RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
वो स्थान मोती झील से दूर था।
जब वहां पहुंचे सूर्योदय हो चुका था।
जौनी लीना के कंधे पर सर रखे सो रहा था।
राज ने एक हाथ से झंझोड़कर उसे जगाया।
वह हड़बड़ाता हुआ सीधा बैठ गया। तनिक खुली आंखों से सामने और दाएं-बाएं देखा। जब उसे यकीन हो गया सही रास्ते पर जा रहे थे तो उस स्थान विशेष के बारे में बताने लगा।
राज उसके निर्देशानुसार कार चलाता रहा।
-“बस यहीं रोक दो।” अंत में जौनी ने कहा।
राज ने कार रोक दी।
जौनी ने उंगली से पेड़ों के झुरमुट की ओर इशारा किया।
-“वहां है?”
बूढ़े को उस पर बंदूक ताने रखने के लिए कहकर राज नीचे उतरा।
झुरमुट में पहुंचते ही कार दिखाई दे गई। कार खाली थी।
राज ने डिग्गी खोलनी चाही। वो लॉक्ड थी।
फीएट के पास लौटा। डिग्गी खोलकर एक लोहे की रॉड निकाली।
-“वहां नहीं है?” बूढ़े ने पूछा।
-“डिग्गी खोलने पर पता चलेगा।”
लोहे की रॉड से डिग्गी खोलने में दिक्कत नहीं हुई।
राज ने ढक्कन ऊपर उठाया।
घुटने मोड़े हुए लाश अंदर पड़ी थी। उसकी पोशाक के सामने वाले भाग पर सूखा खून जमा था। एक ब्राउन सैंडल की हील गायब थी। राज ने उसके चेहरे को गौर से देखा।
वह मीना बवेजा ही थी। पहाड़ी सर्दी की वजह से लाश सड़नी शुरू नहीं हुई थी।
राज ने डिग्गी को पुनः बंद कर दिया।
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पोस्टमार्टम करने वाला अधेड़ डाक्टर बी. एल. भसीन वाश बेसिन पर हाथ धो रहा था।
राज को भीतर दाखिल होता देखकर वह मुस्कराया।
-“तुम बहुत बेसब्री से इंतजार करते रहे हो। बोलो, क्या जानना चाहते हो ?”
-“गोली मिल गई?” राज ने पोस्टमार्टम टेबल पर पड़ी मीना बवेजा की नंगी लाश की ओर इशारा करके पूछा।
-“हां। दिल को फाड़ती हुई पसलियों के बीच रीढ़ की हड्डी के पास जा अड़ी थी।”
-“मैं देख सकता हूं?”
-“सॉरी। घंटे भर पहले वो मैंने जोशी को दे दी थी। वह बैलास्टिक एक्सपर्ट के पास ले गया।”
-“कितने कैलिबर की थी, डाक्टर?”
-“चौंतीस की।”
-“हत्प्राण की मौत कब हुई थी?”
-“सही जवाब तो लेबोरेटरी की रिपोर्ट के बाद ही दिया जा सकता है। अभी सिर्फ इतना कहूंगा..... करीब हफ्ता भर पहले।”
-“कम से कम छह दिन?”
-“हां।”
-“आज शनिवार है। इस तरह वह इतवार को शूट की गई थी?”
-“हां।”
-“इसके बाद नहीं?”
-“नहीं।”
-“यानी सोमवार को वह जिंदा नहीं रही हो सकती थी?”
-“नहीं। यही मैंने चौधरी को बताया था। और मेरा यह दावा वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है।”
-“इसका मतलब है, जो भी उसे सोमवार को जिंदा देखी होने का दावा करता है वह या तो झूठ बोल रहा है या फिर उसे गलत फहमी हुई है?”
-“बेशक।”
-“थैंक्यू, डाक्टर।”
राज बाहर जाने के लिए मुड़ा ही था कि दरवाजा खुला और इन्सपैक्टर चौधरी ने अंदर प्रवेश किया।
उसकी तरफ ध्यान दिए बगैर चौधरी सीधा उस मेज की ओर बढ़ गया जिस पर मीना बवेजा की लाश पड़ी थी।
-“कहां चले गए थे, इन्सपैक्टर?” डाक्टर गरदन घुमाकर बोला- “तुम्हारे इंतजार में हमें पोस्टमार्टम रोके रखना पड़ा था।”
चौधरी ने जैसे सुना ही नहीं। मेज का सिरा पकड़े खड़ा वह अपलक लाश को ताक रहा था।
-“तुम चली गई, मीना।” उसकी आवाज कहीं दूर से आती सुनाई दी- “सचमुच चली गई ।नहीं, तुम नहीं जा सकती......। ”
डाक्टर उत्सुकतापूर्वक उसे देख रहा था।
लेकिन चौधरी उनकी वहां मौजूदगी से बेखबर नजर आया। अपने ख्यालों की दुनिया में मानो मीना के साथ वह अकेला था। उसने मीना का एक हाथ अपने हाथों में थाम रखा था।
डाक्टर ने सर हिलाकर राज की ओर संकेत किया।
दोनों बाहर आ गए।
-“मैंने सुना तो था इसे अपनी साली से प्यार था।” डाक्टर बोला- लेकिन इतना ज्यादा प्यार था यह आज ही पता चला है।”
राज ने कुछ नहीं कहा। वह सर झुकाए एमरजेंसी वार्ड की ओर चल दिया।
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एस. एच.ओ. चौधरी एमरजेंसी वार्ड के बाहर थका सा खड़ा था।
राज को देखते ही उसका चेहरा तन गया।
-“तुम कहां गायब हो गए थे?”
-“दो घंटे के लिए सोने चला गया था।”
-“और मैं दो मिनट भी नहीं सो पाया। खैर, मैंने सुना है, तुम और वह बूढ़ा डेनियल पहाड़ियों में काफी तबाही मचाते रहे हो।”
-“आपने यह नहीं सुना हथियारबंद बदमाशों से मुकाबला करने के बाद जौनी के जरिए मीना बवेजा की लाश भी हमने ही बरामद कराई थी और जौनी को भी हम ही यहां लेकर आए थे।”
-“सुना था, लेकिन यह पुलिस का काम था....।” राज के चेहरे पर उपहासपूर्ण भाव लक्ष करके चौधरी ने शेष वाक्य अधूरा छोड़ दिया फिर कड़वाहट भरे लहजे में बोला- “बूढ़ा डेनियल आखिरकार झूठा साबित हो ही गया।”
-“जी नहीं। उससे एक ऐसी गलती हुई है जो उस उम्र के किसी भी आदमी से हो सकती है। उसने कभी भी औरत की पक्की शिनाख्त का दावा नहीं किया इसलिए उसे झूठा नहीं कहा जा सकता। लेकिन सबसे अहम और समझ में ना आने वाली बात है- टूटी हील वहां कैसे पहुंची जहां मुझे पड़ी मिली थी। मीना बवेजा की लाश मिलने के बाद अब इसमें तो कोई शक नहीं रहा कि वो हील उसी के सैंडल से उखड़ी थी। और डाक्टर का कहना है, इतवार के बाद मीना जिंदा नहीं थी। जबकि हील सोमवार को उखड़ी देखी गई थी।”
-“और देखने वाला डेनियल था?”
-“जी हां।”
-“जाहिर है, वो हील वहां प्लांट की गई थी। और प्लांट करने वाला वही बूढ़ा था इसलिए जानबूझकर तुम्हें वहां ले गया। इस केस में मैटिरियल बिजनेस के तौर पर मैंने उसे रोका हुआ है।”
-“और लड़की लीना ?”
-“वह पुलिस कस्टडी में जनरल वार्ड में है। उससे बाद में पूछताछ करूँगा। इस वक्त में जौनी से पूछताछ करने का इंतजार कर रहा हूं। उसके खिलाफ हमारे पास जो एवीडेंस है उसे देखते हुए जौनी को अपने जुर्म का इकबाल कर लेना चाहिए।”
-“यानी आपके विचार से केस निपट गया?”
-“हाँ।”
-“माफ कीजिए, मैं आपसे सहमत नहीं हूं।”
चौधरी ने हैरानी से उसे देखा।
-“क्या मतलब?”
-“जिस ढंग से आप केस को निपटा रहे हैं या निपट गया समझ रहे हैं। मेरी राय में वो तर्क संगत और तथ्यपूर्ण नहीं है।”
-“तुम क्या कहना चाहते हो?”
-“मान लीजिए अगर आपको पता चले आपके विभाग का कोई आदमी बदमाशों को बचा रहा था या उनसे मिला हुआ था तब आप क्या करेंगे?”
-“उसे गिरफ्तार कराके अदालत में पेश कराऊगां।”
-“चाहे वह आपका फेवरेट आफिसर ही क्यों न हो?”
-“घुमा फिराकर बात मत करो। तुम्हारा इशारा कौशल चौधरी की ओर है?”
-“जी हां। आपको जौनी के बजाय उससे पूछताछ करनी चाहिए।”
चौधरी ने कड़ी निगाहों से उसे घुरा।
-“तुम्हारी तबीयत तो ठीक है? दो दिन की भागदौड़ और मारामारी से.....।”
-“ऐसी बातों का दिमागी तौर पर कोई असर मुझ पर नहीं होता। अगर मेरी इस बात पर आपको शक है तो विराटनगर पुलिस से....।”
-“वो सब मैं कर चुका हूं। तुम्हारे दोस्त इन्सपैक्टर रविशंकर से भी बातें की थी। उसका कहना है तुम खुराफाती किस्म के ‘आ बैल मुझे मार’ वाली फितरत के आदमी हो। ऐन वक्त पर चौंकाने वाली बातें करना और दूसरों को दुश्मन बनाना तुम्हारी खास खूबियां हैं।”
-“मैं सही किस्म के दुश्मन बनाता हूं।”
-“यह तुम्हारी अपनी राय है।”
-“आपका एस. आई. जोशी बबेजा के बेसमेंट में गया था?” राज ने वार्तालाप का विषय बदलते हुए पूछा- “उसे कुछ मिला?”
-“कुछ चली हुई गोलियां मिली थी। बैलास्टिक एक्सपर्ट उनकी जांच कर रहा है। उसकी रिपोर्ट कुछ भी कहे उसे चौधरी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। बवेजा की किसी भी हरकत के लिए वह जिम्मेदार नहीं है।” चौधरी की कड़ी निगाहों के साथ स्वर में भी कड़ापन था- “तुम्हारे पास चौधरी के खिलाफ कोई सबूत है?”
-“ऐसा कोई नहीं है जिसे अदालत में पेश किया जा सके। मैं न तो उसकी गतिविधियों को चैक कर रहा हूं न ही उससे पूछताछ कर सकता हूं। लेकिन आप यह सब कर सकते हैं।”
-“तुम चाहते हो मैं तुम्हारे साथ इस बेवकूफाना मुहीम में शामिल हो जाऊं? अपनी हद में रहो तुम सोच भी नहीं सकते इस इलाके को साफ सुथरा बनाने और बनाए रखने के लिए चौधरी ने और मैंने कितनी मेहनत की है। तुम न तो चौधरी को जानते हो नहीं इस शहर के लिए की गई उसकी सेवाओं को।” चौधरी का स्वर गंभीर था- “कौशल चौधरी एक जेनुइन प्रैक्टिकल आईडिएलिस्ट है। उसके चरित्र पर जरा भी शक नहीं किया जा सकता।”
-“हालात की गर्मी किसी भी चरित्रवान के चरित्र को पिघला सकती है। चौधरी भी आसमान से उतरा कोई फरिश्ता नहीं महज एक आदमी है। उसे भी पिघलते मैं देख चुका हूं।”
चौधरी ने व्याकुलतापूर्वक उसे देखा
-“तुमने चौधरी से कुछ कहा था?”
-“कल आपके पास आने से पहले सब-कुछ कह दिया था। उसने अपनी सर्विस रिवाल्वर निकालकर मुझ पर तान दी और अगर उसकी पत्नि नहीं रोकती तो मुझे शूट ही कर डालता।”
-“तुमने उसके मुंह पर ये इल्जाम लगाए थे?”
-“हां।”
-“तब तुम्हारी जान लेने की कोशिश करने के लिए उसे दोष नहीं दिया जा सकता। वह अब कहां है?”
-“पोस्टमार्टम रूम में अपनी साली के पास।”
चौधरी पलट कर चल दिया।
लंबे गलियारे के आखिरी सिरे पर दरवाजे के संमुख वह तनिक ठिठका फिर जोर से दस्तक दी।
दरवाजा फौरन खुला।
चौधरी बाहर निकला।
चौधरी ने उससे कुछ कहा। चौधरी एक तरह से उसे अलग धकेल कर कारीडोर में राज की ओर बढ़ गया। उसकी निगाहें दूर दीवारों से परे कहीं टिकीं थीं और होठों पर हिंसक मुस्कराहट थी।
उसके पीछे चौधरी यूं सर झुकाए आ रहा था मानो अदृश्य बाधाओं को पार कर रहा था। उसके चेहरे पर आंतरिक दबाव के स्पष्ट चिन्ह थे।
चौधरी राज के पास न आकर बाहर जाने वाले रास्ते से निकल गया। उसकी कार का इंजन गरजा फिर वो आवाज दूर होती चली गई।
चौधरी राज के पास आ रूका।
-“अगर तुम चौधरी से पूछताछ कर सकते होते तो क्या पूछते?”
-“मनोहर, सैनी और मीना बवेजा को किसने शूट किया था?” राज बोला।
-“तुम कहना चाहते हो ये हत्याएं उसने की थी?”
-“मैं कह रहा हूं उसे इन हत्याओं की जानकारी थी। उस रात बवेजा का ट्रक लेकर भाग रहे जौनी को उसने जानबूझकर भाग जाने दिया था।”
-“यह जौनी कहता है?”
-“हां।”
-“उस पेशेवर बदमाश की कहीं किसी बात को चौधरी जैसे आदमी के खिलाफ इस्तेमाल तुम नहीं कर सकते।”
-“उस रात करीब एक बजे मैंने भी बाई पास पर चौधरी को देखा था। उसने रोड ब्लॉक हटा दिया था। अपने सब आदमियों को भी वहां से भेज दिया था। उस जगह वह अकेला था और यह बात.....।”
-“तुम अपनी बात को खुद ही काट रहे हो।” चौधरी हाथ उठाकर उसे रोकता हुआ बोला- चौधरी एक ही वक्त में दो अलग-अलग जगहों पर मौजूद नहीं हो सकता। अगर एक बजे वह बाई पास पर था तो मोटल में सैनी को उसने शूट नहीं किया। और क्या तुम यकीनी तौर पर जानते हो, जौनी उसी रूट से भागा था?”
-“यकीनी तौर पर मैं कुछ नहीं जानता।”
-“मुझे भी इस बात का शक था। जाहिर है, जौनी अपने लिए किसी तरह की एलीबी गढ़ने की कोशिश कर रहा है।”
-“आप के कब्जे में एक जवान पेशेवर मुजरिम है। इसलिए आप तमाम वारदातों का भारी पुलंदा बनाकर उसके गले में लटका रहे हैं। मैं जानता हूं, यह स्टैंडर्ड तरीका है। लेकिन मुझे पसंद नहीं है। दरअसल यह सीधा-सीधा प्रोफेशनल क्राइम नहीं है। बड़ा ही पेचीदा केस है जिसमें बहुत से लोग इनवाल्व है- पेशेवर भी और नौसिखिए भी।”
-“उतना पेचीदा यह नहीं है जितना कि तुम बनाने की कोशिश कर रहे हो।”
-“यह आप अभी सिर्फ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमारे पास हर एक सवाल का जवाब नहीं है।”
-“मैं तो समझ रहा था तुम्हारे हर सवाल का जवाब चौधरी है।”
-“चौधरी खुद जवाब भले ही न हो लेकिन जवाब जानता जरूर है। जबकि जाहिर ऐसा करता है जैसे कुछ नहीं जानता। एतराज न हो तो एक बात पूछूं?”
-“क्या?”
-“आपको बुरा तो नहीं लगेगा?”
-“नहीं।”
-“आप क्यों उसकी ओर से सफाई देकर उसे बचा रहे हैं?”
-“मैं न तो उसे बचा रहा हूं न ही किसी सफाई की उसे जरूरत है।”
-“क्या खुद आपको उस पर शक नहीं है?”
-“नहीं।”
-“मीना बवेजा की मौत की उस पर हुई प्रतिक्रिया देखकर भी नहीं?”
-“नहीं। मीना उसकी साली थी और वह इमोशनल आदमी है।”
-“इमोशनल या पैशनेट?”
-“तुम कहना क्या चाहते हो?”
-“वह साली से बहुत ज्यादा कुछ थी। दोनों एक-दूसरे को प्यार करते थे। यह सच है न?”
चौधरी ने थके से अंदाज में माथे पर हाथ फिराया।
-“मैंने भी सुना है, उनका अफेयर चल रहा था। लेकिन इससे साबित कुछ नहीं होता। असलियत यह है, अगर इस नजरिए से देखा जाए तो यह संभावना और भी कम हो जाती है कि मीना की मौत से उसका कुछ लेना-देना था।”
-“लेकिन इमोशनल क्राइम की संभावना बढ़ जाती है। चौधरी ने उसे जलन या हसद की वजह से शूट किया हो सकता था।”
-“तुमने उसका गमजदा चेहरा देखा था?”
-“हत्यारों को भी दूसरों की तरह ही गम का अहसास होता है।”
-“चौधरी को किससे हसद हो सकती थी?”
-“एक तो मनोहर ही था। वह मीना का पुराना आशिक था। शनिवार रात में लेक पर भी गया था। मनोहर की मौत की वजह भी यही हो सकती है। यही सैनी के चौधरी पर दबाव और सैनी की मौत की वजह भी हो सकती है।”
-“सैनी की हत्या चौधरी ने नहीं की थी। यह तुम भी जानते हो।”
-“की नहीं तो किसी से कराई हो सकती थी। आखिरकार उसके पास मातहतो की तो कमी नहीं है।”
-“नहीं!” उसके तीव्र स्वर में पीड़ा थी- “मुझे यकीन नहीं है कौशल किसी जीवित प्राणी का अहित करेगा।”
-“आप उसी से क्यों नहीं पूछते। अगर वह ईमानदार पुलिसमैन है या उसके अंदर जरा भी ईमानदारी बाकी है तो आपको सच्चाई बता देगा। उससे पूछकर आप एक तरह से उस पर अहसान ही करेंगे। वह अपने दिलो-दिमाग पर भारी बोझ लिए घूम रहा है। इससे पहले कि अब यह बोझ उसे कुचल डाले उसे इस बोझ को हल्का करने का मौका दे दीजिए।”
-“तुम्हें उसके गुनाहगार होने पर काफी हद तक यकीन है लेकिन मुझे नहीं है।”
मगर उसके चेहरे पर छा गए हल्के पीलेपन से जाहिर था अपनी इस बात से अब वह खुद भी पूरी तरह सहमत नहीं था।
तभी एमरजेंसी रूम का दरवाजा खुला। वही डाक्टर बाहर निकला जो मनोहर को नहीं बचा पाया था।
-“आप उससे पूछताछ कर सकते हैं, मिस्टर चौधरी।”
-“थैंक्यू, डाक्टर। उसे बाहर भेज दीजिए।”
-“ओ के।”
जौनी दरवाजे से निकला। उसके हाथों में हथकड़िया लगी थी। पट्टियों से ढंके चेहरे पर सिर्फ एक आंख ही नजर आ रही थी। उसे बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ देखता पाकर उसके साथ चल रहे पुलिसमैन का हाथ अपनी रिवाल्वर की ओर चला गया।
जौनी ने फौरन उधर से नजर घुमा ली।
चौधरी उन्हें मोर्ग की ओर ले चला।
राज ने भी उनका अनुकरण किया।
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