RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
बूढ़ा डेनियल गैस्ट हाउस के पीछे कॉटेज में रहता था। राज क्योंकि उससे और पूछताछ करना चाहता था इसलिए उसके साथ वहां पहुंचा।
-“आप सारी सर्दियां यहीं गुजारते हैं?” राज ने बातचीत आरंभ करते हुए पूछा।
-“हां।”
-“अकेले?”
-“इस उम्र में और कौन मेरे साथ रहेगा? वैसे भी बुढ़ापे में अकेले रहने का अपना अलग ही मजा है बशर्तें कि शरीर सही सलामत हो। जवानी में मैंने भी दर्जनों तरह के काम किए हैं। लेकिन शहरी जिंदगी मुझे कभी रास नहीं आई। दूर दराज के कस्बे और गांव ही ज्यादा पसंद है। खासतौर पर पहाड़ी। मैं पहाड़ों का रहने वाला हूं।”
-"आपने शादी नहीं की?”
-“की थी। बाइस साल पहले पत्नी का देहांत हो गया।”
-“कोई औलाद नहीं थी?”
-“एक बेटा था। आज अगर जिंदा होता तो पेंतालीस साल का होना था। ट्रक चलाता था। एक रोज एक्सीडेंट में मारा गया। उसने मेरी मर्जी के खिलाफ एक आवारा लड़की से शादी कर ली थी और घर छोड़कर चला गया।” बूढ़ा अपनी यादों के पन्ने पलटता हुआ सा बोला- “उसकी मौत के बाद उस लड़की ने दूसरी शादी कर ली। इस तरह लीना को न तो मां-बाप का प्यार मिल सका और न ही सही परवरिश। जब उसे पढ़ाई करनी चाहिए थी तब वह सड़कों पर भटकती रहती थी।”
बूढ़ा अपने आप ही लाइन पर आ गया था।
-“आप अपनी पोती की बात कर रहे हैं?” राज ने जानबूझकर टोका।
-“हां।”
-“वह अब कहां है?”
-“आजकल अलीगढ़ में है। तुम भी तो वहीं से आए हो। उसे जानते हो?”
-“हो सकता है। क्या नाम है उसका?”
-“शादी के बाद उसका पूरा नाम मुझे याद नहीं है। वैसे उसका नाम एलीनर डेनियल था। लेकिन खुद को लीना बताती है। यह फैंसी नाम है- स्टेज आर्टिस्टो जैसा। वह प्रोफेशनल सिंगर बनना चाहती है। तुम अलीगढ़ के रॉयल क्लब में गए हो?”
-“हां।”
-“तब तो वहां उसका गाना भी सुना होगा?”
-“नहीं। लेकिन मैं उससे मिल चुका हूं।”
बूढ़े ने उत्सुकतापूर्वक उसे देखा।
-“उस क्लब के बारे में तुम्हारा ख्याल है। घटिया सी जगह है न?”
-“हां।”
-“मैंने भी लीना को यही समझाया था। किसी नई शादीशुदा लड़की के काम करने लायक जगह वो नहीं है। भला बार में गाना भी कोई काम है। ऐसी घटिया बार में गाने से कोई सिंगर नहीं बन सकता। बार जितनी घटिया है उसका मालिक सैनी उससे भी कहीं ज्यादा घटिया है। मैंने बहुत समझाया मगर लीना ने मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैं बूढ़ा हूं और वह एकदम जवान है। उसकी निगाहों में मैं बेवकूफ और सनकी हूं। हो सकता है, मैं ऐसा ही हूं लेकिन उसकी फिक्र किए बगैर तो मैं नहीं रह सकता। आखिरकार वह मेरे परिवार की आखिरी निशानी है।”
-“आप ठीक कहते हैं।”
-“जब तुमने उसे देखा वह ठीक थी न?”
-“वह सिंगर बनना चाहती है।” राज उसके सवाल के जवाब को गोल करता हुआ बोला- “क्या उसने संगीत सीखा है?”
-“मुझे नहीं लगता उसने बाकायदा तालीम हासिल की है। लेकिन गाती बहुत अच्छा है। मुझे हिंदी फिल्मों के पुराने गाने पसंद है। मेरे कहने पर सुरैया और शमशाद बेगम के कई गाने उसने सुनाए थे।”
-“यह कब की बात है?”
-“पिछले महीने की। वह पहली दिसंबर के आसपास यहां आई थी। अपने पति को भी साथ लायी थी। तुम उसके पति को भी जानते हो?”
-“क्या नाम है उसका?”
-“नाम तो याद नहीं आ रहा।”
-“देखने में कैसा है?”
-“नौजवान है। लेकिन मुझे पसंद नहीं आया। हर वक्त काला विंडचीटर पहने रहता है....।”
-“जौनी?”
-“हां यही नाम है। जानते हो उसे?”
-“कुछ खास नहीं।”
-“कैसा लड़का है?”
राज तय नहीं कर सका क्या जवाब दें।
-“मैं इसलिए पूछ रहा हूं।” बूढ़े ने कहा- “क्योंकि उसका व्यवहार ऐसा नहीं था जैसा एक जवान पति का अपने हनीमून पर होना चाहिए।”
-“वे हनीमून मनाने आए थे?”
-“उन्होंने कहा तो यही था।”
-“लेकिन आपको इस पर यकीन नहीं है?”
-“मुझे तो इस पर भी यकीन नहीं है कि वे दोनों पति पत्नि थे या सही ढंग से शादी भी की थी। उनमें न तो नए शादी शुदा जोड़े वाला जोश, उमंग और खुशी थी और न ही वह लीना को वो प्यार और इज्जत देता नजर आया जो कि देना चाहिए थी। खैर, अब उनमें सही निभ रही है?”
-“पता नहीं। मैं बस इतना जानता हूं कि कोई भला आदमी वह नहीं है। मेरे चेहरे की हालत देख रहे हो?”
-“हां तुम्हारे आते ही देख ली थी। लेकिन इस बारे में पूछना मुनासिब नहीं समझा।”
-“यह जौनी की वजह से ही हुई थी।”
-“तुम्हारा मतलब है, उसने की थी?”
-“हां।”
-“वह खतरनाक और मारामारी वाला आदमी ही है।”
-“आपके साथ भी हाथापाई की थी?”
-“इतना मौका ही उसे नहीं मिला।” बूढ़े का स्वर कठोर हो गया- “इससे पहले कि वह मेरे साथ ऐसी हरकत करने की कोशिश करता मैंने उसका सामान उठाकर बाहर फेंक दिया। लेकिन कुछ देर के लिए ऐसा माहौल जरूर बन गया था।”
-“क्या हुआ था?”
-“उस रोज मैं अपने कपड़े धो रहा था। वे दोनों बाहर कहीं गए हुए थे। मैंने यह सोचकर उनका सूटकेस खोला कि अगर उसमें मैले कपड़े हों तो उन्हें भी धो दूंगा। उसकी दो मैली कमीजें मिलीं। उन्हें निकालकर हिलाते ही उनमें लिपटी पिस्तौल निकलकर नीचे जा गिरी। उसके बारे में मेरा शक मजबूत हो गया कि वह शरीफ आदमी नहीं था। कुछ और टटोलने पर सूटकेस में नोट भी मिले।”
-“नोट?”
-“बैंक नोट। रुपए। पुराने अखबार में लिपटे बहुत सारे रुपए थे। पांचसों के नोटों की तीसेक गड्डीयाँ रही होंगी। मेरी अक्ल चकराकर रह गई। जिस आदमी के पास ढंग के चार जोड़ी कपड़े तक नहीं थे। जो शक्ल से ही फटीचर नजर आता था उसी के पास करीब पन्द्रह लाख रुपए नगद थे। उस रकम ने मेरा शक यकीन में बदल दिया कि वह कोई डाकू या लुटेरा था।”
राज की उत्सुकता अपनी चरम सीमा पर थी।
-“फिर आपने क्या किया?”
-“जब वे दोनों वापस आए मैंने रकम और पिस्तौल के बारे में उससे पूछा।”
-“क्या?” आपको डर नहीं लगा?”
-“नहीं।” मैंने अपने बचाव का पूरा इंतजाम कर लिया था। गैस्ट हाउस के मालिकों ने मुझे एक दोनाली बंदूक दे रखी है। उससे बातें करते वक्त मैंने बंदूक को लोड करके अपने घुटनों पर रख लिया था। मेरे पूछते ही उसकी आंखों में खून उतर आया जैसे मेरी जान लेना चाहता था। मगर बंदूक के डर से मेरे पास तक नहीं आया।”
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