RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“ठहरो।” सैनी ने अपने पाइप के सिर को पिस्तौल की तरह उसकी ओर तानते हुए कहा- “तुम्हें पता है, क्या कहा है तुमने? तुमने कहा है- मेरी हवेली। हमारी या अपनी नहीं। फिर भी तुम मुझे ही लालची और खुदगर्ज कहती हो।”
-“बेशक कहती हूं। क्योंकि तुम हो ही लालची और खुदगर्ज। मेरे दादा ने यह हवेली मेरी दादी के लिए बनाई थी। वे इसे मेरे पिता के लिए छोड़ गए। मेरे डैडी मेरे लिए छोड़ गए। अब यह मेरी है सिर्फ मेरी। और हमेशा मेरी ही रहेगी।”
-“इसकी जरूरत भी किसे है?”
-“तुम्हें। तुम्हारी नजरें इस पर लगी हैं। अभी उस रोज की ही तो बात है तुम मनाने की कोशिश कर रहे थे कि मैं इसे बेचकर पैसा तुम्हें दे दूं।”
-“हां, मैंने कोशिश की।” वह धूर्ततापूर्वक मुस्कराया- “लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। तुम अपनी इस हवेली की मालकिन बनी रहकर अकेली इसमें रह सकती हो। असल में यहां तो मैं कभी रहा ही नहीं। इसके पीछे अस्तबल में रहता था और तुमने मुझे वहां रखा था। उस अस्तबल को भी तुम अपने पास रख सकती हो। अपने अगले पति के लिए तुम्हें उसकी जरूरत पड़ेगी।”
-“तुम समझते हो तुम्हारे साथ हुए तजुर्बे के बाद भी मैं शादी करूंगी?”
-“तजुर्बा इतना बुरा तो नहीं था, रजनी। तुम्हारी फिगर भी खराब नहीं है। दूसरा पति आसानी से मिल जाएगा। मैं मानता हूं जब हमने शादी की तुमसे प्यार मैं नहीं करता था। सुन रही हो ना? मैं कबूल करता हूं मैंने तुम्हारी जायदाद और पैसे की वजह से तुमसे शादी की थी। क्या यह इतना संगीन जुर्म है? बड़े शहरों में तो ऐसा आमतौर पर होता रहता है। मैंने भी तुम्हें पत्नी बनाकर तुम्हारा भला ही किया था।”
-“इस मेहरबानी के लिए शुक्रिया...।”
-“मुझे बात पूरी करने दो।” उसका स्वर भारी हो गया और अपना पोज वह भूल गया- “तुम बिल्कुल अकेली थीं। तुम्हारे मां-बाप मर चुके थे। तुम्हारा कैप्टन प्रेमी कश्मीर में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में मारा गया...।”
-“अरुण मेरा प्रेमी नहीं था।”
-“मैं भी मान लेता हूं। खैर, उस वक्त तुम्हें अपनी दौलत से ज्यादा जरूरत एक आदमी की थी। तुम्हारी कमी को पूरा करने के लिए मैंने खुद को पेश कर दिया। लेकिन पूरा नहीं कर पाया हालांकि अपनी ओर से हर मुमकिन कोशिश मैंने की थी। मैंने फिफ्टी-फिफ्टी के बेसिस पर शादी को कामयाब बनाना चाहा मगर नहीं बना सका। कोई मौका नहीं मिला। मुझ पर विश्वास करना तो दूर रहा तुमने कभी मुझे पसंद तक नहीं किया।”
-“फिर भी तुम्हें प्यार तो करती थी।” रजनी पलटकर पीछे हट गई। अपने हाथ वक्षों पर यूँ रख लिए मानों उनमें दर्द हो रहा था।
-“यह महज तुम्हारा वहम था कि मुझसे प्यार करती थीं। अगर करती भी थीं तो सिर्फ खयालों में करती होओगी। ऐसे ख्याली प्यार का फायदा क्या है? यह महज एक लफ़्ज़ है जहां तक मेरा संबंध है, तुमने कभी तन मन से अपने आप को मेरे हवाले नहीं किया। इस लिहाज से तुम अभी भी क्वांरी हो। तुम्हारा पति बना रहने के लिए कितनी मेहनत मुझे करनी पड़ी है मैं ही जानता हूं। लेकिन तुमने कभी यह अहसास भी मुझे नहीं होने दिया कि मैं एक मर्द हूं।”
रजनी का चेहरा तनावपूर्ण था।
-“मैं जादूगर नहीं हूं।” वह बोली।
-“फायदा भी क्या है?”
-“कोई फायदा नहीं। अगर इस रिश्ते में कभी कुछ था भी तो सब खत्म हो चुका है। जब मैंने तुम्हें अपने सूटकेस पैक करते पाया तो उस सबकी पुष्टि हो गई जो मैं जानती थी। जरा भी ताज्जुब मुझे नहीं हुआ। मुझे महीना पहले ही पता चल गया था। क्या होने वाला है?”
-“पिछली दफा तो यह अर्सा पांच साल चला था।”
-“हां, लेकिन मैं उम्मीद लगाए रही। जब तुमने मीना बवेजा के साथ ताल्लुकात खत्म कर दिए या खत्म करने का दावा किया तब मैंने सोचा था शायद हमारी शादी बच जाएगी। लेकिन ऐसी उम्मीद पालना मेरी बेवकूफी थी। मैं कितनी बेवकूफ हूं इसका पता मुझे पिछले महीने तब चला जब मैंने ‘ओल्ड इन’ के बाहर तुम्हारे पहलु में उस लड़की को देखा था और तुमने ऐसा जाहिर किया जैसे मुझे जानते ही नहीं। मुझे देखकर भी अनदेखा करके उसी को देखते रहे।”
-“पता नहीं, क्या कह रही हो तुम।” वह खोखले स्वर में बोला- “मैं कभी किसी लड़की के साथ ओल्ड इन नहीं गया।”
-“बिल्कुल नहीं गए।” अचानक रजनी मुट्ठियाँ भींचे उसकी ओर पलट गई- “क्या वह लड़की तुम्हें मर्द होने का एहसास दिलाती है? क्या वह तुम्हारी चापलूसी करके तुम्हें वहम पालने देती है कि तुम एक शानदार मर्द हो जिसकी जवानी लौट आई है?”
-“उसे इससे दूर ही रखो।”
-“क्यों? क्या वह इतनी डरपोक है? क्या तुम उसके साथ नहीं भाग रहे हो? क्या यही आज रात का बड़ा प्रोजेक्ट नहीं है?”
-“तुम पागल हो?”
-“अच्छा? क्या तुम भाग नहीं रहे? अकेले जाने वाले आदमी तुम नहीं हो। तुम्हें अपने साथ एक ऐसी औरत की जरूरत है जो तुम्हारे अहम को सहेजकर रख सके। मैं न तो उस औरत को जानती हूं और न ही उसकी कोई परवाह मुझे है। मैं सिर्फ इतना जानती हूं तुमने मीना बवेजा के साथ फिर से चक्कर चला लिया है या फिर हो सकता इस पूरे अर्से में बराबर उसे उलझाए ही रखा है।”
-“तुम वाकई पागल हो गई हो।”
-“अच्छा? मैं जानती हूं पिछले शुक्रवार को तुमने उसे लॉज की चाबियां दी थीं। मैंने उसे चाबियों के लिए तुम्हारा शुक्रिया अदा करते सुना था। इसलिए मुझे यह सुनकर भी कोई ताज्जुब नहीं होगा कि वह मोती झील पर बैठी तुम्हारे आने का इंतजार कर रही है।”
-“बको मत। मैं बता चुका हूं वो सब खत्म हो गया। मैं नहीं जानता वह अब कहां है।”
-“उसने वीकएंड मोती झील पर गुजारा था। यह सच है न?”
-“हां। मैंने उसे कहा था वीकएंड के लिए वहां जा सकती है। लॉज को हम तो इस्तेमाल कर नहीं रहे हैं। वो खाली पड़ी थी। मैंने चाबियां उसे दे दीं। क्या ऐसा करना जुर्म है?”
-“अब तुम भी वहीं जा रहे हो?”
-“नहीं। मीना भी वहां नहीं है। सोमवार को मैं कार लेकर उसे वहां देखने गया था। वह जा चुकी थी।”
-“कहां?”
-“पता नहीं। क्या तुम्हारे भेजे में यह बात नहीं आती कि मैं नहीं जानता?” इस विषय से वह बहुत ज्यादा विचलित हो गया प्रतीत हुआ- “या तुम समझती हो मैंने औरतों का हरम बना रखा है।”
-“तुम्हारे ऐसा करने पर भी मुझे हैरानी नहीं होगी। औरतों के मामले में तुम्हारा यह हाल है अपने वजूद तक का पता तुम्हें नहीं चलता जब तक कि कोई औरत तुम्हारे कान में न कहे कि तुम हो।”
-“वो कोई औरत तुम तो नहीं हो सकती।”
-“बिल्कुल नहीं। मैं नहीं जानती इस दफा तुम किसके फेर में हो लेकिन इतना जरूर कह सकती हूं यह सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चलेगा।”
-“यह तुम्हारा ख्याल है।”
-“नहीं, मैं जानती हूं। तुम्हारे लिए सैक्स और पैसा एक ही जैसी चीजें हैं। दोनों को एक ही तरह इस्तेमाल करते हो- खुले हाथों। इसलिए न तो पैसा तुम्हारे पास रुक सकता है और न ही एक औरत के साथ तुम ज्यादा दिन रह सकते हो।”
-“तुम कुछ नहीं जानतीं। बस किताबों में पढ़ी बातें दोहरा रही हो। इस असलियत को नहीं समझतीं कि ये सब नहीं होना था अगर तुमने उस वक्त मुझे ब्रेक दे दिया होता जब मैंने मांगा था।”
-“मैंने तुम्हें ढेरों ब्रेक दिए हैं।” रजनी पहली बार बचाव सा करती हुई सी बोली- “तुम मुसीबत में हो न? बड़ी भारी मुसीबत में?”
-“तुम कभी नहीं समझोगी।”
-“क्या हम एक दूसरे के साथ ईमानदारी नहीं कर सकते- बस इस बार? मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगी।”
-“अच्छा?”
-“हां। चाहे इसके लिए तुम्हारी खातिर मुझे अपनी हवेली क्यों न छोड़नी पड़े।”
-“तुम्हारी किसी चीज की जरूरत मुझे नहीं है।”
रजनी ने गहरी सांस ली मानों पूरी तरह ना उम्मीद हो चुकी थी।
-“सतीश।” संक्षिप्त मौन के पश्चात बोली- “आज रात कौशल चौधरी क्यों आया था?”
-“रूटीन इनवेस्टीगेशन के लिए।”
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