Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
03-01-2021, 04:28 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
(11-27-2020, 03:51 PM)desiaksनानाजी अपने कुत्ते जैसी लंबी खुरदुरी ज़बान से मेरी फकफकाती रहीम चाचा से चुद चुद कर सूजी चूत को चप चप चाटने लगे, Ahhh Kash aapki Wrote:  के साथ मम्मी की आवाज़ “अरे तुझे जाना है कि नहीं, घड़ी देखो 7 बज रहे हैं।” सुन कर मैं बदनतोड़ चुदाई से थकी, अथमुंदी आंखों से अलसाई सी उठती हुई बोली, “हां बाबा हां पता है जाना है, तैयार होती हूं,” मन में तो कुछ और ही बोल रही थी, “तुम लोगों के नाक के नीचे जब तीन तीन हवस के पुजारी बूढ़ों से रात को नुच चुद कर छिनाल बन रही थी तो घोड़े बेच कर सो रही थी और अब बड़ी आई है मुझे उठाने।”
खैर उठी और तैयार हो कर नाश्ते के टेबल पर आई तो देखा तीनों बूढ़े मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहे थे। मेरी बदली हुई चाल पर सिर्फ उन्हीं ने ध्यान दिया था क्योंकि ये उन्हीं के कमीनी करतूतों का नतीजा था। मैं उनपर खीझ भी रही थी और प्यार भी आ रहा था। ” साले हरामी बूढ़े, चोद चोद कर मेरे तन का कचूमर निकाल दिया और अब खींसे निपोरे हंस रहे हैं।” मैं खिसियानी सी मुस्कान के साथ उनसे बोली, “आपलोग तैयार हो गये क्या?”“ये तो कब से तैयार बैठे तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे हैं।” पापा बोले, “जल्दी नाश्ता करो और निकलने की तैयारी करो, मैं तुमलोगों को बस स्टैंड तक छोड़ दूंगा।” मैं नाश्ता कर के उन लोगों के साथ बस स्टैंड पहुंची। पापा ने हमलोगों का टिकट कटा कर बस में बैठाया और जब हमारी बस छूटने को थी, वे वापस लौट गए।
जब बस छूटी उस समय 9 बज रहा था। मौसम काफी खराब हो रहा था, घने बादल के साथ जोरों की बारिश शुरू हो चुकी थी। दिन में ही रात की तरह अंधकार छाया हुआ था। बस की सीट 3/2 थी। 3 सीटर सीट में मुझे बीच में बैठाकर दाहिनी ओर नानाजी और बाईं ओर बड़े दादाजी बैठ गये। दूसरी ओर 2 सीटर पर दादाजी बैठे कुढ़ रहे थे और बार बार हमारी ओर देख रहे थे। ये लोग धोती कुर्ते में थे और मैं स्कर्ट ब्लाउज में। तीन दिनों के ही नोच खसोट में मेरा ब्लाउज टाईट हो गया था और मैं काफी निखर गई थी। सीट का बैक रेस्ट इतना ऊंचा था कि हम पीछे वालों की नज़रों से छिप गए थे।
बगल वाले 2 सीटर पर दादाजी के साथ एक और करीब 60 – 62 साल का मोटा ताजा पंजाबी बूढ़ा बैठा हुआ था। बस जैसे ही चलने लगी, मैं ने अपनी दाई जांघ पर नानाजी के हाथ का रेंगना महसूस किया और बाईं जांघ पर बड़े दादाजी का हाथ रेंगने लगा।
तभी “टिकट?” कंडक्टर की आवाज आई, मैं ने देखा दुबला पतला काला कलूटा टकला, ठिगना, करीब 4 फुट 10 इंच का, 50-55 साल का, अपने सूअर जैसे चेहरे पर पान खा खा कर लाल मुंह में बाहर की तरफ भद्दे ढंग से निकले काले काले दांत निपोरे बड़ी अश्लीलता से मुझे देखता हुआ मुस्कुरा रहा था। हमारे चेहरों का रंग उड़ गया था। झट से बूढों ने अपने हाथ हटा लिए। मगर शायद उस कंंडक्टर की नज़रों ने इनकी कमीनी करतूतों को ताड़ लिया था। फिर वह मुस्कराते हुए अन्य यात्रियों के टिकट देखने आगे बढ़ा।
मेरा दिल धाड़ धाड़ धड़क उठा।। फिर भी ये खड़ूस बूढ़े अपनी गंदी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे। मैं ने हल्का सा प्रतिरोध किया, “ये क्या, यहां भी शुरू हो गये हरामियों।” मैं फुसफुसाई। मगर इन कमीनो पर कोई असर नहीं हुआ।
“अरे कोई नहीं देख रहा है बिटिया, तू बस चुपचाप मज़ा ले”, नानाजी फुसफुसाए। धीरे धीरे मै उत्तेजित होने लगी और मैं ने भी अर्धचेतन अवस्था में उनकी जांघों पर हाथ रख दिया। दादाजी कनखियों से हमारी हरकतों को देख देख कुढ़ते रहे।
दादाजी के बगल वाले सरदारजी का ध्यान भी हमारी हरकतों पर गया था जिसका अहसास हमें नहीं था। वे भी खामोशी से कनखियों से हमारी इन कमीनी हरकतों को देख रहे थे। धीरे धीरे नानाजी और बड़े दादाजी का हाथ मेरी जांघों में ऊपर सरकने लगा और स्कर्ट के अंदर प्रवेश कर मेरी फूली हुई चूत को पैन्टी के ऊपर से ही सहलाने लगे। “आ्आ्आह” मेरी सिसकारी निकल पड़ी। मेरी आंखें अधमुंदी हो गई। बेध्मानी में मेरे हाथ उनकी धोती सरकाकर कब उनके टनटनाए खंभों तक पहुंचे मुझे पता ही न चला। इधर उनके हाथ मेरी पैंटी के अंदर प्रवेश कर मेरी चूत सहलाने लगे और उधर उनके अंडरवियर के अंदर मेरे हाथों की गिरफ्त में थे उनके गरमागरम टनटनाए गधे सरीखे विशाल लंड। उत्तेजना के आलम में मेरी लंबी लंबी सांसें चल रही थीं जिस कारण मेरा सीना धौंकनी की तरह फूल पिचक यह था। वे भी लंबी लंबी सांसें ले रहे थे। अब और रहा नहीं जा रहा था, वासना की ज्वाला में हम जल रहे थे।
बड़े दादाजी ने मेरे कान में फुसफुसाया, “हमार गोदी में आ जा बिटिया,” मैं किसी कठपुतली की तरह कामोत्तेजना के वशीभूत सम्मोहन की अवस्था में उनकी गोद में बैठ गई। बड़े दादाजी ने धीरे से धोती हल्का सा सरकाया, अपना मूसलाकार लंड अंडरवियर से बाहर निकाला, मेरे स्कर्ट को पीछे से थोड़ा उठाया, पैंटी को चूत के छेद के एक तरफ किया और फुसफुसाया, “थोड़ा उठ,” मैं हल्की सी उठी, उसी पल उन्होंने लंड के सुपाड़े को बुर के मुंह पर टिकाया और फुसफुसाया, “अब बैठ”। मैं यंत्रचालित बैठती चली गई और उनका फनफनाता गधा सरीखा लौड़ा मेरी चूत रस से सराबोर फूली फकफकाती बुर को चीरता हुआ मेरे बुर के अंदर पैबस्त हो गया। “आआआआआआआआआआह” मेरी सिसकारी निकल पड़ी। “आह रानी, बड़ा मज़ा आ्आ्आ् रहा है,” बड़े दादाजी फुसफुसाए। ऊपर से देखने पर किसी को भनक तक नहीं लग सकता था कि हमारे बीच क्या चल रहा है। सब कुछ मेरी स्कर्ट से ढंका हुआ था।
टूटी-फूटी सड़क पर हिचकोले खाती बस में अपनी चूत में बड़े दादाजी का लौड़ा लिए बिना किसी प्रयास के चुदी जा रही थी। बीच-बीच में बड़े दादाजी नीचे से हल्का हल्का धक्का मारे जा रहे थे। ” आह मैं गई” फुसफुसा उठी और मेरा स्खलन होने लगा। अखंड आनंद में डूबती चली गई। “आ्आ्आह”। मगर यह बड़े दादाजी भरे बस में इतने यात्रियों के बीच बड़े आराम से मुझे चोदे जा रहे थे और मैं भी फिर एक बार जागृत कामोत्तेजना में मदहोश चुदती हुई एक अलग ही आनंद के सागर में गोते लगा रही थी, इस तरह दिन दहाड़े यात्रियों के बीच चुदने के अनोखे रोमांचक खेल में डूबी चुदती चुदती निहाल हुई जा रही थी।अचानक बड़े दादाजी ने मुझे कस कर जकड़ लिया और उनका लंड अपना मदन रस मेरी चूत में उगलने लगा और एक मिनट में खल्लास हो कर ढीले पड़ गए। इस बार मैं अतृप्त थी, मैं खीझ उठी मगर नानाजी ने स्थिति की नजाकत को भांपते हुए कहा, “अब तू मेरी गोद में आ जा। तेरे बड़े दादाजी थक गये होंगे।”
मैं बदहवास तुरंत नानाजी की गोद में ठीक उसी तरह बैठी जैसे बड़े दादाजी की गोद में बैठी थी।उनका कुत्ता लंड जैसे ही मेरी चूत में घुसा,”आह्ह्ह्” मेरी जान में जान आई। फिर वही चुदाई का गरमागरम खेल चालू हुआ। इस बार 5 मिनट में ही मैं झड़ गई। नानाजी तो इतनी देर से अपने को बमुश्किल संभाले हुए थे, इतनी आसानी से कहां छोड़ने वाले थे भला। करीब 20 मिनट की अद्भुत चुदाई के बाद फचफचा कर झड़ना लगे, और इसी पल मैं भी झरने लगी। ” हाय मैं गई” यह मेरा दूसरा स्खलन था। अचानक मेरा दिल धड़क उठा, हाय, नानाजी का लौड़ा तो मेरी चूत में फंस चुका था। अब क्या होगा? मैं परेशान हो गई।
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RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - by Burchatu - 03-01-2021, 04:28 PM

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