RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मेरा ख्याल है, कौशल ने उसकी जिंदगी इतनी ज्यादा नर्क बना दी थी कि वह बर्दाश्त नहीं कर सकी। मैं किसी औरत को कभी नहीं समझ पाया। जहां तक मेरी बेटियों का सवाल है उनसे तो बात करना भी दूभर है। उनसे मेरी राय कभी नहीं मिली। हमारे बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा है।”
-“तुम्हारे विचार से वह कहां हो सकती है?”
-“पता नहीं।”
-“क्या वह तुम्हारे घर हो सकती है?”
-“पता नहीं।”
-“ट्राई करो।”
बवेजा ने पुनः रिसीवर उठाकर नंबर डायल किया।
-“रंजना?” चंद क्षणोंपरांत हैरानी भरे स्वर में बोला- “तुम वहां क्या कर रही हो.....नहीं, ठहरो, मैं तुमसे बात करना चाहता हूं.....राज भी तुम्हें कुछ दिखाना चाहता है.....हम आ रहे हैं।”
उसने संबंध विच्छेद कर दिया।
-“आओ।”
राज उसके साथ ऑफिस से निकला। फीएट में सवार होकर बवेजा की कार के पीछे ड्राइव करने लगा।
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दिन की रोशनी में बवेजा का निवास स्थान और भी ज्यादा मनहूस नजर आ रहा था।
बवेजा सहित प्रवेश द्वार की ओर जाते राज ने सोचा अगर इस भूतिया घर की खातिर रंजना ने अपने पति का घर छोड़ दिया तो जरूर उस घर में कोई भारी गड़बड़ रही होगी। इसका सीधा सा मतलब था- उसकी विवाहित जिंदगी सुखी नहीं थी।
दस्तक के जवाब में रंजना ने दरवाजा खोला।
बवेजा ने सर से पांव उसे घूरा। बगैर कुछ बोले उसकी बगल से गुजरकर अंदर चला गया।
दरवाजे में खड़ी रंजना की हालत से जाहिर था उसकी रात बहुत बुरी गुजरी थी। धुंधलाई सी सूनी आंखों के नीचे छाईयां नजर आ रही थीं। जबरन पैदा की मुस्कराहट में फीकापन था।
-“आइए।”
राज ने अंदर प्रवेश किया।
ड्राइंग रूम की ओर जाती रंजना की चाल में हिचकिचाहट सी थी। राज को लगा मानो पूरी तरह जवान औरत की बजाय वह एक ऐसी सहमी सी छोटी लड़की के पीछे चल रहा था जिसे दुनिया में हर तरफ खतरा ही खतरा नजर आता था।
राज सोफे पर बैठ गया। कमरा साफ-सुथरा और प्रत्येक चीज व्यवस्थित नजर आ रही थी। स्पष्ट था रंजना वहां सफाई, झाड़पोंछ वगैरा कर चुकी थी।
लेकिन बवेजा इस ओर ध्यान देता प्रतीत नहीं हुआ।
रंजना ने धूल भरे हाथ एप्रन पर रगड़कर फटाकार भरी निगाहों से अपने बाप को देखा।
-“मैंने तुम्हारे घर की सफाई कर दी है।”
-“तुम्हें यहां रहकर मेरे घर को संभालने की जरूरत नहीं है।” बेटी की ओर देखे बगैर बवेजा बोला- बेहतर होगा अपने घर जाकर अपने पति को संभालो।”
-“मैं वापस नहीं जाऊंगी।” वह तीव्र स्वर में बोली- “अगर तुम नहीं चाहते मैं यहां रहूं तो चली जाऊंगी और अपने लिए कोई ठिकाना ढूंढ लूंगी- मीना की तरह।”
-“मीना को बीच में मत लाओ।”
-“क्यों?”
-“उसकी कहानी अलग है।”
-“कैसे?”
-“उसका कोई स्थाई बंधन नहीं है और वह सैल्फ सपोर्टिंग है।”
-“अगर मुझे यहां नहीं रहने दोगे तो मैं भी खुद को सपोर्ट कर सकती हूं।”
-“ऐसी बात नहीं है।”
-“फिर कैसी बात है?”
-“अगर तुम यहां रहने का फैसला कर ही चुकी हो तो मुझे कोई एतराज नहीं है। लेकिन लोग क्या कहेंगे?”
-“कौन लोग?”
-“इस शहर में रहने वाले। पुलिस विभाग में और शहर में कौशल की इज्जत है। अगर तुम इस तरह अपना परिवार तोड़ दोगी तो लोग तरह-तरह की बातें बनाएंगे।”
-“मेरा कोई परिवार नहीं है।”
-“अगर तुम चाहती तो परिवार बना सकती थी। अभी भी बना सकती हो। बूढ़ी तो नहीं हो गई हो।”
-“तुम इस बारे में कुछ नहीं जानते। मैं वापस नहीं जाऊंगी। यह मेरा आखिरी फैसला है। आखिरकार जिंदगी मेरी है।”
-“यह उसकी जिंदगी भी है तुम उसे तबाह कर रही हो।”
-“उसने ख़ुद अपनी तबाही का सामान किया है। वह अपनी जिंदगी का जो चाहे कर सकता है। मैं मिल्कियत नहीं हूं उसकी या किसी और की।”
बवेजा हैरान सा नजर आया।
-“तुमने पहले तो कभी इस तरह की बातें नहीं कीं।”
-“कौशल ने भी पहले कभी ऐसा नहीं किया।”
-“क्यों? ऐसा क्या किया उसने?”
-“रंजना की आंखों में आंसू छलक आए।”
-“यह तुम्हें नहीं बताऊंगी मैं......मैं शर्मिंदगी उठाना नहीं चाहती।” क्षणिक मौन के पश्चात बोली- “तुम हमेशा मीना और मेरे पीछे पड़े रहते थे कि यहां आकर घर की देखभाल करें। अब जबकि मैं ऐसा कर रही हूं तो तुम खुश नहीं हो। मेरा कोई भी काम तुम्हें अच्छा नहीं लगता।”
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