RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
सुभाष मार्ग पर कार ड्राइव करते राज को याद आया उसकी जेब में चरस की भरी सिगरेटों का एक पैकेट पड़ा था।
विशालगढ़ में उसकी कार के पास दो नशेड़ियों में झगड़ा हो रहा था। झगड़े की वजह वही पैकेट था। राज ने बीच बचाव करने की कोशिश की तो वे दोनों उसी से उलझ गए। मजबूरन राज को उनकी ठुकाई करके उनसे पैकेट छीन लेना पड़ा था। बाद में उसे फेंकना वह भूल गया। अब वही पैकेट एकाएक महत्वपूर्ण बनता नजर आ रहा था।
इंद्रा अपार्टमेंट्स वही इमारत निकली जिसमें कुछेक घंटे पहले राज ने सैनी की मंजूरे नजर को गायब होते देखा था। इस वक्त वे छोकरे आस-पास कहीं नजर नहीं आए।
कार पार्क करके राज इमारत में दाखिल हुआ।
प्रवेश हाल में लैटर बॉक्सेज पर लगे कार्डों में से एक के मुताबिक लीना दूसरी मंजिल पर सात नंबर फ्लैट में रहती थी।
राज सीढ़ियों द्वारा ऊपर पहुंचा।
सात नंबर बायीं ओर आखिरी फ्लैट था।
अंधेरे गलियारे में खड़े राज ने हौले से दस्तक दी।
-“तुम आ गए डार्लिंग?” अंदर से कहा गया।
-“हां।” राज ने धीरे से कहा।
दरवाजा थोड़ा सा खुला। धीमी रोशनी की चौड़ी लकीर बाहर झांकने लगी।
राज साइड में खिसक गया।
लड़की ने गर्दन बाहर निकालकर आंखें मिचमचाईं।
-“मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी जल्दी आ जाओगे। मैं नहाने जा रही थी।”
वह राज की ओर बढ़ी। पीछे से पड़ती रोशनी में पारदर्शी गाउन से उसके सुडौल शरीर का स्पष्ट आभास मिल रहा था। उसका एक हाथ स्वयमेव राज की बांह और साइड के बीच सरक गया।
-“वेलकम किस टू डार्लिंग देवा।”
गीले होठों का स्पर्श राज ने अपने गाल पर महसूस किया। फिर घुटी सी हैरानी भरी कराह सुनाई दी और वह पीछे हट गई। इस प्रयास में उसके फ्रंट ओपन डिजाइन वाले गाउन का सामने वाला हिस्सा पूरी तरह खुल गया।
-“कौन हो तुम? तुमने कहा था, वह हो।”
-“तुमने गलत समझ लिया, लीना। मुझे सैनी ने भेजा है।”
-“लेकिन उसने तो तुम्हारे बारे में कुछ नहीं बताया।”
अचानक उसे खुले गाउन से झांकती अपनी नग्नता का अहसास हुआ। गाउन के दोनों हिस्सों को आपस में मिलाकर उसने बैल्ट कस ली। बांहें परस्पर छाती पर बांध लीं। उसका चेहरा पीला पड़ गया था।
-“वह कहां है?” फंसी सी आवाज में पूछा- "खुद क्यों नहीं आया?”
-“निकल नहीं सका।”
-“वह नहीं आने दे रही?”
-“पता नहीं। मुझे अंदर आने दो। उसने तुम्हारे लिए एक चीज भेजी है।”
-“क्या?”
-“अंदर दिखाऊंगा। यहां नहीं।”
-“आओ।”
राज उसके पीछे अंदर दाखिल हुआ।
रोशनी में राज ने गौर से उसे देखा। मेकअप न होने के बावजूद चेहरा सुंदर था। उसकी उम्र मुश्किल से चौबीस साल थी। पुराने फर्नीचर के बीच खड़ी वह उस बच्चे की तरह देख रही थी जिसे उपहार देने का वादा किया गया हो।
-“क्या भेजा है देवा ने?”
राज ने दरवाजा बंद करके जेब से चरस की सिगरेटों वाला पैकेट निकालकर उसे दे दिया।
उसने इतनी उतावली से पैकेट खोला की सिगरेटें नीचे गिर गईं।
वह फौरन नीचे बैठकर उन्हें उठाने लगी।
एक सिगरेट मुंह में दबाए और बाकी पैकेट में रखकर खड़ी हो गई।
|