RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
राज ने अपना लाइटर जलाकर सिगरेट सुलगवा दी। उसने गहरा कश लिया।
चार कशों में ही सिगरेट आधी खत्म कर दी।
उसकी आंखें चमक रही थीं। चेहरे पर संतुष्टिपूर्ण मुस्कराहट उभर आई।
शेष बची आधी सिगरेट को सावधानीपूर्वक एश ट्रे में बुझाकर पैकेट में रख लिया।
चरस का प्रभाव होना आरंभ हो चुका था। वह हवा में तैरती हुई सी आगे बढ़ी। दीवान पर बैठकर अपने हाथ मुट्ठियों की तरह बांधकर टांगों के बीच में रख लिए। उसकी पल-पल बदलती मुस्कराहट से स्पष्ट था नशे के प्रभाववश सपनों की दुनिया में विचरना आरम्भ कर चुकी थी।
राज उसकी बगल में बैठ गया।
-“कैसा महसूस कर रही हो लीना?”
-“वंडरफुल।” उसके होंठ धीरे से हीले और आवाज कहीं दूर से आती प्रतीत हुई- “ओ, गॉड आई वाज डाइंग....आई नीडेड इट। देवा को मेरी ओर से धन्यवाद देना।”
-“अगर मिला तो जरूर दूंगा। वह शहर से जा रहा है न?”
-“हां....मैं तो भूल ही गई थी....हम जा रहे हैं।”
-“कहां?”
-“नेपाल।” वह चहकती हुई सी बोली....” हम दोनों साथ-साथ एक नई जिंदगी शुरु करेंगे....बड़ी ही खूबसूरत नई जिंदगी.... जिसमें न कोई चख-चख होगी और न ही कोई पाबंदी। बस वह और मैं होंगे।”
-“तुम्हारा गुजारा कैसे होगा?”
-“हमारे पास साधन और तरीके हैं।” वह स्वप्निल स्वर में बोली- “देवा ने सब इंतजाम कर लिया है।”
-“मुझे नहीं लगता ऐसा होगा।”
-“क्यों?” वह गुर्राई।
-“उनकी निगाहें उस पर है।”
वह सीधी तनकर बैठ गई।
-“किसकी?” उत्तेजित स्वर में पूछा- “पुलिस की?”
राज ने सर हिलाकर हामी भरी।
लीना उसकी ओर झुक गई। उसकी बांह दोनों हाथों में थामकर हिलाई।
-“क्या चक्कर है? प्रोटेक्शन काम नहीं कर रही?”
-“मर्डर को कवर करने के लिए बड़ी सॉलिड प्रोटेक्शन चाहिए।”
लीना की होठ खिंच गए। कड़ी निगाहों से उसे घूरा।
-“क्या कहा तुमने? मर्डर?”
-“हां। तुम्हारे एक दोस्त को शूट किया गया था।”
-“कौन दोस्त? इस शहर में मेरा कोई दोस्त नहीं है।”
-“मनोहर दोस्त नहीं था?”
राज पर निगाहें जमाए वह अलग हटी और हाथों और नितंबों के सहारे दीवान के दूसरे सिरे पर खिसक गई।
-“मनोहर?” दांत पीसकर बोली- “वह कौन है?”
-“मुझे बनाने की कोशिश मत करो, लीना। वह तुम्हारे पीछे लगे रहने वालों में से एक था। इतवार रात को तुम उसे अपने साथ यहां लाई थी।”
-“यह तुम्हें किसने बताया? यह झूठ है।” उसके स्वर में भय का पुट था और चेहरे पर चोरी पकड़े जाने जैसे भाव- “क्या उन्होंने मनोहर को मार डाला?”
-“यह तो तुम्हें पता होना चाहिए। तुम्हीं ने उसकी मौत का सामान किया था।”
-“नहीं। यह झूठ है। ऐसा कुछ मैंने नहीं किया। मैं एकदम बेकसूर हूं।” नशे के प्रभाव में सपनों की जिस दुनिया में पहुंच गई थी उससे बाहर निकलती प्रतीत हुई। आंखों में संदेह के बादल उमड़ आए- “मनोहर मरा नहीं है। तुम मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हो।”
-“मेरी बात पर यकीन नहीं है?”
-“नहीं।”
-“तो फिर मोर्ग में जाकर उसकी लाश देख लो।”
-“देवा ने ऐसा कुछ नहीं बताया। अगर मनोहर मारा गया होता तो उसने मुझे बता देना था। यह तो किया ही नहीं जाना था।”
-“जिस बात की तुम्हें पहले से जानकारी थी उसके बारे में वह तुम्हें बताता ही क्यों? मनोहर को तुम्हीं ने तो बलि का बकरा बनाया था।”
-“नहीं, मैंने कुछ नहीं किया। इतवार रात के बाद से तो मैंने उसे देखा तक नहीं। मैं सारा दिन घर पर रही हूं।” वह उठकर राज के सामने खड़ी हो गई। चेहरा ज्यादा पीला पड़ गया- “क्या कोई मुझे फंसाने की कोशिश कर रहा है” और तुम....तुम कौन हो?”
-“सतीश का दोस्त।” राज ने गोली दी- “आज रात उससे मिला था।”
-“देवा मेरे साथ ऐसा नहीं करेगा। क्या वह अरेस्ट हो गया है?”
-“अभी नहीं।”
-“तुम्हें उसी ने भेजा था?”
-“हां।”
-“सिगरेट पहुंचाने के लिए?”
-“हां।”
-“देवा को सिगरेट कहां से मिले?”
-“जौनी से। सतीश खुद नहीं आ सकता था इसलिए उसने मुझे भेजा।”
-“अजीब बात है। तुम्हारा कभी जिक्र तक उसने नहीं किया।” राज मुस्कराया।
-“तुम समझती हो, वो हरएक बात तुम्हें बताता है?”
-“नहीं। मुझे नहीं लगता।”
भारी उलझन में पड़ी लीना बंद खिड़की के पास जा खड़ी हुई फिर पलटी और पैरों को घसीटती हुई सी चलकर दीवान के सिरे पर आ बैठी।
-“किस सोच में पड़ गई?” राज ने टोका।
-“मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। तुम कहते हो मनोहर मर गया और देवा मुझे लटका रहा है।”
-“तुम्हें इस पर यकीन नहीं है?”
-“नहीं।”
-“लेकिन यह सच्चाई है और इस पर यकीन न करके तुम बेवकूफी कर रही हो।”
-“क्या इस मामले में तुम भी शरीक हो?”
-“मेरा भी ख्याल तो यही था। लेकिन ऐसा लगता है वह हम दोनों को लटका रहा है।” राज एक और गोली देता हुआ बोला- “जिस ढंग से उसने मुझे योजना समझाई थी उसके मुताबिक मनोहर को तुमने ही फंसाना था।”
-“ओरीजिनल प्लान यही था।” वह बोली- “मैंने हाथ देकर उसे रोकना था। कोई गोली नहीं चलनी थी। क्योंकि इस हक में मैं बिल्कुल नहीं थी। बस मैंने हाईवे पर ट्रक रुकवाना था और दूसरों ने उस पर कब्जा कर लेना था।”
-“दूसरे यानी सतीश और जौनी?”
-“हां। फिर उन्होंने प्लान बदल दिया। देवा नहीं चाहता था मैं इस झमेले में अपनी गरदन फंसाऊं।” लीना ने यूं अपनी गरदन पर हाथ फिराया मानों यकीन करना चाहती थी कि वो सही सलामत थी- “फिर एक और बात सामने आई....एक ऐसी बात जो इतवार रात में मनोहर ने मुझे बताई थी। जब उसने बताया वह नशे में था। इसलिए मैंने उस पर यकीन नहीं किया। वह उस लड़की के बारे में हमेशा बेपर की उड़ाता रहता था। मगर जब मैंने देवा को वो बात बताई तो उसने यकीन कर लिया।”
|