Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
12-05-2020, 12:39 PM,
#35
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
उसके बाद जज ने अपना फैसला सुनाया ।
“मिस्टर राज पर लगाया गया कोई भी अपराध अदालत में साबित नहीं हो सका है, इसलिये ये अदालत मिस्टर राज को चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम से बाइज्जत रिहा करती है । परन्तु मिस्टर राज ने दिल्ली परिवहन निगम की बस में बिना टिकट यात्रा करके जरूर कानून का उल्लंघन किया है, इसलिये यह अदालत मिस्टर राज को एम.वी. एक्ट 1988 की धारा 178 के अन्तर्गत बिना टिकट यात्रा करने के अपराध में पांच सौ रुपये जुर्माना या पंद्रह दिन बामुशक्कत सख्त कैद की सजा सुनाती है ।”
यशराज खन्ना ने फौरन कोर्ट में जुर्माने की राशि जमा कर दी ।
इस तरह राज कानून के शिकंजे में फंसने के बावजूद बच निकला ।
पहली ही पेशी पर बच निकला ।
मगर नहीं !
राज बचा कहाँ था ?
सच्चाई तो ये है कानून के शिकंजे से निकलने के बाद वो एक और ऐसे भयानक शिकंजे में जा फंसा कि उस शिकंजे में फंसने से बेहतर तो यही था, वो कानून के शिकंजे में फंसा रहता ।
बहरहाल राज के साथ ह्रदयविदारक और आश्चर्य से भरी घटनाओं का दौर जारी रहा ।
आगे भी ऐसी-ऐसी सनसनीखेज घटनायें उसके साथ घटी, जिन्होंने उसे हिलाकर रख दिया ।
☐☐☐
“यह तुमने क्या किया डॉली ।” अदालत के प्रांगण में आते ही राज डॉली पर डॉली पर बरस पड़ा था- “इतना बड़ा झूठ क्यों बोला तुमने ?”
“तो और क्या करती मैं ?” डॉली ने कहा- “अदालत तुम्हें फांसी की सजा सुना देती और मैं चुप रहती, खामोश रहती ?”
“ल...लेकिन इतना बड़ा झूठ डॉली !” राज की आवाज कंपकंपायी-“अब दुनिया क्या कहेगी ? क...कितनी उंगलियां उठेंगी तुम्हारे चरित्र पर ?”
“मुझे लोगों की परवाह नहीं है, सिर्फ तुम्हारी परवाह है । मैं इस दुनिया के बगैर रह सकती हूँ, म...मगर तुम्हारे बिना नहीं रह सकती ।”
“म...डॉली !” राज की आवाज कंपकंपा उठी ।
“और फिर एक झूठ से जिंदगी कहीं ज्यादा बड़ी होती है राज !”
“ल...लेकिन मैं पूरी तरह निर्दोष कहाँ था ।” राज का स्वर आत्मग्लानि से भर गया- “कानून से छिपकर लाश ठिकाने लगाना भी तो आखिर एक अपराध ही है ।”
“नहीं है अपराध ।” डॉली बोली- “ऐसे अपराध दुनियां करती है राज ! तुमने सिर्फ लाश ठिकाने लगायी थी, वह भी दौलत के लिये, धनवान बनने के लिये । दुनिया में ऐसा कौन आदमी है, जो दौलत के लिये पाप नहीं करता ?”
राज हैरान निगाहों से डॉली को देखने लगा ।
“ल...लेकिन तुमने खन्ना जैसे बड़े वकील की फीस कहाँ से भरी डॉली ?”
“म...मैंने फीस भरी ?” डॉली चौंकी ।
“नहीं तो किसने भरी ?” राज बोला ।
“मुझे क्या पता, किसने भरी ?” डॉली की आवाज में साफ-साफ हैरानी थी- “मैंने तो उसे एक पैसा भी नहीं दिया ।”
राज के दिमाग में पुनः धमाके से होने लगे ।
उसे अपने कानों पर एकाएक यकीन न हुआ ।
एक नये ‘मायाजाल’ की शुरुआत हो चुकी थी ।
“दरअसल यशराज खन्ना खुद मेरे पास सोनपुर में आया था ।” डॉली ने आगे बताया- “मैं तो उसे जानती भी नहीं थी, उसने मुझसे कहा कि राज को अदालत से रिहा कराने के लिये उसे मेरी गवाही की जरुरत है, मैं फौरन तैयार हो गयी, इंकार का प्रश्न ही नहीं था ।”
“उसने तुमसे अपनी फीस वगैरा के बारे में कोई बात नहीं की ?” राज का कौतूहल बढ़ता जा रहा था ।
“नहीं-उसने मुझसे इस बारे में कोई बात नहीं की । यशराज खन्ना ने मुझसे बस इतना कहा कि वो तुम्हारा केस लड़ रहा है, मुझे तो उस मैडीकल रिपोर्ट के बारे में भी कुछ मालूम न था, जिसे यशराज खन्ना ने अदालत में पेश किया । मुझे गवाह के तौर पर जो बयान देना था, खन्ना ने उस बयान की डिटेल भी मुझे बीच रास्ते में अपनी कार के अंदर बतायी ।”
राज सन्न रह गया ।
बिल्कुल सन्न ।
उसे लगने लगा, कुछ होने वाला है ।
कुछ बेहद चौंका देने वाला ।
तभी राज ने यशराज खन्ना को कोर्ट-रूम से बाहर निकलते देखा, वह अपने कुछ वकील मित्रों और प्रशंसकों से घिरा उसी तरफ बढ़ा चला आ रहा था ।
राज ने उस तरफ तेजी से कदम बढ़ाये ।
☐☐☐
“वकील साहब !” राज यशराज खन्ना के सामने पहुँचकर बोला-“आपने बिना फीस लिये मेरा जो केस लड़ा, यह अहसान मैं आपका जिन्दगी भर नहीं उतार सकता । आप सचमुच फरिश्ते हैं ।”
“म...मैंने बिना फीस लिये केस लड़ा ?” यशराज खन्ना के नेत्र यूं हैरानी से फटे, मानो उसने कोई बहुत चौंका देने वाली बात सुन ली हो- “इस तरह का अहसान तो मैंने आज तक अपनी पूरी लाइफ में कभी किसी पर नहीं किया बंधु ! आज से पांच साल पहले जब मैंने जिंदगी में पहली बार वकील का यह काला चोगा पहना था, तभी एक सौगन्ध खाई थी कि बिना फीस लिये मैं अपने सगे बाप का भी केस नहीं लड़ूंगा और अपने उस फैसले पर मैं आज तक अटल हूँ ।”
“इ...इसका मतलब आपको फीस मिल गयी ?” राज के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“बिलकुल मिल गयी बंधु ! अगर मुझे फीस न मिलती या अगर मुझे कोई तुम्हारे केस पर अप्वाइंट न करता, तो मुझे भला तुम्हारा केस लड़ने की क्या जरुरत थी ? मैं एक क्रिमिनल लॉयर हूँ बंधु, कोई समाज सेवक थोड़े ही हूँ ।”
ल...लेकिन मेरा केस लड़ने की आपको कितनी फीस मिली ?”
“पांच लाख रुपये ।”
प...पांच लाख । “राज के नेत्र अचम्भे से उबले ।
“संभल के ।” यशराज खन्ना ने उसे फौरन थाम लिया था-“संभाल के बंधु ! पांच लाख का नाम सुनकर शायद तुम्हें मिर्गी का दौरा पड़ गया लगता है ।”
“ल...लेकिन आपको इतनी रकम किसने दी साहब ? क...किसने आपको मेरे केस पर अप्वॉइंट किया ?”
“एक हमारे-तुम्हारे जैसा ही सिम्पल-सा आदमी था बंधु ! उसी ने मुझे तुम्हारे केस पर अप्वॉइण्ट किया था ।”
“अ...आप मुझे उस आदमी का नाम बता सकते हो साहब, उसका एड्रेस बता सकते हो ?”
“क्या करोगे उसका नाम और एड्रेस जानकर ?”
“उ...उसका धन्यवाद अदा करूंगा साहब ।” राज बोला- “उस फरिश्ते को दण्डवत प्रणाम करूंगा, जो उसने मेरे जैसे मामूली आदमी की जिंदगी बचाने के लिये अपने पांच लाख रुपये दांव पर लगा दिये । वैसे भी कम-से कम एक बार मुझे उस फरिश्ते की सूरत तो देखनी ही चाहिये ।”
“कह तो तुम ठीक रहे हो बन्धु !” यशराज खन्ना ने अपना सोने के फ्रेम वाला ऐनक दुरुस्त किया ।
यही वो पल था, जब किसी वाहन का जोर-जोर से दो बार हॉरन बजा ।
वह हॉरन बेहद ख़ास स्टाइल में बजाया गया था ।
☐☐☐
यशराज खन्ना और राज, दोनों ने चौंककर हॉरन की दिशा में देखा ।
कोर्ट के कच्चे प्रांगण में ही सफेद रंग की एक होंडा सिटी खड़ी थी, उसी कार में बैठे व्यक्ति ने जोर-जोर से दो बार हॉरन बजाये थे ।
खन्ना से दृष्टि मिलते ही वह मुस्कराया ।
“लो बंधु !” खन्ना के होठों पर भी मुस्कान दौड़ी थी- “तुम अभी मुझसे उस व्यक्ति के बारे में पूछ रहे थे न, जिसने मुझे तुम्हारे केस पर अप्वॉइण्ट किया और फीस के पांच लाख रुपये दिये, यही वो व्यक्ति है ।”
राज ने आश्चर्यचकित निगाहों से उस व्यक्ति को देखा ।
वह एक हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला कद्दावर जिस्म का आदमी था, उसने शरीर पर शानदार थ्री पीस सूट पहना हुआ था और आंखों पर काले रंग का सनग्लास चढ़ा रखा था ।
राज के लिये वह बिलकुल अजनबी आदमी था ।
उसने जीवन में पहले कभी उसकी शक्ल तक नहीं देखी थी ।
“इ...इस आदमी ने आपको मेरा केस लड़ने के लिये अप्वॉइण्ट किया ?”
“हाँ ।”
“ल...लेकिन मेरा तो इससे कोई वास्ता नहीं ।”
“तुम्हारा इससे कोई वास्ता न बंधु, मगर हो सकता है कि उसका तुम्हारे से कोई वास्ता हो ।”
तभी कार में बैठे उस आदमी ने फिर जोर-जोर से दो बार हॉरन बजाया ।
“जाओ भाई !” खन्ना ने उसका कंधा थपथपाया-“वह तुम्हें ही बुला रहा है ।”
“ल...लेकिन... !”
“अब जो सवाल पूछना हो, उसी से पूछना बंधु । तुम्हारे सवालों के जवाब वही बेहतर दे सकता है ।”
राज मरे-मरे कदमों से कार की तरफ बढ़ा ।
न जाने क्यों उसे किसी भारी खतरे का अहसास हो रहा था ।
“और सुनो ।”
खन्ना की आवाज सुनकर राज के कदम फिर ठिठके ।
“मैंने तुम्हें बचाने के लिये कोर्ट में जो मनगढंत कहानी सुनायी थी, मैं समझता हूँ कि उससे तुम्हारी भावनाओं को काफी ठेस पहुँची है, उसके लिये मैं तुमसे माफी चाहता हूँ । लेकिन अगर सच पूछते हो, तो तुम्हें बचाने के लिये इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी न था । क्योंकि काफी सबूत तुम्हारे खिलाफ अदालत में इकट्ठे हो गये थे ।”
यशराज खन्ना ने आगे भी कुछ कहा, परन्तु वह सब राज ने न सुना ।
क्योंकि तभी उसने बल्ले को बड़े खतरनाक अंदाज में लम्बे फल वाला चाकू खोलकर खन्ना की तरफ लपकते देख लिया था ।
उसके चेहरे पर हैवानियत बरस रही थी ।
वह साक्षात दरिन्दा नजर आ रहा था ।
“खन्ना साहब !” राज चीखता हुआ यशराज खन्ना के ऊपर गिद्ध की तरफ झपटा- “ब...बचो खन्ना साहब ।”
लेकिन वह खन्ना को बचा पाता, उससे पहले ही बल्ले उसके सिर पर जा चढ़ा ।
अगले ही पल बल्ले का चाकू हवा में इस तरह कौंधा, जैसे आकाश में बिजली कौंधी हो, फिर वो पलक झपकते ही खन्ना के सीने में जा घुसा ।
“न...नहीं ।”
चिंघाड़ उठा खन्ना, वह भैंसे की तरह डकराया ।
उसके हाथ में मौजूदा फाइल छूट गयी और उसके अंदर दबे कागज़ हवा में इधर-उधर उड़े ।
जबकि बल्ले ने एक ही बार में सब्र नहीं किया था ।
वह बेहद जुनूनी अंदाज में एक के बाद एक खन्ना के ऊपर चाकू से वार करता रहा ।
खन्ना की दहशतनाक चीखें गूंजती रहीं, गूजती रहीं ।
“साले !” साथ ही साथ बल्ले चिंघाड़ता भी जा रहा था- “मेरे चाचा के हत्यारे को बचाने के लिये झूठ बोलता है, नहीं छोडूंगा । मैं आज तुझे नहीं छोडूंगा । तू कानून का फैसला बदल सकता है हरामजादे, लेकिन बल्ले का नहीं । और ले, और ले !” भीषण गर्जना करते हुए बल्ले का चाकू वाला हाथ बिलकुल मशीनी अंदाज में खन्ना के सीने पर पड़ने लगा ।
खून में लथपथ हो गया यशराज खन्ना ।
कोर्ट प्रांगण में खड़ा हर व्यक्ति स्तब्ध !
भौंचक्का !
किसी में भी इतनी हिम्मत न हुई, जो वह आगे बढ़कर बल्ले को दबोचे ।
उधर साक्षात कोबरा नाग की तरह फुंफकारता हुआ बल्ले फिर राज की तरफ पलटा ।
उफ़ !
उसकी आँखों में खून-ही-खून था ।
छक्के छूट गये राज के ।
जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा हो गया ।
“साले-हलकट !” बल्ले अर्द्धविक्षिप्तों की भांति चिंघाड़ा- “मैं आज तुझे भी नहीं छोडूंगा, तुझे भी नहीं ।”
राज हाय-तौबा मचाता वहाँ से अंजानी दिशा में भागा ।
उसके पीछे-पीछे बल्ले लपका ।
सचमुच आज उस पर बेपनाह जुनून सवार था ।
राज को अपना दिल दहलता-सा लगा ।
उसकी रूह फनां हो रही थी ।
“म...मैंने चीना पहलवान का खून नहीं किया ।” राज भागता हुआ दहशतजदां आलम में चिल्ला रहा था- “म...मैं बेकसूर हूँ । म...मैं निर्दोष हूँ ।”
उसी क्षण धुआंधार रफ़्तार से दौड़ती हुई सफेद रंग की वही होंडा सिटी राज के नजदीक आकर रुकी ।
फिर धड़ाक से उसका स्लाइडिंग डोर खुला ।
“अंदर आ जाओ ।” साथ ही वही अजनबी शख्स चिल्लाया था ।
राज फ़ौरन लपककर कार में सवार हो गया ।
उसके बाद कार जिस तरह धुआंधार रफ्तार से दौड़ती हुई उसके नजदीक आयी थी, वैसी ही धुंआधार रफ्तार से आगे दौड़ती चली गयी ।
राज ने पीछे मुड़कर देखा, तो पाया कि इंस्पेक्टर योगी एकाएक किसी जिन्न की तरह बेपनाह फुर्ती से दौड़ता हुआ कोर्ट के प्रांगण में प्रकट हुआ था, फिर वो वहशी बल्ले के ऊपर एकदम गिद्ध की तरह झपटा ।
☐☐☐
कोई दस मिनट तक सफेद रंग की होंडा सिटी कार दिल्ली की विभिन्न सड़कों पर दौड़ती रही ।
राज जो थोड़ी देर पहले बुरी तरह हॉफ रहा था, बेहद डरा हुआ था, वह भी अब अपने आपको काफी हद तक संतुलित कर चुका था ।
मौत कैसे उसके करीब से गुजर गयी थी ।
कैसा वो आज मरते-मरते बचा था ।
राज के होश जब थोड़े से संतुलित हुए, तो उसने उस अजनबी व्यक्ति को देखा, जो वैन ड्राइव कर रहा था ।
अगर उस अजनबी के शानदार कपड़ों को नजरअंदाज कर दिया जाये, तो वह कोई धनवान कम तथा कोई गुण्डा-मवाली ज्यादा नजर आता था ।
“क्या बात है बिरादर, मुझे यूं घूरकर क्या देख रहा है ?” अजनबी थोड़े कठोर लहजे में बोला ।
“क...कुछ नहीं ।”
“फिर भी, कुछ तो ।”
“द...दरअसल मैं यह याद करने की कोशिश कर रहा हूँ साहब, मैंने आपको आज से पहले कहाँ देखा है ? या फिर हमारे बीच क्या सम्बन्ध हैं ?”
मुस्कुराया अजनबी ।
“याद आया कुछ ?”
“न...नहीं साहब, कुछ याद नहीं आ रहा ।”
“मैं तुम्हारी कुछ मदद करूं ?”
क...किस मामले में ?”
“तुम्हारी याददाश्त वापस लाने में, अपने आपको आइडेण्टीफाई करने में ।”
“हाँ-हाँ क्यों नहीं । जरूर मदद करो ।”
“तो सुनो बिरादर, तुम ख्वामखाह अपने दिमाग पर जोर डाल रहे हो, ख्वामखाह परेशान हो रहे हो ।”
“क...क्यों ?”
“क्योंकि बिरादर, तुम्हारे और मेरे बीच कोई सम्बन्ध नहीं है, हम दोनों आज से पहले कभी मिले भी नहीं, फिर ऐसी परिस्थिति में तुम अपने दिमाग पर जोर डालकर ख्वामखाह परेशान ही तो हो रहे हो ।”
राज दंग रह गया ।
कार अभी भी तूफानी गति से सड़क पर दौड़ रही थी ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात - by desiaks - 12-05-2020, 12:39 PM

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