Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-27-2020, 03:59 PM,
#67
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पंडित जी माहिर चुदक्कड़ थे। मेरी मानसिक स्थिति को समझ गये। पहले मेरे उन्नत उरोजों को सहलाने लगे। उनकी जादुई हथेलियों के स्पर्श से मुझ पर नशा सा तारी होने लगा। मेरी आंखें बंद होने लगीं। मैं बेख्याली में अपने हाथों से उनके मूसल लिंग को पकड़ कर सहलाने लगी। उनके लिंग के चारों ओर बेहद घने लम्बे लम्बे बाल भरे हुए थे। वैसे तो उनका बेहद मोटा तोंदियल कोयले की तरह काला शरीर पूरा ही बालों से भरा हुआ था किंतु लिंग के चारों ओर करीब तीन तीन इंच घने लंबे बाल लिंग को और भयानक रूप दे रहे थे। मोटे और पत्थर की तरह कठोर लिंग के बाहरी चमड़े पर ऊंची ऊंची उभरी हुई नसों के कारण लिंग और भी भयावह दिख रहा था। कुछ मिनटों पश्चात उन्होंने मेरे सख्त उन्नत उरोजों को चाटना और चूसना शुरू कर दिया। मैं मदहोश होने लगी और मुह से सिसकारियां उबलने लगीं। कुछ मिनटों पश्चात उन्होंने मुझे सीधा लिटा दिया और चूमते चाटते अपना मुंह मेरी नाभि से होते हुए मेरी चिकनी योनि तक ले आए। मैं उनके इन कामोत्तेजक हरकतों से उत्तेजना के मारे मेरी सांसें धौकनी की तरह चलने लगी और सीना फूलने पिचकने लगा, मेरे शरीर में कामोत्तेजक लहरें उफ़ान मारने लगीं, मैं थरथराने लगी। पंडित जी ऐसी स्थिति में थे कि उनका भीमकाय लिंग ठीक मेरे मुंह के पास झूलने लगा था। इधर वे मेरी योनि के भगांकुर को अपनी जादुई जिह्वा से छेड़छाड़ करने लगे।

“उफ्फ, आ्आह्ह्ह” मैं आहें भरने को विवश हो उठी। पंडित जी इतने चालाक थे कि धीरे धीरे अपने लिंग के सुपाड़े को मेरे खुले होठों के बीच ले आए और हल्के-हल्के अपनी कमर को जुम्बिश देते रहे, परिणाम स्वरूप धीरे धीरे उत्तेजना के मारे बेध्यानी में उनके विशाल सुपाड़े को होंठों के बीच ले कर चूसने लगी। जीभ से चाटने लगी। पंडित जी मेरी कामुकता को हवा दे कर भड़का रहे थे ताकि उनके विकराल लिंग का भय मेरे मन से विलुप्त हो जाए। पंडित जी की योजना सफल होती जा रही थी। अब मैं उनके लिंग का एक तिहाई हिस्सा मुंह में ले चुकी थी और आनंद के अतिरेक में आंखें बंद किए बदहवास, चूसने में लीन थी। शायद उससे ज्यादा ले भी नहीं सकती थी। पंडित जी जबरदस्ती अपना लिंग मेरे मुंह में ठोक कर मुझे भयभीत नहीं करना चाहते थे, लेकिन चाट चाट कर मेरी फक फक करती योनि में भयानक अग्नि भड़का चुके थे। मैं कसमसाने लगी। पंडित जी समझ गये कि लोहा गरम है और फौरन सीधे हो मेरे पैरों को फैला दिया और जांघों के बीच आ गये। मैं बेचैनी से सिसकारियां भर रही थी। तभी पंडित जी ने अपने लिंग का विशाल सुपाड़ा मेरी गीली योनि के द्वार पर टिकाया और आहिस्ता आहिस्ता दबाव बढ़ाने लगे। उनका चिकना सुपाड़ा मेरी योनि के द्वार को फैलाता हुआ अहिस्ता आहिस्ता अंदर सरकता जा रहा था। मैं इतनी उत्तेजित थी कि मेरी योनि को सीमा से बाहर फैलाता हुआ इतने मोटे लिंग के प्रवेश से होने वाली व्यथा पर, बेलनाकार लिंग के बाहरी भाग का मेरी योनि मार्ग की भीतरी दीवार पर हो रहे सरसराहट भरे घर्षण से उत्पन्न अद्भुत आनंद हावी हो गया और मैं आंखें बंद किए उस अनिर्वचनीय सुख के सागर में डूबती चली गई। कब उसका विकराल लिंग मेरी योनि के अंदर मेरे गर्भगृह तक पैबस्त हो गया मुझे अहसास ही नहीं हुआ। हां उसके लिंग के सुपाड़े की दस्तक को मैंने अपनी कोख में अवश्य महसूस किया। जब पंडित जी ने देखा कि उसने संभोग का प्रथम चरण सफलता पूर्वक तय कर लिया है तो एक पल रुका और धीरे धीरे कमर उठाते हुए लिंग बाहर निकालने लगा। उतना ही निकाला कि लिंग का सुपाड़ा योनि के अन्दर ही रहे।

“आह्ह्ह्ह्ह ओह ओ्ओ्ओ्ओह” उसके विशाल लिंग के लिए संकीर्ण योनि मार्ग में वह चरम आनंद प्रदान करने वाला घर्षण, अनूठा था। लिंग के बाहरी चमड़े पर उभरे हुए नसों के कारण घर्षण का आनंद दुगुना हो गया था। मेरी योनि की भीतरी दीवार उसके लिंग पर कसी हुई मचल रही थी। ओह वह अहसास। शब्दों में बयां करना मुश्किल था। फिर वह पुनः धीरे धीरे लिंग मेरी योनि में अंदर धकेलने लगा। “ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह” गज़ब का था वह अहसास, उसके मोटे लिंग पर अपेक्षाकृत मेरी संकीर्ण योनि का कसाव।

जब उसने देखा कि मैं उसके लिंग को सुगमतापूर्वक अपनी योनि में समाहित कर रही हूं, उसने मेरे दोनों पैरों को अपने कंधों पर चढ़ा लिया और मेरी कमर को दृढ़ता पूर्वक अपने दैत्याकार पंजों से थामा और बड़े ही भद्दे ढंग से मुस्कुराते हुए कहा, “तू तो बड़ी खेली खाई लौंडिया है बहु। मेरा लौड़ा पहली बार में ही आराम से ले ली। चल रानी अब तू देख मैं तेरी चूत की प्यास कैसे बुझाता हूं।” कहते हुए एक करारा ठाप मार दिया। “ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में, ओह,” अबतक आराम से पंडित जी मेरे साथ पेश आ रहे थे किंतु अब उनकी पाशविक प्रवृत्ति जागृत हो गई थी। धीरे धीरे वे अपनी चोदने की रफ़्तार बढ़ाते चले गये। मैं उनके भैंस जैसे मोटे शरीर को अपनी बाहों से समेटने की असफल कोशिश करती रही। उनके शरीर के बालों का अपने नंगे जिस्म पर रगड़ना अलग ही मजा दे रहा था। ज्यों ज्यों उसकी रफ़्तार बढ़ती गई, मैं आनंद के अथाह समुद्र में डूबती गई।
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