Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:36 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
रुक बे लौड़े के ढक्कन, पहले हमें इसकी चूत में लंड तो फिट करने दे, बाद में चुसवाना अपना लंड।” सलीम बोला और खुद सीमेंट के बोरे पर बैठ गया और मुझे किसी गुड़िया की तरह उठा कर अपनी गोद में ऐसा बैठाया कि उसका मूसलाकार लिंग मेरी योनि को फैलाता हुआ सरसरा कर घुस गया।

“ये ले मां की चूत, ई गया मेरा लौड़ा।” सलीम की विजय घोषणा थी।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्, ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्।” बस यही आवाज निकली मेरे मुंह से। तभी रफीक सामने से मुझ पर चढ़ दौड़ा। करीब साढ़े छ: इंच ल़ंबा खतना किया हुआ लिंग, पहले से बिंधे मेरी योनि में घुसेड़ने लगा।

“अब ई ले मेरा लोड़ा्आ्आ्आ्आ आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्।” जबर्दस्ती ठूंसता चला गया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् मां्आं्आं्आं, ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बाबा्आ्आ्आ, फट्ट्ट्ट्ट्ट गय्य्य्यीई्ई्ई्ई्ई फट्ट्ट्ट्ट्ट गय्य्य्यीई्ई्ई्ई्ई।” मैं कलप उठी। लेकिन सलीम की सख्त पकड़ में बेबस पंछी की तरह छटपटा कर रह गयी। दो लंड मेरी चूत में, ओह्ह्ह्ह्ह मां्आं्आं्आं, पहले भी हो चुका था ऐसा मेरे साथ मगर आज की बात कुछ और थी। दोनों लंड खतना किए हुए। दोनों साले दढ़ियल चुदक्कड़। रफीक देखने में दुबला पतला था, लंड की लंबाई भी आम लंडों से कुछ ही ज्यादा थी लेकिन मोटाई, ओह्ह्ह्ह्ह भगवान, गधे जैसा मोटा। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह। खैर झेल गयी। फटी भी नहीं मेरी चूत, मगर फैल कर सचमें भोंसड़ा जरूर बन गयी। बस अब क्या था, गचागच, भचाभच, ठोंकने का मानो दौरा सा चढ़ गया उनपर। इधर बोदरा बेटीचोद हरामजादा, अपने दुर्गंधयुक्त लंड को मेरे मुंह में ठूंसता चला गया। अब तो हो गया मेरा बंटाढार। तीन लंड, मेरे अंदर। बड़ी मुश्किल से बोदरा का लंड मुंह में ले पा रही थी लेकिन वह कसाई तो मेरी हलक तक लंड ठोंके दे रहा था। बड़ी मुश्किल से सिर्फ घों घों की घुटी घुटी आवाज मेरे मुंह से निकल रही थी।

खैर जैसे तैसे करीब दो तीन मिनट की तकलीफदेह दौर के गुजरने के पश्चात मुझे आनंद मिलने लगा। उफ्फ वह रोमांच भरा आनंद, शब्दों में बयां करना मुश्किल है। दो आदमियों के मोटे मोटे लिंग का घर्षण मेरी योनि में, उफ्फ भगवान, पागल हो गयी मैं तो। तभी बोदरा मुझे छोड़ कर अलग हो गया। मेरी जान में जान आई।

“हट साला, अईसन लौड़ा चुसवाएक से मजा नी आवाथौ। पहिले तुहिने चोईद लेवा, उकर बाद मोंय इकर गांड़ चोदबौ, आराम से (हट साला, ऐसे लंड चुसवाने से मजा नहीं आ रहा है। पहले तुमलोग चोद लो, फिर मैं इसकी गांड़ चोदूंगा आराम से।)” बोदरा बोला।

“ठीक, ठीक, एखन हमिन के चोदेक दे (ठीक, ठीक, अभी हमें चोदने दे)। आह् ओह ओह आह, ले ले ओह सार रंडी, आह सार बुरचोदी” रफीक मेरी चूचियों को निचोड़ता हुआ चोदने में मगन बोला। मेरा मुंह अब खुला था। मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थीं। मैं चाह कर भी अपनी आहें, सिसकारियों को रोक नहीं पा रही थी। मैं इनकी स्थानीय भाषा न सिर्फ समझती थी बल्कि अच्छी तरह बोल भी सकती थी। मैं इस घटना में स्वभाविकता लाने के लिए अब उन्हीं की भाषा का इस्तेमाल करने जा रही हूं।

“आह् रे ओह रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए, हाय रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए, आ्आ्आ्आ्ह, मजा, एखन मजा आवाथौ रज्जा, आह हाय रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए हमर बुर, भोंसड़ा बईन गेलक रज्जा, आह्ह ओह्ह अब बड़ा मजा आवाथौ रे्ए्ए्ए्ए्ए मादरचोद, चोद चोद सार कुकुर मने ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए मोके रंडिए बनाए देवाथा आह ओह (अब मजा आ रहा है रज्जा, आह, हाय रे मेरी बुर, भोंसड़ा बन गया रज्जा, आह ओह बड़ा मजा आ रहा हे रे मादरचोद, चोदो चोदो साले कुत्ते लोग, ओह रे, मुझे रंडी ही बना दे रहे हो आह ओह)। मैं मस्ती मे भर के उछल उछल कर चुदवाने लगी। उन्हें समझ आ गया कि अब मैं मस्ता गयी हूं। उनमें दुगुना जोश चढ़ गया। हुम्मच हुम्मच के ठोंकने लगे मेरी योनि में। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, मेरी बातों, उद्गारों ने मानो आग में घी का काम किया, धमाधम कुटाई होने लगी, मानो एक सिलेंडर में दो दो पिस्टन।

“आ्आ्आ्आ्ह, मोंय गेलों, ओह मोंय गेलों (मैं गयी, मैं गयी)” और मैं जड़ने लगी। झड़कर निढाल होने लगी लेकिन वे कसरती मिस्त्रि झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे मेरे निढाल शरीर को बी नोचते रहे, निचोड़ते रहे, कूटते रहे कूटते रहे करीब घंटे भर कुटाई चलती रही और मैं झड़ती, निढाल होती, फिर जगती, फिर झड़ती, यह कःरम करीब तीन बार मेरे साथ हुआ। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह निचोड़ कर रख दिया उन दढ़ियल कुत्तों नें। फिर जब उनके झड़ने की बारी आई तो, “आ्आ्आ्आ्ह आ्आ्आ्आ्ह बुरचोदी माय केर बुरचोदी्ई्ई्ई्ई्ई् बेट्ट्टी्ई्ई्ई्ई्ई, सा्आ्आ्आ्आर रंडी्ई्ई्ई्ई्ई आ्आ्आ्आ्ह (आ्आ्आ्आ्ह बुरचोदी मां की बुरचोदी बेटी, साली ऱडी, आ्आ्आ्आ्ह)” ऐसे कस के मुझे दबोचा कि मानो मेरी सांसें ही रुक गयीं। इतनी जोर से कसा था मेरे शरीर को मानो शरीर का सारा रस ही निचोड़ डालेंगे। थक कर निढाल, बदबूदार पसीने से लतपत, वहीं लुढ़क गये दोनों के दोनों और भैंसों की तरह डकारने लगे ,हांफने लगे, मानो मीलों दौड़ लगा कर आए हों। मेरी तो पूछो ही मत, जन्नत की सैर करते करते जैसे अचानक धम्म से जमीन पर गिर पड़ी थी। परवाह नहीं थी कि मैं वहां बिछे सीमेंट के बोरों में लगे सीमेंट से पुती जा रही थी।
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RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - by desiaks - 11-28-2020, 02:36 PM

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