Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:38 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“मोओओबा्आई्ईल।” बड़ी मुश्किल से बोल फूटे मेरे मुंह से। कांता अजीब नजरों से देखती हुई टेबल से मोबाइल ले आई। मैंने एक रेस्टोरेंट का नंबर लगाया और सबके खाने का ऑर्डर दिया। सभी बड़े चकित थे। किंकर्तव्यविमूढ़ थे। क्या मैं अबतक उन्हें बेवकूफ बना रही थी? अपने अपने स्थान में वे जम से गये थे। ऑर्डर देकर मैं फिर लुढ़क गयी। करीब एक घंटे बाद मैं थोड़ी संभली। अबतक वे पशोपेश में थे। मैंने उन्हें इत्मीनान रखने का आश्वासन दिया हाथ के इशारे से और उन्हें बैठने का इशारा करते हुए लड़खड़ाते कदमों से अपने कमरे की ओर बढ़ी। जब मैं कमरे से बाहर आई, मैं बदल चुकी थी, अब मैं चांदनी नहीं, कामिनी थी। लेकिन मेरी चाल बदली हुई थी। चुदी जो थी कुतिया की तरह। चूत की चटनी जो बन चुकी थी। बुर का भुर्ता जो बन चुका था।

. “अरे मैडम?”

“हां मैं, चांदनी।” सन्नाटा सा छा गया वहां। “क्या हुआ?”

“ककककुछ नननननहींईंईंईं।”

“अरे बेवकूफो, अगर मैं मैडम ही रहती तो तुमलोग खुलकर नहीं खेलते ना मेरे साथ।”

“हां, वो तो है।” सलीम खिसियानी हंसी हंस रहा था।

“तभी दरवाजे की घंटी बजी, खाना आ चुका था। अबतक ये लोग आधे अधूरे कपड़ों में थे, अतः मैं ही खाने के पैकेट्स को रिसीव करके अंदर आई। अब सभी खुल चुके थे। कोई झिझक शरम नहीं थी।

“कपड़े मत पहनो तो भी चलेगा।” मैं बोली। “बोलो तो मैं भी खोल देती हूं अपने कपड़े।” मैं उनके उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर नंगी हो गयी। अब मैं दमक रही थी लेकिन मेरी योनि फूल कर कुप्पा बनी हुई थी। मेरी देखा देखी वे भी नंगे हो गये।

“ठीक है, ठीक है, चलो शाम तक कोई कपड़े नहीं पहनेगा।” सलीम घोषणा कर बैठा।

“ठीक है।” सब सहमत थे। सब बेशरमों की तरह आदमजात नंगे, आपस में ठिठोली करते हुए खाने की मेज पर आए। मैं सोच रही थी, अपने हवस की आग बुझाने की नित नये प्रयोग नें मुझे कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया था। इन रेजाओं से बदतर हालत हो गयी थी मेरी। रेजाओं से क्यों, वेश्याओं से भी बदतर हो गयी थी मैं। पता नहीं क्या सोच रहे होंगे सब मेरे बारे में, लेकिन मैं बेफिक्र थी। नुचती रही, पिसती रही, चुदती रही लेकिन जानती थी कि सबकुछ मेरे नियंत्रण में ही था। मैं कोई अतिरिक्त जोखिम में थी भी नहीं, यदि मुझे लगता कि मेरे नियंत्रण से बाहर जा रहा है सबकुछ, तो खुद की असलियत प्रकट करके बचने का मार्ग तो था ही। खैर उसकी नौबत नहीं आई। अच्छी बात हुई, रोमांच का रोमांच और मजा का मजा। तकलीफदेह ही सही, अपनी क्षमता का आंकलन तो कर ही चुकी थी। एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, सात सात मर्द, बारी बारी से अपने अपने तरीके से भोगा मुझे, नोचा, रगड़ा, निचोड़ा लेकिन वाह रे मैं कंबख्त रांड, झेल गयी सफलतापूर्वक। गर्व की अनुभूति हो रही थी। सोमरी और कांता के लिए यह एक अविश्वसनीय दृष्य था। जलन और ईर्ष्या से मुझे घूर रही थीं। अब भी, सबके सम्मुख बेशर्मी से नंगी बैठी मजे में बेझिझक बातें कर रही थी। हमारे बीच की सारी दूरियां, झिझक खत्म हो चुकी थी। मैं उन्हीं मजदूरों के समकक्ष खुद को पेश करने में सक्षम हो चुकी थी। ऊंच नीच का भेदभाव खत्म हो चुका था। वे स्वतंत्रता पूर्वक मुझसे चुहल कर रहे थे।

खाना खाते खाते, सलीम बोला, “तो मैडम…..”

“न न न मैडम नहीं।” मैं बीच में ही बात काट बैठी।

“अच्छा, कामिनी जी।”

“नहीं, ‘जी’ नहीं।”

“अच्छा, कामिनी।”

“नहीं, कामिनी नहीं।”

“फिर?”

“चांदनी।” मैं बोली।

“नहीं।” बोदरा बोला, शैतानी उसकी आंखों में नाच रही थी।

“फिर?” मैं सशंकित हुई।

“चोदनी।” बोदरा बोला। सभी ठठाकर हंस उठे। हंसते हुए कांता और सोमरी की चूचियां हिल रहे थे। मैं हंस पड़ी। “ठीक है, आज से मैं तुम लोगों की चोदनी।” मैं सहमत थी अपने नये नामकरण पर। “अरे तुमलोग भी कुछ बोलो ना। खुल के बोलो। जो मन में है बोल डालो।” कांता और सोमरी की ओर देखती हुई बोली।

“का बोलें? चोदनी कहीं की।” मेरी असलियत जानकर झेंपती, वाचाल कांता का अब मुह खुला।

“हां, ये हुई न बात।”

“लंडखोर।” अब सोमरी का भी मुंह खुला।

“कुत्ती, बुरचोदी।” अब कांता बिंदास हो गयी।

“और ये हरामजादे कौन हैं?” मैं मर्दों को दिखा कर हंसते हुए पूछी।

“ई सब कुत्ते हैं, औरतखोर कुत्ते। औरत देखा नहीं कि लंड खड़ा, सब के सब मादरचोद एक नंबर के।” अब सोमरी भी रंग में आ गयी।

“अच्छा यह बताओ, तुम सब एक तरह के लोग इस ठेकेदार के हाथ कैसे लगे?” मैं पूछ बैठी।

“ई हम बताएंगे, लेकिन खाना खाने के बाद।” इतनी देर से चुप गांडू मुंडू बोला।

आगे की कथा अगली कड़ी में। तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।

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