RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
बाई पास से वापस लौटकर राज शहर की दिशा में मुड़ गया।
रास्ते में कुछेक ट्रक दक्षिण की ओर जाते मिले लेकिन उनमें से कोई भी वैसा ऐसा नहीं था जैसा जौनी लेकर भागा था।
जौनी अब तक इस इलाके में मीलों दूर निकल गया होगा। और सैनी नेपाल का अपना सफर तय कर रहा होगा।
लेकिन जल्दी ही उसे अपना दूसरा अनुमान गलत साबित होता नजर आया। सैनी की जिप्सी डीलक्स मोटल के बाहर खड़ी थी। इंजिन चालु था।
राज हाईवे पर साइड में कार पार्क करके उसके पास पहुंचा। जिप्सी खाली थी। इंजिन बंद करके उसने चाबियां अपनी जेब में डाली और अपनी रिवाल्वर निकाल ली।
मोटल के सिर्फ एक काटेज में रोशनी थी। बाकी सब काटेजों में अंधेरा था। लेकिन मुख्य इमारत में रोशनी थी। बगल की एक खिड़की से झांकती वो रोशनी अंडाकार स्वीमिंग पूल की सतह पर भी पड़ रही थी।
पूल का चक्कर काटकर राज इमारत के पिछवाड़े पहुंचा।
रोशनी ऑफिस में थी। पिछला दरवाजा थोड़ा खुला था।
राज ने अंदर झांका।
हाल ही में फर्नीश किए गए कमरे में डेस्क और खुली सेफ के बीच में सैनी मरा पड़ा था। उसके फटे सर से भेजा बाहर झांक रहा था। सर के आसपास फर्श पर खून फैला हुआ था।
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कई पल ठिठका खड़ा राज हैरानी से आंखें फैलाए देखता रहा फिर सावधानीपूर्वक भीतर दाखिल हुआ।
उसने सैनी के बाल पकड़कर मुर्दा सर ऊपर उठाया। गोली माथे को फाड़ती हुई भीतर दाखिल हुई थी। माथे पर झांकते सुराख के आकार से अनुमानत: गोली बत्तीस कैलीबर की रही थी। सैनी की मुर्दा आंखें हैरानी से फटी नजर आ रही थीं।
राज जल्दी-जल्दी उसकी जेबों की तलाशी लेने लगा।
दूर कहीं से आती सायरन की आवाज भी सुनाई देनी आरंभ हो गई।
सैनी की जेब में न तो कोई पर्स था और ना ही किसी और शक्ल में कोई पैसा उसके पास था। जौनी ने जो पैकेट उसे दिया था वह न तो उसके पास कहीं था न ही सेफ में नजर आ रहा था।
राज ने सेफ में रखी चीजें बाहर निकालीं। बिल, चैक बुक्स, लैजर बगैरा।
लैजर से साफ जाहिर था मोटल घाटे में जा रहा था।
मोटल की दूसरी साइड में एक इंजिन कराहा और खामोश हो गया। फिर बार-बार इंजिन स्टार्ट करने की कोशिश की जाने लगी।
राज ऑफिस से निकलकर बाहर उसी ओर दौड़ा।
आवाज काटेजों के पीछे वाली गली की ओर खुलने वाले द्वारविहीन गैराजों में से एक से आ रही थी।
अचानक जोर से गरजे इंजिन से जाहिर था वो स्टार्ट हो गया था।
राज पूल के पास से होकर गली के दहाने की ओर दौड़ा।
एक सफेद मारुति रोशन काटेज के पीछे मौजूद गैराज से बाहर निकली। एक संक्षिप्त पल के लिए रुकी। फिर तेजी से हाईवे की ओर झपटी।
ड्राइविंग सीट पर मौजूद लीना को राज ने साफ पहचाना।
अपनी रिवाल्वर ऊपर उठाकर चिल्लाया।
-“ठहरो। वरना शूट कर दूंगा।”
तभी कोई भारी कठोर चीज पीछे से उसकी टांगों से टकराई और वह गली की साइड में औंधे मुंह जा गिरा।
सफेद मारुति उससे बचती हुई दौड़ गई।
राज की पीठ पर दो घुटनों का भारी प्रहार एक साथ हुआ। एक बाँह ने उसकी गरदन जकड़ ली। दूसरी उसकी रिवाल्वर की ओर बढ़ी।
राज ने रिवाल्वर हाथ में थामें रखी। उससे अपने गले पर लिपटी बाँह का प्रहार किया।
पीठ पर लदा आदमी गुर्राया। उसकी पकड़ ढीली पड़ गई।
उसकी बाँह को लीवर की तरह इस्तेमाल करते हुए राज ने उसे अपने कंधों पर लाद लिया।
आदमी काफी भारी था।
उसी अवस्था में घुटनों के बल उठने के लिए राज को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा। लेकिन कोशिश कामयाब रही।
पीठ पर लगा आदमी उसके सर के ऊपर से होता हुआ पीठ के बल आगे आ गिरा। राज ने एक बाँह से उसकी गरदन दबोच ली और दूसरी उसकी टांगों के बीच फंसा दी।
उसने फंसी आवाज में अरेस्ट करने की बात की तब राज को पता चला वह पुलिस की वर्दी में था।
उसे छोड़कर राज ने हाथ से फिसल गई अपनी रिवाल्वर उठा ली फिर जैसे ही वह उठा रिवाल्वर उस पर तान दी।
वह एस. आई. सतीश था- मनोहर का कजिन। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। सांसे उखड़ी हुई थीं।
-“रिवाल्वर मुझे दो।”
-“नहीं, यह मेरे पास ही ठीक है।” राज बोला।
-“बको मत। मैंने तुम्हें उस लड़की पर इसे तानते देखा था।”
-“मैं उसे रोकने की कोशिश कर रहा था।”
-“क्यों?”
-“वह उसी गिरोह में शामिल थी जिसने मनोहर को शूट करके ट्रक उड़ाया था। लेकिन तुमने बड़ी सफाई से उसे भाग जाने दिया।”
-“ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करो...।”
वह आगे आया।
राज ने रिवाल्वर हिलाई।
-“चुपचाप खड़े रहो।”
एस. आई. ठिठक गया।
-“ध्यान से सुनो।” राज बोला- “वह लड़की सैनी की रखैल थी। सैनी अपने ऑफिस में मरा पड़ा है। उसका भेजा उड़ा दिया गया।”
-“क्या उसी पर गोली चलायी जाने की आवाज सुनी गई थी? तुमने ही फोन पर इसकी सूचना दी थी?”
-“नहीं।”
एस. आई. के कठोर चेहरे पर विचारपूर्ण भाव थे।
-“यह एक औ र इत्तिफाक है। मर्डर विक्टिम्स का पता तुम्हें ही कैसे लगता है?”
-“मैं सैनी का पीछा कर रहा था। क्यों कर रहा था। अगर यह जानना चाहते हो तो इन्सपैक्टर से पूछ लेना। कुछ देर पहले मैंने उसे सब बताया है।”
-“तुम झूठ बोल रहे हो। वह बाई पास रोड ब्लाक पर है।”
-“मैंने भी वही बातें की थीं उससे। जहां तक इत्तिफाक की बात है क्या इन्सपैक्टर चौधरी ने पहले भी कभी इस तरह अकेले रोड ब्लॉक पर ड्यूटी दी है?”
-“तुम्हें सवाल पूछने का कोई हक नहीं है। लाओ, रिवाल्वर मुझे दो।”
-“सॉरी। यह मैं नहीं दूंगा। मुझे उस लड़की को तलाश करना है।”
-“तुम कुछ नहीं करोगे। यही रुकोगे।”
एस. आई. ने अपनी सर्विस रिवाल्वर की ओर हाथ बढ़ाया।
राज पहले ही तय कर चुका था उसे क्या करना था। वह न तो एस. आई. को शूट करना चाहता था और न ही उसके द्वारा शूट किया जाना। फुर्ती से आगे बढ़ा और हाथ में थमी रिवाल्वर भड़ाक से उसकी कनपटी पर दे मारी।
एस. आई. के चेहरे पर घोर अविश्वास भरे भाव उत्पन्न हुए फिर उसके घुटने मुड़े और वह चेतना शून्य होकर जमीन पर जा गिरा।
तभी पीछे हल्की सी क्लिक की आवाज सुनकर राज पलटा। जिस काटेज में रोशनी थी उसका दरवाजा खुला। नाइट सूट पहने एक युवक बाहर निकला। नींद में चलता हुआ सा उसकी ओर बड़ा।
नीचे पड़े एस. आई. और आंगतुक नवयुवक के बीच में आकर राज जल्दी से उसके पास पहुंचा।
-“कौन हो तुम?” रोबीले स्वर में बोला।
-“रमन कुमार शर्मा।” युवक हिचकिचाता सा बोला- “आप वही पुलिस आफिसर हैं जिसे मैंने फोन किया था। मैंने गोली चलने की आवाज सुनी थी।”
-“किस वक्त?”
-“करीब डेढ़ बजे। शोर सुनकर मेरी आंखें खुली तो रिस्टवाच पर निगाह चली गई थी। फिर मैंने भागते कदमों की आवाज सुनी थी।”
-“इस तरफ गली की ओर आती हुई?”
-“नहीं। दूसरी तरफ हाईवे की ओर जाती हुई।”
-“कदमों की आहट आदमी की थी या औरत की?”
-“पता नहीं। जब मैं बाहर निकला तो कोई दिखाई नहीं दिया। फिर पब्लिक टेलीफोन से आपको फोन करके काटेज में आकर कम्पोज की एक गोली खा ली। मुझे शॉक जैसा लगा था- अभी उससे उबरा हूं। मैं हौसलामंद नहीं हूं। जल्दी घबरा जाता हूं।”
-“तुम्हारे पास कार है?”
-“हां। सफेद मारुति है। यहीं खड़ी है।”
-“तुम्हें चाबियां उसमें नहीं छोड़नी चाहिए थी। कार चोरी हो गई है।”
युवक को तेज झटका लगा।
-“क्या? ओह, मेरी मम्मी मुझे घर से निकाल देगी।म.....मैं सुबह घर कैसे लौटूंगा.......?”
राज उसे कलपता छोड़कर अपनी कार की ओर दौड़ गया।
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