RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“तुम्हारी जिंदगी में सैनी ही अकेला आदमी था? मेरा मतलब है, क्या तुमने कभी किसी से प्यार नहीं किया?”
रजनी ने सर झुका लिया।
-“किया था।”
-“सैनी से पहले?”
-“हां।”
-“वह भी तुमसे प्यार करता था?”
-“हां।”
-“उसी आर्मी ऑफिसर की बात कर रही हो जो कश्मीर में मारा गया था?”
-“नहीं।”
-“फिर वह कौन बदकिस्मत था जिसने तुम्हें ठुकरा दिया?”
-“बदकिस्मत वह नहीं मैं थी। उसे किसी और से शादी करनी पड़ी।”
राज चकराया।
-“लेकिन तुमने तो कहा है, वह भी तुमसे प्यार करता था।”
-“यह सही है। लेकिन उसके सामने हालात ही ऐसे पैदा हो गए थे।”
-“वह तुम्हारा पहला प्यार था?”
-“हां।”
-“सुना है पहला प्यार कभी नहीं भुलाया जा सकता। तुम अभी भी उसे याद करती हो?”
-“अब इन सब बातों को दोहराने से कोई फायदा नहीं है।”
रजनी ने भारी व्यथीत स्वर में कहा- “जो गुजर गया तो गुजर गया।”
-“क्या वह अपनी पत्नि के साथ सुखी है?”
रजनी ने जवाब नहीं दिया।
-“अच्छा, आखरी सवाल। क्या वह इसी शहर का है?”
रजनी ने गहरी सांस लेकर यूं उसे देखा मानो कह रही थी- बस करो, प्लीज, क्यों मेरे जख्मों को कुरेद रहे हो।
तभी डोर बैल की आवाज गूंजी।
रजनी उठकर दरवाजे की ओर बढ़ गई।
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आगंतुक बूढ़ा डेनियल ही था। दोनाली बंदूक कंधे पर लटकाए वह ड्राइंग रूम के बाहर ही रुक गया।
राज उठकर उसके पास पहुंचा।
-“मैं तुमसे अकेले में बातें करने आया हूं।” बूढ़े ने कहा- “आओ बाहर तुम्हारी कार में बैठते हैं।”
-“ठीक है।”
दोनों हवेली से बाहर आ गए।
-“लीना मेरे पास आई थी।” फीएट की अगली सीट पर बैठते ही बूढ़ा बोला।
-“अब कहां है?” राज ने बेसब्री से पूछा- “झील पर?”
-“नहीं, चली गई।”
-“कहां?”
-“वह सारा दिन जौनी की तलाश में पहाड़ों में धक्के खाती रही है। बेहद परेशान और थकी हारी सी थी। मैंने उसे अपने पास रोकने की बहुत कोशिश की मगर वह नहीं मानी।”
-“तो फिर आई किसलिए थी?”
-“प्रतापगढ़ का रास्ता पूछने।”
-“प्रतापगढ़?”
-“ऐसा लगता है जौनी वही है और वह उसे ढूंढने गई है।”
-“यह लीना ने बताया था?”
-“नहीं, उसने यह नहीं कहा वह वहां है। यह नतीजा मैंने निकाला है। सितंबर में जब वे दोनों मेरे पास आए थे मैंने ही उसे बताया था मैं प्रतापगढ़ का रहने वाला हूं- वो अलग-थलग सा एक पहाड़ी गांव है। जौनी ने काफी दिलचस्पी दिखाई और देर तक उसी के बारे में पूछता रहा। मुझे यह बात पहले ही याद आ जानी चाहिए थी- जब झील पर तुमसे बातें कर रहा था।”
-“जौनी ने प्रतापगढ़ के बारे में क्या पूछा था?”
-“कहां है, वहां कैसे पहुंचा जा सकता है बगैरा।”
-“आपने बता दिया?”
-“तब तक इसमें कोई बुराई मुझे नजर नहीं आई थी। प्रतापगढ़ यहां से करीब डेढ़ सौ मील दूर है। हाईवे पर झील की ओर न मुड़कर सीधे चले जाने पर एक छोटा सा कस्बा आता है- इमामबाद। वहां से दस-बारह मील दूर पहाड़ियों में है- प्रतापगढ़।”
-“वहां तक सड़क जाती है?”
-“जौनी भी यही जानना चाहता था। उसका कहना था वह मेरे पुश्तैनी गांव को जरुर देखेगा। सड़क ठीक ही होनी चाहिए लेकिन उस पर जगह-जगह खतरनाक मोड़ और ढलान है।”
-“उस सड़क पर ट्रक ले जाया जा सकता है?”
-“बिल्कुल ले जाया जा सकता है।”
-“और लीना अब उधर ही गई है?”
-“उधर ही गई होनी चाहिए। वह मुझसे बाकायदा नक्शा बनवाकर ले गई थी- वहां तक पहुंचने के लिए।”
-“मेरे लिए भी नक्शा बना दोगे?”
-“नहीं।”
-“क्यों?”
बुढ़ा मुस्कराया।
-“इसलिए कि मैं तुम्हारे साथ चल रहा हूं। मुझमें ज्यादा ताकत और चुस्ती फुर्ती तो नहीं है मगर अपनी हिफाजत अपने आप कर सकता हूं।”
राज ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की।
-“आप यहां आए कैसे थे?”
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