RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मीना ने अदालत में अपना बयान बदल दिया। बाप पर सीधा इल्जाम नहीं लगाया। क्योंकि उसका बाप पूरी तरह कामयाब नहीं हो सका था इसलिए मीना की डॉक्टरी जांच में भी कुछ नहीं आया। उस वक्त घर में कोई और नहीं था इसलिए मीना के साथ हुई वारदात का गवाह भी कोई नहीं था। नतीजतन सही मायने में कोई केस बवेजा के खिलाफ नहीं बन सका। लेकिन मीना की आइंदा हिफाजत के लिए उसे उसके बाप के साथ घर में न रहने देने का फैसला किया गया। तभी कौशल ने उसकी बहन से शादी कर ली और वे दोनों मीना को अपने साथ रखने लगे। मीना कई साल तक उनके साथ रही। फिर कभी कोई झमेला उसके साथ नहीं हुआ... कम से कम कानूनी तौर पर।”
-“अभी तक।”
अचानक वह पलटकर लॉज की ओर जाती सड़क को देखने लगी।
-“मेरे साथ लॉज में नहीं चलोगे?
-“किसलिए?”
मैं देखना चाहती हूं वो किस हालत में है।”
-“किसलिए?”
-“उसे बेचना चाहती हूं।”
-“बेहतर होगा उससे दूर ही रहो।”
-“क्यों? क्या उसकी लाश...?”
-“ऐसा कुछ नहीं है। तुम्हें वहां जाकर ठीक नहीं लगेगा। अच्छा होगा की चाबियां मुझे लौटा दो।”
-“क्यों? चाबियों का तुम क्या करोगे?”
-“बाद में बताऊंगा।”
उसने अपने हैंडबैग से निकालकर चाबियां दे दीं।
-“धन्यवाद।” राज ने कहा- “मैं यह चाबियां अलीगढ़ के किसी ईमानदार पुलिस वाले को सौपूंगा। तुम किसी ईमानदार पुलिस वाले को जानती हो?”
-“मैं तो कौशल को ईमानदार समझती थी। अभी भी समझती हूं। अगर तुम्हें उस पर भरोसा नहीं है तो समरसिंह चौधरी के पास चले जाना।”
-“एस. एच.ओ. के?”
-“हां।”
-“तुम्हें भरोसा है उस पर?”
-“हां। लेकिन....।”
-“लेकिन क्या?”
-“तुम्हारा वापस शहर लौटना तुम्हारे हक में ठीक रहेगा?”
-“पता नहीं। अलबत्ता दिलचस्प जरूर रहेगा।”
-“यह जानते हुए भी कि वहां की पुलिस तुम्हारी दुश्मन है?”
-“हां।”
-“तुम बहादुर आदमी हो।”
-“तारीफ के लिए शुक्रिया। मैं गुंडों और बदमाशों की मनमानी बर्दाश्त नहीं कर सकता।”
-“तुम उन्हें कानून के हाथों से बचने नहीं दोगे?”
-“नहीं।”
रजनी ने उसका चेहरा हाथों में थाम कर उसके होठों पर चुंबन जड़ दिया।
सीने पर पड़ते उसके वक्षों के दबाव से राज ने महसूस किया रजनी का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसकी बाहें रजनी की पीठ पर कसने के लिए बढ़ी तो वह उसे धकेलकर दूर खिसक गई।
राज जिप्सी से उतरकर अपनी फीएट की ओर बढ़ गया।
दोनों कारें आगे-पीछे अलीगढ़ की ओर दौड़ने लगीं।
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