RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
यही वो पल था, जब स्थानीय थानाध्यक्ष की बड़ी कड़कदार आवाज राज के कानों में पड़ी- “इसने क्या किया है ?”
फौरन राज की विचार-श्रृंखला टूटी ।
“साहब!” वहीं खड़ा एक हवलदार बोला- “यह बस में बिना टिकट यात्रा कर रहा था, रात ही पकड़ा गया है ।”
“क्यों बे ?” थानाध्यक्ष चिंघाड़ा- “बिना टिकट यात्रा क्यों कर रहा था ?”
“प...पैसे नहीं थे साहब ।”
“उल्लू के पट्ठे !” थानाध्यक्ष ज्यालामुखी की तरह फटा- “पैसे नहीं थे, तो बस में ही क्यों चढ़ा था ? पैदल चलते टांगें टूटती हैं साले ?”
राज जबड़ा भींचे खड़ा रहा ।
वो जानता था कि वहाँ जेब कटने वाली उसकी बात पर कोई यकीन नहीं करेगा ।
अगर उसने वह बात अपनी जबान से बाहर निकाली, तो उसकी धुनाई के चांस बढ़ जाने थे ।
वह घुटा हुआ मुजरिम साबित हो जाना था ।
“नाम क्या है तेरा ?” थानाध्यक्ष ने उसे कोड़े जैसी फटकार लगायी ।
राज ने एक सकपकायी-सी नजर योगी पर डाली ।
“उधर क्या देख रहा है हरामी !” थानाध्यक्ष पुनः आंखें लाल-पीली करके चिंघाड़ा- “इधर देख, नाम क्या है तेरा ?”
“क...राज ।”
“रहता कहाँ है ?”
यहीं, दिल्ली में ।”
“अबे भूतनी के दिल्ली में कहाँ रहता है ?” थानाध्यक्ष गुर्राया- “मोहल्ले का भी कुछ नाम होगा ?”
अब...अब राज की जान हलक में आ फंसी ।
उसे मालूम था कि इधर उसने सोनपुर का नाम अपनी जबान से बाहर निकाला और उधर इंस्पेक्टर योगी फौरन हरकत में आ जायेगा, एकदम पहचान लेगा उसे और उसके बाद उसकी खैर नहीं थी ।
“अबे तेरी माँ का पैंदा मारूं, जवाब नहीं दिया ।” थानाध्यक्ष ने दांत किटकिटाये- “कहाँ रहता है ?”
राज चुप !
“साले- हरामी, बोलता नहीं है । कुत्ता समझता है मुझे ! मुँह में जबान नहीं है तेरे ।” आक्रोश में चिंघाड़ते हुए थानाध्यक्ष कुर्सी से उछलकर खड़ा हुआ तथा फिर बिजली जैसी फुर्ती से अपने डंडे की तरफ झपटा ।
राज का पोर-पोर कांप उठा ।
“मैं देखता हूँ सूअर !” थानाध्यक्ष फिर दहाड़ा- “मैं देखता हूँ कि तू कैसे नहीं बोलता । तेरा तो बाप भी बोलेगा । अगर आज मैंने मार-मारकर तेरे जिस्म से चमड़ी अलग न कर दी, तो मैं अपने बाप से पैदा नहीं ।”
गुस्से में गरजते हुए थानाध्यक्ष ने झपटकर अपना डंडा उठाया, फिर वह जैसे ही उसे मारने के लिए दौड़ा ।
“न...नहीं ।” राज आतंकित होकर चिल्ला उठा- “नहीं ।”
“क्या नहीं ?”
“म...मारना नहीं, मारना नहीं साहब !” राज खौफजदां आलम में बोला- “म...मैं बताता हूँ- सब कुछ बताया हूँ ।”
“जल्दी बता ।”
“क...सोनपुर, म...मैं सोनपुर में रहता हूँ साहब !”
☐☐☐
और जिस बात का राज को डर था, वही हुआ ।
‘सोनपुर’ का नाम लेते ही धमाका-सा हो गया ।
सोनपुर का नाम सुनकर थानाध्यक्ष तो न चौंका, लेकिन इंस्पेक्टर योगी जरूर उछल पड़ा ।
उसकी आंखों में एकाएक अचम्भे जैसे भाव उभरे ।
“त...तू सोनपुर में रहता है ?”
राज चुप !
“त...तू वही राज है न ।” इंस्पेक्टर योगी झटके से कुर्सी छोड़कर उठा और फिर तेजी से उसकी तरफ बढ़ा- “व...वही राज, जो ऑटो चलाता है ?”
राज की आंखों में अब खौफ की छाया डोल गयी ।
उसने अपने हाथ-पैर ढीले छोड़ दिये, वह समझ चुका था कि तमाम कोशिशों के बावजूद वह आखिरकार योगी के शिंकजे में फंस गया है ।
“जवाब दे ।” योगी ने उसका गिरेहबान पकड़कर बुरी तरह झंझोड़ा- “तू ऑटो ड्राइवर राज ही है न ?”
“ह...हाँ ।” राज भारी मन से बोला- हाँ, मैं वही हूँ ।”
“और...और वह भी तू ही था ।” योगी उत्तेजित हो उठा- “जो बुधवार की रात को ऑटो ड्राइवरों की हड़ताल के बावजूद रीगल सिनेमा के सामने खड़ा था ?”
“व...वो मैं नहीं था ।”
“झूठ बोलता है साले !” योगी हिंसक लहजे में बोला- “झूठ बोलता है । मैंने पूरे केस की खूब अच्छी तरह इंवेस्टीगेशन की है. मेरे पास ऐसी सरकमस्टेंशनल एविडेन्सिज (मौका-ए-वारदात की गवाहिया) और सबूत हैं, जो साफ-साफ तेरी वहाँ उपस्थिति साबित करते हैं ।”
“आप चाहे कुछ भी कहें साहब !” राज दृढ़ लहजे में बोला- “मैं बुधवार की रात रीगल सिनेमा के सामने नहीं था, तो नहीं था । फिर पूरे दिल्ली शहर में ऑटो ड्राइवरों की हड़ताल चल रही है, मुझे क्या अपनी आफत बुलानी थी साहब, जो मैं यूनियन के नियम तोड़कर ऑटो के साथ रीगल के सामने जाकर खड़ा होता ?”
“यानि तूने नियम नहीं तोड़ा ?” योगी ने उसे भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा ।
“ब...बिल्कुल भी नहीं साहब ।”
“झूठ बोलता है हरामी !” योगी ने उसका गिरेहबान और बुरी तरह झंझोड़ा- “झूठ बोलता है ।”
“म...मेरी क्या मजाल साहेब, जो मैं आपसे झूठ बोलूं ? आप जैसे बड़े सरकारी अफसर से झूठ बोलूं ?”
“यानि तू !” इंस्पेक्टर योगी जहरीले नाग की तरह फुंफकारा- “तू बुधवार की रात वाकई रीगल सिनेमा के सामने नहीं था ?”
“बिल्कुल नहीं ।”
“फिर तू रात डॉली के घर से भागा क्यों ?” योगी चीखता चला गया- “अगर तू बेकसूर था साले ।” योगी ने उसे झंझोड़ा- “तूने कुछ नहीं किया था, तो रात मेरी आवाज सुनकर तेरी हवा खराब क्यों हुई ?”
“क...कौन कहता है ।” राज ने पूरे ढीठपने से उत्तर दिया- “कि मैं रात डॉली के घर से भागा था ?”
“मैं कहता हूँ ।”
“ज...जरूर आपको कोई गलतफहमी हो गयी है साहब, म...मैं तो नहीं भागा ।”
“झूठ बोलता है- फिर झूठ बोलता है ।” आक्रोश में चिंघाडते हुए योगी ने अपने लोहे जैसे हाथ का एक ऐसा प्रचण्ड झांपड़ राज के मुँह पर मारा कि वह हलक फाड़कर चिल्ला उठा ।
उसकी आंखों के गिर्द रंग-बिरंगे तारे घूम गये ।
“मुझे झूठा साबित करता है, मेरे से जबानदराजी करता है ।” योगी ने धड़ाधड़ दो झांपड़ और उसके मुँह पर जड़े, फिर चीखता हुआ बोला- “रात बल्ले ने एकदम साफतौर पर मुझे रिपोर्ट दी थी कि उसने तुझे अपनी आंखों से डॉली के घर में घुसते देखा है, उसकी रिपोर्ट मिलते ही मैं फौरन भागा-भागा सोनपुर पहुँचा ।”
“ब...बल्ले ने जरूर आपसे झूठ बोला होगा साहब !” राज कंपकंपाये स्वर में बोला- “व...वो समझता है कि मैंने उसके चाचा का खून किया है, इसी वजह से वो मुझसे बदला लेना चाहता है ।”
इंस्पेक्टर योगी फौरन हवलदार की तरफ घूमा ।
“रात टिकट चेकर इसे किस वक्त यहाँ पकड़कर लाये थे ?”
हवलदार सकपकाया ।
“जवाब दो, क्या बज रहा होगा उस समय ?”
“ए...एकदम कन्फर्म तो मुझे नहीं मालूम साहब !”
“फिर भी अंदाजन ?”
‘य...यही कोई साढ़े बारह और एक के बीच का समय रहा होगा ।”
“सुना-सुना ।” योगी फिरकनी की तरह वापस राज की तरफ घूम गया- “सुना, हवलदार क्या कह रहा है ।”
“क्या कह रहा है ?”
“उल्लू के पट्ठे !” योगी तिलमिलाया- “यह कहता है कि टिकट चेकर तुझे साढ़े बारह और एक बजे के बीच में यहाँ लेकर आये । यानि उन्होंने साढ़े बारह बजे के करीब तुझे बस के अंदर पकड़ा और बारह बजे के आसपास मैंने बल्ले की इन्फॉर्मेशन पर डॉली के घर रेड डाली थी । इन सभी घटनाओं की टाइमिंग से यह बात पूरी तरह साबित होती है कि तूने डॉली के घर से फरार होकर सीधे बस पकड़ी और तभी तू बिना टिकट यात्रा करने के अपराध में गिरफ्तार भी हो गया ।”
“मैं पुलिस से बचकर नहीं भागा ।”
“अगर तू पुलिस से बचकर नहीं भागा ।” इंस्पेक्टर योगी दांत किटकिटाता हुआ बोला- “तो तूने बस क्यों पकड़ी ? इतनी रात को कहाँ जा रहा था तू ?”
“म...मैंने बस ऐसी ही पकड़ ली ।”
“ऐसे ही !”
“द...दरअसल मेरा थोड़ा सैर-सपाटा करने को दिल चाहा था ।”
“इतनी रात गये ?” योगी ने उसे भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा- “इतनी रात गये तेरा सैर-सपाटा करने को दिल चाहा था साले ! जेब में एक पैसा नहीं था और तेरा सैर-सपाटा करने को दिल चाहा था । वाह, क्या कहानी है ।”
राज सकपकाकर दायें-बायें बगलें झांकने लगा ।
उसकी खामोशी ने योगी के गुस्से पर घी डालने जैसा काम किया, योगी ने आवेश में फुंफकारते हुए राज के शरीर पर लात-घूंसे बरसा डाले ।
हाहाकार कर उठा राज !
उसके करुणादाई रूदन से कक्ष की दीवारें दहल गयीं ।
परन्तु योगी ने उस पर तरस नहीं खाया, उसका कलेजा नहीं कांपा ।
तीन-चार मिनट में ही उसने राज की वो दुर्गति कर डाली, जो शायद ही उसकी जीवन में पहले कभी हुई हो ।
कपड़े शरीर पर तार-तार होकर झूलने लगे ।
राज अब जमीन पर चारों खाने चित्त पड़ा जोर-जोर से हिचकियां लेकर रो रहा था ।
“अभी देखता हूँ साले !” योगी ने भड़ाक से उसके एक लात जड़ी और फुंफकारा- “अभी देखता हूँ कि तू कैसे कबूल नहीं करता कि उस रात रीगल सिनेमा के सामने तू ही था ।”
फिर योगी टेलीफोन की तरफ बढ़ गया ।
स्थानीय थानाध्यक्ष जो अभी तक वस्तुस्थिति से अंजान था, उसने जिज्ञासावश पूछा- “आखिर बात क्या है योगी- इसने क्या किया है ?”
“इसने !” इंस्पेक्टर योगी ने हिचकियों से रोते राज की तरफ भाले की तरह उंगली उठाई- “इसने चीना पहलवान की हत्या की है ।”
“च...चीना पहलवान की हत्या !”
वहाँ मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के मुँह से चीना पहलवान के नाम सिसकारी छूट गयी ।
खासतौर पर बड़ी-बड़ी मूंछों वाला वह हत्यारा तो सन्न ही खड़ा रह गया, जिसने राज से सारी रात टांगें दबवाई थीं ।
सब दंग !
जबकि राज अभी भी जोर-जोर से हिचकियां लेकर रो रहा था ।
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