RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“वह पहुंच सैनी के मामले में तुम्हें भी प्रभावित कर सकती है?” राज ने और ज्यादा कुरेदते हुए पूछा।
इस दफा इन्सपैक्टर पर सीधा और तुरंत असर हुआ। उसकी कनपटी पर एक नस तेजी से फड़कती नजर आई।
-“तुम्हें कुछ ज्यादा ही सवाल करने की आदत है।”
-“मैं वही सवाल करता हूं जिनके जवाब जानने जरूरी होते हैं।”
-“मत भूलो कि तुम मुझसे बात कर रहे हो?”
-“मैं बिल्कुल भी नहीं भूल रहा हूं।”
-“तो फिर तुम सिचुएशन को नहीं समझ रहे हो।”
-“कौन सी सिचुएशन?”
-“तुम्हारी इस फ्लैट में मौजूदगी सरासर गलत और गैर कानूनी है। दरवाजे का ताला तोड़कर तुम्हें यहां घुसने के जुर्म में मैं हवालात में डाल सकता हूं।”
-“यह जुर्म मैंने नहीं किया। मुझसे पहले ही किया जा चुका था।”
-“सच कह रहे हो?”
-“बिल्कुल सच। मेरे आने से पहले ही यहां सेंध लगाई जा चुकी थी। और सेंधमार कोई मामूली नहीं था।
बैडरूम में टेबल पर बड़ी कीमती रिस्टवाच पड़ी है। जबकि चोरी की नीयत से आने वाले सेंधमार ने घड़ी यहां नहीं छोड़नी थी। दूसरी भी जो चीजें गायब हैं उन्हें भी वह नहीं ले गया होगा।”
-“कौन सी दूसरी चींजे?”
-“पर्सनल। टूथब्रुश, पाउडर काम्पैक्ट, लिपस्टिक, पर्स वगैरा। मेरा ख्याल है मीना बवेजा कहीं वीकएंड मनाने गई थी और वापस नहीं लौटी। फिर किसी ने यहां सेंध लगाई, डेस्क का ताला तोड़ा और उसकी जाती जिंदगी से जुड़ी कई चीजें ले गया- लैटर्स एड्रेस बुक, टेलीफोन नंबर....।”
-“अगर दरवाजे का ताला तुमने नहीं तोड़ा तो भी यहां घुसने का कोई हक तुम्हें नहीं था। तुमने कानूनन....।”
-“मैंने यहां तलाशी लेने की इजाजत ले ली थी।”
-“किससे?”
-“तुम्हारी पत्नि से।”
-“उसका इससे क्या ताल्लुक है?”
-“उसकी बहन गायब है और निकटतम रिश्तेदार होने की वजह से....।”
-“वह तुम्हें कहां मिली?”
-“कोई घंटाभर पहले बवेजा की कोठी से मैंने उसे उसके घर पहुंचाया था।”
-“उससे दूर ही रहो।” इन्सपैक्टर कड़े स्वर में बोला- “सुना तुमने। मेरे घर और मेरी पत्नि से दूर ही रहना।”
-“बेहतर होगा कि तुम अपनी पत्नि को मुझसे दूर रहने की हिदायतें दे दो।”
राज को फौरन अहसास हो गया उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।
कुपित इन्सपैक्टर का रिवाल्वर वाला हाथ उस पर लपका। नाल का प्रहार राज की ठोढ़ी पर पड़ा। सर पीछे दीवार से टकराया और वह चकराकर फर्श पर जा गिरा।
चंद क्षणोपरांत उठा। हाथ के पृष्ठ भाग से ठोढ़ी से खून साफ किया।
-“इसके लिए तुम्हें पछताना होगा, इन्सपैक्टर।”
इन्सपैक्टर का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था।
-“इससे पहले कि दोबारा मेरा हाथ उठे दफा हो जाओ।”
राज थके से कदमों से चलता हुआ खुले दरवाजे से बाहर निकल गया।
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