RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“क्या फायदा हुआ?” जौनी ऊंची आवाज में कलपता सा बोला- “मैंने पहले ही कहा था कुछ नहीं होगा।” उसने हथकड़ियां लगे अपने हाथ हिलाए- “तुम सब एक ही जैसे हो। सभी उस इन्सपैक्टर चौधरी से मिले हुए हो। अपने आप को बचाने के लिए मुझे बलि का बकरा बना रहे हो। जाओ, मुझे फांसी पर चढ़ा दो। मैं मरने से नहीं डरता। लेकिन अब मैं इस सच्चाई को मरते दम तक चीख-चीख कर दोहराता रहूंगा। तुम सब हरामजादे हो.....।”
पास ही खड़े पुलिसमैन उसके चेहरे पर हाथ जमा दिया।
-“बकवास बंद कर।”
राज ने उनके बीच में आकर पुलिसमैन को परे धकेला।
-“इन्सपैक्टर चौधरी के बारे में क्या कहना चाहते हो जौनी?”
-“उस रात जब मैं एयरबेस से ट्रक लेकर भागा तो वह बाई पास पर मौजूद था। पुलिस कार में बुत बना बैठा था। रोड ब्लाक नहीं थी। मुझे रोकना तो दूर रहा उसने आंख उठाकर भी मेरी ओर नहीं देखा। मैं उसके सामने से गुजर गया। लेकिन अब मैं समझ सकता हूं, उसने ऐसा क्यों किया। वह मुझे कत्ल के इल्जाम में फंसाने की योजना बना रहा था। उस रात मुझे भाग जाने देना उसकी इसी योजना का एक हिस्सा था।”
-“अगर तुम सच बोल रहे हो तो कत्ल का कोई इल्जाम तुम पर नहीं लगेगा।”
-“मुझे तसल्ली मत दो। मैं सब समझता हूं। उसने तुम सब को अपने वश में किया हुआ है।”
-“मैं उसके वश में नहीं हूं।”
-“अकेले तुम्हारे न होने से क्या होता है? पूरा पुलिस विभाग तो उसकी मुट्ठी में है।”
इससे पहले कि राज कुछ कहता एस. आई. जोशी ने दरवाजा खोलकर अंदर झांका।
-“क्या हो रहा है?”
-“कुछ नहीं।” राज बोला- “चौधरी साहब कहां है?”
-“चले गए।”
राज चकराया।
-“चले गए?”
-“हां। जरूरी काम था।”
राज बाहर कारीडोर में आ गया।
-“इस वक्त इससे ज्यादा जरूरी और क्या काम हो सकता है जो यहां चल रहा था?”
-“वह बवेजा से मिलने गए हैं।”
-“कहां?”
-“अपने ऑफिस। मैंने अभी उसे गिरफ्तार करके वहां पहुंचाया है।”
-“किस जुर्म में?”
-“मर्डर। मैं पिछली रात बवेजा के घर गया था। उसकी इजाजत लेकर वहां खोजबीन की- ऐसा जाहिर करते हुए कि उसकी बेटी के बारे में कोई सुराग लगाने की कोशिश कर रहा था। उसने एतराज नहीं किया। संभवतया इसलिए कि वह जानता था पुरानी चली हुई गोलियों के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता था। बेसमेंट में बनी उसकी शूटिंग गैलरी में शूटिंग बोर्डों में दर्जनों पुरानी गोलियां गड़ी हुई थीं। मैंने वहां से कुछ गोलियां निकाली। उनमें से ज्यादातर की हालत ठीक नहीं थी। लेकिन कुछेक सही थीं। माइक्रोस्कोपिक कम्पेरीजन के लिए मैं उन्हें बैलास्टिक एक्सपर्ट के पास ले गया। करीब दो घंटे पहले सही नतीजा सामने आया। बेसमेंट में मिली कुछ गोलियां चौंतीस कैलिबर की रिवाल्वर से चलाई गई थी। माइक्रोस्कोपिक कम्पेरीजन से पता चला उनमें से कुछेक उसी रिवाल्वर से चलाई गई थी जिससे मनोहर, सैनी और मीना बवेजा को शूट किया गया था।”
-“तुम्हें पूरा यकीन है?”
-“बेशक। अदालत में साबित भी किया जा सकता है- माइक्रोफोटोग्राफ्स के जरिए। अगर वो रिवाल्वर नहीं मिलती है तो भी साबित किया जा सकता है। बवेजा के पास चौंतीस कैलिबर की लाइसेंसशुदा रिवाल्वर है। उसका पूरा रिकॉर्ड हमारे पास है। उसे गिरफ्तार करने से पहले जब रिवाल्वर के बारे में मैंने पूछा तो उसका कहना था- पता नहीं।”
-“फिर भी कुछ तो सफाई दी होगी?”
-“वह कहता है, पिछली गर्मियों में वो रिवाल्वर अपनी बेटी को दी थी और उसने वापस नहीं लौटाई। वह साफ झूठ बोल रहा है कल तक मेरा भी यही ख्याल था और अब इतना यकीन नहीं रहा वह साफ झूठ बोल रहा है।”
-“कल तक मेरा भी यही ख्याल था।”
-“और अब?”
-“उतना यकीन नहीं रहा।”
-“वह साफ झूठ बोल रहा है। झूठ बोलने की तगड़ी वजह भी है। तीनों हत्याओं में से किसी की भी कोई एलीबी उसके पास नहीं है। मीना बवेजा को इतवार को शूट किया गया था। बकौल बवेजा उस रोज सारा दिन वह घर में अकेला रहा था। इस तरह कार में लेक पर जाकर मीना को शूट करने और वापस लौटने का पूरा मौका और वक्त उसके पास था। रविवार शाम के बारे में उसने एलीबी के तौर पर अपनी बड़ी बेटी का नाम लिया था। लेकिन उसकी बेटी शाम पांच बजे से उसके घर में थी और वह सात बजे के बाद घर पहुंचा था। खुद बवेजा भी इसे कबूल करता है उसका कहना है, ट्रांसपोर्ट कंपनी के ऑफिस से निकलने के बाद वह कार में हवाखारी के लिए चला गया था। सैनी की हत्या के समय की भी कोई एलीबी उसके पास नहीं है।”
-“और मोटिव भी नहीं है।”
-“मोटिव था। मनोहर और सैनी दोनों ही मीना के साथ गहरे ताल्लुकात रहे थे अपनी उस बेटी का खुद बवेजा भी दीवाना था।”
-“कहानी मसालेदार है।” राज बोला इन्सपैक्टर चौधरी को भी सुनाई थी तुमने?”
जोशी पहली बार परेशान सा नजर आया।
-“उनसे मुलाकात नहीं हुई। वैसे भी मैं नहीं चाहता था चौधरी साहब को अपने ससुर को गिरफ्तार करने का बदमजा काम करना पड़े। इसलिए मैंने इस बारे में चौधरी साहब को कुछ न बताकर सीधे चौधरी साहब को ही रिपोर्ट दी है।”
-“चौधरी साहब तुम्हारे इस एक्शन से सहमत और संतुष्ट है?”
-“बेशक। तुम नहीं हो?”
-“अभी नहीं। मैं कुछ और छानबीन करना चाहता हूं। बवेजा के पास कितनी कारें हैं? एक तो कांटेसा है......।”
-“एक सफेद एम्बेसेडर है और एक टाटा सीएरा है।”
-“सफेद एम्बेसेडर भी है?”
-“हां। मैं उन कारों के बारे में घटनास्थलों पर आस पास पूछताछ कराने जा रहा हूं। किसी भी वारदात के वक्त उनमें से कोई वहां देखी गई हो सकती थी।”
-“इस मामले में मैं तुम्हें परेशानी से बचा सकता हूं। कुछ और करने से पहले अंदर मौजूद जौनी से बातें कर लो। उससे पूछना रविवार शाम को मनोहर हाईवे से कौन सी कार में गया था।”
जोशी अंदर चला गया।
राज कारीडोर से निकलकर अपनी कार की ओर बढ़ गया।
****
|