Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
12-05-2020, 12:39 PM,
#37
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
राज के शरीर से पसीने की धारायें बहने लगीं ।
कितने बड़े चक्रव्यूह में फंसता जा रहा था वो ।
कैसे इतफाक हो रहे थे उसके साथ ।
वह मूर्ति भी बेचने गया था, तो सेठ दीवानचन्द की दुकान पर ।
उसी की दुकान पर जिसका चीना पहलवान साथी था ।
दाता !
दाता !!
☐☐☐
“ल...लेकिन इससे ये कहाँ साबित होता है ।” राज थोड़ी हिम्मत करके बोला- “कि चीना पहलवान का खून मैंने किया है ?”
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उसे फिर भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा- “वडी यह अदालत नहीं है, जहाँ कुछ भी साबित करने के लिये गवाहों की जरुरत होती है, सबूतों की जरुरत होती है । वडी हमें जो भी साबित करना होता है, जिससे जो भी कबूलवाना होता है, दो ही झांपडों में कबूलवा लेते हैं । लठ के दम पर कबुलवा लेते हैं । समझा नी !”
राज के पूरे शरीर में खौफ की लहर दौड़ गयी ।
“ल...लेकिन... ।”
“यह ऐसे कुछ नहीं बोलेगा बॉस !” अजनबी ने उसकी बात बीच में ही काट दी- “यह बड़ा गुरु-घंटाल आदमी है, जितना शरीफ दिखाई देता है, वास्तव में उतना ही चलता पुर्जा है, उतना ही खुराफाती है ।”
“अच्छा !”
“बिलकुल बॉस ! अगर यह भला मानस होता, तो इंस्पेक्टर योगी के सामने ही सब कुछ न बक देता । तुम मुझे इजाजत दो बॉस !” उसने थोड़ी व्यग्रता प्रदर्शन किया- “मैं अभी इसकी ऐसी धुनाई करता हूँ कि यह सब कुछ बकता हुआ नजर आयेगा ।”
“रहने दे-रहने दे ।” सेठ दीवानचन्द मीठी जबान में बोला- “वडी तू क्यों मार-पिटाई करता है, क्यों झगड़ा-फसाद करता है ? यह बहुत भला-मानस आदमी है, यह ऐसे ही सब कुछ बता देगा ।”
“यह इस तरह कुछ नहीं बतायेगा ।”
“ठीक है, मैं ट्राई करके देखता हूँ । अगर यह प्यार-मोहब्बत से कुछ न बताये, तो फिर तुम इसका जो मर्जी आये करना । राज साईं !” फिर सेठ दीवानचन्द ने बड़ी शहद मिश्रित जबान में उसे पुकारा ।
तुरन्त राज के गले की घण्टी जोर से उछली ।
उसे अपने देवता कूच करते महसूस दिये ।
“वडी तू काहे को अपनी धुनाई करवाना चाहता है साईं ! क्यों अपने इस जिस्म का पलस्तर उधड़वाना चाहता है । वडी तू कबूल क्यों नहीं कर लेता कि तूने ही चीना पहलवान का खून किया है ।”
“म...मैंने चीना पहलवान का खून नहीं किया ।”
“फिर झूठ !” अजनबी ने गुस्से में चिंघाड़ते हुए उसका गिरेहबान पकड़ लिया- “फिर झूठ !”
अजनबी ने धड़ाधड़ उसके मुँह पर झांपडों की बारिश डाली । इस बार सेठ दीवानचन्द ने भी कोई हस्तक्षेप न किया ।
फिर पिटाई का वह बेहद खौफनाक सिलसिला शुरू हो गया, जो पिछले कई दिन से राज का शायद नसीब बन चुका था ।
☐☐☐
राज चिल्लाता रहा ।
हाहाकार करता रहा ।
डकराता रहा ।
लेकिन अजनबी ने उसकी दुर्दान्त धुनाई का रूटीन जारी रखा । जब राज की धुनाई करते-करते वह बुरी तरह हाँफने लगा था, तो वह उसे घसीटता हुआ पब्लिक टेलीफोन बूथ जैसे शीशे के एक केबिन के पास ले गया ।
“इस केबिन को देख रहा है, यह टॉर्चर केबिन है । मैं जब तुझे इस केबिन के अंदर बंद करूंगा, तो तू मौत मांगेगा । तू इस तरह तड़पेगा, जैसे रेगिस्तान की गरम रेत पर मछली तड़पती है ।”
अजनबी ने वह शब्द गुर्राते हुए कहे और उसके बाद राज को शीशे के उसी केबिन के अंदर धकेल दिया ।
इतना ही नहीं, उसे धकेलते ही उसने धड़ाक से दरवाजा भी बंद कर दिया था ।
केबिन के दायीं तरफ प्लाईबोर्ड पर एक पैनल भी लगा था, फिर अजनबी ने पैनल पर लगा एक स्विच भी दबा दिया ।
फौरन ही केबिन के अंदर लगे एक इंच व्यास के दो पाइपों के अंदर से पीले रंग की गैस निकलकर केबिन में भरनी शुरू हो गयी ।
वह ज्वलनशील गैस थी ।
कुछ ही देर बाद केबिन की स्थिति यह हो गयी कि उसके अंदर मौजूद राज दिखाई देना बंद हो गया ।
अब केबिन में सिर्फ गैस-ही-गैस दिखाई दे रही थी ।
पीली गैस !
तब अजनबी ने पैनल में लगा एक दूसरा स्विच दबाया ।
फौरन ही वो अन्य पाइप केबिन में मौजूद गैस को वापस खींचने लगे थे । जितनी तेजी से केबिन के अंदर गैस फैली थी, उतनी ही तेजी से वो वापस हटने लगी ।
जल्द ही सारी गैस केबिन के अंदर से गायब हो गयी थी ।
गैस के हटते ही केबिन में बंद राज नजर आया ।
उस थोड़ी देर में ही उसकी जीर्ण-शीर्ण हालत हो गयी थी ।
वह गठरी-सी बना पड़ा जोर-जोर से खांस रहा था ।
फिर अजनबी ने कैबिन का दरवाजा खोलकर उसे बाहर घसीट लिया ।
राज जैसे ही बाहर के वातावरण में आया और जैसे ही बाहर के वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन उसके शरीर से टकराई, तो वह आर्तनाद कर उठा ।
उसे यूं लगा, मानों उसकी नस-नस सुलग उठी हो ।
अंग-अंग जलने लगा हो ।
वह चीखने लगा, वह सचमुच मछली की तरह छटपटाने लगा और अपने जिस्म के एक-एक अंग को झंझोड़ने लगा ।
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द अपने जूते ठकठकाता हुआ उसके करीब पहुँचा- “वडी अब तो तेरी अक्ल ठिकाने आयी नी या अभी भी नहीं आयी ? तू क्यों अपनी जान का दुश्मन बनता है । राज साईं, क्यों अपनी हड्डी-पसली बराबर कराता है । वडी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, बोल पड़ ! बोल पड़ !! वरना हमारे पास तेरे जैसे मच्छर की जबान खुलवाने के ऐसे-ऐसे नायाब हथकण्डे हैं कि तू तो तू तेरे फरिश्ते भी घबराकर बोल पड़ेंगे ।
☐☐☐
फिर एक और ऐसी घटना घटी, जिसने राज को और अधिक चौंकाकर रख दिया ।
दरअसल सेठ दीवानचन्द ने अपनी जेब से एक मूर्ति निकाली थी, फिर उसे राज की पीड़ा से छटपटाती आंखों के गिर्द नचाता हुआ बोला-“साईं पहचानता है इस मूर्ति को ?”
राज ने फौरन वो मूर्ति पहचान ली ।
वो वही नटराज की मूर्ति थी, जिसे वो हड़बड़ाहट में ज्वैलरी शॉप पर छोड़ आया था ।
“वडी तू कुछ बोलता क्यों नहीं ?” सेठ दीवानचन्द गुर्राया- “पहचानता है इस मूर्ति को ?”
“ह...हाँ ।” राज की गर्दन बड़ी मुश्किल से हिली- “हाँ ।”
“यह मूर्ति तेरे पास कहाँ से आयी ?”
“म...मैंने इसे चुरायी थी ।”
“तूने !” सेठ दीवानचन्द हिस्टीरियाई अंदाज में चिंघाड़ उठा- “इसे तूने चुराया ?”
“ह...हाँ ।”
“राज साईं !" दीवानचन्द ने दांत किटकिटाये- “वडी क्यों तेरी खाल मसाला मांग रही है ? क्यों तू मरना चाहता है ? वह मूर्ति तूने चुरायी कंजर-तूने ! है तेरे अंदर इतना दम, जो तू इस मूर्ति को चुरा सके ।”
राज ने अपने होंठ सख्ती से भींच लिये ।
“वडी तू यही बात इंस्पेक्टर योगी के सामने बोल देगा, अपने बयान से फिरेगा तो नहीं तू ?”
राज बगलें झांकने लगा ।
एक बात वो अब तक भली-भांति समझ चुका था, सेठ दीवानचन्द सिर्फ दिल्ली शहर के सर्राफों का सर्राफ ही नहीं है बल्कि वह कोई बड़ा गैगस्टर भी है, रैकेटियर भी है ।
“साले !” सेठ दीवानचन्द ने गुस्से में उसके बाल पकड़कर बुरी तरह झंझोड़े- “जिस मूर्ति को तू अपने द्वारा चुरायी गयी बता रहा है, वडी वो नेशनल म्यूजियम की चोरीशुदा मूर्ति है । और उन मूर्तियों को तूने नहीं बल्कि चीना पहलवान के साथ मिलकर हमने चुराया था, हम सबने । उन मूर्तियों की संख्या छः थी राज साईं, जिन्हें चीना पहलवान हादसे वाली रात हमारे सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी को सौंपने जा रहा था । लेकिन बीच रास्ते में ही तूने चीना पहलवान की हत्या करके उससे वह सभी छः नटराज मूर्तियां हड़प लीं । अब यह बता वह सभी छः नटराज मूर्तियां कहाँ है ?”
छः नटराज मूर्तियां !
राज ने नेत्र अचंभे से फैले ।
उसे ऐसा लगा, मानो सेठ दीवानचंद कोई भारी मजाक कर रहा था । एक नटराज मूर्ति तो खुद सेठ दीवानचन्द के हाथ में थी, फिर भी बाकी मूर्तियों की संख्या छः कैसे संभव थी ?
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उसके बाल और बुरी तरह झंझोड़े-“वडी जल्दी बोल, छः नटराज मूतियां कहाँ हैं ?”
“ल...लेकिन अभी भी उन नटराज मूर्तियों की संख्या छः कैसे हो सकती है साहब ?”
“यह बता, उन मूर्तियों की संख्या छः कैसे नहीं हो सकती ?”
“क...क्योंकि साहब !” राज डरते-डरते बोला- “एक मूर्ति तो तुम्हारे हाथ में ही है ।”
“यह !” दीवानचन्द चिंघाड़ा- “यह तुझे मूर्ति दिखाई देती है ?”
अब !
अब राज के नेत्र और ज्यादा हैरानी से फैले ।
उसने अपनी पलकें फड़फड़ाकर मूर्ति को देखा, लेकिन वो शत-प्रतिशत मूर्ति ही थी ।
नटराज जी अपनी चिताकर्षक मुद्रा में विद्यमान !
“म...मुझे तो यह मूर्ति ही दिखाई देती है साहब !”
फौरन सेठ दीवानचन्द के भारी-भरकम हथौड़े जैसे हाथ का एक ऐसा झन्नाटेदार झांपड़ उसके मुँह पर पड़ा कि वो खड़े-खड़े फिरकनी की तरह घूम गया ।
उसकी आंखों के गिर्द रंग-बिरंगे तारे झिलमिला उठे ।
“साले-कंजर !” सेठ दीवानचन्द ने मूर्ति फिर उसकी आंखों के गिर्द नचायी- “वडी क्या तेरे को यह अब भी ये वही मूर्ति नजर आती है ?”
“ह...हाँ, यह....वही मूर्ति है ।”
धड़ाधड़ दो झांपड़ और उसके मुँह पर पड़े ।
राज की रुलाई छूटते-छूटते बची ।
“हरामजादे ! यह नटराज मूर्ति जो तू हमारी ज्वैलरी शॉप पर बेचने आया था, पीतल की मूर्ति है, सिर्फ पीतल की । इस पर सोने का पानी चढ़ा है ।”
☐☐☐
राज सन्न रह गया ।
उसके दिल-दिमाग पर बिजली-सी गड़गड़ाकर गिरी ।
इ...इसका मतलब जिन मूर्तियों के लिये इतना बड़ा हंगामा हुआ, जिनकी वजह से उसकी इतनी धुनाई हुई, व...वही मूर्तियां पीतल की हैं ?
दाता !
दाता !!
राज का दहाड़े मार-मारकर रोने को दिल चाहा ।
“वडी राज साईं ।” सेठ दीवानचन्द ने उसके सिर पर हाथ फेरा, लेकिन उस हाथ फेरने में भी धमकी जैसा अहसास था- “अब तो तेरी समझ में आया कि इन मूर्तियों के अलावा भी तेरे पास छः और नटराज मूर्तियां कैसे हो सकती हैं । साईं, अब तू सीधे-सीधे मुझे यह बता कि तूने असली सोने की मूर्तियों कहाँ छिपाकर रख छोड़ी हैं ? इसके अलावा यह भी बता कि तूने यह सारा नाटक किसलिये किया ? किस वास्ते चीना पहलवान से शुद्ध सोने की मूतियां हड़पकर यह नकली पीतल की मूर्तियां बनवाईं ? फिर इन्हें हमारी ज्वैलरी शॉप पर ही क्यों बेचने आया ? इसके पीछे भी जरूर कोई गहरा चक्कर है । वडी यह तेरे अकेले का काम तो हर्गिज भी नहीं हो सकता नी ! जरूर तेरे साथ हमारा कोई दुश्मन भी मिला है । राज साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उसके सिर पर हाथ फेरते-फेरते उसके बालों को अपनी मुट्ठी में कसकर जकड़ लिया- “अगर तू आज अपनी खैरियत चाहता है, अगर तू अपनी बॉडी के कलपर्जों को टुटवाना नहीं चाहता, तो चुपचाप मुझे मेरे दुश्मन का नाम बता दे । सोने की मूर्तियों का एड्रेस बता दे, वरना आज तेरी खैर नहीं साईं । फिर तो तू अपनी ज़िंदगी की किश्ती को डूबा समझ ।”
राज दहशत से पीला पड़ गया ।
उसे दूर-दूर तक अपने छुटकारे के आसार नजर नहीं आ रहे थे ।
“क्या तूने सोने की मूर्तियां डॉली के पास रख छोड़ी हैं ?”
“न...नहीं ।” राज के जिस्म का रोआं-रोआं खड़ा हो गया ।
“फिर किसके पास रख छोड़ी हैं ? वडी कहीं तूने उस आदमी के पास तो असली मूर्तियां नहीं रख छोड़ी, जिसने इस पूरे खेल में हमारे खिलाफ तेरी मदद की ?”
“ऐसा कोई आदमी नहीं है ।” राज चिल्लाया- “यकीन मानो, ऐसा कोई नहीं है ।”
“फिर यह करिश्मा कैसे हो गया साईं ? वडी असली मूर्तियां किधर गयीं ?”
“मेरे पास नहीं हैं ।”
“वही तो मैं तुझसे पूछ रहा हूँ नी, अगर तेरे पास नहीं हैं तो किसके पास हैं ? मुझे एड्रेस क्यों नहीं बता देता तू ?”
राज ने अपने आपको विचित्र-सी दुविधा में फंसा महसूस किया ।
“द...देखो साहब !” राज लगभग पराजित स्वर में बोंला- “म...मैं कबूल करता हूँ कि मैंने चीना पहलवान के ब्रीफकेस से मूर्तियां हथियाई थीं, ल...लेकिन मैं इश्वर की सौगन्ध खाकर कहता हूँ, मैंने उसका खून नहीं किया, म...मैं खूनी नहीं हूँ । और जो मूर्तियों मैंने चीना पहलवान के ब्रीफकेस से हथियाई थीं, वो भी यही मूर्तियां थीं ।”
“य...यह !” दीवानचन्द बोला- “पीतल की मूर्तियां ?”
“हाँ, यही नकली मूर्तियां साहब ! अगर मुझे पहले से इस बात का पता होता कि यह मूर्तियां पीतल की हैं, तो यकीन जानो-मैं कभी इस चक्कर में न पड़ता ।”
सेठ दीवानचन्द सहित सेल्समैन और अजनबी की आंखों में भी अब हैरानी के निशान उभर आये ।
उन्होंने सवालिया निगाहों से एक-दूसरे की तरफ यूँ देखा, मानो वह इस बात की तस्दीक करना चाहते हों कि राज की बात पर यकीन किया जाये या नहीं ?
“कहीं तू यह बात तो साबित नहीं करना चाहता बिरादर !” इस बार अजनबी बोला- “कि असली मूतियां तो चीना पहलवान का हत्यारा ले गया और वो उन असली मूर्तियों की जगह ब्रीफकेस में नकली पीतल की मूर्तियां रख गया ?”
राज की आंखों में तेज चमक कौंध उठी ।
लेकिन जल्द ही उसकी आंखों से वो चमक भी गायब हो गयी ।
“नहीं ।” राज की गर्दन इंकार में हिली- “यह नहीं हो सकता ।”
“क्या नहीं हो सकता ?”
“यही कि जिसने चीना पहलवान का खून किया, वही उन मूर्तियों को भी ले उड़ा ?”
“क्यों ?” सेठ दीवानचन्द की आंखों में सस्पैंस के भाव पैदा हुए- “वडी तेरे को यह बात कैसे मालूम कि वही उन मूर्तियों को न ले उड़ा ?”
“क्योंकि साहब, हत्यारे की दो गोलियां लगने के बावजूद भी चीना पहलवान अपने पैरों पर दौड़ता हुआ मेरी ऑटो में आकर बैठा था, उस वक्त वह पूरे होश-हवास में था, अगर हत्यारे ने उसके ब्रीफकेस में से मूर्तियां निकालने की कोशिश की होती, तो उसकी तरफ से जबरदस्त विरोध जरूर होना था । फिर तुम लोगों को अखबार के माध्यम से इतना तो मालूम हो ही गया होगा कि गोलियां चलने की आवाज सुनते ही फ्लाइंग स्क्वॉयड की गश्तीदल गाड़ी फौरन तूफानी गति से गली के अंदर दौड़ी थी । अगर यह मान भी लिया जाये कि हत्यारे ने मूर्तियों को बदलने की हौसलामंदी दिखाई थी, तब भी वह इतनी जल्दी तो अपना काम हर्गिज भी अंजाम नहीं दे सकता था कि गश्तीदल की गाड़ी गली में पहुँचने से पहले ही उसने मूर्तियां भी बदल दीं और वो वहाँ से फरार भी हो गया ।”
तीनों हैरतअंगेज नजरों से राज को देखने लगे ।
“साहब !” राज वातावरण को अपने पक्ष में होते देख बोला- “हत्यारा मूर्तियों को न ले उड़ा हो, इसका एक और बड़ा पुख्ता सबूत मेरे पास है ।”
“क...कैसा सबूत ?”
“जब चीना पहलवान मेरी ऑटो में आकर बैठा था ।” राज उन्हें एक-एक बात अच्छी तरह समझाता हुआ बोला- “तो उसने ब्रीफकेस बड़े कसकर अपने सीने से चिपटा रखा था । अगर हत्यारे ने उसके ब्रीफकेस के अंदर से असली मूर्तियां निकाल ली थीं, तो चीना पहलवान को क्या जरूरत थी कि वह गोलियां लगने के बावजूद भी उन ब्रीफकेस को अपने सीने से चिपटाये रखता ? लेकिन मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था साहब, उसने न सिर्फ तब ब्रीफकेस को अपने सीने से चिपटा रखा था बल्कि अपने जीवन की आखिरी सांस तक भी वह उस ब्रीफकेस को अपने सीने से चिपटाये हुए था ।”
राज की बात सुनकर उस हॉल जैसे बड़े कमरे में सन्नाटा छा गया ।
“वडी इस पूरे घटनाचक्र से तो एक और बात भी साबित होती है ।” दीवानचन्द बोला ।
“कौन-सी बात ?
“यही कि उन मूर्ती को कम-से-कम चीना पहलवान ने भी नहीं बदला था ।”
“क्यों ?”
“वडी अगर उसने वो मूर्तियां बदली होतीं, तब भी उसे क्या जरुरत पड़ी थी, जो वह उस ब्रीफकेस को अपने जीवन की आखिरी सांस तक बच्चे की तरह सीने से चिपटाये रखता । उसके द्वारा आखरी सांस तक ब्रीफकेस को अपने सीने से चिपटाये रखना ही इस बात को साबित करता है कि चीना पहलवान नकली मूर्तियों की तरफ से पूरी तरह अंजान था ।”
सेठ दीवानचन्द के तर्क में वाकई जान थी ।
उस तर्क ने सभी को प्रभावित किया ।
अब सवाल ये था कि अगर वह मूर्तियां चीना पहलवान ने भी नहीं बदली थीं, तो फिर किसने बदलीं ?
और बदली भी इस ढंग से कि चीना पहलवान को कानों-कान भनक तक न हुई ।
“राज !” तभी सेल्समैन, राज से सम्बोधित हुआ- “एक बता बतायेगा ?”
“पूछो ।”
“तू बुद्धवार की रात अपनी ऑटो लेकर रीगल सिनेमा के सामने क्यों खड़ा था, जबकि यूनियन की हड़ताल चल रही थी ?”
राज ने सारा घटनाक्रम बता दिया ।
सच-सच बता दिया ।
“यानि...यानि तू वहाँ सिर्फ इसलिये खड़ा था, ताकि नाइट शो खत्म होने पर तू वहाँ से कोई सवारी ले जा सके और अपनी उधारी चुकता कर सके ?”
“हाँ ।”
“इसके अलावा कोई और वजह नहीं ?”
“बिलकुल नहीं ।”
“वडी तेरे को यह भी मालूम है ।” एकाएक सेठ दीवानचन्द दांत किटकिटाकर बोला- “कि अगर तेरे को वहाँ खड़ा ऑटो रिक्शा वाला तेरा कोई भाई-बंद देख लेता, तो यूनियन में तेरी क्या दुर्गति होती ?”
राज ने अपने होंठ सी लिये ।
“राज साईं, वह हड़ताल तोड़ने के जुर्म में तेरे खिलाफ कोई सख्त कदम उठा सकते थे । तुझे यूनियन मेम्बरशिप से बर्खास्त कर सकते थे । इतना ही नहीं, वह तेरा दिल्ली शहर में ऑटो रिक्शा भी चलाना बंद करा सकते थे ।”
“म...मैं जानता हूँ ।”
“सब कुछ जानते-बुझते तूने ऐसा किया नी, वडी बता सकता है क्यों ?”
“क्योंकि मैं उस समय नशे में था ।” राज बोला- “उस वक्त मुझे मालूम नहीं था कि मैं क्या करने जा रहा हूँ । उस वक्त तो मेरे ऊपर एक ही भूत सवार था, मैं किसी भी तरह दारु की उधारी चुका दूं ।”
“बकता है साला !” अजनबी उसे फिर मारने दौड़ा ।
“रहने दे-रहने दे ।” दीवानचन्द ने उसे बीच में ही पकड़ लिया ।
“आप नहीं जानते बॉस !” अजनबी गुर्राया- “यह साला देखने में जरूर डेढ़ पसली का है, लेकिन पक्का हरामी है, पक्का कमीन है । देखा नहीं, पहले ही कैसी शानदार कहानी गढ़ के लाया है कंजर !”
उसने गुस्से में झुंझलाते हुए राज के पेट में एक लात जड़ दी ।
पुनः हलक फाड़कर डकराया राज !
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उसे कहर बरपा करती नजरों से घूरा-“वडी मैं तेरे को आखिरी वार्निंग दे रहा हूँ । जो बात है, सच-सच बता दे । क्योंकि हमारी निगाह में और कोई ऐसा शख्स नहीं, जो मूर्तियां बदलने की जुर्रत कर सके या जिसे मूर्तियां बदलने का मौका हासिल हो । वडी सारे हालात चीख-चीखकर तुझे ही अपराधी ठहरा रहे हैं और कह रहे हैं कि असली मूर्तियां अभी भी तेरे पास हैं ।”
“मेरे पास मूर्तियां नहीं हैं, नहीं हैं ।” राज हलक फाड़कर डकरा उठा- “अगर मेरे पास असली मूर्तियां होती तो मुझे क्या जरुरत थी, जो मैं पीतल की मूर्तियां बनवाता ? फिर उन मूर्तियों को बनवाकर मैं तुम्हारी ही ज्वैलरी शॉप पर बेचने भी जाता ? मैंने जो कहना था साहब, कह दिया । अगर आप लोग अब भी मुझे अपराधी मानते हो, अब भी मुझे कसूरवार समझते हो, तो लो- मेरा जो मर्जी आये करो, मार डालो मुझे । कूट डालो मुझे ।”
कहने के साथ राज वहीं फर्श पर हाथ-पैर फैलाकर लेट गया तथा धीरे-धीरे सुबकने लगा ।
तीनों की हालत अजीब हो गयी ।
तीनों स्तब्ध !
क्या करें ?
“साईं !” तभी सेठ दीवानचन्द ने उसकी पीठ थपथपाई- “चल अब खड़ा हो ।”
राज खड़ा न हुआ ।
“वडी अब खड़ा भी हो नी, क्यों नखरे करता है ?”
दीवानचन्द ने उसे जबरदस्ती खड़ा किया ।
राज सुबकियां लेता हुआ अपने स्थान से उठा ।
“चल अब यह रोना-धोना बंद कर और चुपचाप हमें यह बता कि तूने इसके साथ की बाकि पांच मूर्तियां कहाँ छिपा रखी हैं ?”
“म...डॉली के पास है ।”
“वह मूर्तियां हमें लाकर देगा ?”
राज ने सुबकते हुए ही स्वीकृति में गर्दन हिला दी ।
यह मालूम होने के बाद कि वह नटराज मूर्तियां वास्तव में सोने की नहीं बल्कि पीतल की हैं, अब उसे उनका करना भी क्या था ?
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात - by desiaks - 12-05-2020, 12:39 PM

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