RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
“म...मगर... ।”
राज के मुँह से निकलने वाले आगे के तमाम शब्द एक लम्बी चीख में परिवर्तित हो गये, क्योंकि गुस्से में भिन्नाते हुए उस सब-इंस्पेक्टर ने राज को न सिर्फ बाहर पकड़कर खींच लिया था बल्कि बाहर खींचते ही उसने धड़ाधड़ उसके मुँह पर तीन-चार ऐसे झापड़ भी जड़े कि वो चीखते हुए घड़ी के पेंडुलम की तरह दायें-बायें झूल गया ।
“जबान चलाता है साले ! अपने बाप से जबान चलाता है ।” उसने एक झापड़ और जड़ा ।
बिलबिला उठा राज ।
उसकी आंखों के गिर्द अनार-पटाखे से छूटने लगे ।
“ल...लेकिन मेरा कसूर तो बोलो साहब ?” राज ने फरियाद की- “म...मेरा अपराध क्या है ?”
“तुझे अपना अपराध नहीं मालूम साले ।” सब-इंस्पेक्टर ने उसे कहर बरपा करती नजरों से घूरा- “तुझे अपना कसूर नहीं मालूम ।”
धड़ाधड़ दो झापड़ बड़े कसकर उसकी कनपटी पर पड़े ।
राज की रुलाई छूटते-छूटते बची ।
“उल्लू के पट्ठे !” सब-इंस्पेक्टर ने उसके बाल पकड़कर झंझोड़े- “इतनी तेज ऑटो रिक्शा चला रहा था, हवाई जहाज बना रखा था इसे और ऊपर से पूछता है मेरा अपराध क्या है, मेरा कसूर क्या है ?”
सब-इंस्पेक्टर ने गुस्से में भिन्नाकर उसके पेट में इतनी जोर से घुटना मारा कि वह हलकाये कुत्ते की तरह डकरा उठा ।
सचमुच बड़ा कड़क पुलिस वाला था ।
फिर यह सोचकर राज को राहत मिली कि मामला स्पीडिंग के चालान का था, लाश वगैरह का नहीं ।
“ल...लेकिन इसमें मेरी क्या गलती है साहब ?” राज रुंधे हुए स्वर में कलपते हुए बोला ।
“अच्छा, इसमें तेरी गलती कुछ नहीं ।” सब-इंस्पेक्टर ने उसे भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा- “ऑटो रिक्शा को आंधी तूफान बना रखा था, पुलिस सायरन की आवाज भी तुझे सुनाई नहीं दे रही थी, लेकिन फिर भी तेरी कुछ गलती नहीं ।”
“साहब, मेरे पास एक इमरजेन्सी केस है ।” राज आहत स्वर में बोला- “इसी वजह से मैं ऑटो आंधी-तूफान बनाकर चला रहा था ।”
“इमरजेन्सी, कैसी इमरजेन्सी ?”
“एक लड़की की जान खतरे में है साहब ।”
सब-इंस्पेक्टर ने फौरन अपने हाथ में मौजूद टॉर्च का प्रकाश ऑटो रिक्शा की पिछली सीट पर डाला, डॉली मुँह खोले पड़ी थी । अलबत्ता कम्बल से उसने लाश को बड़े करीने से ढक रखा था ।
“अ...आह ।”
मुँह पर टॉर्च का प्रकाश पड़ते ही डॉली दर्द भरे अंदाज में से कराही, उसने इमरजेन्सी वाली बात शायद सुन ली थी ।
“क्या हआ है इसे ?” लड़की को बीमार हालत में देखा सब-इंस्पेक्टर के तेवर कुछ ढीले पड़े ।
“पेट से है साहब ! दाई ने बोला है कि केस सीरियस है, इसलिए इसे फौरन हॉस्पिटल ले जाओ ।”
“अगर यह बात है, तो पहले क्यों नहीं बताया ?” सब-इंस्पेक्टर चीखा ।
“अ...आपने बोलने का मौका ही कहाँ दिया साहब, अ... आप तो- आप तो एकदम से... ।”
“ठीक है-ठीक है ।” सब-इंस्पेक्टर ने फिर से आंखें लाल-पीली की- “ल...लेकिन यह तो कुछ ज्यादा ही मोटी नजर आ रही है ।”
“व...वो क्या है साहब ।” राज जल्दी से बोला- “य...यह पेट से है न, इ...इसीलिए देखने में ऐसा लगता है ।”
“ओह ! ओह !!” सब-इंस्पेक्टर मुस्कराया ।
उसी के साथ दोनों हवलदार भी हो-हो करके हँसे ।
“अब मैं जाऊं साहब ?” राज ने व्याकुलता दर्शाई- “जितना ज्यादा लेट होऊंगा, उतना ही केस बिगड़ेगा ।”
“ठीक है, जाओ । और सुनो!” सब-इंस्पेक्टर कठोर लहजे में बोला- “आज तो मैंने तुम्हें एमरजेन्सी की वजह से छोड़ दिया है, लेकिन अगर आइन्दा फिर कभी तुमने फ्लाइंग स्क्वॉयड के सायरन की आवाज सुनकर भी ऑटो रिक्शा न रोकी, तो फिर तुम्हारी खैर नहीं । समझे ।”
“स...समझ गया साहब ! समझ गया ।”
“अब दफा हो जाओ यहाँ से ।”
राज तुरन्त ऑटो लेकर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया ।
उसे ऐसा लगा, मानो जान बची और लाखों पाये ।
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