RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“लॉज कहां है?”
-“मोती झील पर।”
-“मीना अभी भी वहां हो सकती है?”
-“मुझे नहीं लगता। सतीश भी मना कर रहा था। जब मीना सोमवार को काम पर नहीं आई तो वह कार लेकर उसे लेक पर देखने गया था। लेकिन तब तक मीना वहां से जा चुकी थी। कम से कम सतीश ने तो यही कहा था।”
-“इसे चैक किया जाना चाहिए। लॉज में फोन है?”
-“नहीं, उस सुनसान जगह में कोई फोन नहीं है।”
-“मुझे वहां जाकर उसको तलाश करने की इजाजत दे सकती हो?”
-“जरूर।”
-“वहां पहुंचूंगा कैसे?”
उसने बारीकी से समझा दिया। अलीगढ़ से पहाड़ पर करीब दो घंटे की ड्राइविंग से वहां पहुंचा जा सकता था।
-“मैं तुम्हें चाबियां दे दूंगी।”
-“डुप्लीकेट?”
-“नहीं। चाबियों का एक ही सैट है।”
-“वह वापस दे गई थी?”
-“सतीश लाया था- सोमवार रात में। जाहिर है वह चाबियां वहीं छोड़ गई थी।”
-“वह सोमवार को सारा दिन बाहर रहा था?”
-“हां। आधी रात के बाद ही वापस लौटा था।”
-“लेकिन मीना को उसने नहीं देखा?”
-“नहीं। रात उसने तो यही कहा था।”
-“तुम समझती हो, वह सच बोल रहा था?”
-“पता नहीं। मैं बरसों पहले उस पर यकीन करना छोड़ चुकी थी।”
-“तुमने पूछा नहीं, सारा दिन क्या करता रहा था?”
-“नहीं।”
-“तुम्हारे विचार से क्या करता रहा हो सकता था?”
-“पता नहीं।”
वह कमरे से चली गई।
मुश्किल से दो मिनट बाद लौटी। कीरिंग में लटकती दो चाबियां लेकर।
-“यह लो। गुडलक।”
राज ने चाबियां ले लीं।
-“थैंक्यू। बेहतर होगा किसी से भी इस बात का जिक्र मत करना। खासतौर पर पुलिस वालों से।”
-“बृजेश चौधरी से?”
-“हां।”
-“वह भी तुम्हें परेशान कर रहा है?”
-“वह मुझसे नफरत करता है। जब मैं पहली बार उससे मिला था तो वह एक अच्छा आदमी लगा और हमारी पटरी बैठ गई थी। फिर सब गड़बड़ हो गया। वह तुम्हारा दोस्त है। बता सकती हो किस फेर में है?”
-“मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं वह अच्छा आदमी है।” वह तनिक मुस्कराई- “तुम दोनों के बीच जो भी है उसके लिए किसी हद तक तुम भी कसूरवार हो सकते हो।”
-“आमतौर पर मेरा ही कसूर होता है।”
-“शायद उसे तुम्हारा दखल देना पसंद नहीं आ रहा है। क्योंकि वह अपनी जिम्मेदारी को पूरी संजीदगी से निभाने वाला आदमी है। खैर, तुम्हारे बारे में उससे कुछ नहीं कहूंगी। मुझे भी तुम पर भरोसा है......।”
तभी बाहर एक कार रुकने की आवाज सुनाई दी।
मिसेज सैनी खिड़की के पास जा खड़ी हुई।
-“शैतान को याद किया और शैतान हाजिर।” हंसकर बोली।
राज ने भी उसके कंधों के ऊपर से देखा।
चौधरी पुलिस कार से उतर रहा था। उसके साथ एस.आई. सतीश भी था।
मिसेस सैनी राज की ओर पलटी।
-“तुम पिछले दरवाजे से निकल जाओ।”
राज ने वैसा ही किया।
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शहरी सीमा से सकुशल बाहर निकलकर राज ने राहत की सांस ली। साथ ही बेहद थकान और न सो पाने के कारण भारी आलस्य उसने महसूस किए।
दस पंद्रह मिनट बाद उसे एक टूरिस्ट कैम्प नजर आया। कार पार्क करके एक कॉटेज किराए पर ली और कपड़ों समेत बिस्तर पर फैल गया।
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