RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
सामने रंगीला सेठ खड़ा था, दारू के उस ठेके का मालिक !
लगभग पचास-पचपन वर्ष का व्यक्ति ! लाल-सुर्ख आंखें ! लम्बा-चौड़ा डील-डौल और शक्ल-सूरत से ही बदमाश नजर आने वाला ।
“र.. रंगीला सेठ अ...आप !” राज की आवाज थरथरा उठी- “अ...आप !”
राज कुर्सी छोड़कर उठा ।
“बैठा रह ।” रंगीला सेठ ने उसके कंधे पर इतनी जोर से हाथ मारा कि वह पिचके गुब्बारे की तरह वापस धड़ाम से कुर्सी पर जा गिरा ।
“म...मैंने आपको थोड़े ही बुलाया था सेठ ?”
“मुझे मालूम है, तूने मुझे नहीं बुलाया ।” रंगीला सेठ गुर्राकर बोला ।
“फ...फिर आपने क्यों कष्ट किया सेठ ?”
“ले...पढ़ इसे ।” रंगीला सेठ ने कागज का एक पर्चा उसकी हथेली पर रखा ।
“य...यह क्या है ?”
“उधारी का बिल है ।” रंगीला सेठ ने पुनः गुर्राकर कहा- “पिछले दस दिन से तू दारू फ्री का माल समझकर चढ़ाये जा रहा है, अब तक कुल मिलाकर एक हज़ार अस्सी रुपये हो गये हैं ।”
“बस !” राज ने दांत चमकाये- “इत्ती-सी बात ।”
“चुप रह ! यह इत्ती-सी बात नहीं है, मुझे अपनी उधारी अभी चाहिए, फौरन ।”
“ल...लेकिन मेरे पास तो आज एक पैसा भी नहीं है सेठ ।” राज थोड़ा परेशान होकर बोला- “चाहे जेबें देख लो ।”
उसने खाली जेबें बाहर को पलट दीं ।
“जेबें दिखाता है साले- जेबें दिखाता है ।” रंगीला सेठ ने गुस्से में उसका गिरहबान पकड़ लिया- “मुझे अभी रोकड़ा चाहिये । अभी इसी वक्त ।”
“ल...लेकिन मेरी मजबूरी समझो सेठ ।”
“क्या समझूं तेरी मजबूरी ।” रंगीला सेठ चिल्लाया- “तू लंगड़ा हो गया है...अपाहिज हो गया है ?”
“य...यह बात नहीं...आपको तो मालूम है ।” राज सहमी-सहमी आवाज में बोला- “कि मैं ऑटो रिक्शा ड्राइवर हूँ और पिछले पंद्रह दिन से दिल्ली शहर में ऑटो रिक्शा ड्राइवरों की हड़ताल चल रही है । इसलिए काम-धंधा बिल्कुल चौपट पड़ा है और बिल्कुल भी कमाई नहीं हो रही ।”
“यह बात तुझे दारू पीने से पहले नहीं सूझी थी ।” रंगीला सेठ डकराया- “कि जब तेरा काम-धंधा चौपट पड़ा है, तो तू उधारी कहाँ से चुकायेगा ? लेकिन नहीं, तब तो तुझे फ्री की दारू नजर आ रही होगी । सोचता होगा- बाप का माल है, जितना मर्जी पियो । लेकिन अगर तूने आज उधारी नहीं चुकाई, तो तेरी ऐसी जमकर धुनाई होगी, जो तू तमाम उम्र याद रखेगा ।”
रंगीला सेठ को चीखते देख फौरन तीन मवाली उसके इर्द-गिर्द आकर खड़े हो गये ।
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