RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
दस्तक के जवाब में रंजना चौधरी ने दरवाजा खोला। अगर उसके मुंह पर कसाब और आंखों में अजीब सी चमक नहीं होती तो राज ने समझना था उसने घरेलू कार्यों में व्यस्त किसी ग्रहणी को डिस्टर्ब कर दिया था।
-“तुम्हारा पति घर में है, मिसेज चौधरी?” उसने पूछा।
-“नहीं।”
-“मैं इंतजार कर लूंगा।”
-“लेकिन वह पता नहीं कब आएगा।”
-“तब तक मैं आपसे ही बातें कर लूंगा।”
-“माफ करना, मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं किसी से बात करना नहीं चाहती।
उसने दरवाजा बंद करने की कोशिश की। लेकिन राज ने बंद नहीं करने दिया।
-“मुझे अंदर आने दो।”
-“नहीं। अगर कौशल आ गया और तुम्हें यहां देख लिया तो नाराज होगा।” उसने बलपूर्वक अध खुले पल्ले को थामे खड़े राज से कहा- “बंद करने दो, प्लीज। यहां से चले जाओ। मैं कौशल को बता दूंगी तुम आए थे।”
-“नहीं मिसेज चौधरी।”
राज ने पल्ला जोर से धकेला।
वह पीछे हट गई।
राज अंदर आ गया।
ड्राइंग रूम के दरवाजे में सहमी खड़ी रंजना की गरदन की नसें तन गई थीं। आंखों में चमक और ज्यादा गहरी हो गई थी। साइडों में लटके हाथ मुट्ठियों की शक्ल में भिंचे थे।
राज उसकी ओर बढ़ा।
रंजना ड्राइंगरूम में पीछे हटने लगी। वह यूँ चल रही थी मानों उसके मस्तिष्क में भारी विचार संघर्ष मचा था और उसे अपने शरीर को जबरन घसीटना पड़ रहा था।
वह एक मेज के पास जाकर रुक गई।
-“मुझसे क्या चाहते हो?”
उसके सफेद पड़े चेहरे को गौर से देखते राज को एक पल के लिए लगा उसके सामने मृत मीना बवेजा खड़ी थी। कद-बुत लगभग एक जैसा होने के कारण वह मीना की जुड़वां बहन सी नजर आई। साथ ही बिजली की भांति जो नया विचार उसके दिमाग में कौंधा। उस पर एकाएक विश्वास वह नहीं कर पाया।
लेकिन वो असलियत थी। पूर्णतया तर्क संगत और तथ्यों से पूरी तरह मेल खाती हुई। अब उससे सच्चाई उगलवानी थी।
-“तुमने अपने पिता की रिवाल्वर से अपनी बहन की हत्या की थी, मिसेज चौधरी।” उसने सीधा सवाल किया- “अब इस बारे में बातें करना चाहती हो?”
रंजना ने उसकी ओर देखा।
-“मैं अपनी बहन से प्यार करती थी। मेरा कोई इरादा नहीं था....।”
-“लेकिन उसे शूट तो किया था?”
-“वो एक दुर्घटना थी। मेरे हाथ में गन थी वो चल गई। मीना मेरी ओर देख रही थी। वह कुछ नहीं बोली बस नीचे गिर गई।”
-“अगर तुम उससे प्यार करती थी तो शूट क्यों किया?”
-“इसमें मीना की ही गलती थी। मीना को उसके साथ नहीं जाना चाहिए था। मैं जानती हूं तुम सब आदमी कैसे होते हो। तुम लोग जानवरों की तरह हो। अपने आप को नहीं रोक सकते। लेकिन औरत रोक सकती है। मीना को भी उसे रोक देना चाहिए था। आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए था। मैंने इस बारे में काफी विचार किया है। जब से यह हुआ है सोचने के अलावा कुछ नहीं किया। यहां तक कि सोई भी नहीं। पूरा हफ्ता घर की सफाई करती और सोचती रही हूँ। मैंने पहले यह घर साफ किया फिर अपने पिता का और फिर इसे फिर से साफ किया। इस पूरे दौर में एक ही नतीजे पर पहुंची हूं- इसमें मीना का ही कसूर था। इसके लिए पापा कौशल को दोष नहीं दिया जा सकता। वह आदमी है।”
-“लेकिन यह हुआ कैसे? तुम्हें याद है?”
-“अच्छी तरह नहीं। मैं बहुत ही ज्यादा सोचती रही हूं। मेरा दिमाग इतनी तेजी से काम करता है कि याद करने का वक्त ही नहीं मिला।”
-“यह इतवार को हुआ था?”
-“इतवार की सुबह-सवेरे। लेक पर लॉज में। मैं वहां मीना से बात करने गई थी। मेरा इरादा बस बातें करने का ही था। वह हमेशा इतनी बेफिक्र और लापरवाह रही थी उसे एहसास ही नहीं था कि मेरे साथ क्या कर चुकी थी। उसे किसी ऐसे शख्स की जरूरत थी जो उसके दिमाग को सही कर सके। जो कुछ चल रहा था मैं उसे चलने नहीं दे सकती थी। मुझे कुछ करना ही था।”
-“तुम्हारा मतलब है, इस बारे में तुम्हें तभी पता चला था?”
-“मैं महीने से जानती थी। मैंने देखा था, कौशल उसे किस ढंग से देखता था और मीना क्या करती थी। वह अपनी कुर्सी पर बैठा होता था और मीना उसके पास यूं गुजरती थी कि उसकी शर्ट या स्कर्ट उसके घुटने से छू जाती थी। दोनों एक दूसरे को चोर निगाहों से देख कर मुस्कराते रहते थे। मेरी मौजूदगी उन्हें अखरती सी लगती थी। दोनों हर वक्त एकांत पाने के मौके की तलाश में रहते थे। फिर उन्होंने वीकएंड ट्रिप्स पर जाना शुरू कर दिया। पिछले शनिवार भी यही किया। कौशल ने कहा था, वह एक मीटिंग अटेंड करने विशालगढ़ जा रहा था। मैंने विशालगढ़ उस होटल में फोन किया तो पता चला वह वहां था ही नहीं। मीना भी यहां नहीं थीं। मैं जानती थी, दोनों साथ थे। लेकिन कहां थे, यह नहीं जानती थी। फिर शनिवार रात में आधी रात के बाद मनोहर यहां आया। मैं सोयी नहीं थी। बिस्तर पर पड़ी यही सोच रही थी। जब मनोहर ने मुझे बताया तो सब कुछ मेरी आंखों के सामने घूम गया। एक ही पल में मेरी पूरी जिंदगी मेरे हाथों से फिसल गई। वे दोनों पहाड़ों पर लॉज में एक दूसरे की बाहों में थे और मैं यहां घर में अकेली पड़ी थी।”
-“मनोहर ने तुम्हें क्या बताया था?”
-“उसने बताया कि मोती झील तक मीना का पीछा किया था। और उसे कौशल के साथ देखा था। रीछ की खाल जैसे कारपेट पर दोनों फायर प्लेस के सामने थे। आग जल रही थी और उनके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। मीना हंस रही थी और उसे नाम से बुला रही थी। मनोहर काफी शराब पिए हुए था और कौशल से उसे नफरत थी लेकिन वह सच बोल रहा था। मैं जानती थी वह सच बोल रहा था। उसके जाने के बाद में बैठी सोचती रही क्या किया जाए। रात कब गुजर गई पता नहीं चला। फिर चर्च की घंटियां बजने लगीं। मैंने अपनी कई ईसाई सहेलियों की शादियां अटैंड की थीं। उन लोगों में शादी पर चर्च में वैडिंग बैल्स बजायी जाती हैं। उस रोज मुझे लगा मानों वो कोई संकेत था- मेरी अपनी वैडिंग बैल्स थी। मैं कार लेकर लेक की ओर रवाना हो गई। तमाम रास्ते में घंटियां बजती रहीं। जब मैं मीना से बात कर रही थी तब भी मेरे कानों में बज रही थीं। अपनी खुद की आवाज सुनने के लिए मुझे चिल्लाना पड़ा। वे तब तक बजनी बंद नहीं हुईं जब तक की गन चल नहीं गई।”
वह सिहरन सी लेकर चुप हो गई।
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