गया.
अगले 5 मिनिट के बाद वो ए-76 की गॅलरी मे था.
वहाँ एक खिड़की के पास पहुचा.
जेब से काँच काटने वाला चाकू निकाला.
काँच का 4 बाइ 4 इंच का टुकड़ा काटा.
उसे छोटे से वाक्कुम क्लीनर से अपनी तरफ खींचा और आराम से खिड़की के टॉप पर रख दिया.
हाथ अंदर डाला और खिड़की की चिटकनी खोल दी.
फिर खिड़की के माध्यम से कमरे मे दाखिल हो गया.
कमरा खाली था.
जेब से टॉर्च निकालकर उसका निरीक्षण किया और निरीक्षण ही क्यो, उस कमरे की भी तलाशी लेनी शुरू कर दी.
ठीक उसी अंदाज मे ए-76 को भी खंगाल डाला जिसमे ए-74 को खंगला था, उस कमरे मे भी गया जिसमे चंदानी दंपति सोए हुए थे लेकिन वहाँ उतनी लापरवाही से काम नही लिया, जितनी लापरवाही से सरकार दंपति के बेडरूम मे लिया था.
शायद उनकी नींद मे खलल पड़ जाने का डर था.
इच्छित वस्तु वहाँ भी नही मिली.
करीब एक घंटे बाद ए-76 से बाहर निकल आया.
पर आज रात, जाने क्या था विजय के दिमाग़ मे कि तेज़ी से चलता हुआ पार्क वाले हिस्से से बाहर निकला.
वाहान एक पेड़ के नीचे एक बाइक खड़ी थी.
उसे स्टार्ट करके सड़क पर आया और विभिन्न रास्तो से गुज़रता हुआ करीब ढाई बजे एक नाले के पुल के नीचे पहुचा.
बाइक छुपाकर वहाँ खड़ी की और तेज़ी से पैदल चलता एक ऐसी कॉलोनी मे पहुच गया जहाँ थ्री स्टोरी बिल्डिंग्स बनी हुई थी.
बिल्डिंग्स पर पड़े नंबर्स को पढ़ता हुआ आगे बढ़ता रहा.
उस बिल्डिंग के सामने ठितका जिस पर पी-172 लिखा हुआ था.
गर्दन उठाकर उसके थर्ड फ्लोर की तरफ देखा, अंदाज ऐसा था जैसे वही उसकी मंज़िल हो.
तभी, किसी लाठी के ज़मीन से टकराने की आवाज़ आई.
विजय को समझते देर ना लगी कि वो चौकीदार की लाठी की आवाज़ है, अगले पल वो उसे नज़र भी आ गया क्योंकि बिल्डिंग के चारो तरफ की गॅलरी उन स्ट्रीट लाइट्स से रोशन थी जो करीब 10 फुट उँची चारदीवारी के शीर्ष पर जगह-जगह लगी हुई थी.
विजय निसचिंत था कि चौकीदार उसे नही देख सकता क्योंकि उसने पहले से ही खुद को अंधेरे मे छुपा रखा था.
कुछ देर सोचा और फिर चारदीवारी के बाहर की तरफ उसके साथ-साथ चलता हुआ बिल्डिंग के पीछे पहुच गया.
अब उसे किसी ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ से 10 फुट उँची चारदीवारी के उस तरफ पहुच सके.
काफ़ी आगे चलने पर एक पेड़ मिला.
वो पेड़ हालाँकि चारदीवारी के इधर यानी बाहर की तरफ था लेकिन उपर जाकर उसकी शाखाए चारदीवारी के उपर से होती हुई अंदर चली गयी थी.
उसे पेड़ पर चढ़ने और फिर उस शाखा तक पहुचने मे कोई दिक्कत नही हुई जो चारदीवारी के अंदर लटक रही थी.
अब उसे सिर्फ़ नीचे कूदना था मगर इस काम मे कोई जल्दबाज़ी नही की, खुद को पत्तो मे छुपाए ये जाँचा कि इस वक़्त चौकीदार इस साइड मे तो नही है.
लाठी के ज़मीन से टकराने की आवाज़ बहुत दूर से आई, बल्कि एक मोड़ के पीछे से आई थी, ये समझ मे आते ही वो नीचे कूद पड़ा कि रास्ता क्लियर है.
इस बार आवाज़ तो हुई थी क्योंकि उँचाई से कूदा था लेकिन इतनी नही कि किसी का ध्यान खींच सके.
अगले पल वो बूलिडिंग की तरफ दौड़ पड़ा और वहाँ रुका जहा रैन वॉटर पाइप था बल्कि वहाँ भी रुका कहा, बंदर की तरह उस पाइप पर चढ़ता चला गया.
इस किस्म के कामो का अभ्यस्त होने के कारण तीसरी मंज़िल के फ्लॅट की खिड़की पर पहुचने के बावजूद उसकी साँस ज़रा भी नही फूली थी, खिड़की पर काँच लगा हुआ नही था.
केवल ग्रिल लगी थी, बेहद मजबूत.
अंदर अंधेरा था लेकिन साँस लेने की आवाज़े आ रही थी, विजय समझ गया कि उसमे कोई सोया हुआ है अर्थात जो करना था, सावधानी से करना था ताकि सोया हुआ शख्स जाग ना जाए.
कोई औजार निकालने के लिए जेब मे हाथ डाला ही था कि लाठी की आवाज़ आई.
विजय समझ गया कि बिल्डिंग के चारो तरफ चक्कर लगा रहा चौकीदार इधर ही आ रहा है.
वो तेज़ी से पाइप पर चार स्टेप चढ़ा तथा खिड़की की छज्जी पर ना केवल उतर गया बल्कि उकड़ू होकर उसपर लेट गया.
हालाँकि चौकीदार के उपर देखने की कोई वजह नही थी फिर भी, विजय ने खुद को इतना सुरक्षित कर लिया था कि वो उपर देखता तो भी उसे नही देख पाता.
ज़मीन पर लाठी से ठक-ठक करता वो नीचे से गुजर गया.
विजय ने अपने जिस्म को तब हरकत दी जब चौकीदार एक मोड़ पार करके दूसरी तरफ जा चुका था.
इस बार उसने छज्जी से खिड़की पर पहुचने से पहले ही जेब से एक पेच्कस निकाल लिया था.
दोनो पैर पाइप पर अच्छी तरह जमाए उसने इतनी दक्षता से पेंच खोलने शुरू कर दिए कि ज़रा भी आहट ना हुई.
ग्रिल उन्ही पेंचो की मेहरबानी से लकड़ी की चौखट पर लगी हुई थी, हर पेंच को खोलकर वो सावधानी से छज्जी पर रखता रहा, कुल 18 पेंच खोलने पड़े उसे तब, पूरी की
पूरी ग्रिल को बड़े आराम से अलग कर के छज्जी पर रखी.
अगले ही पल, वो दबे पाँव कमरे के अंदर था.
सांसो की आवाज़ अब काफ़ी स्पष्ट थी.
खिड़की से थोड़ा परे हटकर टॉर्च का रुख़ छत की तरफ करके ऑन की, प्रकाश दायरा सीधा छत पर पड़ा और उसकी रोशनी मे उसने देखा कि एक डबल बेड पर दो लड़किया सोई हुई थी.
दोनो लगभग हमउम्र लग रही थी.
एक 25 साल की होगी तो दूसरी 24 की.
विजय ने टॉर्च की रोशनी उनकी तरफ नही घुमाई क्योंकि वैसा होने पर उनकी नींद उचाट जाने का ख़तरा था.
टॉर्च का रुख़ छत की तरफ ही किए बेड के करीब पहुचा और फिर जेब से रुमाल निकालकर पहले बड़ी लड़की के नथुनो के करीब ले गया और फिर छोटी लड़की के नथुनो के करीब.
बारी-बारी से दोनो ने ऐसे आक्षन किए थे जैसे थोड़ी बेचैनी हुई हो लेकिन फिर पूर्व की तरह साँसे लेने लगी थी.
विजय जानता था कि अब उनकी नींद आराम से नही उचटेगी, इसलिए रुमाल जेब के हवाले करके ज़रा भी हिचके बगैर टॉर्च के प्रकाश दायरे को चारो तरफ घुमाया.
कमरे मे एक डबल बेड के अलावा दो सोफा चेर, एक छोटी-सी सेंटर टेबल और एक ट्रॉल्ली थी जिसमे टीवी रखा हुआ था.
ट्रॉल्ली के टॉप और बेड पर किताबे बिखरी हुई थी.
विजय समझ सकता था कि किताबे उन्ही लड़कियो की है.
केवल एक अलमारी थी.
उसके कुंडे मे छोटा-सा ताला लटक रहा था.
विजय उसी की तरफ बढ़ा.
जेब से मास्टर-की निकालकर ताला खोला.
अलमारी मे लड़कियो के कुछ कपड़े और किताबे भरी पड़ी हुई थी.
विजय ने हर चीज़ को इस तरह चेक किया कि बाद मे कोई देखकर ये ना ताड़ सके कि उनमे किसी ने हाथ भी लगाया है.
इच्छित वास्तु नही मिली.
विजय ने अलमारी बंद करके ताला लगा दिया.
बाकी कमरे की तलाशी ली.
निराशा.
दरवाजे की तरफ बढ़ा.
उसे आहिस्ता से खोलकर लॉबी मे पहुचा.
वहाँ दो कमरो के दरवाजे और थे.
एक अंदर से बंद था, दूसरा लॉबी की तरफ से.
जो अंदर से बंद था, उसके पीछे से किसी के ज़ोर-ज़ोर से खर्राटे लेने की आवाज़े आ रही थी.
विजय उस दरवाजे की तरफ बढ़ा जो लॉबी की तरफ से बंद था, बगैर ज़रा भी आहट उत्पन्न किए उसका डंडाला सरकाया और कमरे मे दाखिल हो गया.
विजय के कानो ने उसे संदेश दिया कि ये कमरा खाली है.
अंदर कदम रखते ही टॉर्च ऑन की और प्रकाश दायरे को चारो तरफ घूमाकर कमरे का निरीक्षण किया.
वो स्टडी रूम मालूम पड़ता था क्योंकि उसमे सिर्फ़ राइटिंग टेबल, उसके साथ की कुर्सी, एक दीवान और एक आराम चेर थी.
दीवारो के साथ गोदरेज की कयि अलमारिया लगी हुई थी.
उनके पल्लो के एक हिस्से पर क्योंकि पारदर्शी काँच लगा हुआ था इसलिए सॉफ नज़र आ रहा था कि उनमे किताबे और कुछ फाइल्स बिखरी पड़ी हुई है, राइटिंग टेबल पर टेबल लॅंप के चारो तरफ भी किताबे ही बिखरी हुई थी.
विजय ने वहाँ की तलाशी लेनी शुरू की.
अलमारियो को मास्टर-के से खोलना पड़ा था और विजय की खोज एक अलमारी के सबसे अन्द्रूनी लॉकर पर जाकर ख़तम हुई.
वहाँ से एक डाइयरी, स्टेट बॅंक की एक पासबूक और एक चाबी मिली थी, कुछ देर तक वो चाबी को उलट-पुलट कर देखता रहा, फिर पासबूक को खोलकर देखा लेकिन उसकी आँखो मे असली चमक तब नज़र आई जब डाइयरी को खोलकर देखा.
उसके बाद तो जैसे वही, फर्श पर चिपक कर रह गया.
डाइयरी मे लिखे एक-एक शब्द को बहुत ध्यान से पढ़ रहा था वो और जैसे-जैसे पढ़ता जा रहा था दिमाग़ की नसें खुलती जा रही थी.
पूरी डाइयरी पढ़ने के बाद जेब से अपना मोबाइल निकाला और हर पेज की फोटो लेना शुरू किया.
फोटो लेने के बाद डाइयरी, पासबूक और चाबी यथास्थान रखी और लॉकर को इस तरह बंद कर दिया जैसे कि कभी खोला ही नही था.
लेकिन अब भी, जाने उसे किस चीज़ की तलाश थी.
वो तलाश भी उसी समय उसी अलमारी मे ख़तम हो गयी जब एक कपड़े की पोटली से लाल बालों वाली विग और दाढ़ी मिली.
एक चश्मा और एक मस्सा भी था.
करीब एक मिनिट तक उन्हे लगातार देखता रहा वो, जैसे उन सारी चीज़ो से कह रहा हो," बहुत मेहनत के बाद मिली हो "
फिर उन्हे भी उसी कपड़े मे पोटली-सी बनाकर यथास्थान रख दिया और अलमारी के पीछे झाँका.
वहाँ दो हॉकी रखी नज़र आई.
उन्हे उठाया, ध्यान से देखा और वापिस रखने के बाद जिस रास्ते से आया था उसी रास्ते से निकल गया.
इस तरह, कि कोई ये नही जान सकता था कि रात के वक़्त वहाँ कोई आया और इतनी खुराफात कर गया.
खिड़की पर ग्रिल भी उसने ज्यो की त्यो फिक्स कर दी थी.
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सुबह 8 बजे, विजय हड़बड़ा कर उठा.
हड़बड़ाने का कारण था, लगातार बजती मोबाइल की बेल.
उसने स्क्रीन पर नज़र डाली, होंठो पर चित्ताकर्षक मुस्कान दौड़ गयी, कॉल रिसीव करता बड़े ही फ्रेश मूड मे बोला," कहिए सरकार-ए-आली, सुबह-सुबह कैसे यादि आई हमारी वाली "
" क...कमाल हो गया विजय " राजन सरकार की आवाज़ मे उत्तेजना थी," कल रात मेरे फ्लॅट मे फिर कोई आया और सारे सामान को उलट-पुउलट करके चला गया, ऐसा लगता है जैसे उसने कोई चीज़ तलाश करने की कोशिश की हो "
" क्या चीज़ "
" नही पता "
" क्या आपकी कोई चीज़ गायब है "
" प्रथमदृष्टि तो नही लगता "
" तो फिर काहे की चिंता कर रहे है, लंबी तानकर सो जाइए और हमें भी सोने दीजिए, बड़ी तगड़ी वाली नींद आ रही है "
" क...क्या बात कर रहे हो विजय, ऐसे कैसे सो जाएँ " आवाज़ बता रही थी कि विजय की प्रतिक्रिया पर उसे जबरदस्त अस्चर्य हुआ है," हैरत की बात ये है कि जब हम सोकर उठे तो फ्लॅट उसी तरह अंदर से बंद था जिस तरह एक साल पहले 5 जून को बंद पाया गया था लेकिन कान्हा का मर्डर हो चुका था, हमारा कमरा भी अंदर से बंद था जबकि पूरे फ्लॅट की तलाशी ली गयी है, कान्हा, मीना के कमरे और किचन, बाथरूम तक की भी "
" आपका फ्लॅट ना हो गया हुजूर, कंपनी गार्डेन हो गया जिसमे चाहे जब, चाहे जो घुस जाता है और मटरगश्ती करके चला जाता है, यहाँ तक कि मर्डर करके भी निकल जाता है और फिर चारो तरफ से बंद पाया जाता है, ये तो कमालपाशा का जादू हो गया "
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