Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
पिछली कुछ कड़ियों में आपलोगों नें पढ़ा कि अपने नये मकान निर्माण कार्य में कार्यरत कामांध मजदूरों के समूह में, अपनी संभ्रांत छवि को त्याग कर उन्हीं के समकक्ष एक निम्नवर्गीय स्त्री की तरह शामिल हो कर अपने तन की भूख मिटाने हेतु बिछती चली गयी। उनके मनोनुकूल ढल कर, उनकी इच्छानुसार, प्रथमतय: दिखावे का बेबस विरोध और तत्पश्चात स्वयंमेव स्वेच्छा से उन मजदूरों की घृणित, कुत्सित कामेच्छा का शिकार बन कर पिसती, नुचती मगन मन आनंदविभोर, उनकी हरेक चेष्टाओं और कामक्रीड़ाओं में सुख प्राप्त करती रही। जोखिम भरा किंतु रोमांचक, नया अनुभव। अपनी निकृष्ट अवस्था का जरा भी मलाल नहीं, न ही कोई पश्चाताप या क्षोभ। बेशरम तो हूं ही मैं।

उस रविवार, पूरा दिन उनके साथ घटिया से घटिया हरकतों में शामिल हो, पूरी छिनाल बनी रही। बड़ा मजा आया। उन मजदूरों के इस समूह के सृजन से लेकर समूह के निर्माण के बारे में जानकर अच्छा लगा। उनके बिंदास सोच, तालमेल और आपसी व्यवहार से मैं प्रभावित हुई।

इस दिन के बाद तो सारे कामगरों को मानो मेरे तन से खेलने का लाईसेंस मिल गया। मैं कमीनी कम थोड़ी न हूं। उन्हें कृतार्थ करने में जरा भी संकोच नहीं करती थी। मेरी मनोवांछित मुराद भी तो पूरी हो रही थी। अपने तन की भूख ऐसे भी मिटाने की नौबत आएगी, इस बात की कल्पना भी नहीं की थी मैंने। खैर, मैं संतुष्ट थी। इस रविवार के करीब एक हफ्ते बाद की घटना है।

उस दिन सोमवार था। शाम को ऑफिस से घर लौटी तो गेट से ठीकेदार, आर्किटेक्ट हर्षवर्धन दास साहब निकल रहे थे। मैं उनका अभिवादन करते हुए पूछी,

“और दास बाबू, सब ठीक चल रहा है न?”

“हां मैडम, और सब तो ठीक चल रहा है, लेकिन मुझे लग रहा है आप मुझसे नाराज हैं।” उनके चेहरे पर मायूसी छाई हुई थी।

“क्यों, आपको ऐसा क्यों लग रहा है?” मैं थमक कर खड़ी हो गयी।

“अब मैं क्या बताऊं, बाकी आप खुद समझदार हैं।”

“मैं कुछ समझी नहीं।” मैं बोली।

“अब इतनी भी भोली न बनिए।”

“सचमुच मैं समझी नहीं आपकी बात का मतलब।”

“कैसे बोलूं?” वे हिचकिचा रहे थे।

“खुल के बोलिए ना।” मेरा दिल धड़क रहा था। मैंने अपनी समझ से दास बाबू के साथ न तो कोई बदसलूकी की थी, न ही बदजुबानी। व्यवहार भी सामान्य था। फिर? उनकी नजरें ऊपर से नीचे मुझ पर दौड़ रही थीं। हसरत भरी नजरें।और सब कुछ धीरे धीरे स्पष्ट होता चला गया। मैंने भवन निर्माण स्थल की ओर दृष्टि फेरी, तो पाया कि सलीम और बोदरा हमारी ओर ही देख रहे थे। उधर कांता भी कुटिलता से मुस्कुरा रही थी। सब समझ गयी मैं, फिर भी अनजान बनी पूछ बैठी, “देखिए दास बाबू, अगर मुझसे अनजाने में कोई गलती हुई है तो मैं माफी चाहती हूं।”

“अनजाने में नहीं, जान बूझ कर।” उनकी नजरें अब मेरे उन्नत उरोजों पर टिक गयी थीं। मेरे तन में वही चिरपरिचित सनसनाहट तारी होने लगी।

“क्या?”

“आपने सबको बांट दिया और मुझे भूल गयीं। हमसे कोई गलती हो गयी है क्या?”

“क्या बांटी मैं?”

“सब बोल रहे हैं, खिलाई हैं आप उनको।”

“क्या खिलाई हूं?” अब सब कुछ स्पष्ट हो गया। इन कमीनों नें दास बाबू को भी बता दिया। फिर भी बनती रही।

“अब वो भी बता दूं?”

“हां।” देखती हूं क्या बोलता है?

“खुल के बोलूं? अगर गलत हूं तो सॉरी।”

“आप बोलिए तो।”

“सब लोगों को आपनी जवानी का प्रसाद खिलाया और हमें नहीं। यह तो सरासर अन्याय है। है ना?” अब उनके होंठों पर कामुकता नृत्य कर रही थी।

“हाय राआआआआम।” मैं आंखें बड़ी बड़ी कर शर्मिंदा होने का ढोंग करने लगी।

“तो यह सच है?” वे खुश हुए कि उनका कथन सत्य था।

“त त त त तो इन लोगों नें बता दिया आपको?” मैं नजरें झुका कर बोली।

“हां, तभी तो बोल रहा हूं। मुझसे ऐसी क्या गलती हुई कि मुझे भूल गयीं आप?” मेरी हालत देख कर उनकी आंखें चमक उठीं। फंसी यह चिड़िया जाल में।

“अ अ अ असल में, असल में, मममममुझे नननननहींईंईंईं पता था क क क कि आप इस तततततरह कके हैं।” मैं हकलाने लगी।

“अब पता चल गया ना?”

“हूं” मैं जमीन पर नजरें गड़ाए बोली।

“तो?”

“ततयतो कककक्या?”

“क्या इरादा है? खाने की उम्मीद करूं?”

“अब मैं क्या बोलूं? पता तो चल ही गया है आपको। मना करने की अवस्था में हूं क्या?” मेरी आवाज में लाचारी थी। छि:, क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में? इतनी घटिया औरत हूं मैं? इतनी गिरी हुई, कि इन मजदूरों के समक्ष बिछ जाती हूं अपनी वासना की पूर्ति के लिए।

“ऐसी लाचारी भरी आवाज में मत बोलिए।”

“तो कैसे बोलूं?”

“खुले दिल से बोलिए।”

“बोली तो।”

“ऐसे नहीं।”

“फिर कैसे?”

“खुल के, खुशी खुशी।” वे कुत्सित मुस्कान के साथ बोले।
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RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - by desiaks - 11-28-2020, 02:40 PM

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