RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“कोई खास वजह थी?”
-“वह बूढ़ा बेवकूफ और गैरजिम्मेदार है उसने अपनी पोती को सैनी के साथ चली जाने दिया तभी से मैं उससे बात नहीं करती।”
-“सैनी की जिस नई लड़की का जिक्र आपने किया था वह वही है।
-“वह महीना भर पहले सैनी के साथ अलीगढ़ गई थी तब से वापस नहीं लौटी। इसका क्या मतलब है?
राज को अचानक कुछ याद आया।
-“उसका नाम लीना है?”
-“एलीनर। एलीनर डेनियल। लेकिन बूढ़ा उसे लीना कहकर ही पुकारता है।”
-“बूढ़ा डेनियल अभी भी यहीं है?”
-“वह कभी कहीं नहीं जाता। साल में एकाध बार ही नीचे जाता है।”
राज उसे धन्यवाद देकर अपनी कार में सवार होने लगा।
-“एक मिनट ठहरो।” औरत ने टोका।
-“कहिए?”
-“अलीगढ़ में क्या कुछ हो रहा है? रजनी ठीक-ठाक है न?”
-“कुछेक घंटे पहले तक तो थी। अब का पता नहीं...।”
-“और उसका पति वह घटिया आदमी?”
-“वह मर चुका है।”
-“उसी का मर्डर किया गया था?”
-“उसका भी किया गया था।”
-“रजनी का तो इससे कोई संबंध नहीं है?”
-“नहीं।”
-“वाहे गुरु की कृपा है। मुझे उस लड़की से हमेशा लगाव रहा है। हालांकि दो साल से उसकी शक्ल तक नहीं देखी फिर भी उसे भूली नहीं हूं मैं। वह अपने मां-बाप के साथ लॉज में आया करती थी। तब छोटी थी और मुझसे काफी घुल-मिल गई थी।” उसकी आंखों में पुरानी यादों की चमक थी- “वक्त कितनी जल्दी गुजर जाता है और इंसान को कैसे कैसे हालात का सामना करना पड़ता है। रजनी को भी वक्त के हाथों काफी कष्ट उठाने पड़े हैं...।”
-“आप ठीक कहती हैं।”
राज ने एक बार फिर उसे धन्यवाद देकर इंजिन स्टार्ट किया। पम्प की सीमा से निकलकर फीएट गैस्ट हाउस की ओर घुमा दी।
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गैस्ट हाउस की दो मंजिला इमारत काफी लंबी-चौड़ी थी।
सफेद दाढ़ी और बालों वाला एक बूढ़ा पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट फूंक रहा था।
राज फीएट से उतर कर उसके पास पहुंचा।
-“मिस्टर डेनियल?”
बूढ़े ने गौर से उसे देखा।
-“मैं ही हूं। कहिए?”
-“मेरा नाम राज कुमार है। पेशे से प्राइवेट जासूस हूं।” राज गोली देता हुआ बोला- “पुलिस के साथ मिलकर एक गुमशुदा को तलाश कर रहा हूं।”
-“गुमशुदा?”
राज उसके सामने बैठ गया।
-“अलीगढ़ की एक लड़की गायब है।”
-“कौन लड़की? एलीनर तो नहीं?”
-“वह कौन है?”
बूढ़े की झुर्रियों भरे चेहरे पर संदेह के भाव उत्पन्न हुए।
-“मैं नहीं समझता तुम्हारा इससे कोई ताल्लुक है।”
-“ठीक है। जाने दो।” राज ने अभी एलीनर के बारे में बातें न करना ही मुनासिब समझा- “गुमशुदा लड़की का नाम मीना बवेजा है। पिछले शनिवार को सुखवंत कौर ने उसे अपने पैट्रोल पम्प पर देखा था। उसका ख्याल है आप इस मामले में मेरी मदद कर सकते हैं।”
-“वह औरत हमेशा ख्यालों में ही खोई रहती है। खैर, इस मामले का मुझसे क्या ताल्लुक है?”
-“सुखवंत कौर ने सोमवार तीसरे पहर भी इस लड़की को देखा था। लड़की कार में सैनी के साथ थी और वे इस तरफ ही आ रहे थे। आप सतीश सैनी को जानते हैं?”
-“जानता हूं।” बूढ़ा भारी स्वर में बोला- “सोमवार को मैंने भी उन्हें देखा था। वे यहीं से गुजरे थे।”
-“लड़की का हुलिया बता सकते हो?”
-“इतना नजदीक से मैंने उसे नहीं देखा।” बूढ़ा सफेद बालों से भरा अपना सर हिलाकर बोला- “मेरे विचार से वह जवान थी। ब्राउन शलवार सूट पहने थी और सर पर स्कार्फ बांधा हुआ था।”
-“जब आपने यह सब देखा वह कार चला रही थी?”
-“नहीं, यह तो मैंने नहीं देखा। तुम, जबरदस्ती मुझसे यह कहलवाना चाहते हो?”
-“नहीं। माफ कीजिए मुझे ऐसा ही लगा था। खैर, आप बताइए।”
-“मैंने सैनी को कार चलाते हुए देखा था और मैं नहीं जानता था उसके साथ वाली लड़की कौन थी...।” तनिक खांसने के बाद बूढ़ा बोला- “मेरे कहने का मतलब है मुझे सैनी से बदला लेना था- यह मेरा जाति मामला है। मैंने सोचा उसे फटकारने का यही सही मौका था। इस तरफ ज्यादा दूर वह नहीं जा सकता था। यह सड़क आगे जाकर खत्म हो जाती है। इसलिए मैंने उसका पीछा किया- पैदल। वहां तक पहुंचने में काफी देर लगी। कूल्हे में चोट लग जाने के बाद से मैं तेज नहीं चल पाता। एक जमाना था जब एक ही सांस में दूर तक दौड़ता चला जाता था। पहाड़ियों और ऊंची चट्टानों पर चढ़ने में मेरा मुकाबला कोई नहीं कर पाता था....।”
बूढ़े को जवानी की यादों से बाहर लाने के लिए राज ने मीना बवेजा की फोटो जेब से निकालकर उसे दिखाई।
-“यह लड़की थी सैनी के साथ?”
-“हो सकता है।” वह धीरे से बोला- “नहीं भी हो सकता। मैंने तुम्हें बताया था इतनी नजदीक से उसे नहीं देखा। जब मैं पहाड़ी पर पहुंचा तो पेड़ों के बीच से उन्हें देखा। वे गड्ढा खोद रहे थे।”
राज चौंका।
-“क्या कर रहे थे?”
-“चिल्लाओ मत। मैं बहरा नहीं हूं। वे गड्ढा खोद रहे थे।”
-“कैसा गड्ढा?”
-“मामूली। जैसा कि जमीन में खोदा जाता है। यहां शिकार करने पर सख्त पाबंदी है। इसलिए मैंने सोचा उन्होंने गलती से या जानबूझकर कोई हिरन मार डाला था और अब उसे दफना रहे थे ताकि किसी को पता न चल सके। मैं उन पर चिल्लाया। साथ ही मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया। मुझे इंतजार करके चुपचाप उनके पास पहुंचना चाहिए था। लेकिन पिछले कुछेक सालों से बिल्कुल अकेला रह रहा होने के कारण मुझे जल्दी गुस्सा आ जाता है।”
-“खासतौर से सैनी पर?”
-“ओह, तो तुम उसे जानते हो। मेरी आवाज सुनते ही वह कार की ओर दौड़ पड़ा। लड़की भी उसके पीछे भागी। कार थोड़े फासले पर सड़क के पास खड़ी थी। मेरे लिए उन्हें पकड़ पाना नामुमकिन था। मैं गड्ढे के पास गया और उनका फावड़ा उठा लाया। देखना चाहते हो?”
-“मैं वह गड्ढा देखना चाहूंगा। दिखाओगे?”
-“जरूर।”
-“वहां तक कार से जाया जा सकता है?”
-“हां। लेकिन उसमें देखने जैसी कोई बात नहीं। मामूली गड्ढा है।”
-“फिर भी मैं देखना चाहता हूं।”
बूढ़ा खड़ा हो गया।
-“आओ।”
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