Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
03-14-2021, 02:20 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी Part 1
कामिनी Part 1



कामिनी कहानी इस फोरम पे कहीं नहीं मिली .. तो इस कहानी को बहुत खोजा और फिर कहीं पर मिल गयी तो सोचा सब के लिए इस फोरम पर डाल दू ..



उम्मीद है मेरी तरह जो लोग शजावद इसे ढूंढ रहे थे उनको ये कहानी अच्छी लगेगी



मैं आप लोगों के सम्मुख एक कामुक स्त्री कामिनी की जीवन गाथा प्रस्तुत करने जा रही हूं।यह एक ५५ वर्षीय कामुक विधवा की जीवन गाथा है। नाम है कामिनी देवी, एक प्राईवेटफर्म में उप प्रबंधक। चेहरे मोहरे और अपने सुगठित शरीर के कारण वह आज भी ३५ से ४० कीलगती है। लंबा कद ५' ७", रंग गेहुंआ, चेहरा लंबोतरा, पतले रसीले गुलाबी होंठ, नशीली आंखें,घने काले कमर से कुछ ऊपर तक खुले बलखाते रेशमी बाल और ३८", ३०", ४०" नाप के अतिउत्तेजक खूबसूरत काया की स्वामिनी। देखने वालों की नजरें उसकी कमनीय काया से शरीर सेचिपक कर रह जाती, ऐसी है कामिनी। खुले बांहों वाले लो कट ब्लाऊज उसके उबल पड़ते बड़े बड़ेउरोजों को बमुश्किल संभाले हुए से लगते हैं। छोटी इतनी कि उरोजों से नीचे करीब पूरा हीदर्शनीय पेट लोगों की नजरों को अनचाहे ही चिपकने को मजबूर करती हैं, उस पर नाभी सेकरीब दो इंच नीचे बंधी साड़ी तो पूरा आमंत्रण ही देती प्रतीत होती हैं। जब वह चलती तोउसके भारी नितंब कसी हुई तन से चिपकी साड़ी के कारण निहायत ही उत्तेजक अंदाज में थिरकतेहैं। उसने अपने आप को सिर्फ आंखें सेंकने की चीज ही नहीं रहने दिया बल्कि कई पुरुषों कीअंकशायिनी बन कर अपने कामोत्तेजक तन का स्वाद भी चखा चुकी है। उम्रदराज पुरुषों पर तोशुरु से ही वह खासी मेहरबान रही है। वैसे उसकी उदारता से थोड़ा बहुत प्रसाद चखने कासौभाग्य कुछ भाग्यशाली युवा लोगों को भी मिलता रहा। अपने यौवन का रस पान कराने मेंकामिनी नें कभी कोई कंजूसी नहीं बरती और वह भी बिना किसी भेद भाव के। इसके लिएजिम्मेदार है खुद उसका अपने तौर पर जीवन जीने का बिंदास तरीका। उसनें अपने जीवन के १७वसंत पार करने के बाद न कभी किसी के हस्तक्षेप को अपने जीवन में पसंद किया है न ही किसीको इजाजत दी है। स्वतंत्र आजाद खयाल, खुद के बूते अपने पैरों पर खड़ी, अपने मन मरजी की मालकिन।



अपनी आकर्षक और मदमाती कामुक काया का उसने कई मौकों पर बड़ी होशियारी से इस्तेमालभी किया और अपने कैरियर को संवारा। कैरियर में तरक्की के लिए कुछ कुरूप, बदशक्ल और बेढबबेडौल सीनियर्स की कुत्सित विकृत कामेच्छा की तृप्ती के लिए अपने तन को परोसने में भीकत्तई परहेज नहीं किया।



एक विधवा होने के बावजूद, उसका रहन सहन, पहनावा ओढ़ावा एक बिंदास स्त्री की भांतिथा। एक वर्ष तक ही तो विवाहिता की जिंदगी जी सकी थी कि एक सड़क हादसे में उनके पतिका स्वर्गवास हो गया, जिसके लिए उसकी सास नें उसे ही अपशकुनी मान कर उस पर कहरढाना शुरू कर दिया था। उसकी तेज तर्रार, बदमिजाज और बदजुबान सास के सामने उसके ससुरऔर दादा ससुर की एक नहीं चलती थी अत: वे भी अपनी शांति के लिए उसकी सास के किसीबात का विरोध नहीं करते थे हालांकि उनके मन में कामिनी के लिए सहानुभूति थी, मगर उनकीनपुंसक सहानुभूति उसके किस काम की? उसकी सास की तानें और प्रताड़ना जब अति होने लगीतब उसे विद्रोह करने पर मजबूर होना पड़ा और ससुराल से अलग होकर हमेशा के लिएअपने नानाके घर आ गई, जहां उसके नानाजी नें बड़े प्यार से स्वागत किया। उसके अपने माता पिता काघर तो वह कब का छोड़ चुकी थी। १७ साल की उमर से वह नानाजी के यहां ही रह रही थीजहां उसनें पढ़ाई लिखाई पूरी की और वहीं से नानाजी नें उसकी शादी एक सरकारी दफ्तर केक्लर्क से कर दी थी। विधवा होने के बावजूद नानाजी नें उसे न सिर्फ खुशी खुशी अपनायाबल्कि अपने पैरों पर खड़े होने में भरपूर सहायता भी की। आज वह एक सफल प्रबंधक के पद परअपनी जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम दे रही है।



परिस्थितियों की मारी और उसके जीवन के कई अच्छी बुरी घटनाओं से दो चार होती हुई आजवो इस मुकाम पर खड़ी थी।

अब मैं इससे आगे की कहानी कामिनी के आत्मकथा के रूप में लिखना चाहूंगी अन्यथा मैं कामिनी केभावनाओं और उसके जीवन में हुए अच्छे बुरे घटनाक्रम को, जिन कारणों से आज वह इस मोड़ परअपने आप को खड़ी पा रही है, असरदार रूप में व्यक्त नहीं कर पाऊंगी।



हां तो मेरे प्रिय पाठकों, मैं कामिनी अब अपने जीवन के उन घटनाओं से आपको रूबरू कराऊंगीजिन के परिणाम स्वरूप आज मैं इस मोड़ पर खड़ी हूं। दरअसल यह कहानी शुरू होती है मेरे पैदाहोने के पहले से। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे माता पिता, जो कहने को तो थे पढ़े लिखे औरसाधन संपन्न, मगर थे दकियानूसी खयालात के, पता चल गया था कि मैं कन्या हूं। उन्हें तोपुत्र रत्न की चाह थी, अत: गर्भपात कराने का हरसंभव उपाय किया गया, मगर मैं ठहरी एकनंबर की ढीठ। सारी कोशिशों के बावजूद एकदम स्वस्थ और शायद उन गर्भपात हेतु दी गईदवाओं का विपरीत असर था कि मैं रोग निरोधक क्षमताओं से लैस पूर्णतय: निरोग व आवश्यकतासे कुछ अधिक ही स्वस्थ पैदा हुई। लेकिन चूंकि मैं अपने माता पिता की अवांछित संतान थी, मुझेबचपन से उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। फिर हमारे परिवार में मेरे पैदा होने के २ साल बादएक बालक का आगमन हुआ और मेरे माता पिता तो लगभग भूल ही गए कि उनकी एक पुत्री भीहै। पुत्र रत्न की प्राप्ति से घर में उत्सव का माहौल बन गया। बधाईयों का तांता लग गयाऔर उस माहौल में मैंने खुद को बिल्कुल अकेली, अलग थलग और उपेक्षित पाया।



समय बीतता गया और मैंने अपने आप को विपरीत परिस्थितियों के बावजूद और मजबूत बनाना शुरूकर दिया। मेरे अंदर के आक्रोश नें भी मेरे हौसले को और मजबूती प्रदान की। पढ़ाई में सदाअव्वल रही, खेल कूद में भी कई ट्रॉफियां और उपलब्धियां हासिल की। स्कूल में कुंगफू कराटे कीचैंपियन रही। लेकिन मेरे घर वालों नें बधाई देना तो दूर मेरी तमाम उपलब्धियों की ओर कोईतवज्जो तक नहीं दी। इस के विपरीत मेरा भाई, मां बाप के अत्यधिक लाड़ प्यार से बिगड़ताचला गया। आवारा लड़कों की सोहबत में पड़ कर पढ़ाई लिखाई में फिसड्डी रह गया मगर मातापिता उसकी हर गलतियों को नजरअंदाज करते गये, नतीजतन वह बिल्कुल आवारा निखट्टू और मांबाप का बिगड़ैल कपूत बन कर रह गया।



मैंने एक तरह से अपने परिवार के मामलों से अपने आप को अलग कर लिया और अपने तौर परजीना शुरू कर दिया।

मैंने जिन्दगी के १६ वसंत पार कर लिया और +२ में दाखिला लिया। मेरे अंदर छुपे आक्रोश नें मुझेसदा मेहनत करने और आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया। इसी दौरान मेरे साथ एक ऐसी घटनाघटी जिसने मेरे जीवन को एक नयी ही दिशा दे दी। एक नये, निहायत ही नये और अभूतपूर्वआनंददायक अनुभव से रूबरू कराया। उस घटना नें मेरी जिन्दगी में एक नया अध्याय खोल दिया।अपनी उपेक्षा का दंश झेलते झेलते मैं आजिज आ चुकी थी, मगर उस घटना के बाद मैंने जिल्लत भरीजिन्दगी में खुशी पाने की राह ढूंढ़ ली, भले ही समाज उसे गलत नजर से देखे मेरे ठेंगे से। आज तकमैंने जो उपेक्षा का दर्द झेला है उससे कई गुना ज्यादा खुशी प्राप्त करने का मार्ग मिल गयाऔर संतोष भी। इससे मेरे अंदर का आक्रोश भी काफी हद तक शांत होता चला गया।जून का महीना था। हमारी गरमियों की छुट्टियां चल रह थीं। हमारे पड़ोस में चाचाजी केयहां मेरी चचेरी बहन का विवाह था। गांव से काफी सारे रिश्तेदार उसमें शरीक होने के लिएआए हुए थे। उनमें से कुछ लोग हमारे यहां भी ठहरे हुए थे। विवाह के दिन सारे घरवाले मुझे घरमें अकेली छोड़ शादी वाले घर चले गए। वैसे भी मुझे इन सब समारोहों में जाने में कोई रुचि नहींरही थी, क्योंकि लोगों के सामने घर वालों की उपेक्षा का पात्र बनना अब मुझे बहुत बुरालगता था।



संध्या का समय था,, करीब ६:३० बज रहे थे। सड़क के किनारे की बत्तियां जल चुकी थीं। मैंअपने घर के छत पे अकेली खड़ी सड़क की ओर देख रही थी तभी मेरी नजर सड़क किनारे झाड़ी केपास एक कुतिया और ४ - ५ कुत्तों पर पड़ी। एक कुत्ता जो उनमें अधिक बड़ा और ताकतवर लगरहा था, कुतिया के पास आया और उसके पीछे सूंघने लगा। बाकी कुत्ते चुपचाप देख रहे थे। एकदो मिनट सूंघने के पश्चात वह कुत्ता उस कुतिया के पीछे से उसपर सवार हो गया। मेरीउत्सुकता बढ़ गई और मैं फौरन कमरे से दूरबीन ले आई और उसे फोकस किया और पूरी क्रिया कोबिल्कुल सामने से पूरी तन्मयता के साथ अपने आस पास से बेखबर देख रही थी। मैं देख रही थीकि कुत्ते नें कुतिया के कमर को अपने अगले दोनों पैरों से जकड़ लिया था और अपने कमर कोजुम्बिश देना शुरु किया। कुत्ते का लाल लाल लपलपाता नुकीला लिंग कुछ देर कुतिया के योनीछिद्र के प्रवेश द्वार के आसपास डोलता रह। फिर कुछ ही पलों में मैने कुत्ते के लिंग को कुतियाकी योनी में प्रवेश होते देखा। अब कुत्ता पूरे जोश के साथ अपने कमर को मशीनी अंदाज में आगेपीछे कर रहा था। धक्कों की रफ्तार इतना तेज थी कि मैं अवाक हो कर देखती रह गई। इनसब क्रियाओं में मैंने देखा कि कुतिया नें बिल्कुल भी विरोध नहीं किया, ऐसा लग रहा थामानों यह सब कुतिया की रजामंदी से हो रहा हो और अपने साथ हो रहे इस क्रिया से काफीआनन्दित हो। करीब ५ - ६ मिनट के इस धुआंधार क्रिया के पश्चात वह कुत्ता कुतिया के पीछेसे उतरा लेकिन यह क्या! कुत्ते का लिंग कुतिया की योनी से निकला ही नहीं, ऐसा लग रहाथा मानो किसी अग्यात बंधन से बंध फंस चुका था। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए खड़े हुए थे औरअपनी पूरी लंबी जीभ बाहर निकाले हांफ रहे थे।



यह सब देखते हुए मेरे अंदर अजीब सी खलबली शुरु हो चुकी थी। मेरी पैंटी में मैंने गीलापन महसूसकिया और सलवार का नाड़ा खोलकर हाथ लगा कर देखा तो यह सचमुच भीग चुकी थी। मैंने पैंटीके अंदर हाथ लगाया तो पाया कि मेरी योनी से लसीला चिकना तरल द्रव्य निकल कर पैंटीको गीला कर रहा था। छत के मुंडेर से मेरे गरदन से नीचे का हिस्सा छुपा हुआ था, अत: मैंनेहौले से अपनी सलवार उतारी फिर पैंटी भी उतार डाली। अब मेरा निचला हिस्सा पूर्णतय:नग्न था। मैं गरम हो चुकी थी, पूर्णतय: उत्तेजित हो चुकी थी, उत्तेजना के मारे मेरे शरीरपर चींटियां सी रेंगने लगी और मेरा पूरा शरीर में तपने लगा। मेरे लिए यह सब बिल्कुल नयाअहसास था। मेरे सीने के अर्धविकसित उभार बिल्कुल तन गये, मेरा दायां हाथ स्वत: ही मेरेउभारों को सहलाने लगे, मर्दन करने लगे और अनायास ही मेरा बांया हाथ मेरी योनी कोस्वचालित रूप से स्पर्ष करने लगा, सहलाने लगा और शनै: शनै: उंगली से मेरे भगांकुर को रगड़नेलगा। यह सब करते हुए मैं अत्यंत आनंदित हो रही थी, दूसरी ही दुनिया में पहुंच गयी थी। मेरेअंदर पूरी तरह कामाग्नी की ज्वाला सुलग चुका थी और मैं काम वासना के वशीभूत थी, अपनेआस पास की स्थिति से बेखबर दूसरी ही दुनिया में।

करीब ५ मिनट के योनी घर्षण से मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और मेरा सारा शरीरथरथराने लगा, मेरी उंगली लसदार द्रव्य से सन गई और पूरे शरीर में एक तनाव पैदा हुआ औरएक चरम आनंद की अनुभूति के साथ निढाल हो गई। मैं छत पर ही धम से बैठ गई। मुझे बाद मेंपता चला कि यह मेरा प्रथम स्खलन था।



कुछ देर मैं उसी अवस्था में पड़ी रही और फिर खड़ी हो कर दूरबीन संभाला और उन्हीं कुत्तों कीओर देखने लगी। करीब १५ मिनट बाद कुत्ते का लिंग कुतिया की योनी से बाहर आया, बाप रेबाप ! करीब ८" लंबा और ४" मोटा लाल लाल लपलपाता लिंग नीचे झूल रहा था और उससे टपटप रस टपक रहा था। इतना विशाल लिंग कुतिया नें पड़े आराम से अपनी छोटी सी योनी मेंसमा लिया था। अब दूसरा कुत्ता उस पर चढ़ रहा था, उफ्फ्फ क्या दृश्य था, यह सब इतनाउत्तेजक था कि मैं बयां नहीं कर पा रही हूं। दूसरे के बाद जब तीसरा चढ़ने लगा, कुतियाभागना चाहती थी किंतु तीसरे कुत्ते नें भी सफलता पूर्वक अपनी इच्छा पूर्ण की और फिर चौथेनें भी फटाफट उसके साथ वही क्रिया दुहराया। अपने लिंग के धुआंधार प्रहार से कुतिया कोअपने लिंगपाश में बांध कर अपनी कामेच्छा शांत की। मैं बुत बनी उस काम क्रीड़ा का दीदारकर रही थी और उस दौरान मैं हस्तमैथुन द्वारा तीन बार स्खलित हुई। उस समय करीब ८ बजरह था।



मैं थरथराते पैरों पर किसी तरह खड़ी हुई कि अचानक मेरे नितंब पर किसी कठोर वस्तु के दबावका अनुभव हुआ। हड़बड़ा कर ज्योंही मैं पीछे मुड़ी, मैं स्तब्ध रह गई। मेरे पीछे न जाने कब से मेरेदादाजी की उमर के करीब ६५ साल के, ६' लंबे तोंदियल काले कलूटे भैंस जैसे, गंजे, झुर्रीदारचेहरा, खैनी खा खा कर काले किए हुए अपने बड़े बड़े आड़े टेढ़े दांत दिखाते हुए मुंह खोल कर बड़ेही भद्दे तरीके से मुस्कुराते हुए ठीक मेरे करीब पीछे से सट कर खड़े थे और धोती कुर्ते में होने केबावजूद उनकी धोती सामने से तंबू का आकार लिए हुए थी। मैं इन्हें अपने दादाजी के साथ देखचुका थी। ये गांव से दादाजी के साथ ही शादी में शरीक होने आए थे। ये दादाजी के साथहमारे ही घर में ठहरे हुए थे। जब से ये यहां आए थे किसी शिकारी की तरह उसकी कामलोलुपगिद्द नजरें मेरा सदैव पीछा करती रहती थी। आंखों ही आंखों में मानो मेरे वस्त्र हरण कर मेरीउभरती जवानी का दीदार कर रही हो। मैं नादान जरूर थी मगर इतनी भी नहीं कि किसीकी गंदी नजर पढ़ न पाऊं। मैं उससे दूर ही दूर रहती थी।



मगर आज की बात कुछ और ही थी। यह बूढ़ा अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर घरपर ही रुका हुआ था किसी चालाक भेड़िए की तरह मेरा शिकार करने के लिए उपयुक्त मौके केइंतजार में और मैं इस बात से बेखबर अपने आप को अकेली समझने की भूल कर बैठी। यह तो स्पष्टथा कि मेरी सारी हरकतों को काफी समय से छुप कर देख रहा था। जैसे ही अपने मनोनुकूलस्थिति में मुझे देखा, मौका ताड़ कर मेरे करीब आया, इतने करीब कि उनकी धोती के अंदर सेउसका तना हुआ कठोर लिंग मेरे गुदाज नितंब के दरार पर दस्तक दे रहा था। मैं किंकर्तव्यविमूढ़सन्न खड़ी लाज से दोहरी हुई जा रही थी।



फिर ज्यों ही मैं होश में आई, अपने सलवार और पैंटी की ओर झपटी, किंतु उस खड़ूस बुड्ढे नें मुझेबाज की तरह दबोच लिया और बोला, " घबराव ना बबुनी, अब हम से शरमा के का फायदा।हम तोहरा सब कुछ देखली बानी और तू का का करम करत रहले सब कूछ। अईसे भी हमका पता हैकि तोहरा मां बाबूजी तोहरा के पसंद ना करेला, मगर हम तोहरा के बहूत पसंद करीला रेबबुनी। तू तो बहुते सुंदरी है रे। तोहरा मां बाबूजी के तो मति मारी गई है जे ऐसन नीकलईकी के ना पसंद कर हैं ।"



कहते कहते उसका बनमानुस जैसा एक हाथ मेरे सीने के उभारों पर जादुई हरकत करने लगाऔर अपने कामुक स्पर्श से मुझे कमजोर करने लगा, दूसरे हाथ से वह मेरे कमर से नीचे के नाजुकअंगों को सहलाते हुए काम वासना के तारों को छेड़ने लगा। मेरी विरोध करने की कोशिश धीरेधीरे कमजोर पड़ने लगी साथ ही मेरी इच्छा शक्ति भी। मैं कुछ देर उसकी गिरफ्त से छूटने कीअसफल कोशिश का ढोंग करती रही, ढोंग मैं इस लिए कह रही हूं क्योंकि मुझे भी अब यह सबआनंद प्रदान कर रहा था, वरना अगर मैं चाहती तो उस बुड्ढे की हड्डी पसली तोड़ सकतीथी, जैसा कि मैं कुछ लफंगे लड़कों का कर चुका थी। कुछ देर पहले जो बूढ़ा कुरूप बदशक्ल और बेढबलग रहा था, अब उसकी ओछी और अश्लील हरकतें मुझे निहायत आनंददायक लगने लगीं। वह खेलाखाया बदमाश बूढ़ा मेरी कामोत्तेजना को भड़का कर मुझे पगलाए जा रहा था, मदहोश कर रहाथा और मैं नादान पगली उस कामलोलुप बूढ़े के हाथों हौले हौले समर्पित होती जा रही थी।मेरी अवस्था को भांप कर बुड्ढे की कंजी आंखों में चमक आ गई और गंदी सी मुस्कान उनके होंठोंनाचने लगी। उस नें आहिस्ते से अपनी धोती ढीली कर दी, नतीजतन पलक झपकते धोती गिर करधरती चूमने लगी और फिर मैं नें जीवन भर न भूल सकने वाला वो नजारा देखा कि क्या कहूं।धोती के अंदर अंडरवियर था ही नहीं, सामने एक भयानक काला नाग फन उठाए सर हिलाहिला कर मुझे सलामी दे रहा था। उस विकराल लिंग के चारों ओर लंबे लंबे घने सफेद बाल भरेहुए थे। बुड्ढे नें मेरा हाथ पकड़ कर उस डरावने लिंग पर रख दिया और बहुत ही कामुक अंदाज मेंमुझसे कहा, " ले बबुनी हमार लांड़ पकड़ के खेल, तोहरा के माजा आई", और मैं गनगना उठी।७" लंबा और ३" मोटा लिंग मेरे हाथों में था, मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी और मैं मदहोशीके आलम में उस बेलन जैसे जैसे लिंग पर बेसाख्ता हाथ फेरने लगी। कितना गर्म और सख्त।इधर बूढ़ा मेरी कमीज उतार चुका था, ब्रा खोल चुका था और पूर्णतय: नग्न कर मेरे सीने केउभारों को सहला रहा था, दबा रहा था, मेरी चिकनी योनी में अाहिस्ता आहिस्ता उंगलीचला रहा था, मैं पूरी तरह पगला गई थी। पूरी तरह उस बूढ़े के चंगुल में फंस चुकी थी। इसदौरान उन्होंने अपना कुर्ता बनियान भी उतार फेंका था। पूरा शरीर किसी बूढ़े रीछ की तरहसफेद बालों से भरा हुआ था। उन्हें देख कर बूढ़े बनमानुस का आभास हो रहा था।अचानक बूढ़े नें एक उंगली मेरी योनी में घुसेड़ दी, मैं चिहुंक उठी। "आाााााह, अम्म्मााााा ये? उंगली निकालिए ना आााााह" मेरे मुख से खोखली आवाज निकली, वस्तुत: मुझे दर्द कम मजाज्यादा आया।



वह कमीना बूढ़ा किसी अनुभव शिकारी की तरह मुझे जाल में फांस चुका था और बड़े बेसब्रेपन सेआनन फानन अब अंतिम प्रहार

करने की तैयारी में जुट गया था। उन्होंने अब उंगली मेरी योनीके अंदर बाहर करना शुरू कर दिया, पहले हौले हौले, फिर धीरे धीरे जैसे जैसे मेरी योनी छिद्रका आकार बढ़ने लगा, उसकी उंगली की रफ्तार बढ़ने लगी।"आााााह, ओोोोोोह उफ्फ्फ्फ आाााााह " मेरी योनी की संकीर्ण छिद्र के दीवारों पर उनकेउंगली का घर्षण अद्भुत आनंद के समुंदर डूबने पर मजबूर कर रहा था, मैं मदहोशी के आलम मेंसिसकारियां भर रही थी। योनी मार्ग मेरी योनी से रिसते चिकने लसदार रस से सराबोर होचुका था। वो कामलोलुप बूढ़ा अपने लार टपकते मुख से बोल रहा था, "बस बबुनी बस, अबतोहरा चिकन बुर में हमार लौड़ा ढुकावे का टैम आ गया, अब हम तोहरा बूर के अपन लांड़ सेचोदब बबुनी"



मुझ नादान को तो मदहोशी के आलम में कुछ होश ही नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है।पर जो कुछ भी हो रहा था, उफ्फ्फ्फ, बहुत अच्छा लग रहा था, मैं पूरी तरह से उस धूर्त बूढ़ेके वश में आ चुकी थी पूर्णरुपेण समर्पित।अब वो घड़ी आ चुकी थी, गर्म लोहे पर हथौड़े के अंतिम प्रहार का जिसके लिए वो बूढ़ा नजाने कितने जतन से जाल बिछाए बड़े सब्र से इंतजार कर रहा था।मेरा कौमार्य का भोग लगानेका। आनन फानन उस बूढ़े नें छत पर धोती बिछायी, उसी पूर्ण नग्नावस्था में मुझे चित्त लिटाकर मेरे पैरों को अलग किया और मेरी दोनों जंघाओं के बीच अपने आप को स्थापित किया, पहलेसे गीली मेरे योनी छिद्र के मुख पर अपने विकराल लिंग का सुपाड़ा टिकाया, मेरे शरीर मेंझुरझुरी दौड़ गई।



"ले बिटिया हमार लौड़ा तोहरा बुर में" कहते ही एक करारा धक्का मारा और मैं चीख पड़ी।"आााााााह " लेकिन वह बूढ़ा तैयार था, उसनें अपने गंदे होंठों से मेरे होंठ बंद कर दिया था।फच्चाक से मेरी गीली चिकनी योनी के संकीर्ण छिद्र को फैलाता हुआ या यों कहिए चीरता हुआउस कमीने बूढ़े बनमानुष के लिंग का विशाल गोल अग्रभाग प्रविष्ट हो गया। "आााााह"असहनीय दर्द से मेरी आंखों में आंसु आ गए। चंद सेकेंड रुकने के बाद फिर एक धक्का मारा,"ओहहहह मााां मर गईईईई रेेेेेेेेे" बूढ़े नें अपना मुंह मेरे मुंह से हटा कर झट से एक हाथ से मेरा मुहबंद किया और बड़े ही अश्लील लहजे में बोला, "तू चुपचाप शांत रह बबुनी, हम तोके मरे नादेब, तू खाली हमार लौड़े का कमाल देख, अभी ई तोहरा बूर में आधा घूस गईले है। ले एक धक्काऔर, हुम, अब ई देख कुत्ता मजा आवेगा, हुम,""आाााहहहहह," मेरी चीख घुट कर रह गई।एक और करारा ठाप मार दिया हरामी वहशी जानवर नें।



उफ मांं मेरी आंखें फटी की फटी रह गई।, सांस जैसे रुक सा गया, पूरा लिंग किसी खंजर कीतरह मेरी योनी को ककड़ी की तरह चीरता हुआ जड़ तक समा गया था या यों कहिए कि घुपगया था। कुछ पल उसी अवस्था में रुका, मेरा कौमार्य तार तार हो चुका था। बूढ़े नें तो जैसेकिला फतह कर लिया था, विजयी भाव से किसी भैंसे की तरह डकारता हुआ हौले से लिंग बाहरनिकाला, मुझे पल भर थोड़ा सुकून की सांस लेने का मौका मिला मगर उस तोंदियल खड़ूस वहशीजानवर के मुंह में तो जैसे खून का स्वाद मिल गया था, खून से सना लिंग पूरी ताकत से दुबाराएक ही बार में भच्च से मेरी योनी के अंदर जड़ तक ठोंक दिया।



" देख रे बुरचोदी बिटिया, अब हम तोहरा के हमार लंड से पूरा मजा देब," बोलते बोलते फिरठोका, अब ठोकने की रफ्तार धीरे धीरे बढ़ाता जा रहा था गंदी गंदी गाली निकाल रहा था,"आह मेरी रंडी, ओह बुरचोदी, आज तोहरा बुर को भोंसड़ा बना देब,"मेरे सीने को दबा रहा था, चीप रहा था, निचोड़ रहा था, चूस रहा था,"चूतमरानी, कुत्ती",



और अब मुझे उसकी इन सब गालियों से, अश्लील हरकतों से, मजा आ रहा था और मुझे अत्यंतरोमांचित कर रहा था। मुझे दर्द की जगह जन्नत का अद्वितीय अनंद मिल रहा था, हर ठापपर मस्ती से भरती जा रही थी। मैं भी अब बेशरमी पर उतर आई,

" आह बाबा, ओह राजा, आााााााा,हां हाहं, हाय राज्ज्जााााा, आााााहअम्म्मााााा,,,,,," पता नहीं और क्या क्या मेरे मुंह से अनाप शनाप निकल रहा था। मैं भीनीचे से चूतड़ उछाल उछाल कर बेसाख्ता ठाप का जवाब ठाप से देने लगी। नीचे से मेरी कमर चलरही थी, अपनी योनी उछाल रही थी।मैं समझ गई कि इसे कहते हैं चुदाई और अब मुझे चुदाई का आनंद मिल रहा है। मर्द के लिंग कोलंड, लौड़ा या लांड़ कहते हैं और स्त्री की योनी को चूत या बुर कहते हैं। अब मैं बुरचोदी बनगई थी, चूतमरानी बन गई थी," चोोोोोोोोोोोद राजाााााााा चोोोोोोोोद,"



मेरे मुंह से भी मस्ती भरी बातों निकल रही थी, मैं पगली की तरह अपने बुर में घपाघप लंडपेलवा रही थी और यह दौर करीब १५ मिनट तक चला कि अचानक मेरा पूरा बदर थरथरानेलगा, उधर बूढ़ा भी पूरी रफ्तार और ताकत से मेरी चूत की धमाधम कुटाई किए जा रहा थाकि अचानक हम दोनों नें एक दूसरे को कस कर इस तरह जकड़ लिया मानो एक दूसरे में समा हीके दम लेंगे और फिर वह अद्भुत आनंददायक पल, मुझे महसूस होने लगा कि मेरी चूत में गरमा गरमलावा गिर रहा है, मैं भी चरम अनंद में बुड्ढे से चिपक गई, हम दोनों मानो पूरी ताकत से एकदूसरे में आत्मसात हो जाने की जोर आजमाईश में गुत्थमगुत्था थे, छर्र छर्र छरछरा कर मेरा भीस्खलन होने लगा। यह स्थिति करीब १ मिनट तक रहा फिर बूढ़े का विशाल शरीर भी डकारताहुआ निढाल हो गया और इधर मैं भी चरम सुख में आंखें मूंदे निढाल पड़ गई।



"कैसा लगा बिटिया" बूढ़ा पूछ रहा था और मैं बेशरमों की तरह बोल पड़ी, "आाााह मस्त, मेरेप्यारे चोदू बुढ़ऊ " फिर मैं ने खुद ही शरमा कर उनके चौड़े चकले सीने में अपना चेहरा छुपालिया। बूढ़ा अपनी विजय पर मुस्कुरा उठा और मुझे अपनी बांहों में समेट लिया।



" हमार मेहरारू के मरल दस साल बाद आज पहिला बार कौनो बूर चोदे के मिला बबुनी। इत्तासुंदर टाईट बूर जिंदगी में पहली बार चोदली बबुनी। मजा आ गईल। तोके भी तो मजा आयाना?" मैं लाज से दोहरी होती हुई उनके चौड़े चकले सीने पर प्यार से सर पटकते हुए अपनीसहमति का प्रदर्शन किया। वह बूढ़ा मेरे इस अंदाज पर निहाल हो उठा।



घर वाले रात भर शादी में व्यस्त रहे और इधर रात भर में चुदक्कड़ बूढ़े नें अपने विशाल लंड सेबार बार मुझे अलग अलग तरीके से अच्छी तरह से चोद चोद कर पिछले दस साल की कसर पूरीकरने में मशगूल मुझे नादान लड़की से पूर्ण स्त्री और एक स्त्री से छिनाल बनाने पर तुला हुआ थाऔर इस चक्कर में मेरी बूर को पावरोटी की तरह फुला दिया, मेरे सीने के उभारों का ऐसामर्दन किया कि वह भी नींबू से संतरा बन गए। रात भर में तीन बार हमारे बीच वासना कानंगा तांडव होता रहा, चुदाई की भीषण धींगामुश्ती, रोमांच का अद्भुत सुखदाई खेल तब तकचलता रहा जब तक हम पूरी तरह खल्लास, थक कर चूर निढाल नहीं हो गए। एक ही रात में मैंक्या से क्या बन गई। फिर पूरी तरह उसी स्वर्गीय सुख से तृप्त निर्वस्त्र नंग धड़ंग एकदमजंगली बेशरमों की तरह एक दूसरे से लिपटे हम दोनों छत पर ही सो गए। मेरी दमकती चिकनीकाया उस बूढ़े के भालू जैसे शरीर से किसी छिपकिली की तरह चिपकी हुई थी। कितनी बेहयाहो गई थी मैं। मेरे अगल बगल मेरे कपड़े छितराए पड़े हुए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। मेरे कौमार्य कीधज्जियां उड़ाने वाले बूढ़े की धोती मेरे खून से लाल हो चुकी थी।यह तो शुरुआत थी मेरी कामुक यात्रा की।



आगे की घटना अगली कड़ी में।





By कामिनी
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RE: Desi Sex Kahani कामिनी Part 1 - by aamirhydkhan - 03-14-2021, 02:20 PM

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