Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-27-2020, 04:04 PM,
#78
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“चुप साली रंडी, तुझे मजा नहीं आ रहा था क्या?” हरिया बीच में ही बोल उठा।

“साले कुत्ते, मैं तो नादान थी उस वक्त। तूने ही ना मेरी नादानी का फायदा उठाकर कर मुझे चुदाई का रास्ता बताया।” मेरी मां विफर उठी।

“अरे हरामखोरो अब लड़ना बंद करो और चुपचाप लक्ष्मी का किस्सा सुनो” दादाजी डांटे।

“ठीक है तो सुनिए। फिर मैं उनके ऊपर चढ़ गई और अपने दोनों पैरों को फैला कर उनके चार इंच के टनटनाए लिंग के सुपाड़े पर अपनी चूत का मुंह रख दिया और धीरे-धीरे नीचे दबाव देने लगी। मैं किसी कुंवारी कन्या की तरह आह आह करते हुए दर्द का नाटक करने लगी और अशोक भी मस्ती में आ गया और उनके मुख से भी आनंद भरी सिसकारी निकल पड़ी। जब पूरा लिंग मेरी चूत में घुस गया तो मैं धीरे धीरे कमर ऊपर नीचे करने लगी। ऐसा करते करते दो मिनट बाद मैंने ने उन्हें अपने ऊपर ले लिया और मैं नीचे हो गई। अब अशोक के लंड को चुदाई का मज़ा मिल गया था, वे ऊपर से धकाधक चोदने लगे। करीब तीन मिनट बाद ही उन्होंने मेरी चूचियों को जोर से पकड़ लिया और एक लंबी सांस छोड़ते हुए खलास हो गये। उफ्फ, मेरी निराशा का पारावार न रहा। मैं झुंझला उठी। अभी तो मैं जोश में आ ही रही थी। वे ढीले हो कर एक ओर लुढ़क गये। शायद शर्मिंदा भी थे। मैं ने उनकी अवस्था को समझा और उन्हें सान्त्वना देते हुए उनके सीने पर हाथ फेरने लगी और उनके एक हाथ को मेरी चूत पर रख दिया और रगड़ना शुरू किया। उन्होंने मेरा इशारा समझ लिया और मेरी चूत के भगांकुर को अपनी उंगली से रगड़ना चालू किया और कुछ ही मिनटों में मैं भी स्खलन के करीब पहुंच गयी, पूरा बदन थरथरा उठा, मैं अकड़ने लगी और तभी मेरा स्खलन होने लगा। करीब एक मिनट तक मैं उनके नंगे जिस्म से कस कर चिपकी रही फिर निढाल हो गई। मैं ने उन्हें एक प्याार भरा चुम्बन दिया और हम एक दूसरे से लिपट कर सो गए। दूसरे दिन वे मुझसे नज़रें नहीं मिला रहे थे किंतु मैं ने परिस्थिति से समझौता कर लिया था और मान लिया था कि भगवान ने मेरी किस्मत में यही

लिखा है और इसे मैं नहीं बदल सकती। मैं ने हालात से समझौता करना ही अच्छा समझा। दूसरी रात के लिए मैं ने कुछ अलग ही सोच रखा था। जब हम बिस्तर पर आए, उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा और दूसरी ओर मुंह फेर कर सोने का नाटक करने लगे। पिछली रात के अनुभव के कारण शायद वे शर्मिंदा थे। मैं ने फिर अपनी ओर से पहल करने की ठानी।

मैं उनके पीछे से लिपट गई और बोली, “क्या हुआ जी, आप नाराज़ हैं मुझसे?”

“नहीं तो। मैं शर्मिंदा हूं खुद से कि मैं तुम्हें पूरा सुख नहीं दे पाया।” उन्होंने कहा।

“छि: कैसी बातें करते हैं जी। इसमें शर्मिंदा होने की क्या बात है। आप दूसरी तरह से कोशिश तो कर के देखिए।” मैं ने हिम्मत बंधाते हुए कहा। वे मेरी ओर मुड़े और प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखने लगे। मैं उस समय पूरी बेशरम हो उठी थी। मैं ने उन्हें बांहों में भर लिया और उनके होंठों पर गरमागरम चुम्बनों की बौछार करने लगी। धीरे धीरे वे फिर से जोश में आने लगे। मैं उस वक्त नाईटी में थी। वे भी मुझे बांहों में जकड़ कर चूमने लगे। धीरे धीरे हम फिर से निर्वस्त्र हो गये और एक दूसरे से गुंथ गये। लेकिन मैं आज कुछ और करना चाहती थी। मैं उनके नंगे जिस्म को चूमते हुए उनके लंड तक पहुंच गई और उनके लंड को चाटने लगी। फिर मैंने उनके लंड को मुंह में ले कर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। उस वक्त मैं जान बूझ कर उनके साथ 69 की पोजीशन में आ गई थी और अब मेरी चूत उनके चेहरे के सामने थी जिसे मैं धीरे धीरे नीचे करके ठीक उनके मुख के पास ले आई और हौले हौले उनके होंठों पर रगड़ना शुरू कर दिया। अशोक अब तक जोश में आ चुका था और उनका चार इंच का लंड करीब करीब पांच इंच का हो चुका था जो कि शायद पूर्ण उत्तेजित अवस्था में अधिकतम था। अब अशोक भी अपनी जीभ निकाल कर मेरी चूत को चाटने में मग्न हो गया। मैं गनगना उठी और तुरंत ही झड़ने के करीब पहुंच गई। यह खेल सिर्फ पांच ही मिनट चला। अशोक तो वैसे भी तुरंत झड़ने वाला था। उनके लंड की स्थिति से ही मैं समझ गई कि वह कुछ ही सेकेंड का मेहमान है, मैंने तुरंत पोजीशन बदला और गप्प से उनके लंड को अपनी चूत में समा लिया और लो, छरछरा कर दोनों एक साथ झड़ने लगे।

“आह रानी ओह मेरी जान” वे सिर्फ इतना ही बोल पाए। “हां राजा ओह मेरे स्वामी उफ्फ मां मैं गई” कहते कहते हम दोनों एक दूसरे से चिपक गये और एक साथ स्खलन के अभूतपूर्व आनंद में डूब गये। एक बार खलास हो कर वे तो निढाल हो कर लुढ़क गए और कुछ ही देर में निद्रा की आगोश में चले गए जबकि मेरी आंखों से निद्रा कोसों दूर थी। कहां मैं एक ही चुदाई में दो दो तीन तीन बार झड़ने वाली, इस एक पांच मिनट की चुदाई में कहां मन भरता भला। खैर किसी तरह मन मसोस कर दिन काटती रही। फिर हरिया से चुद कर मां बनी और फिर आप लोगों ने मुझेचोद चोद कर मेरी चुदास की आग में घी डालने काम किया। कामिनी के पापा के मानसिक संतोष के लिए उनसे भी चुदवाती रहती थी, हालांकि मुझे यह सिर्फ रस्म अदायगी ही लगता था। इसी दौरान कामिनी के बड़े दादाजी से मुझे पता चला कि अशोक को गांड़ मरवाने की आदत है। मैं समझ गई कि यही कारण है कि वे औरतों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते हैं। उन्हें औरतों के बनिस्पत मर्द बहुत पसंद हैं। बड़े ससुरजी ही उनके समलैंगिक होने की कहानी अच्छी तरह बता सकते हैं, क्योंकि इनको अशोक के गांड़ मरवाने की आदत का ठीक ठीक पता है और जिसका इन्होंने खूब मज़ा भी लूटा है, अत: आगे की कहानी उन्हीं के मुंह से सुुुनिए।” इतना कहकर मेरी मां चुप हो गई और बड़े दादाजी की ओर देखने लगी।

इसके बाद मेरे पापा के समलैंगिक संबंधी विस्तृत वर्णन आपलोग मेरे बड़े दादाजी की जुबानी अगली कड़ी में पढ़िएगा।
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RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - by desiaks - 11-27-2020, 04:04 PM

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