RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
राज अपनी रिवाल्वर निकाले सतर्कतापूर्वक इंतजार कर रहा था।
चौधरी प्रवेश द्वार से भीतर दाखिल हुआ- सर झुकाए थका हारा सा- वह यूनीफार्म पहने था बिना कैप और बैल्ट। कंधों पर स्टार नहीं थे। गन हौलेस्टर भी नजर नहीं आ रहा था। लेकिन पेंट की दायीं जेब जिस ढंग से उभरी हुई थी उससे जाहिर था उसमें गन मौजूद थी।
-“मैं जानता था।” वह बोला- “तुम यहीं मिलोगे?”
-“मुझे यहां देखकर तुम्हें ताज्जुब नहीं हुआ?”
-“नहीं।”
-“डर भी नहीं लग रहा?”
-“नहीं।”
राज ने पहली बार नोट किया चौधरी की आवाज में अब न तो वो रोब था और ना ही चेहरे पर अधिकारपूर्ण भाव।
-“तुम्हारी पत्नि बहुत अच्छी निशानेबाज है।”
चौधरी ने सर झुकाए खड़ी रंजना को देखा।
-“जानता हूं।” उसने कहा और हाथ ऊपर उठाकर बोला- “मेरी जेब में गन है, निकाल लो।”
राज ने वैसा ही किया। वो चौंतीस कैलीबर की पुरानी रिवाल्वर थी। क्लीन, ऑयल्ड और लोडेड।
-“यह वही रिवाल्वर है?”
-“हां।” चौधरी ने पुन पत्नि की ओर देखा- “तुमने इसे बता दिया?”
रंजना ने सर हिलाकर हामी भर दी।
-“तो तुम जान गए हो, राज?” चौधरी ने पूछा।
-“हां। तुम कहां थे?” राज ने दोनों रिवाल्वर कोट की जेबों में डालकर पूछा।
-“हाईवे पर। मैं सब-कुछ छोड़कर भाग जाना चाहता था। दूर कहीं ऐसी जगह जहां नए सिरे से शुरुआत कर सकूं। लेकिन यह बेवकूफाना चाहत ज्यादा देर मुझे नहीं बांध सकी। रंजना को इस सबका सामना करने के लिए अकेली मैं नहीं छोड़ सका। इससे ज्यादा कसूरवार मैं हूं।”
-“मैं अपने कमरे में जा रही हूं, कौशल।” रंजना कराहती सी बोली- “तुम्हें इस तरह बातें करते मैं नहीं सुन सकती।”
-“भागोगी तो नहीं?”
-“नहीं।”
-“खुद को चोट भी नहीं पहुंचाओगी?”
-“नहीं।”
-“जाओ।”
रंजना कमरे से निकल गई।
राज प्रतिवाद करने ही वाला था कि चौधरी बोल पड़ा- “वह कहीं नहीं जाएगी। वैसे भी ज्यादा वक्त उसके पास नहीं है।”
-“तुम्हें अभी भी उसकी फिक्र है?”
-“वह बच्चे की तरह है राज। और यही सारी मुसीबत है। उसे दोष मैं नहीं दे सकता। कसूर मेरा है। मैं ही जिम्मेदार हूं। रंजना ने जो भी किया अपने अंदरूनी दबाव के तहत किया था। वह नहीं जानती थी क्या कर रही थी। लेकिन मैं अच्छी तरह जानता था और शुरू से जानता था क्या कर रहा था। फिर भी करता चला गया। उसी का नतीजा यह है।” वह एक कुर्सी पर बैठ गया। कुछेक पल अपने हाथों को देखता रहा फिर बोला- “मुझे वीरवार रात को पता चला जब सैनी ने बताया रंजना क्या कर चुकी थी। मैं मोटल में उसके पास था जब उसने इस बारे में इशारतन मुझे बताया। बाद में जब उसके घर पहुंचा तो उसने सब कुछ मेरे मुंह पर दे मारा। तभी मुझे पहली बार पता चला मीना मर चुकी थी। जो मैंने किया है इस तरह उसकी कोई सफाई मैं नहीं दे रहा हूं। यह अलग बात है अगर मैं सही ढंग से सोच रहा होता तो ऐसा नहीं करना था। सैनी की बातों से इतना तगड़ा शॉक मुझे लगा जिसके लिए जरा भी तैयार मैं नहीं था। मीना से मेरी आखिरी मुलाकात लेक पर हुई थी। हम दोनों खुश थे.... बेहद खुश।” उसने माथे पर झलक आया पसीना साफ किया- “लेकिन उस रात सैनी के घर ऐसा भूचाल मेरी जिंदगी में आया कि सब कुछ तबाह हो गया। मेरी चहेती मर चुकी थी। मेरी पत्नि ने उसे मार डाला। फिर एक और हत्या उसने कर डाली। सैनी ने अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। मुझे रजामंद करने के लिए जो भी कह सकता था कह डाला। मुझे उसकी बातों पर यकीन नहीं आया। फिर मैंने रंजना से पूछा तो उसने हर एक बात कबूल कर ली- जो भी उसे याद थी। यही वजह थी कि उस रात कोई राह मुझे नहीं सूझ सकी। मैं बाई पास पर गया और जो सैनी कराना चाहता था कर दिया। तुम्हारा अंदाजा बिल्कुल सही था। मैंने अपने आदमियों को रिलीव करके ट्रक अपने इलाके से गुजर जाने दिया। इस पूरे सिलसिले में यही मेरे लिए सबसे शर्मनाक बात है।”
-“जौनी वापस तुम्हारे इलाके में आ गया है।”
-“जानता हूं। मगर इससे वो तो नहीं बदल सकता जो मैंने किया था।”
चौधरी पीड़ित स्वर में बोला- “पिछले अड़तीस घंटों में मैंने इस पूरे एरिये का चप्पा-चप्पा छान मारा। यह जाहिर करते हुए कि जौनी और उस ट्रक को ढूंढ रहा था। जबकि असल में मुझे मीना की लाश की तलाश थी। सैनी बेहद चालाक था। उसने मुझे नहीं बताया कि लाश कहां थी। यह उसका एक और होल्ड था मेरे ऊपर। मीना और मनोहर की हत्याओं के बारे में पता चलने के बाद मैं रंजना को उस रात घर छोड़ने की बजाय साइकिएटिस्ट के पास ले जाना चाहता था। लेकिन ऐसा नहीं कर सका। क्योंकि सैनी के इशारे पर नाचने को मजबूर था।”
-“तुम्हारी पत्नि वाकई साइको है?”
-“वह इमोशनली डिस्टर्ब्ड है। तुम्हें अबनॉर्मल नहीं लगती?”
राज ने जवाब नहीं दिया।
-“जब से मैं उसे जानता हूं कभी पूरी तरह नॉर्मल नहीं रही। जब बवेजा के घर में थी तो बवेजा के सनकीपन की वजह से कभी खुश नहीं रही। खुद को उपेक्षित और फालतू की चीज समझती रही.....।”
-“यह जानते हुए भी तुमने उससे शादी कर ली।?”
-“मैं खुद भी जज्बाती आदमी हूं।” संक्षिप्त मोन के पश्चात बोला- शायद इसलिए उसकी ओर खींचता चला गया। शादी के बाद सब ठीक ही चल रहा था। और अगर बच्चे पैदा हो जाते तो शायद बिल्कुल ठीक चलता रहना था। बच्चों की कमीने हमारी जिंदगी को नीरस कर दिया.....।”
-“क्या तुम रंजना को प्यार नहीं करते थे?”
-“करता था। मगर दिल से कभी नहीं कर पाया।”
-“रंजना दिमागी तौर पर एक बीमार लड़की थी। उसे प्यार भी तुम नहीं करते थे फिर भी तुमने उससे शादी की। क्यों? क्या मजबूरी थी?”
चौधरी ने सर झुका लिया।
रंजना के घर के हालात और उसकी अपनी हालत की वजह से मुझे उससे हमदर्दी थी। एक शाम बारिश से बचने के लिए मैं उसके घर गया। वह घर में अकेली थी। एकांत में न जाने कैसे मुझ पर शैतान सवार हो गया। उसने बहुत रोका। बराबर इंकार करती रही। मगर मैं खुद को नहीं रोक सका और उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला। उसमें रंजना की कोई मर्जी नहीं थी। फिर इत्तफाक से उसे हमल ठहर गया और उसने अबार्शन कराने से इंकार कर दिया.....।”
-“यानी तुमने उससे रेप किया था फिर तुम्हें एक शरीफ आदमी और ईमानदार अफसर की अपनी पोजीशन को बचाने के लिए मजबूरन शादी करनी पड़ी।”
-“ऐसा ही समझ लो।”
-“मीना तुम्हारी जिंदगी में कब और कैसे आई?”
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