RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
“अ...आपके और मेरे बीच सचमुच कोई सम्बन्ध नहीं ?” राज ने पुनः हैरतअंगेज स्वर में पूछा ।
“बिलकुल भी नहीं बिरादर ! हमारे बीच सम्बन्ध क्या खाक होना है ? मैं तो आज तुम्हारी सूरत भी पहली बार देख रहा हूँ ।”
राज की कौतूहलता अब अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी ।
“अ...अगर हमारे बीच कोई सम्बन्ध नहीं साहब ।” राज सनसनाये स्वर में बोला-“तो आपने मुझे छुड़ाने के लिये यशराज खन्ना जैसे महंगे वकील को अप्वाइण्ट क्यों किया ? उसे पांच लाख रुपये की बड़ी धनराशि फीस के तौर पर क्यों दी ?”
“यह दुनियां बड़ी निराली है बिरादर ।” अजनबी मुस्कराकर बोला- “इस दुनियां के दस्तूर बड़े निराले हैं । यहाँ कब कौन किस पर मेहरबान हो जाये, कुछ पता नहीं चलता ।”
“ल...लेकिन मुझे यह तो मालूम पड़े साहब !” राज की कौतूहलता बढ़ती जा रही थी- “आपने मेरे ऊपर वह रकम खर्च क्यों की ?”
“वजह तो मुझे भी नहीं मालूम, असली वजह तो उसे ही मालूम है, जिसने यह सारा इंतजाम किया है ।”
“य...यानि ।” राज उछल पड़ा- “यानि वह व्यक्ति कोई और है, जिसने मुझे आजाद कराया है ?”
“हाँ ।” अजनबी सहज भाव से बोला- “वह व्यक्ति कोई और ही है । मैंने यशराज खन्ना को तुम्हारे केस पर अप्वॉइंट जरूर किया था, लेकिन मुझे उसको अप्वॉइंट करने का आदेश किसी और से मिला था । इसी तरह मैंने यशराज खन्ना को तुम्हारा केस लड़ने के लिए पांच लाख की रकम दी जरूर, लेकिन वो रकम मेरी जेब से नहीं निकली थी । मैं तो सिर्फ एक माध्यम हूँ, मैंने तो महज एक बिचौलिये की भूमिका निभाई है ।”
राज के दिमाग में जोर-जोर से कोई चक्की-सी चलने लगी ।
उसे लगने लगा, अगर हालात ऐसे ही बने रहे, तो उसे पागल होने से कोई नहीं बचा सकता ।
“ल...लेकिन फिर वह कौन है साहब ।” राज बुरी तरह झल्लाये स्वर में बोला- “जिसने मेरी मदद की ? जिसने मुझे आजाद कराया ?”
“सब्र रख बिरादर, थोड़ी देर सब्र रख । अभी मालूम हो जायेगा कि वो समाज सेवक कौन है, वो महान रहनुमा कौन है ।”
☐☐☐
यही वो पल था, जब अजनबी ने होंडा सिटी एक बेहद निर्जन-सी जगह पर ले जाकर रोक दी ।
फिर उसने कार के डैश बोर्ड के अंदर से काले रंग की एक चौड़ी पट्टी निकालकर राज की तरफ बढ़ाई- “लो इस काली पट्टी को अपनी आंखों पर बांध लो और खामोशी से सीट पर लेट जाओ ।”
“प...पट्टी आंखों पर बांध लूं ?” राज का दिल जोर से धड़का ।
“हाँ ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि जिस महान समाज सेवक ने तुम्हारी मदद की है, उससे जो भी मिलता है, इसी तरह मिलता है ।”
“अ...आंखों पर पट्टी बांधकर ?” राज के नेत्र और ज्यादा हैरानी से फटे ।
“हाँ ।”
“क...किसी से मिलने का यह कौन-सा तरीका हुआ भला ?”
“बिरादर !” अजनबी एकाएक नाटकीय लहजे में बोला- “बड़े लोगों की हर बात अलग होती है, हर तरीका जुदा होता है । उनका ऐसा ही तरीका है । चलो, जल्दी से आंखों पर पट्टी बांधो ।”
उस पल राज को न जाने क्यों फिर ऐसा अहसास हुआ कि वह किसी नये ‘चक्कर’ में फंसने जा रहा है ।
“चक्कर के नाम से ही उसकी रूह कांप उठी ।
“अब जल्दी करो बिरादर ।”
“न...नहीं ।” राज भी शीघ्रतापूर्वक बोला- “मुझे यह काली पट्टी अपनी आंखों पर नहीं बांधनी ।”
“कैसे नहीं बांधनी पट्टी ।” अजनबी इस बार थोड़े सख्त लहजे में बोला-“अगर पट्टी नहीं बांधोगे, तो उस समाज सेवक से किस तरह मिलोगे, जिसने तुम्हारी मदद की ?”
“मुझे नहीं मिलना किसी से ।” राज एकाएक कार के डोर की तरफ झपटा- “उन्होंने मेरी जो मदद की, उसके लिये तुम उनसे मेरा धन्यवाद बोलना ।”
राज डोर खोलकर कार से बाहर हो पाता ।
“साले तेरी तो... ।”
उससे पहले ही अजनबी ने उसे एक बड़ी मोटी, भद्दी सी गाली बकी तथा वह बेपनाह फुर्ती से उसके ऊपर यूं झपटा, जैसे चील मांस के लोथड़े पर झपटती है ।
पलक झपकते ही राज की शर्ट का कॉलर अजनबी के फौलादी शिकंजे में था ।
फिर उसने राज के शरीर को झटका दिया, तो वह पीछे को उछलकर धड़ाम से वैन की सीट पर जा गिरा ।
अजनबी फौरन उसके सीने पर चढ़ बैठा ।
उसने उसके हाथों को पीछे बांध दिया ।
“मैं देखता हूँ साले ।” अजनबी ने उसे भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा- “तू इस काली पट्टी को कैसे अपनी आंखों पर नहीं बांधता ।”
“मुझे नहीं बांधनी पट्टी ।” राज और जोर से हलक फाड़कर चिल्ला उठा- “छोड़ दो मुझे, वरना मैं चीख-चीखकर भीड़ जमा कर लूंगा ।”
वह अजनबी के शिकंजे में मचल उठा ।
उसने हाय-तौबा मचा डाली ।
ठीक तभी आवेश में बुरी तरह भिन्नाये अजनबी का हाथ हवा में लहराया तथा फिर धड़ाक से राज की खोपड़ी पर पड़ा ।
तुरंत ही राज की बोलती बन्द हो गयी ।
उसके नेत्र दहशत से फट पड़े और गर्दन दायीं तरफ लुढ़क गयी ।
इसमें कोई शक नहीं, तमाशा तो सचमुच अब शुरू हुआ था ।
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राज की चेतना जब धीरे-धीरे लौटनी शुरू हुई, तो उसने महसूस किया कि उसका शरीर टब के पानी में पड़ा हिचकौले-सा खा रहा है ।
उसने आहिस्ता-आहिस्ता पलकें खोल दीं ।
फिर वह टब में ही एकदम से उछलकर खड़ा हो गया ।
फौरन उसके दिमाग को झटका लगा ।
शक्तिशाली झटका ।
उसके सामने अजनबी के साथ जो दो और व्यक्ति खड़े थे, उन्हें वहाँ देखकर वो हैरान रह गया ।
वह एक काफी बड़ा हॉल था, जिसकी छत डबल हाइट वाली थी और फर्श काले पत्थरों का था ।
उस हॉल के बीचों-बीच वो विशाल टब रखा था, जिसमें वो थोड़ी देर पहले तक किसी लाश की तरह तैर रहा था । हॉल से जुड़े हुए ही वहाँ कई सारे कमरे भी थे ।
“त...तुम ।” राज शक्ल-सूरत से ही बेहद घाघ नजर आ रहे एक व्यक्ति की तरफ उंगली उठाकर बोला- “त...तुम तो सेठ दीवानन्द ज्वैलरी शॉप के वही सेल्समैन हो न, जिसके पास मैं उस दिन नटराज की एक मूर्ति बेचने गया था ?”
मुस्कराया सेल्समैन, उसकी मुस्कान भी बेहद खतरनाक थी ।
“और तुम ।” तत्क्षण राज की उंगली चालीस-पैंतालीस साल के एक अन्य व्यक्ति की तरफ उठी- “त...तुम सर्राफों के सर्राफ सेठ दीवानचन्द हो ?”
वह भी आहिस्ता से मुस्करा दिया ।
“मैं पूछता हूँ ।” राज चिल्ला उठा- “मुझे यहाँ क्यों लाया गया है ?” झुंझलाहट में राज ने दौड़कर अजनबी का गिरेहबान पकड़ लिया और उसे बुरी तरह झंझोड़ डाला- “जवाब दो, तुम तो मुझे उस व्यक्ति के पास ले जाने वाले थे, जिसने मेरी मदद की, मुझे कानून के शिकजे से छुड़ाया ?”
अजनबी ने राज के हाथों से अपना गिरेहबान छुड़ाया तथा फिर उसे इतना तेज झटका दिया कि वो सीधा सेठ दीवानचन्द के कदमों में जा गिरा ।
“सेठ दीवानचन्द ही वह व्यक्ति है ।” उसी पल अजनबी ने तेज धमाका-सा किया- “जिन्होंने तुम्हारी मदद की ।”
“क...क्या ?”
हतप्रभ रह गया राज ।
आश्चर्यचकित ।
“त...तुमने !” वह हैरतअंगेज निगाहों से सेठ दीवानचन्द को देखता हुआ बोला- “तुमने मेरी मदद की ? त...तुमने मुझे आजाद कराया ?”
“हाँ ।”
“लेकिन क्यों ? क्यों तुमने मेरी मदद की ? क...क्यों मुझे आजाद कराया ?”
“वड़ी तू पागल हुआ है नी ।” सेठ दीवानचन्द सिंधी भाषा में ही बोला-“वडी तू अपने आपको आजाद समझ रहा है राज साई !”
“क...क्या मतलब ?”
“मतलब बिलकुल साफ है साईं, तू आजाद हुआ कहाँ है ? वडी हमारी मेहरबानी से तो सिर्फ जगह बदली हुई है । पहले तू पुलिस का मेहमान था, अब हमारा मेहमान है । फिर इसमें तेरी मदद कहाँ से हो गयी ?”
राज के नेत्र दहशत से फैल गये ।
“य...यानि तुमने मुझे यहाँ कैद करके रखा है ?”
“बिल्कुल ।” सेठ दीवानचन्द के होठों पर मजाक उड़ाने वाली मुस्कान दौड़ी- “वड़ी राज साईं, हमने तुझे यह कैद इसलिये दी है, ताकि हम तुझसे उन सवालों के जवाब उगलवा सकें, जिन्हें इंस्पेक्टर योगी भी न उगलवा सका ।”
“क...कौन से सवालों के जवाब ?” राज की आवाज कंपकंपायी ।
“वडी यही कि तूने चीना पहलवान जैसे धुरंधर आदमी की हत्या क्यों की ? किसने तुझे उसकी हत्या करने के लिये प्रेरित किया ? यह काम तेरे जैसा सिंगल सिलेण्डर का आदमी अकेले तो हर्गिज भी नहीं कर सकता, मुझे अपने साथी का नाम बता साईं ! वडी उस हराम के बच्चे का नाम बता, जिसने तुझसे यह खतरनाक जुर्म कराया ?”
राज के पूरे शरीर में सनसनी दौड़ गयी ।
वह आतंकित हो उठा ।
कहने की जरुरत नहीं कि राज एक नये ‘चक्कर’ में फंस चुका था ।
“वडी जल्दी बोल साईं !” दीवानचन्द की त्यौरियां चढ़ गयी- “जल्दी जवाब दे, किसके कहने पर तूने चीना पहलवान का खून किया नी ?”
राज झुंझला उठा- “कौन कहता है कि मैंने चीना पहलवान का खून किया है ?”
“वडी मैं कहता हूँ ।” दीवानचन्द ने बड़े रौब से अपना सीना ठोका- “हालात कहते हैं ।”
“लेकिन यह सब झूठ है ।” राज चिल्ला उठा- “खुद तुम्हारे वकील यशराज खन्ना ने अदालत में साबित किया है कि मेरा चीना पहलवान के खून से कोई वास्ता नहीं था, कोई सम्बन्ध नहीं था । मुझे तो जबरदस्ती उस केस में फंसाया गया था ।”
“साले !” दीवानचन्द की आंखों में शोले लपलपाये- “मेरी गोली मेरे को ही देता है । वडी यशराज खन्ना ने अदालत में जो कहानी सुनाई, वो झूठी थी, मनगढंत थी । हकीकत ये है साईं, बुद्धवार की रात जो ऑटो रिक्शा रीगल सिनेमा के सामने देखी गयी, वह तेरी ऑटो रिक्शा थी । वडी तू ही चीना पहलवान को वहाँ से लेकर भागा, तूने ही उसका खून किया । हमें सब मालूम है राज साईं ! उस रात डॉली के कोई बच्चा नहीं होने वाला था । जब फ्लाइंग स्कवॉयड दस्ते ने तेरी ऑटो रिक्शा मण्डी हाउस जाने वाले मार्ग पर रोंकी, तो उसमें डॉली, चीना पहलवान की लाश के ऊपर लेटी थी ।”
“यह सब झूठ है ।” राज हलक फाड़कर चीखा- “झूठ है ।”
“वडी यह सब सच है हरामी, सच है ।” दीवानचन्द उससे भी ज्यादा जोर से चिल्लाया था ।
“ल...लेकिन अगर यह सब सच है ।” राज गले का थूक सटकता हुआ बोला- “तो यशराज खन्ना ने मेरे लिये अदालत में झूठ क्यों बोला ? आखिर वो तुम्हारा वकील था, तुमने उसे अप्वॉइंट किया था ।”
“राज साईं, खन्ना ने वह झूठ हमारे कहने पर बोला ।”
“त...तुम्हारे कहने पर ?”
“हाँ ।” सेठ दीवानचन्द ने दांत किटकिटाये- “वडी तभी तो तू पुलिस की कैद से आजाद होकर हम तक पहुँच सकता था नी । साईं तुझसे सारी हकीकत उगलवाने के लिये तेरा पुलिस कस्टडी से रिहा होना बेहद जरुरी था ।”
“ल...लेकिन तुम चीना पहलवान की हत्या के बारे में इतनी गहन पूछताछ क्यों कर रहे हो, तुम्हारा उससे क्या सम्बन्ध था ?”
“सम्बन्ध !” दीवानचन्द का चेहरा एकाएक धधकता ज्वालामुखी बन गया- “वडी तू मेरे और चीना पहलवान के सम्बन्धों के बारे में पूछता है नी ? साईं चीना पहलवान ताकत था मेरी, वो मेरा साथी था, मेरा दायां बाजू था ।”
“स...साथी !” राज के मुँह से सिसकारी छूटी- “च...चीना पहलवान तुम्हारा साथी था ?”
“न सिर्फ साथी था बल्कि वो मेरा दोस्त भी था वडी, वो मेरी हर योजना को कामयाब बनाता था ।”
राज की आंखों में आतंक की छाया डोल गयी ।
और अब उसे यह समझते देर न लगी कि सेठ दीवानचन्द क्यों चीना पहलवान के हत्यारे के पीछे पड़ा था, यह बात भी तीर की तरह उसके दिमाग में हलचल मचाती चली गयी कि सेठ दीवानचन्द ने यशराज खन्ना को पांच लाख रूपये की धनराशि उसके लिये नहीं दी थी बल्कि चीना पहलवान की रहस्यमयी मौत की गुत्थी सुलझाने की राह में उसने वो धनराशि खर्च की थी ।
तुरन्त ही राज के मानस-पटल पर उस दिन का दृश्य भी कौंधा, जब वह सीना चौड़ाकर दरीबा कलां में सेठ दीवानचन्द की दुकान पर मूर्ति बेचने गया था । उसे वह क्षण भी याद आये, जब उसने सेल्समैन के सामने चीना पहलवान का नाम ले दिया था । चीना पहलवान का नाम सुनते ही उसके शरीर में कैसी बिजली दौड़ी थी ? कितनी तेजी से वो मूर्ती लेकर अंदर की तरफ भागा था ?
जरूर इसीलिए तब उन्होंने अपने गुण्डे साथियों को वहाँ बुलाया था, क्योंकि उसने चीना पहलवान का नाम लिया था ।
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