Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
03-14-2021, 02:28 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी Part 2
कामिनी  Part 2

अबतक आप लोगों कामिनी  Part 1 ने पढ़ा कि किस तरह एक अजनबी बूढ़े नें मुझ नादान कमसिन कली को अपनीकाम वासना के जाल में फंसाकर मेरा कौमार्य भंग किया और मुझे रति क्रिया के आनंद सेपरिचित कराया।

पौ फटने से पहले ही वह खड़ूस कामपिपाशु बूढ़ा बड़े ही अश्लील और उत्तेजक अंदाज में मेरे नग्नशरीर पर अपनी जादुई उंगलियां फिराते हुए मुझे जगा रहा था," अब जाग भी जा हमार प्यारी बुरचोदी बिटिया रानी, सवेरा होवे का है। जल्दी से आपनकपड़े पहिन के नीचे चल और फटाफट तैयार हो जा नहीं तो कौनो के पता चला तो सब गड़बड़हो जाई।"

मैं ने अनिच्छा से अलसाए अंदाज में अपनी आंखें खोली और यथास्थिति का अवलोकन किया। हायराम! हम दोनों मादरजात नंग धड़ंग, बूढ़े के बुरी तरह अस्त व्यस्त सिलवटों से भरी और मेरीयोनि से निकले रक्त के धब्बों वाली धोती पर पड़े थे और हमारे चारों तरफ ब्रा, पैंटी,सलवार, कमीज छितराए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। मैं लाज से पानी पानी हो उठी। वह बूढ़ानिहायत ही कामुक अंदाज में तृप्त और अपनी विजयी मुस्कान लिए मेरे नंगे बदन को वासना सेओत प्रोत नजरों से निहार रहा था। रात की घटनाएं मेरी आंखें के सामने चलचित्र की भांतिसजीव हो उठीं। सारा घटनाक्रम इतनी बेशरमी से भरा था जिसकी मैं कल्पना भी नहीं करसकती थी। वह बूढ़ा तो कामलोलुप खेला खाया अनुभवी शिकारी था ही, उसके साथ बितायावह एक ही रात, जिसमें मैं काम वासना के समुद्र में गोता खा कर खुद भी अच्छी खासी बेहयाहो चुकी थी। मुझे रतिक्रिया द्वारा अपने अंगों का इस तरह नये और नायाब तरीके से इस्तेमालकरना सिखाने वाले तथा चरम आनंद से रूबरू कराने वाले उस कुरूप, बेढब, कामपिपाशु बूढ़ेबनमानुष पर अनायास ही अत्यधिक प्यार उमड़ पड़ा और मैं बेसाख्ता बड़ी ही बेशरमी से उसीनग्नावस्था में उस बूढ़े के नंगे जिस्म से लिपट पड़ी और उसके कुरूप झुर्रीदार चेहरे पर चुम्बनों कीझड़ी लगा बैठी।

किसी पगली दीवानी की तरह मेरे मुंह से, " ओह मेरे बलमा, ओह मेरे प्यारे चोदू बाबा, आईलव यू सो मच" जैसे अल्फाज निकल रहे थे। मैं अबतक इस अद्वितीय आनंद के खजाने से अपरिचितथी। सच में मैं उस अजनबी बूढ़े के इस बहुमूल्य उपहार से निहाल हो चुकी थी।फिर इससे पहले कि कोई और छत पर आता, हम दोनों अपने कपड़े पहिन फटाफट नीचे उतर आएऔर नहा धो कर तरोताजा हो गए लेकिन थकान और अनिद्रा के कारण बोझिल मेरी आंखें रात केतूफान की चुगली कर रही थी जिसे मैं ने अपने प्रयासों से किसी पर जाहिर नहीं होने दिया।अपने यौनांगों से चरम आनंद प्राप्त करने का मार्गदर्शन कराने वाला वह कुरूप व खड़ूस बूढ़ा मेरेलिए किसी फरिश्ते से कम नहीं था। उस रात उसनें मानो मेरे लिए स्वर्ग का द्वार ही खोलदिया। मेरे अर्धविकसित सीने के उभारों (जिन्हें बूढ़े बाबा चूची कह रहे थे) के बेरहमी से मर्दनके कारण मीठा मीठा दर्द का अहसास हो रहा था और थोड़ा सूजा सूजा लग रहा था जिसकारण ब्रा पहनने पर पहले से थोड़ा ज्यादा कसाव का अनुभव कर रही थी। मेरी कमसिनकुवांरी चिकनी नाजुक योनी का आकार (जिसे बाबा चूत और बूर कह रहे थे) बूढ़े केे दानवीविकराल लिंग (लंड या लौड़ा) द्वारा रात भर के रतिक्रिया (चुदाई) में क्रूर प्रहारों केकारण सूज कर थोड़ी बड़ी हो गई थी। मुझे चलने फिरने में थोड़ी तकलीफ हो रही थी। मेरी चूतमें मीठा मीठा दर्द हो रहा था। मेरे पूरे शरीर का इस तरह बेरहमी से मर्दन हुआ था कि पूरेशरीर का कस बल निकल गया था और पूरा शरीर टूट रहा था। अपने अंदर मैं जो कुछ भी अनुभवकर रही थी उसे मैं ने किसी पर जाहिर नहीं होने दिया।

एक एक कर सब घरवाले घर आ चुके थे लेकिन सिर्फ औपचारिकता निभाते हुए मेरे माता पिता नेंइतना ही पूछा कि मैं रात में ठीक से सोई या नहीं। अब मैं उन्हें क्या बताती कि रात भर मेंमेरी पूरी दुनिया ही बदल गई है। मैं एक कमसिन कली से पूरी औरत बन चुकी हूं। मैं ने सिर्फछोटा सा उत्तर दिया, " मैं ठीक हुं।" फिर घर के अन्य कार्यों में व्यस्त हो गई, जैसा किआम तौर पर मैं करती थी।
दोपहर खा पी कर जब सभी अपने अपने कमरे में आराम कर रहे थे, करीब १ बजे के करीब मेरेकमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं थकी मांदी अलसाई, आराम करना चाहती थी किंतु अनिच्छासे दरवाजा खोलना पड़ा। दरवाजे पर वही बूढ़ा खड़ा था और उसके पीछे मेरे दादाजी प्रकट हुए।"अरे कम्मो बिटिया तू?" दादाजी अवाक् मुझे अविश्वसनीय नजरों से आंखें फाड़कर देख रहे थे। मैंने भी दादाजी के इस तरह अकस्मात इस अजीबोगरीब हालात में मिलने की कल्पना भी न कीथी। एकदम से घबरा गई थी। दादाजी करीब ६० - ६५ की उम्र के करीब ५' १०" ऊंचे कद केबुजुर्ग व्यक्ति थे। पहलवानी छोड़े हुए करीब १० साल हो चुका था किंतु पहलवानों वाला शरीरअब भी वैसा ही था, फर्क सिर्फ इतना हुआ कि कसरत छोड़ने के कारण तोंद निकल आया था।रंग सांवला, चेहरे पर बेतरतीब सफेद दाढ़ी मूंछ, गोल चेहरा, भिंची भिंची आंखें, सर पर सन जैसेसफेद ५०℅ बाल, फिर भी देखने में बूढ़े बाबाजी की तुलना में थोड़े बेहतर थे।

" बबुनी का हमको अंदर आने को ना कहोगी?" वह बूढ़ा उसी कामुक अंदाज में मुस्कुराते हुए पूछरहा था।

" आईए ना आईए ना" घबराहट में जल्दी से मेरे मुंह से निकला। दादाजी भी बूढ़े के पीछे पीछेकमरे में दाखिल हुए। दादाजी के पैर छूकर उठते वक्त अनायास ही मेरी नजर उनकी धोती कीतरफ गई और मैं हतप्रभ रह गई। दोनों जंघाओं के मध्य धोती के अग्रभाग में विशाल तंबू खड़ाथा। मैं झट से खड़ी हुई और नजरों दूसरी ओर फेर कर उनसे बैठने को कहा। वो दोनों बूढ़े मेरेबिस्तर पर ही बोहिचक बैठ गए और मुझे भी बिस्तर पर अपने बीच में बिठा लिया।बूढ़ा बोलने लगा,

" हां तो हम कह रहे हैं कि ई तोहरा दादाजी के सब पता चल गया है ई जो हमरे बीच में कलरात हुआ और ई कहता है कि इत्ता नया माल तू कैसे अकेले अकेले खा लिया। असल में हम दोनोंदोस्त आज तक हर माल को मिल बांट के खात बानी। एहे ले हम से रहा नहीं गया अऊर हमइसको सब बात बताए दीए अऊर जईसे ही इसको पता चला, ई हमको बोला साला हरामी अकेलेअकेले इत्ता नया माल चोद लिया अऊर हमको बताया तक नहीं। एहीसे ई हमरे साथ तोहरापास आया है।"

मैं यह सुन कर सन्न रह गई। दादाजी के सामने इतनी बेशर्मी से कहीं गई बातों से लज्जा केमारे मरी जा रही थी। एक तो थकान से मेरा बदन वैसे ही टूट रहा था और ऊपर से यहमुसीबत। मैं घबरा कर बोल उठी, " नहीं नहींबाबाजी मेरे दादाजी के सामने ऐसी बात नाकीजिए प्लीज। दादाजी प्लीज मुझे माफ कर दीजिए। आप दोनों कृपा करके जाईए और मुझे आरामकरने दीजीए। कल रात इसने मेरा जो हाल किया है कि पूछिए ही मत। रात भर में थका करपूरा शरीर निचोड़ डाला, अभी तक मेरा पूरा शरीर दुख रहा है।"दर असल मैं डर भी रही थी कि हमारा यह वार्तालाप किसी के कानों में पड़ गया तो मुसीबतका पहाड़ टूट पड़ेगा।

अबतक चुपचाप बैठे दादाजी की मूक नजरों में मैं ने बूढ़े की तरह कामलोलुपता टपकता देख चुकीथी। उनकी नजरें मेरे वस्त्रों को फ़ाड़ कर मेरे नग्न शरीर के उभारों तथा गुप्तांगों का किसीभूखे भेड़िए की तरह अवलोकन कर रही थी। अनायास उनके मुख से वासनापूर्णखरखराहट भरी आवाज निकली, "अर्रे तुमको कुच्छो ना होगा बिटिया, तनि सा हमको भीचोदने दे ना। कसम से तुमको बहुते मजा मिलेगा।" दादाजी के मुख से ये बातें सुन कर मैं लाज सेदोहरी हुई जा रही थी। अब दादाजी का असली चेहरा सामने था। उन्हें हमारे रिश्ते से कोईलेना देना नहीं था, उनके लिए तो मैं सिर्फ एक कमसिन, खूबसूरत गुड़िया थी जो बड़ी किस्मतसे उनकी हवस मिटाने के लिए उपलब्ध हो गई थी।

दादाजी बोल उठे, " सुन बिटिया, पहले हम तोहरा देह के मालिश कर के सारा थकान उतारदेब, फिर तू खुद बोलेगी कि आओ बाबा लोग अब चोद:!"

मैं उनकी यह बात सुन कर घबरा गई। " आप दोनों के सामने? नहीं बाबा नहीं। अकेले अकेले तोफिर भी ठीक है, आप दोनों के सामने? ना बाबा ना, लाज से तो मर ही जाऊंगी। अभी दिनही दिन में यह सब ठीक है क्या? घर में किसी को पता चल गया तो बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे।""चुप कर बुरचोदी, किसी को पता नहीं चलेगा। सब रात भर के जागल, अभी घोड़ा बेच केसोवत हैं। चल हम दरवाजा बंद करके आवत हैं।" दादाजी अब बेसब्र हो रहे थे। मैं अबतक धीरेधीरे उत्तेजित हो रही थी मगर दोनों कामपिपाशु बूढ़े वहशी जानवरों के बीच परकटी पंछी कीतरह फड़फड़ाने का ढोंग कर रही थी। एक नया रोमांच मेरा इंतजार कर रहा था। दो दो बूढ़ोंसे चुदने की कल्पना मात्र से ही मेरी चूत गीली होने लगी। फिर भी मैं ना ना करती रही।" प्लीज दादाजी मेरे साथ ऐसा मत कीजिए ना, मैं तो मर ही जाऊंगी।"

मगर वहां मेरी सुनने वाला कौन था। दोनों ने मिल कर आनन फानन में मेरे शरीर को कपड़ों सेमुक्त कर दिया। दादाजी की तो आंखें फटी की फटी रह गईं। इतनी दपदपाती नंगी कमसिनयौवना को देख कर एक पल के लिए तो उसके होश ही उड़ गए। वह कुछ पल तो अपलक देखते हीरह गए।

"हम कह रहे थे ना, मस्त माल है। अब देखत का है, शुरू हो जा" बूढ़े के लार टपकते मुख से बोलफूटे।
तब जैसे उसे होश आया और किसी वर्षों से भूखे भेड़िए की तरह मुझ पर टूट पड़े। मेरे होंठों कोदनादन चूमने लगे, होंठों को चूसने लगे, मेरे मुंह में अपनी मोटी लंबी जिह्वा डाल कर मेरे मुंह केअंदर चुभलाने लगे। उनके दाढ़ी मूंछ मेरे चेहरे पर गड़ रहे थे लेकिन मैं सहन करने को मजबूर थीक्योंकि अब धीरे धीरे मैं भी उत्तेजित हो रही थी और मदहोशी के आलम में डूबी जा रही थीऔर मेरे अंदर फिर वही काम वासना की आग सुलगने लगी थी। अपने पहलवानी पंजों से मेरीचूचियों को बेदर्दी से मर्दन करने लगे, मसलने लगे। उनके इस बेसब्रेपन और कामोत्तेजक हरकतों नेंमेरे अंदर की अर्द्धजागृत वासना को पूर्णरुपेण भड़का दिया। मैं उनके चंगुल में फंसी चिड़िया कीभांति छटपटाने का ढोंग करती रही। लेकिन कब तक।

ज्योंही उसनें मेरे होंठों को अपने होठों से आजाद करके मेरी चूचियों को चूसना चाटना शुरूकिया, मेरे मुह से मस्ती भरी आहें फूट पड़ीं।

"आााााह, ओोोोोोोह, उफ्फ्फ्फ, अम्म्मााााा,"

"देखा हम कहते थे ना एकदम मस्त हो जाएगी, देख अब अऊर कित्ता मजा आवेगा।" बाबाजी कहरहे थे और कहते हुए पूर्ण नंगे हो गए। काले कलूटे दानवाकार शरीर और अपने फनफनाते विकराललंड के साथ बिल्कुल किसी बनमानुष से कम नहीं लग रहे थे। वे बिल्कुल नंग धड़ंग अपने चेहरे परबेशरमी भरी बेहद अश्लील मुस्कान के साथ खींसे निपोरते हुए मेरे करीब पहुंचे और दादाजी मुझेछोड़ कर फटाफट अपने कपड़े उतारने लगे, इस दौरान बूढ़े नें मोर्चा संभाल लिया और मुझे चूमनेलगे, चूची मर्दन करने लगे, फिर मेरी चिकनी बुर की तरफ मुंह करके सीधे बुर को चूसना चाटनाशुरू कर दिया। मेरी उत्तेजना अब चरम पर थी और बेसाख्ता मेरे मुंह से "आह उह उफआााा" कीआवाजें उबल रही थीं। बूढ़े का विकराल लंड ठीक मेरे होंठों के ऊपर झूल रहा था। इतने सामने सेउनके दानवाकार शानदार लंड का दीदार करने का पहला मौका था।

" चल हमार लंडरानी बिटिया, हमार लौड़ा के चूस" बेहद गंदे वहशियाना आवाज में कहते कहतेमेरे आह ओह करते खुले होंठों के बीच अपना लंड ठूंस दिया। "उम्म्म्मआााग्घ" आधा लंड एक झटके मेंभक्क से घुसा कर मेरे मुंह में ही चोदने लगे। मैं पूरी कोशिश कर के भी पूरा लंड मुंह में समा लेनेमें असमर्थ थी, मगर वह जालिम उधर मेरी चूत चाट चाट कर इतना पागल कर चुका था कि मैंभी उनके लंड को पूरी शक्ति से चप चप कर बदहवास चूसे जा रही थी। बाबाजी मेरी बुर चूसतेचाटते गोल गोल नितंबों को बेदर्दी से मसल रहे थे और उस समय मैं चिहुंक उठी जब बाबाजी नेंमेरी चूत रस से सने अपनी एक उंगली मेरे संकीर्ण गुदा मार्ग में डाल दिया और अंदर बाहर करनेलगे। मैं उनके इस कमीनी गंदी हरकत को रोकना चाहती थी मगर मेरा मुंह उनके लंड से बंद था,मैं कुछ बोलना चाहती थी मगर मेरे मुंह से सिर्फ गों गों की आवाजें ही निकल पा रही थीं। मुझेगुदा मार्ग में उनके उंगली के घर्षण से गुदगुदी हो रही थी। फिर उन्होंने दो उंगली घुसा दी,अब मुझे थोड़ी तकलीफ का अहसास होने लगा किंतु कुछ पलों में वह अहसास तकलीफ की जगहअद्भुत आनंद प्रदान करने लगा। गजब का अहसास था वह। इधर दादाजी हमारी इन हरकतों केमूकदर्शक बुत बने खड़े थे। अचानक बूढ़े नें भक्क से एक करारा ठाप लगाया और पूरा लंड मेरे हलकमें उतार दिया और लंड का रस छर छर्र फचफचा कर पिचकारी की तरह छोड़ने लगे और एन वक्तमेरी चूत भी चरमोत्कर्ष की मंजिल पर पहुंच कर छरछरा कर पानी छोड़ने लगी। इसी पल बूढ़े नेंअपनी तीन उंगलियां मेरे गुदा मार्ग में प्रवेश करा दिया, मेरा कसा हुआ गुदा मार्ग फैल चुकाथा और बूढ़ा अपनी तीनों उंगलियों से सटासट मेरी गुदा मैथुन कर रहा था। इधर मैं उनकेनमकीन मदनरस हलक में उतारने को मजबूर थी और उधर मेरी चूत से निकलने वाले रस का कतराकतरा चाट कर बाबा साफ किए दे रहा था।

स्खलित हो कर बाबाजी तो फारिग हो लिए और एक तरफ लुढ़क गये मगर अब तक दादाजी केसब्र का पैमाना भर चुका था। ज्यों ही बूढ़े नें जगह छोड़ी दादाजी किसी भूखे भेड़िए की तरहमुझ पर टूट पड़े। पहली बार मैं ने दादाजी का नंगा पहलवानी शरीर देख कर हत्प्रभ रह गई।उनका लंड बूढ़े के लंड से भी १" लंबा करीब ८" का और उतना ही मोटा करीब ४" का। किसीस्त्री के होश उड़ाने के लिए काफी था और मैं तो एक १७ साल की कमसिन नयी नकोर लड़की,अभी रात को ही तो बूढ़े बाबा के लंड से पहली बार चुद कर चूत की सील तुड़वाई थी। इतनाविशाल लंड देख कर मेरी तो रूह फना हो गई।

"ले पकड़ हमर लौड़ा" कहकर सीधे मेरे हाथ में धर दिया।मैं ने घबरा कर उनका डरावना विकराल लंड छोड़ दिया। "हरामजादी अभी अभी बुढ़ऊ कालौड़ा बड़े आराम से लॉलीपॉप नीयर चूस रही थी और अब हमार बारी आई तो नखरा करे लगली।"कहते कहते सीधे मेरे ऊपर आया। मेरे पैरों को फैला कर मेरी दोनों जंघाओं के बीच आकर मेरी रससे गीली फिसलन भरी चूत के प्रवेश द्वार में अपने मूसल जैसे लंड के गुलाबी गोलाकार अग्रभागको टिकाया। मैं दोनों बूढ़ों के बीच फंसी डर और उत्तेजना मिस्रित अवस्था में अपनी चूत कीदुर्दशा होते देखने को मजबूर थी। अपना दिल कड़ा करके जबड़ों को कस कर भींच लिया औरदादाजी के दानवी लंड का प्रहार झेलने को तत्पर हो गई। अचानक दादाजी नें बगैर किसीपूर्वाभास दिए एक करारा धक्का मारा और एक ही धक्के में मेरे बुर को चीरता हुआ अपनाखौफनाक लंड आधा ठोंक दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी मगर उस वहशी दरिंदे नें एक हाथ सेमेरा मुंह दबा रखा था ताकि मेरी चीख न निकल पाए। एक पल बाद ही उसनें दूसरा कराराप्रहार किया और अपना पूरा लंड मेरी चूत में पैबस्त कर दिया। मेरी चीख, मेरी आह मेरे हलकमें ही घुट कर रह गई। मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई, आंखें फटी की फटीरह गई। मैं छटपटा भी नहीं पा रही थी, उस बूढ़े पहलवान की ऐसी मजबूत गिरफ्त में थी किहिल भी नहीं पा रही थी, उसपर उस वहशी जानवर के विशाल लंड से फंसी कसमसा रही थी।कुछ पलों तक स्थिर रहकर मेरे होंठों को चूसता रहा,

जब मुझे कुछ राहत का अहसास हुआ तोहौले से उसनें लंड बाहर निकाला और फिर एक करारा धक्का दे कर जड़ तक लंड ठोक दिया। इसबार मुझे अपेक्षाकृत कम दर्द का अनुभव हुआ, मेरी चूत को दादा जी अपने लंड के अनुकूल बनाने मेंकामयाब हो चुके थे और उस चुदक्कड़ बूढ़े के होठों पर विजयी मुस्कान नाच रही थी। फिर जैसेजैसे ठाप पर ठाप पड़ते गये, मेरी चूत फैलती चला गई और दर्द कहां छूमंतर हो गया पता हीनहीं चला, अब दर्द का स्थान अवर्णनीय आनंद ने ले लिया, कामोत्तेजक सिसकारियां मेरे हलकसे निकलने लगीं। " आह अम्मा, आह दादा जी, ओह मेरे चोदू राजा, आााााह, ओंोोोोोोह, हांहां हां," और न जाने क्या क्या। दादा जी भी कम हरामी नहीं थे, वे भी बड़बड़ा रहे थे," लेमेरी बुरचोदी, मेरा लौड़ा ले हरामजादी बिटिया चूतमरानी, लंडडरानी प्यारी बबुनी, आजतोहरा बूर के भोंसड़ा बना देब....." और न जाने क्या क्या अनाप शनाप बके जा रहे थे औरकस कस के पहलवानी ठाप पर ठाप लगाए जा रहे थे और मैं अानंदातिरेक से पागल हुई जा रहीथी, बेशरम छिनाल की तरह, " हां राजा, हां दादू, हां चोदू, हां बलमा, हां मेरे चूत केस्वामी, हां मेरे बुुरचोद सैंया, हां मेरे सरताज, हां मेरे लंडराजा, चोद अपनी बेटी को चोदबेटीचोद" और न जाने क्या क्या बके जा रही थी। अब दादा जी भी पूरे रफ्तार से भकाभकछपाछप मेरी चूत की कुटाई किए जा रहे थे। अचानक मुझे लिए दिए वो पलट गए और मुझे ऊपरकर लिया और खुद नीचे से दनादन चोदे जा रहे थे। फिर अनायास ही पीछे से दो और हाथों मेंमुझे जकड़ लिया। ये मेरे वही बूढ़े बाबाजी थे। मैं तो उन्हें भूल ही गई थी। मुझे महसूस हुआ किमेरे गुदा द्वार में उनका लंड दस्तक दे रहा है। मैं चिहुंक उठी मगर दो वहशी जानवरों के बीचसैंडविच बनी असहाय अवस्था में विरोध करने की ताकत भी नहीं थी न ही विरोध करने कीइच्छा। जो हो रहा था बेहद रोमांचक और उत्तेजक था। मैं ने उनको अपना पूरा शरीर समर्पितकर दिया और उनके रहमोकरम पर छोड़ दिया। एक ताकतवर धक्के के साथ पहले से ढीली मेरेगुदा मार्ग में बाबा नें अपना विकराल लौड़ा घुसेड़ दिया, "आाााााााााााााहओोोोोोोोोोह," दर्द और आनंद का वह मिला जुला अहसास। अब मैं समझी कि बूढ़ा क्यों अपनीउंगलियां मेरी गुदा मार्ग में डाल कर संकीर्ण गुदा द्वार को ढीला कर रहा था।

"ले हमार लौड़ा आपन गांड़ में। आाााहहहहह हूंम।" कहते हुए दूसरा ठाप मारा और सरसरा केअपना मूसल मेरे मलद्वार से अंदर अंतड़ियों तक घुसेड़ डाला।"आााााह मााााा मार डाला रे जालिम जंगली चोदू बुड्ढे।" मेरी चीख मेरे दादाजी के मुंह केअंदर घुट कर रह गई।

"अहा इत्ता मस्त गांड़ जिन्दगी में नहीं चोदल रघु भाई। कईसन चीकन गोल गोल गांड़ है रेतोहार बिटिया। पहले काहे नाहीं तोहरा गांड़ चोदली रे बुरचोदी बबुनी।"

रघु अर्थात राघव सिंह मेरे दादाजी का नाम था, वह बूढ़ा केशव चौधरी, दादाजी उनको केशुकहते थे।

"अरे केशु तू तो गांड़ के रसिया हो, पहले गांड़ काहे नहीं चोदा। पहले ही बुर का उद्घाटन करदिया।"

" अब का करें, एकर सुन्दर बुर के देख के बर्दाश्ते ना हुआ, सीधे बुरे में लौड़ा पेल दिया। खैरकौनो बात नहीं अब तो एकरा गांड़ मिल गया, अब चोद रहल बानी।"ये दोनों चुदक्कड़ बूढ़े इसी तरह अश्लील बातें करते हुए मेरे कमसिन नंगे जिस्म के साथ मनमाने ढंगसे वासना का नंगा खेल खेल रहे थे और मैं उन वहशी भैंसों के बीच पिसती हुई अपनी इस दुर्दशामें भी अद्भुत आनंद का अनुभव कर रही थी। मेरा बिस्तर मानो कुश्ती का अखाड़ा बन गया हो।बाबाजी लंड बाहर किए तो पहली बार लगा कि मेरी अंतड़ी भी बाहर आ रही है मगरदादाजी नें अनुभवी शिकारी की तरह अपने थूक से लसेड़ कर लंड डाला था अत: जिस तरहसरसरा कर लंड अंदर गया था उसी तरह सर्र से बाहर भी आया।

फिर क्या था, धकाधक भकाभक मेरी बुर और गांड़ की बेरहमी से कुटाई होने लगी। नीचे सेदादाजी ऊपर से वो वहशी बूढ़ा, दोनों नें वह तूफान बरपाया कि मेरे बिस्तर पर धाड़ धाड़धमाधम धमाचौकड़ी, पूरे कमरे में फचफच की आवाजें,, मेरी " आहहहहह ओहहहहहह उफ्फ्फ्फ हम हंूहाय चोदू नाना हाय रे चोदू दादू ओह बेटी चोदों।" बदमाश बूढ़ा और दादाजी के," हूं हां हूंहां हूं हां बूर चोदी बिटिया रानी, चूतमरानी बबुनी, हमार प्यारी रंडी, ले हमार लौड़ाखा, ले हमार लंड, तोहरा बुर अब से हमार, तोहरा गांड़ में अब ले हमार लांड़ हें हें अह आह हंहं हं" और हम सब का हांफना, सें फों सें फों की अजीब अजीब गंदी अश्लील उत्तेजक आवाजों सेपूरा कमरा भर गया। हम तीनों में मानो पागलपन सवार हो गया, हम में मानो अधिकतम आनंदप्राप्त करने की होड़ मची थी, दीन दुनिया से बेखबर जन्नत की सैर में मशगूल थे। मुझे चरम सुखके साथ साथ इस बात की अत्यधिक खुशी भी मिल रही थी कि अंतत: इतने खड़ूस बूढ़ों केविकराल लंडों को एक साथ चूत और गांड़ में आराम से पूरा का पूरा ले कर चुदने में सक्षम हो गईथी और भरपूर मस्ती के सागर में डूब गई थी। इस दौरान मैं एक बार झड़ चुकी थी।

मगर उनकी चुदाई जारी थी, फिर दादाजी नें अपने ताकतवर बांहों में भींच कर छर्र से फचर फचर अपना मदनरस मेरी चूत में भरना शुरू किया। ऐसा लग रह था मानो गरमा गरमलावा पिचकारी की तरह छरछरा के सीधे मेरे अविकसित गर्भाशय में करीब एक मिनट तक भरतारहा और अचानक उनकी पकड़ ढीली हुई और वे पूर्णतय: स्खलित हो कर किसी भैंस की तरहडकार कर निढाल हो गए। मै दादाजी के बंधन से मुक्त हुई मगर बूढ़ा अभी भी मेरी गांड़ कुटाईमें व्यस्त मुझसे गुथा हुआ धमाचौकड़ी मचाए हुए था। मैं परमआनंद के चरम पर थी और मेरा दुबारास्खलन होने लगा और तभी बूढ़े नें पीछे से मेरी चूचियों को कस कर भींच लिया और मेरी गांड़ सेचिपक कर मेरी गांड़ के अंदर फचर फचर पिचकारी की तरह अपने मदनरस से सराबोर कर दिया।हम दोनों एक साथ ही स्खलित हुए। बूढ़ा भी दादाजी की तरह भैंसे की तरह डकारते हुए एकतरफ लुढ़क गया। एक तरफ दादाजी का नंग धड़ंग बनमानुष सा शरीर दूसरी तरफ बूढ़े का नंगाबेढब काला दानवी शरीर और बीच में मैं नंगी चुद चुद कर बेहाल मगर चरम सुख प्राप्त पूर्णसंतुष्ट निढाल पड़ी थी। मैं कमसिन कली से औरत और अब इन दोनों कामपिपाशु बूढ़े वहशीजानवरों द्वारा उनकी वहशियाना अंदाज में नुच चुद कर पूरी बेशरम छिनाल बन चुकी थी।दोनों बूढ़े मुझ चोद कर अब आंखें मूंदे निढाल पड़े थे मगर उनके चेहरे पर पूर्ण संतुष्टी की मुस्कानथी। उन दोनों को उनकी मुहमांगी मुराद जो मिल गई थी। उनके लंड जो कुछ मिनट पहले तकशेर बने दहाड़ मार मार कर मेरी चूत और गांड़ का कचूमर निकाला रहे थे, अभी मासूम चूहे कीतरह दुबक गए थे।

मैं सचमुच इन बूढ़ों की दीवानी हो गई। मुझे उनपर बेहद प्यार आ रहा था। चोदते समय यहीलोग कितने गंदे, बेशरम, बेदर्द थे, जो कि मैं समझती हूं उन पलों की मांग थी, इस वक्त कितनेमासूम लग रहे थे। मैं ने प्यार से दोनों के सिरों को सहलाया, अपनी बांहों से अपनी ओर खींचकर चूम लिया और सीने से लगा लिया, वे दोनों भी मासूम बच्चों की तरह मेरे शरीर से चिपकगए। उन्होंने मेरी ओर करवट बदली, दादाजी का बांया हाथ और बूढ़े का दांया हाथ मेरे पीठके नीचे थे, दादाजी का दांया हाथ और बूढ़े का बांया हाथ मेरे पेट के ऊपर से मेरी कमर कोलपेटे हुए आंखें मूंदे मंद मंद संतोष की मुस्कान लिए लेटे हुए थे। मेरी दांयी चूची दादा जी के मुखके पास और बांयी चूची बूढ़े के मुख के पास और मैं चित्त दोनों मादरजात लंगटे बूढ़ों से चिपकीपूरी बेहयाई से लेटी थकान के मारे निढाल पूर्ण तृप्ती के साथ आंखें मूंदे लेटी थी।करीब १५ -२० मिनट बाद मैं ने महसूस किया कि दोनों बूढ़े मेरी चूचियों को धीरे धीरे चूसने लगे, बिल्कुलमासूम बच्चों की तरह जैसे अपनी मां का दूध पी रहे हों। बीच बीच में कहते भी जा रहे थे,"हमार प्यारी माई, हमार मैया,"

मैं बड़े प्यार से उन्हें अपने सीने से लगा कर एक मां की तरह अपनी चूचियां चुसवाने लगी औरआनंदित होती रही मगर कुछ ही देर में मेरी चूचियां तन गईं वासना की प्यास फिर जागनेलगी, फिर मेरी बूर फकफकाने लगी और दोनों बूढ़े यही तो चाहते थे।उनके सोए लौड़े फिर फनफना कर चोदने को तैयार हो गये। इस बार उन्होंने आपस में मेरी चूतऔर गांड़ की अदला बदली करने का फैसला किया था। मैं कहां उनपर ममता बरसा रही थी औरकहां ये चुदक्कड़ भेड़िए की तरह मुझे दोबारा भंभोड़ने को बेताब, आव देखा ना ताव, बूढ़ा अपनामूसल लंड लिए मेरी चूत पर टूट पड़ा और अपना लंड पूरा ठेल कर मुझे लिए दिए पलट गया,दादाजी नें जैसे ही मेरी गांड़ को ऊपर उठा पाया, मौके पर चौका जड़ दिया। अपना पूरा ८"का मूसल एक ही झटके में मेरी गांड़ में जड़ तक पेल दिया।"आााााह ओोोोोोोोोोहमांाााााााा," मेरी कराह निकल गई क्योंकि दादाजी का लंड बूढ़े के लंड से काफी लंबा औरमोटा था।
लेकिन दो तीन ठाप के बाद मेरी गांड़ ऩें उनके लंड को भी स्वीकार कर लिया। "आह मेरी गांड़मरानी बिटिया मां, ओह तोहार गांड़ हमार लौड़ा के चूस रहल बा, हाय रंडीबबुनी, हु हु हु ," दादाजी बड़बड़ा रहे थे। अब फिर वही धमाधम धमा चौकड़ी, उत्तेजकबड़बड़ाहट, हांफना कांपना, धींगामुश्ती, धकमपेल, ठेलमठेल, गुत्थम गुत्थी के तूफानी दौर कीपुरावृत्ति। इतने गंदे ढंग से खुल कर बेहद बेशर्मी भरे कामुक अंदाज में हमलोग काम क्रीड़ा मेंतल्लीन करीब २० मिनट तक आपस में जोर आजमाईश करते रहे, गुत्थमगुत्था होते रहे, चरम सुख केलिए मानों हम लोगों में होड़ मची थी। लग रहा था मानो एक दूसरे में समा ही जाएंगे ।अंतत: हम तीनों मानो एक शरीर बन गए हों एेसे गुंथ कर चिपक गए और मेरे आगे पीछे की गुफामें उन बूढ़े कामुक बनमानुषों का लौड़ा रस भरता चला गया।" फिर एक साथ निढाल हो करआपस में चिपक कर सो गए।

मैं नादान तो उनसे चुद चुद कर निहाल होती गई। मेरे हर उपलब्ध छेद से उन कमीने बूढ़ों नेंअपनी काम पिपाशा शांत की और मुझे एक रंडी की तरह चोद चोद कर इतना आनंद प्रदानकिया जिसके वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं उनके हवस की गुलाम बन गई, दासी बनगई, रंडी बन गई, चुदाई का खिलौना बन गई और इस बात का मुझे जरा भी मलाल नहीं थाक्योंकि यह सब मेरे लिए बहुत ही अनंददायक और चरम सुख प्रदायक था।करीब ५:३० बजे हमारी नींद खुली। मेरी चूत फूल कर पावरोटी की तरह बाहर उभर आई थी।गांड़ को भी चोद चोद कर कमीनों नें सुजा दिया था। गांड़ का मलद्वार बड़ा हो गया था,मेरी बुर और गुदा में बूढ़ों का मदन रस भरा हुआ था। मुझे बड़े जोर का पोशाब और पैखानादोनों आ रहा था, झट से उठ कर बाथरूम भागी और मेरी बुर से छरछरा कर पेशाब निकलने लगाऔर मेरे कमोड पर बैठते न बैठते भरभरा कर भर्र से उनके मदन रस से लिथड़ा मल निकलने लगा।ऐसा लग रहा था मानो मेरे मूत्राशय से पूरा पानी पेशाब के रूप में और पेट का सारा मलखल्लास होकर साफ हो गया। जब मैं टायलेट से बाहर आई तो मेरा पूरा शरीर हल्का हो चुकाथा। फिर हम तीनों नहा धो कर तरोताजा हो गए। बाकी घरवालों में से किसी को इस बातका आभास तक नहीं हुआ कि हमारे बीच क्या हुआ, आखिर हमारा रिश्ता और हमारी उम्र भीतो इस तरह की थी कि हमारे बीच इस तरह की घृणित अनैतिक यौनक्रीड़ा की कोई कल्पनाभी नहीं कर सकता था। हमारे घर वालों नें तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अपने ही घरमें अपने ही बुजुर्गों के हाथों उन्हीं के नाक के नीचे उनकी बेटी सिर्फ पिछले २४ घंटों के अंदरएक मासूम लड़की से पूरी बेशरम छिनाल औरत बन गई है।

आगे की कथा अगली कड़ी में।
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RE: Desi Sex Kahani कामिनी Part 2 - by aamirhydkhan - 03-14-2021, 02:28 PM

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