RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मुझे तो ऐसा नहीं लगा।”
सैनी उसकी ओर बढ़ा।
-“तुम चोरी से सुन रही थी?”
-“बिल्कुल नहीं। तुम्हारी आवाजें मुझ तक आ रही थीं। तुम दोनों में खासी झड़प हुई थी।”
-“फारगेट इट।”
-“क्या यह मर्डर के बारे में थी?”
-“आई सैड फारगेट इट।” उसकी उंगलियां एकाएक पाइप पर इतनी जोर से कस गईं कि वो टूट गया। स्वर में तेजी आ गयी- “मेरे बारे में सब कुछ भूल जाओ। तुम मुझे एक पूरी तरह नाकामयाब आदमी समझती रही हो और तुम्हारा ऐसा समझना ठीक भी है। लेकिन इसमें सारा कसूर मेरा नहीं है। इस शहर में भी कुछ गड़बड़ है। कम से कम मुझे तो यह रास आया नहीं। मेरी किस्मत भी खराब ही रही। अगर गवर्नमेंट ने इस टेम्प्रेरी एयरबेस को फिर से चालू कर दिया होता तो डीलक्स मोटल में नोटों की बारिश होनी थी और मेरे पास दौलत का ढेर लग जाना था।”
-“तुम्हें बिजनेस की कोई समझ नहीं है। तुम सिर्फ गँवाना जानते हो। लेकिन अपनी तसल्ली के लिए दोष सरकार को देते हो। मुझे और इस शहर को कसूरवार ठहराते हो।”
सैनी ने अपना टूटा पाइप उसकी ओर हिलाया।
-“बस बहुत हो गया। और ज्यादा बरदाश्त मैं नहीं कर सकता। मैं जा रहा हूं।”
वह दरवाजे की ओर बढ़ा।
-“मुझे बेवकूफ मत बनाओ।” रजनी ने पीछे से कहा- “तुम हफ्तों पहले यह फैसला कर चुके थे। तभी से योजना बनाते रहे हो। लेकिन इसे कबूल करने का हौसला और मर्दानगी तुममें नहीं है।”
सैनी रुक गया।
-“तुम्हें मर्दानगी में कब से दिलचस्पी होने लगी।” पलटकर बोला- “इसने तो कभी तुम्हें अपील नहीं किया।”
-“मैं कभी इस काबिल समझी ही नहीं गई।”
-“तो फिर मुझे गौर से देख लो। अब हम कभी नहीं मिलेंगे।” उसने नथुने फुलाकर भारी सांस लेते हुए चेहरा आगे कर दिया। रजनी हंसी। मानों उसके अंदर कहीं चटककर कुछ टूट रहा था।
-“क्या इसी को मर्दानगी कहते हैं? क्या मर्द इसी तरह बातें करता है? क्या एक पति अपनी पत्नि से इसी तरह पेश आता है?”
-“पत्नि? कैसी पत्नि? मुझे तो कोई पत्नि नजर नहीं आ रही।”
वह पलटकर कारपेट को पैरों से रौंदता हुआ सा आगे बढ़ा और दरवाजा खोल दिया।
राज को अब दिखाई तो वह नहीं दे रहा था लेकिन सीढ़ियों पर उसके भारी कदमों की आहटें सुनाई दे रही थीं।
रजनी ने मेंटल के पास जाकर अपना सर और बांह उस पर टिका दी। उसके बाल चेहरे पर बिखर गए।
राज ने उसकी तरफ से गरदन घुमा ली।
कुछ देर बाद वरांडे के दूसरे सिरे पर एक दरवाजा खुला।
राज अंधेरे कोने में सिमिट गया।
दोनों हाथों में चमड़े के भारी सूटकेस उठाए सैनी बाहर निकला।
-“हमेशा के लिए जा रहे हो?” पीछे से रजनी ने पुकारा।
-“हां, मैं अपनी कार ले जा रहा हूं। और मेरे पास सिर्फ मेरे कपड़े हैं।”
-“और हो भी क्या सकता है? तुम्हारे पास सिर्फ एक चीज और है- कर्जे। वो तुम पीछे ही छोड़े जा रहे हो।”
-“मैं बिजनेस भी छोड़कर जा रहा हूं। कर्जे उस से कवर हो जाएंगे और अगर नहीं हो सके तो बुरा होगा।”
-“मेरे लिए?”
-“हां।”
रजनी दरवाजे में प्रगट हुई।
-“जा कहां रहे हो सतीश?”
सैनी की पीठ उसकी तरफ थी।
-“तुम्हें कभी पता नहीं चलेगा।”
-“तुम इस तरह चले जाने के ही काबिल हो।”
-“ले जाए जाने से तो बेहतर ही है।” सैनी ने गरदन घुमाकर कहा- “अलविदा रजनी। मेरे लिए मुसीबत खड़ी मत करना। अगर तुमने ऐसा किया तो खुद दो गुनी मुसीबत का सामना करोगी।”
वरांडे की सीढ़ियां उतरकर वह अपनी जिप्सी की ओर बढ़ गया।
रजनी उसे जाते देखती रही। उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था। आंखें गुस्से से सुलग रही थीं। अचानक उसका हाथ अपनी माला पर कस गया। जोर से झटका दिया। माला टूट गई और मोती नीचे गिरकर बिखर गए।
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