RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
मोर्ग में एक-एक करके तीनों लाशों को बाहर निकाला गया और उनके चेहरों से कपड़ा हटा दिया गया।
-“मुझे यहां क्यों लाया गया है?” जौनी ने पूछा।
-“तुम्हारी याददाश्त याद ताजा करने के लिए।” चौधरी ने कहा- “तुम्हारा नाम?”
-“जौनी।”
-“उम्र?”
-“पच्चीस साल।”
-“पता?”
-“कोई नहीं।”
-“काम क्या करते हो?”
-“जो भी मिल जाए।”
-“किस तरह का?”
-“मेहनत मजदूरी।”
चौधरी ने सैनी की लाश की ओर इशारा किया।
-“इस आदमी को जानते थे?”
-“नहीं।”
-“इसका नाम सतीश सैनी था इससे कभी मिले थे?”
-“शायद।”
-“आखरी दफा कब मिले थे?”
-“रविवार रात में करीब बारह बजे।”
-“कहां? इसके मोटल में?”
-“नहीं। सड़क के किनारे एक रेस्टोरेंट के बाहर। नाम याद नहीं।”
-“मैं उस मीटिंग का गवाह था।” राज ने कहा और लोकेशन बता दी।
-“तुमसे बाद में बात करूंगा।” चौधरी पुनः जौनी की ओर पलटा- “उस मीटिंग में क्या हुआ था?”
-“कुछ नहीं।”
-“तुमने इसे कोई पैकेट दिया था?”
-“पता नहीं।”
-“फिर तुमने क्या किया?”
-“कुछ नहीं। मैं चला गया।”
-“कहां?”
-“किसी खास जगह नहीं। ऐसे ही घूमता रहा।”
-“तुम झूठ बोल रहे हो। तुमने उसी रात चौंतीस कैलिबर के रिवाल्वर से इसे शूट किया था।”
-“मैंने नहीं किया।”
-“तुम्हारी रिवाल्वर कहां है?”
-“मैं रिवाल्वर नहीं रखता। ऐसा करना गैर कानूनी है।”
-“और तुम कोई गैर कानूनी काम नहीं करते?”
-“नहीं।”
-“तो फिर विस्की से भरा ट्रक क्यों चुराया? करीमगंज में बैंक में उस आदमी को क्यों लूटा?”
-“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।”
-“तुम पेशेवर मुजरिम हो। तुम्हारे इंकार करने से यह हकीकत नहीं बदल सकती कि इन तीनों की हत्याएं तुमने की थीं।”
-“मैंने किसी की हत्या नहीं की।”
चौधरी ने उसे मनोहर की लाश के पास धकेला।
-“इसे गौर से देखो?”
-“मैंने पहले कभी इसे नहीं देखा।”
-“अगर तुमने इसे नहीं देखा तो इसे शूट करके इसका ट्रक कैसे चुरा लिया?”
-“मैंने इसे शूट नहीं किया। यह ट्रक में नहीं था। सही मायने में ट्रक मैंने चुराया नहीं था। ट्रक हाईवे पर खड़ा था और इंजन चालू था।”
-“इसलिए तुम उसे लेकर चले गए?”
-“जौनी ने जवाब नहीं दिया।”
पूछताछ करीब एक घंटे तक चली। जौनी का जवाब देने का यह तरीका ज्यादा देर नहीं चला। शब्दों के वार का असर तो उस पर होने लगा। लेकिन उसने कबूल कुछ नहीं किया।
फिर एस. आई. जोशी ने दस्तक देकर दरवाजा खोला और चौधरी को बाहर बुला ले गया।
राज जौनी के पास पहुंचा।
-“तुम अपने लिए मौत का सामान कर रहे हो। अगर इसी तरह इंकार करोगे या टालते रहोगे तो फांसी के फंदे पर पहुंच जाओगे। तुम्हारे लिए आखिरी मौका है। सच्चाई बता दो।”
-“मैं बेगुनाह हूं। मुझे ये लोग नहीं फंसा सकते।”
-“तुम बेगुनाह नहीं हो। हम जानते हैं, ट्रक तुम्ही ले गए थे। इस हालत में अगर तुम ने ड्राइवर को शूट नहीं भी किया था तो भी कानूनन तुम्हें उसकी हत्या के अपराध में शरीक माना जाएगा। तुम्हारे बचाव का एक ही रास्ता है सरकारी गवाह बन जाओ।”
जौनी ने इस बारे में सोचा।
-“मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो?”
-“सच्चाई। ट्रक तुम्हें कैसे मिला?”
-“तुम मुझ पर यकीन नहीं करोगे। कोई भी नहीं करेगा।”
उसने निराश भाव से सर हिलाया- “फिर सच्चाई बताने से फायदा ही क्या है?”
-“अगर सच बोलोगे तो मैं यकीन करुगा और तुम्हारी मदद भी।”
-“नहीं, तुम भी मुझे झूठा कहोगे। जो कुछ मैंने देखा था उस पर यकीन नहीं करोगे।”
-“क्या देखा था तुमने।”
-“मैं हाईवे पर ट्रक का इंतजार कर रहा था। सैनी ने बताया था करीब छह बजे ट्रक वहां से गुजरेगा। वो सही समय पर करीब साठ मील की रफ्तार से मेरे सामने से गुजरा और करीब आधा मील के फासले पर जा रुका। मैं तेजी से उधर ही दौड़ा।”
-“पैदल?”
-“हां।”
-“ट्रक रोका किसने?”
-“वहां एक सफेद एम्बेसेडर खड़ी थी। जब मैं उस स्थान पर पहुंचा एम्बेसेडर दौड़ गई। बस यही देखा था मैंने।”
-“तुमने ट्रक के पास से उसे जाते देखा था?”
-“हां। मैं हाईवे पर थोड़ी दूर ही पीछे था।”
-“कार में मनोहर था? यही आदमी?”
-“यह अगली सीट पर बैठा था।”
-“एम्बेसेडर को वही चला रहा था?”
-“नहीं। उसके साथ कोई और भी था।”
-“कौन था?”
-“तुम यकीन नहीं करोगे।”
-“क्यों।”
-“बात ही कुछ ऐसी है कि खुद मेरी अक्ल भी चकरा रही है।”
-“कोई लड़की थी?”
-“हां।”
-“कौन?”
जौनी ने मीना बवेजा की लाश की ओर इशारा किया।
-“वह। मेरे ख्याल से वही थी।”
राज ने घोर अविश्वासपूर्वक जौनी को घूरा।
-“तुमने इस लड़की को वीरवार शाम को हाईवे पर ट्रक के पास से मनोहर को सफेद एम्बेसेडर में ले जाते देखा था?”
-“मैंने तो पहले ही कहा था तुम यकीन नहीं करोगे?”
-“लेकिन यह औरत तो पिछले इतवार को ही मर चुकी थी। तुमने खुद सोमवार रात में इसकी लाश देखी थी फिर यह इस वीरवार को हाईवे पर कैसे पहुंच सकती थी?”
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