RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“नहीं! नहीं! वह एक गई गुजरी बात थी। उसके बाद मीना को हाथ तक मैंने नहीं लगाया।”
-“तुमने कहा था कि उसे गन दी थी। क्या यह सच है?”
-“बिल्कुल सच है। मैंने उसे एक पुरानी गन दी थी। क्योंकि वह मनोहर से डरती थी। उसकी हत्या अगर किसी ने की थी तो मनोहर ने ही की थी।”
-“और मनोहर की हत्या किसने की?”
-“मैंने नहीं कि। अगर तुम समझते हो मैंने अपने ही ड्राइवर की जान ली है तो तुम पागल हो।” बवेजा की गरदन की नसें तन गई- “तुम्हारा यह रवैया मुझे जरा भी पसंद नहीं आया है.....।”
-“जहन्नुम में जाओ।”
दरवाजे की ओर बढ़ते राज ने देखा रंजना वहां नहीं थी। तभी प्रवेश द्वार बंद किए जाने की आवाज सुनाई दी। राज उधर ही दौड़ गया।
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रंजना लान में जाती दिखाई दी।
राज उसके पीछे लपका।
कदमों की आहट सुनकर रंजना ने पीछे देखा। फिर पलटकर भाग खड़ी हुई।
अचानक उसका पैर घास में उलझा। वह नीचे जा गिरी।
राज ने उसे उठाया। उसे सहारा दिए रखने के लिए पीठ में बांह डाल दी।
-“कहां जा रही हो?”
-“पता नहीं। यहां उसके साथ में नहीं रह सकती। मुझे उससे डर लगता है।” रंजना की तेज चलती सांसों के साथ हिलते वक्ष राज के सीने से रगड़ रहे थे- “वह शैतान है। मुझसे नफरत करता है। हम दोनों से ही नफरत करता था। शुरू से ही जब से हम पैदा हुई थी। मुझे वो दिन याद है जब मीना पैदा हुई थी। मेरी मां मर रही थी। लेकिन यह शैतान उसे कसाई जैसी आंखों से घूर रहा था। क्योंकि यह बेटा चाहता था और वह इसे बेटा नहीं दे सकी। मैं भी मर जाती तो खुश होता। मैं बेवकूफ थी। मुझे यहां आना ही नहीं चाहिए था।”
-“तुम अपने पति को क्यों छोड़ आई?”
-“उसने मुझे धमकी दी थी अगर उसके घर से बाहर निकली तो मुझे जान से मार देगा। लेकिन यहां ठहरने की बजाय कहीं भी रहना बेहतर होगा।”
तभी एक कार गेट के भीतर दाखिल हुई।
वो पुलिस कार थी। ड्राइविंग सीट पर इन्सपैक्टर चौधरी बैठा था।
-“कौशल।” रंजना के मुंह से निकला। उसका चेहरा सफेद पड़ गया था। आंखें दहशत से फैल गईं।
राज स्तब्ध सा रह गया।
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