RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“हालांकि कोई इल्जाम तो मुझ पर नहीं लगाया मगर उसका व्यवहार अजीब था। किसी ऐसे आदमी जैसा जिसे मैं बिल्कुल नहीं जानती और जो मुझे नहीं जानता। एकदम अजनबियों की तरह पेश आया था वह। और उसका मातहत एस. आई.।
-“सतीश।?”
-“हां। वह तुम्हारी जान लेने की धमकी दे रहा था। उसका कहना था, तुम्हें देखते ही गोली मार देगा। बृजेश ने उसे शांत कराने की कोशिश तक नहीं की। बस चुपचाप खड़ा रहा।”
-“तुम्हारे डरने की वजह यही थी?”
-“हां। मेरी समझ में नहीं आया एक ईमानदार अफसर होते हुए भी बृजेश ने अपने मातहत की इतनी गलत और गैर जिम्मेदाराना बात बर्दाश्त कैसे कर ली।”
-“हो सकता है इतना ईमानदार वह नहीं है जितना तुम उसे समझती हो....।”
-“नहीं। उसकी ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता।”
-“इस बारे में तुमसे बहस मैं नहीं करूंगा। इन्सपैक्टर चौधरी की खामोशी का मतलब था- अपने मातहत के उस हरादे से वह खुद भी सहमत था।”
-“लेकिन क्यों?”
-“यह मेरी सरदर्दी है। तुमसे कुछेक और सवाल मैं करना चाहता हूं।”
-“बृजेश के बारे में?”
-“नहीं। तुम्हारे पति और मीना बवेजा के बारे में।”
-“क्या?”
-“तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?”
-“नहीं।”
-“क्या उन दोनों में अभी भी आशनाई थी?”
-“मुझे तो नहीं लगता।”
-“क्यों?”
-“उसने मुझे बताया था कि मीना के साथ उसके ताल्लुकात महीनों पहले खत्म हो गए थे। पहले तो मुझे इस बात पर यकीन नहीं आया लेकिन जब मैंने मोटल में उन्हें साथ-साथ देखा तो उनके आपसी व्यवहार से मुझे ऐसा नहीं लगा...।”
-“कि वे अभी भी प्रेमी प्रेमिका थे?”
-“हां।”
-“मान लो तुम्हारा अंदाजा सही था तो तुम्हारे विचार से उनके ताल्लुकात खत्म होने की क्या वजह रही हो सकती थी?”
-“वह मीना से ऊब गया होगा- किसी भी औरत के साथ ज्यादा देर चिपके रहना उसकी आदत नहीं थी। या फिर मीना उससे ऊब गई होगी।” उसकी आंखों में नफरत भरे भाव थे- “इस मामले में मीना भी वैसी ही थी जैसा वह था।”
-“लेकिन जिस्मानी ताल्लुकात खत्म होने के बाद भी उनमें दोस्ती थी?”
-“वो तो जाहिर ही है। पिछले हफ्ते तक मीना उसके लिए काम करती रही थी।”
-“तुम मीना को अच्छी तरह जानती हो?”
-“हां।”
-“कितनी अच्छी तरह?”
-“इतनी ज्यादा अच्छी तरह कि जब मुझे अपने आप पर अफसोस नहीं होता तो उस पर अफसोस होता है। मैं उसे बरसों से जानती हूं। जब वह दसवीं क्लास में थी मैं बी.ए. में थी। मीना उन दिनों भी बदनाम थी।”
-“तब कितनी उम्र रही होगी उसकी?”
-“पंद्रह-सोलह साल। तब भी लड़कों के पीछे पागल रहती थी। लेकिन इस सबके लिए सिर्फ उसी को दोष नहीं दिया जा सकता। वह बहुत ज्यादा खूबसूरत थी और इतनी ज्यादा तेजी से जवान हुई कि पंद्रह-सोलह की उम्र में ही पूरी तरह विकसित औरत लगती थी। उसकी घरेलू जिंदगी भी अच्छी नहीं थी। उसकी मां बहुत पहले मर चुकी थी और बाप दरिंदा था- पूरी तरह दरिंदा।”
-“तुमने उनकी पूरी स्टडी की लगती है।”
-“मैंने नहीं, मेरे पिता ने की थी। डैडी को मीना और उसके परिवार की बहुत ज्यादा फिक्र रहती थी। इस बारे में मुझसे अक्सर बातें किया करते थे। उन दिनों वह किशोरों की अदालत के भी जज थे। मीना का केस भी उनकी अदालत में आया था और उन्हें तय करना था उस सबके बाद मीना का क्या किया जाए।”
-“ऐसा क्या हुआ था?”
उसने सर झुका लिया।
-“मीना के बाप पर शैतान सवार हो गया था।”
-“तुम्हारा मतलब है, बवेजा ने अपनी ही बेटी के साथ.....।”
-“हां।”
-“तो फिर बवेजा को तो जेल में होना चाहिए था।”
-“काश ऐसा हो जाता।”
-“ऐसा हुआ क्यों नहीं?”
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