RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
राज ने उसके लहजे में ईर्ष्या का पुट स्पष्ट नोट किया।
–“क्या वह उनमें से किसी के साथ भाग गई हो सकती है?”
-“आपका मतलब है शादी करने के इरादे से?”
-“हाँ।”
-“मुझे नहीं लगता। किसी भी आदमी पर इस हद तक भरोसा करने वाली लड़की वह नहीं है।”
-“अजीब बात है।”
-“आपको सिर्फ इसलिए अजीब लगती है क्योंकि आप मेरी बहन को नहीं जानते। मीना बेहद आजाद ख्यालात रखने वाली उन लड़कियों में से है जो ज़िंदगी भर शादी न करने का पक्का फैसला कर चुकी होती हैं।”
-“आपके पिता ने बताया था वह सोलह साल की उम्र में घर छोड़ गई थी। इसका मतलब है करीब दस साल से वह अकेली ही रह रही है।”
-“नहीं। यह सही है करीब दस साल पहले मीना उसे छोडकर चली आई थी साब....उन दोनों के बीच कुछ फसाद हुआ। कौशल और मैंने तब उसे उसकी पढ़ाई खत्म होने तक अपने पास रखा था। फिर उसे जॉब मिल गया और वह अकेली रहने लगी। हमने तब भी उसे अपने साथ रखने की कोशिश की थी लेकिन जैसा कि मैंने बताया वह बहुत ही आजाद ख्याल है।”
-“आपके पिता के साथ उसका क्या फसाद हुआ था? आपने ऐसा कुछ कहा था कि मीना को खराब करने की शुरुआत उसी ने की थी।”
-“मुझे मजबूरन कहना पड़ा। उसने मीना के साथ बड़ी ही कमीनी हरकत की थी। अब यह मत पूछना हरकत क्या थी।” भावावेश के कारण उसका गला रुँध गया-“इस शहर के ज़्यादातर आदमी औरतों के मामले में बिल्कुल जंगली हैं। लड़कियों के पलने बढ़ने के लिए यह जगह नर्क से कम नहीं है। एकदम जंगलियों के बीच रहने जैसी जगह है।”
-“इतने बुरे हालात है?”
-“हाँ।” अचानक वह चिल्लाई- “मुझे इस शहर से नफरत है। मैं जानती हूँ यह कहना खौफनाक है लेकिन मैं अक्सर भगवान से प्रार्थना करती हूँ एक इतना भयंकर तूफान या भूचाल आए कि सारा शहर नष्ट हो जाए।”
-“क्योंकि तुम्हारी बहन के साथ तुम्हारे पिता का फसाद हुआ था?”
-“मैं अपनी बहन या बाप के बारे में नहीं सोच रही हूँ।”
राज ने उस पर निगाह डाली। एकदम सीधी तनी बैठी वह शून्य में ताकती सी नजर आ रही थी।
कुछ देर बाद तनिक झुककर उसने राज की बांह पर हाथ रख दिया।
-“यहाँ से बायीं ओर लेना। आयम सॉरी....दरअसल अपने बाप से मिलकर मैं बहुत ज्यादा परेशान हो जाती हूँ।”
पहाड़ी घुमावदार सड़क पर कार नीचे जाने लगी।
बढ़िया रिहाइशी इलाका था। जहां लोग अपनी गुजिश्ता ज़िंदगी की मामूली शुरुआत को भूलकर सिर्फ आने वाले सुनहरी वक्त की ओर ही देखते थे। अधिकांश कोठियाँ नई और आधुनिक थीं। वहाँ रहने वालों की संपन्नता की प्रतीक।
रंजना के निर्देशानुसार ड्राइव करते राज ने अंत में जिस कोठी के समुख कार रोकी वो अंधेरे में डूबी खड़ी थी।
रंजना चुपचाप बैठी सामने देख रही थी।
-“आप यहाँ रहती हैं?” राज ने टोका।
-“हाँ। मैं यहाँ रहती हूँ। वह पीड़ित स्वर में बोली- “लेकिन अंदर जाने से डर लगता है।”
-“डर? किससे?”
-“लोग किससे डरते हैं?”
-“आमतौर पर मौत से।”
-“लेकिन मुझे अंधेरे से डर लगता है। डाक्टरी भाषा में इसे निक्टोफ़ोबिया कहते हैं लेकिन नाम जान लेने से डर के अहसास में फर्क नहीं पड़ता।”
-“अगर आप चाहें तो मैं आपके साथ अंदर चल सकता हूँ।”
-“मैं यही चाहती हूँ।”
दोनों कार से उतरे।
रंजना उसकी बाँह थामें चल दी। बाँह यूँ थामी हुई थी मानों किसी आदमी का सहारा लेने में संकोच हो रहा था। लेकिन दरवाजे में उसका वक्षस्थल और कूल्हा राज से टकरा गए।
राज के हाथ अपने हाथों में पकड़कर रंजना ने उसे अंधेरे प्रवेश हाल में खींच लिया।
-“अब मुझे छोड़ना मत।”
-“छोड़ना पड़ेगा।”
मुझे अकेली मत छोड़ना प्लीज। बहुत डर लग रहा है। देखो मेरा दिल कितनी जोर से धड़क रहा है।”
उसने राज का हाथ अपनी छाती पर रखकर इतनी जोर से दबाया कि उसकी उँगलियाँ दोनों वक्षों के बीच गड़ गईं। उसका दिल सचमुच जोर-जोर से धड़क रहा था। इसकी वजह डर था या कुछ और वह नहीं समझ सका।
-“देखा तुमने?” राज के कान के पास मुँह करके वह फुसफुसाई- “कितना डर लग रहा है। मुझे कितनी ही रातें यहाँ अकेले गुजारनी पड़ती है।”
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