RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“फॉरेस्ट ऑफिस की यहां आ रही एक जीप में लिफ्ट लेकर।”
-“ठीक है। मैं रजनी से विदा लेकर आता हूं।”
राज कार से उतरकर हवेली के दरवाजे की ओर बढ़ गया।
*************
शाम घिरनी शुरू हो गई थी।
फीएट शहर से बाहर हाईवे की ओर दौड़ रही थी।
-“आपने मेरे पास आने का फैसला कैसे किया?”
राज ने पूछा।
-“तुम भले आदमी लगते हो। होशियार और हौसलामंद भी। इसलिए तुम पर भरोसा कर लिया। वैसे भी लीना की मदद करने के लिए किसी की मदद तो लेनी ही थी।”
-“मुझसे जो हो सकेगा आप की पोती के लिए करूंगा।”
-“लीना बदमाशों के बीच फंस गई है। मैं चुपचाप बैठा उसे तबाह होती नहीं देख सकता। आज जब वह मेरे पास आई थी। धूल और पसीने से लथ-पथ थी। चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। उससे नाराज होने के बावजूद मेरा दिल पसीज गया और उसकी मदद करने का फैसला कर लिया।”
-“फिक्र मत करो सब ठीक हो जाएगा।”
बूढ़ा सीट में पसर गया। वह पहली बार तनिक राहत महसूस करता नजर आया। राज खामोशी से कार दौड़ाता रहा।
करीब दो घंटे बाद।
एक स्थान पर रुककर उन्होंने खाना खाया। फीएट में पैट्रोल भरवाया और पहियों में हवा चैक करायी।
सफर फिर शुरू हो गया।
लगभग एक घंटे बाद बूढ़े ने घोषणा की।
-“इमामबाद आने वाला है।”
वो सचमुच एक छोटा सा कस्बा निकला। आशा के अनुरूप पैट्रोल पम्प की सुविधा वहां मौजूद थी।
राज ने वहीं ले जाकर कार रोकी।
पम्प अटेंडेंट युवक था।
जब वह फीएट में पैट्रोल डाल चुका तो राज ने कीमत चुकाकर बातचीत आरंभ की।
-“क्या तुम दो सौ रुपए कमाना चाहते हो?”
युवक ने गौर से उसे देखा फिर मुस्करा दिया।
-“नहीं।”
-“क्यों?”
युवक की मुस्कराहट गहरी हो गई।
-“क्योंकि आजकल की महंगाई में दो सौ से कुछ नहीं बनता।”
-“फिर कितने से बनता है?”
-“कम से कम पांच सौ से।”
-“ठीक है।” राज ने जौनी का हुलिया बताकर पूछा- “ऐसे किसी आदमी को इस इलाके में देखा है?”
युवक ने संदेहपूर्वक उसे देखा।
-“आप कौन है?”
-“घबराओ मत। मैं एक प्रेस रिपोर्टर हूं।” राज ने कहा और अपना प्रेस कार्ड उसे दिखाया।
युवक निश्चिंत नजर आया।
-“इस हफ्ते नहीं देखा।”
-“लेकिन देखा था?”
-“अगर वह वाकई वही आदमी है जो कि मैं समझ रहा हूं तो जरूर देखा था। पिछले महीने कई बार यहां आया था- पैट्रोल लेने। इस बार कुछ देर यहां रुककर गया था।”
-“क्या वाहन था उसके पास?”
-“लाल मारुति।”
बूढ़े ने राज को कोहनी से टहोका लगाया।
-“वही है।”
-“कहां ठहरा हुआ था?” राज ने पूछा।
-“यह तो उसने नहीं बताया। लेकिन पहाड़ियों में ही कहीं ठहरा होगा। जब वह पहली बार आया था तो जनरल स्टोर से काफी शापिंग की थी। स्टोव, कुछेक बरतन, खाने-पीने का सामान वगैरा। उसने बताया कि किसी रिसर्च के सिलसिले में आया था। लेकिन मुझे तो कोई खास पढ़ा-लिखा वह नजर नहीं आया.....।”
-“आखरी दफा कब आया था?”
-“पिछले हफ्ते बुधवार या वीरवार को। उस दफा वह इतनी जल्दी में था कि रुका नहीं। कौन है वह? यहां क्या कर रहा था?”
-“छिपा हुआ था।”
-“किससे? पुलिस से?”
-“हो सकता है। मैंने सुना है कल रात चार बजे वह एल्युमीनियम पेंट वाला ट्रक लेकर यहां से गुजरा था।”
-“गुजरा होगा। यह पम्प रात में दस बजे बंद हो जाता है और सुबह सात बजे खुलता है।”
-“आज शाम सफेद मारुति में एक खूबसूरत लड़की को तो देखा होगा।”
- “वह करीब दो घंटे पहले गुजरी थी। यहां नहीं रुकी।”
-“प्रतापगढ़ की सड़क खुली है?” बूढ़े ने राज के ऊपर से झुककर पूछा।
-“खुली होनी चाहिए। अभी यहां बर्फ तो गिरी नहीं है.......ओह, याद आया, वो सड़क खुली है। आज एक ट्रक वहां गया था।”
-“एल्युमीनियम पेंट वाला?”
-“नहीं, नीला था। बड़ा बंद ट्रक। आज करीब चार बजे गया था। दिन में उस सड़क का एक हिस्सा यहां से दिखता है।”
राज ने पांच सौ रुपए उसे दे दिए।
-“अगर आप लोग प्रतापगढ़ जा रहे हैं।” युवक नोट जेब में ठूँसता हुआ बोला- “तो सावधान रहना। ढलान और मोड बहुत खतरनाक है उस सड़क पर।”
राज कार को घुमाकर वापस सड़क पर ले आया।
-“लीना वही है।” बूढ़े ने कहा।
-“अकेली वह नहीं है। और लोग भी हैं।
*****************
|