RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मेरी राय में तो फ्रॉड है। दसेक साल पहले शहर में आया था। एयर फोर्स में पब्लिक रिलेशन्स ऑफिसर जैसा कुछ हुआ करता था। उन दिनों जवान था। उसकी यूनिफार्म की वजह से बहुत सी लड़कियाँ उसकी ओर खिंच गई थीं। मीना भी उन्हीं में से एक थी।” अचानक वह यूँ खामोश हो गया मानों उसे लगा की बहुत ज्यादा बोल गया था। फिर जल्दी से बोला- “जिस लड़की से उसने शादी की वह रिटायर्ड जज चन्द्रकांत सक्सेना की बेटी थी। जज का परिवार शहर के सबसे इज्जतदार परिवारों में से था। लेकिन सैनी ने उसकी इकलौती लड़की को फँसाकर अपने इशारों पर नचाना शुरू कर दिया। शादी के एक साल बाद ही उसने जज का फार्म बेच दिया और रीयल एस्टेट के धंधे में लग गया। फिर उसमें मोटा नुकसान उठाने के बाद शराब का थोक व्यापारी बन गया फिर मोटल का बिजनेस शुरू कर दिया। वो भी अब जल्दी ही बंद होने वाला है। असलियत यह है बिजनेस की कोई समझ उसे नहीं है। जब उसने शुरुआत की थी मैंने कह दिया था छह-सात साल से ज्यादा नहीं टिक पाएगा। लेकिन वह नौ साल टिक गया।”
-“उसकी माली हालत अब कैसी है?”
-“सुना है, काफी खराब है।”
-“ऐसे आदमी द्वारा करीब बीस लाख की शराब का आर्डर दिया जाना अपने आपमें बहुत बड़ी बात है।”
-“बेशक है।”
-“डिस्ट्रीब्यूटर्स ने उसे इतना माल सप्लाई कैसे करा दिया?”
-“उसके रसूखों की वजह से। खैर, मुझे कोई मतलब इससे नहीं है। मेरा काम माल ढोना है।”
-“सैनी के लिए माल ढोने का काम आप ही करते है?”
-“हाँ।”
-“क्या वह जानता था आपका कौन सा ड्राइवर उसका माल लाएगा?”
-“मेरे ख्याल से तो जानता था। क्योंकि मनोहर हमारा सबसे कुशल और भरोसेमंद ड्राइवर था। इतनी कीमत के माल को सिर्फ वही पूरी हिफाजत के साथ ला सकता था।” बवेजा ने उसे घूरा- “तुम कहना क्या चाहते हो? क्या तुम समझते हो उसने खुद ही अपनी विस्की को हाईजैक करा लिया?”
-“इस संभावना से इंकार तो नहीं किया जा सकता।”
-“अगर ऐसा हुआ तो मैं उस हरामजादे की तिक्का बोटी कर दूँगा।”
-“इतनी जल्दी ताव खाने की जरूरत नहीं है।”
-“मैं यकीनी तौर पर जानना चाहता हूँ।”
-“और तथ्य इकट्ठा करने के बाद बता दूँगा।” राज ने कहा- “अब मैं आपकी बेटी मीना के बारे में कुछ जानना चाहता हूँ।”
-“क्या?”
-“वह पहले भी कभी मुसीबत में पड़ी है?”
-“हाँ। लेकिन कोई सीरियस बात नहीं थी।” वबेजा सफाई देता हुआ सा बोला- “मीना की माँ उसके बचपन में ही मर गई थी। मैंने और रंजना ने उसकी परवरिश में कोई कमी बाकी नहीं छोड़ी। लेकिन हर वक्त उस पर निगाह हम नहीं रख सकते थे। ज्यादा पाबंदियाँ भी हमने उस पर नहीं लगाईं। जब वह दसवीं क्लास में थी आजाद ख्याल और तेज रफ्तार से ज़िंदगी जीने में यकीन रखने वाले कुछेक लड़के लड़कियों के साथ घर से भाग गई थी। फिर जब उसने कमाना शुरू किया तो कमाई से ज्यादा खर्च करने लगी। मुझे कई बार उसके उधार चुकाने पड़े।”
-“सैनी के लिए कब से काम कर रही है?”
-“तीन-चार साल से। मीना ने उसकी सेक्रेटरी के तौर पर शुरूआत की थी। फिर सैनी ने उसे मैनेजमेंट का कोर्स कराया ताकि वह मोटल की पूरी ज़िम्मेदारी संभाल सके। मैं चाहता था वह घर पर ही रहकर मेरे धंधे में हाथ बटाए- एकाउंट्स वगैरा संभालने में मदद करे मगर मीना को यह पसंद नहीं था। वह अपनी ज़िंदगी को अपने ही ढंग से जीना चाहती थी।”
-“वह कैसे अपनी ज़िंदगी गुजारती है?”
-“यह मुझसे मत पूछो।” बवेजा गहरी सांस लेकर बोला- “मीना सोलह साल की उम्र में ही घर छोड़ गई थी। तब से मेरे साथ उसकी मुलाकत तभी होती है जब उसे किसी चीज की जरूरत होती है।” संक्षिप्त मौन के पश्चात बोला- “मीना ने कभी मेरी परवाह नहीं की। दोनों बहनों में से किसी ने भी नहीं की। महीने में एक बार रंजना मुझसे मिलने चली आती है। शायद उसके पति ने उसे ऐसा कह रखा है ताकि मेरे मरने के बाद वह मेरा बिजनेस जायदाद वगैरा हासिल कर सके। लेकिन इसके लिए उस हरामजादे को लंबा इंतजार करना होगा।” उसका स्वर ऊँचा हो गया- “मैं आसानी से मरने वाला नहीं हूँ। पूरे सौ साल जिऊंगा।”
-“कांग्रेचुलेशन्स।”
-“तुम इसे मजाक समझ रहे हो?”
-“जी नहीं।”
-“भले ही तुम इसे मजाक समझो लेकिन असलियत यह है मेरे परिवार में पिछली तीन पुश्तों से कोई भी सौ साल से कम नहीं जिया। मैं भी सौ साल ही जीने का इरादा रखता हूँ।” अचानक वह फिर मीना का जिक्र ले आया- “क्या मीना का इस मामले से कोई संबंध है?”
-“हो सकता है।”
-“कैसे?”
-“वह सैनी से जुड़ी है और मैंने सुना है मनोहर से भी उसका गहरा रिश्ता था।”
-“तुमने गलत सुना है। यह ठीक है मनोहर उसके पीछे पड़ा हुआ था लेकिन मीना आँख उठा कर भी उसकी ओर नहीं देखती थी। वह मनोहर से डरती थी। पिछली गर्मियों में एक रात वह यहाँ आई। उसे ऐसी कोई चीज चाहिए थी...।”
अचानक बवेजा खामोश हो गया।
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