RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“पापा। आप से कोई मिलने आए है।”
-“कौन है?” भरी आवाज में पूछा गया फिर फायर की आवाज गूंजी।
-“प्रेस रिपोर्टर।”
-“उससे कहो थोड़ा इंतजार करे।”
फर्श के नीचे पाँच और गोलियाँ चलाई गई। उनकी गूँज की कंपन राज ने अपने पैरों के तले महसूस की।
बेसमेंट की सीढ़ियों से ऊपर आती रोशनी में बुत बनी खड़ी युवती के शरीर में गोलियों की आवाज सुनकर हर बार ऐसी हरकत हुई थी मानों वो किसी हारर फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक की गूंज थी जिसका असर उसके दिमाग से शुरू होकर फैलता जा रहा था।
सीढ़ियों पर भारी पदचाप उभरी।
युवती पीछे हट गई।
ऊपर पहुँचे लंबे-चौड़े आदमी ने हिकारत से युवती को देखा।
-“मैं जानता हूँ, रंजना। तुम्हें गोलियों की आवाज पसंद नहीं है। तुम चाहो तो अपने कानों में रुई ठूँस सकती हो।”
-“मैंने कुछ नहीं कहा, पापा। मिस्टर राज कुमार आपसे मिलने आए हैं।”
उस आदमी की चमड़ी में झुर्रियाँ पड़ी थीं। कंधे झुके हुए थे मगर सुर्ख आँखें दबी कुचली वासना से सुलगती सी प्रतीत हो रही थीं।
-“कहिए?” वह बोला- “मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ।” लेकिन उसके लहजे से जाहिर था किसी के लिए कुछ भी करने की कोई इच्छा उसकी नहीं था।
राज ने बताया वह इत्तफाक से इस मामले में फँस गया था और अब फँसा ही रहना चाहता था ताकि इस मामले की तह तक पहुँचकर असलियत को सामने ला सके।
-“यह तुम्हारी अपनी मर्जी है।” बवेजा ने कहा- “मैं इसमें क्या कर सकता हूँ?”
-“मुझे आपका सहयोग चाहिए।”
-“तुम जानते हो, मेरा दामाद पुलिस इन्सपैक्टर है। इस मामले की छानबीन वही कर रहा हैं।”
-“जी हाँ।”
-“तो फिर तुम्हें किसलिए सहयोग दूँ? यह पुलिस का काम है। वे कर रहे हैं।”
-“पुलिस वाले चौबीसों घंटे इसी केस पर काम नहीं कर सकते। उनके ऊपर और भी बहुत सी जिम्मेदारियाँ हैं।”
-“और तुम खुद को उनसे ज्यादा काबिल समझते हो।”
-“तजुर्बेकार और हौसलामंद भी।”
-“मुझे बेवजह सरदर्दी मोल लेने का कोई शौक नहीं है। मेरा अपना कोई नुकसान अभी तक नहीं हुआ है। ट्रक और उस पर लदा माल दोनों इंश्योर्ड थे। अगर ट्रक नहीं मिला तो मैं बीमा कंपनी से क्लेम करके उसकी कीमत वसूल कर लूँगा।”
-“लेकिन आपकी साख का क्या होगा? जो लोग आपकी कंपनी से माल भेजते हैं उन पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। आपकी कंपनी बदनाम हो सकती है।”
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