RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
सैनी ने पीछे से पत्नि की बाहें पकड़ीं और घसीटता हुआ सा उसे लॉबी के दरवाजे की ओर ले चला। उसकी पकड़ से छूटने के लिए रजनी ने संघर्ष किया लेकिन जब उसने छोड़ा तो एक बार भी मुड़कर देखे बगैर अंदर चली गई।
सैनी अपने बालों में उँगलियाँ फिरता हुआ वापस लौटा।
राज को लगा वह उन अधेड़ आदमियों में से था जो इस असलियत को नहीं पचा सकते की उनकी जवानी का दौर लद चुका है। शायद इसीलिए उसके मिजाज में अभी तक गर्मी थी।
-“तुम औरतों के साथ नर्मी से पेश आने में यकीन नहीं करते।”
-“मैं कुतियों से निपटना जानता हूँ। चाहे वे किसी भी नस्ल की क्यों न हो।” सैनी उसे घूरता हुआ बोला- “इतना ही नहीं हरामजादों से निपटना भी मुझे आता है। इसलिए मेरी सलाह है, फौरन यहाँ से दफा हो जाओ।”
राज ने इन्सपैक्टर की तलाश में आसपास निगाहें दौड़ाईं। वह एक टेलीफोन बूथ में रिसीवर थामें खड़ा था मगर उसे देखकर नहीं लगता था कि बातें कर रहा था।
-“मैं इन्सपैक्टर के साथ आया हूँ। इस बारे में उसी से बातें करो।”
-“तुम हो कौन? अगर मुझे पता चला इन्सपैक्टर को मेरे खिलाफ भड़काने वाले तुम हो....?”
-“तो क्या होगा?” राज ने ताव दिलाने वाले लहजे में पूछा। वह चाहता था सैनी उस पर हाथ उठाए ताकि उसे भी उसकी धुनाई करने का मौका मिल सके।
-“तुम जमीन पर पड़े होंगे और तुम्हारे दांत टूटकर हलक में फंसे होंगे।”
-“अच्छा।” राज उपहासपूर्वक बोला- “मैं तो समझा था तुम सिर्फ औरतों को ही घसीटना जानते हो।”
-“तुम देखना चाहते हो, मैं क्या जानता हूँ?”
रोबीले स्वर के बावजूद यह कोरा ब्लफ था। वह कनखियों से उधर आते इन्सपैक्टर को देख रहा था।
इन्सपैक्टर शांत एवं सामान्य नजर आ रहा था।
-“सॉरी, सतीश। मुझे तुम पर गुस्सा नहीं करना चाहिए था।”
-“अगर तुमने गुस्से पर काबू पाना नहीं सीखा तो वो दिन दूर नहीं है जब गुस्से की वजह से नौकरी से हाथ धो बैठोगे।”
-“छोड़ो इसे। तुम्हें कोई चोट तो मैंने नहीं पहुँचाई।”
-“अब कोशिश करके देख लो।”
इन्सपैक्टर के चेहरे पर व्याप्त भावों से स्पष्ट था वह जबरन स्वयं पर काबू पाए हुए था।
-“इसे छोड़ो और मीना के बारे में बताओ। कोई नहीं जानता लगता वह कहाँ है। उसने रंजना को भी नहीं बताया कि वह नौकरी छोड़ रही है या कहीं जा रही है।”
-“उसने नौकरी नहीं छोड़ी। वह वीकएंड मनाने गई थी और सोमवार सुबह काम पर नहीं आई। जाहिर है वीकएंड से नहीं लौटी। मेरे पास उसकी कोई सूचना नहीं है।”
-“गई कहाँ थी?”
-“यह तो तुम्हें ही पता होना चाहिए। मुझे तो वह रिपोर्ट देती नहीं।”
दोनों ने खामोशी से एक-दूसरे को घूरा। उनकी निगाहों से एक-दूसरे के प्रति नफरत साफ झलक रही थी।
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