RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
अजनबी का नाम दुष्यंत पाण्डे था ।
दुष्यंत पाण्डे ही राज को सफेद रंग की होंडा सिटी कार में बिठाकर वापस सोनपुर तक ले गया ।
कार उसने सोनपुर के बाहर ही खड़ी कर दी ।
फिर वह राज की आंखों से काली पट्टी खोलता हुआ बोला- “जा, तू डॉली से मूर्तियां लेकर आ । मैं यहीं खड़ा हूँ ।”
राज बड़ा हैरान हुआ ।
दुष्यंत पाण्डे ने उसके जाने और वापस आने की बात कुछ ऐसे यकीन के साथ कही थी, मानों उसे इस बात का पूरा भरोसा था कि वह लौट ही आयेगा ।
फरार नहीं होगा ।
राज हैरान-सी मुद्रा में चुपचाप सोनपुर की तरफ बढ़ा ।
“और सुन !”
राज के कदम ठिठके ।
“अगर साले !” पाण्डे दांत किटकिटाकर बोला- “तूने सेठ जी के सम्बन्ध में डॉली के सामने या किसी के सामने एक शब्द भी जबान से बाहर निकाला, तो तेरी खैर नहीं ।”
“हूँ !”
“चल अब फूट यहाँ से और जल्दी लौटकर आ ।”
राज तेज-तेज कदमों से सोनपुर की तरफ बढ़ गया ।
☐☐☐
उस वक्त पूरे सोनपुर में गहन अंधकार व्याप्त था ।
रात के बारह या एक बजे का वक्त रहा होगा ।
राज, डॉली के घर के सामने पहुँचा और उसने दरवाजा थपथपाया ।
“कौन ?” अंदर से फौरन डॉली की आवाज उभरी ।
“मैं राज !”
तुरंत सांकल खुलने की आवाज हुई तथा फिर झट से दरवाजा खुल गया ।
“तू ! आ, अंदर आ ।” राज को देखते ही डॉली का चेहरा खिल उठा था ।
राज ने अंदर कदम रखा ।
पूरे घर में काजली अंधेरा व्याप्त था ।
“तू यहीं ठहर, मैं रोशनी का इंतजाम करती हूँ ।”
डॉली तेजी के साथ पेट्रोमेक्स की तरफ बढ़ी और जल्द ही उसने पेट्रोमेक्स जला दिया ।
पेट्रोमेक्स जलते ही चारों तरफ रोशनी फैल गयी ।
राज एकदम से तड़प उठा, रोशनी फैलते ही उसने देखा कि डॉली के साफ-सुथरे कपोलों पर आंसुओं की ढेर सारी बूंदें जमीं हुई थीं ।
जरूर डॉली उसके वहाँ आने से पहले काफी देर तक रोती रही थी ।
“ऐ, इस तरह क्या देख रहा है ?” डॉली बोली ।
“क...कुछ नहीं ।”
“कुछ तो ?”
“लाइट को क्या हुआ ?” एकाएक राज विषय बदलकर बोला-“बाहर तो सबकी आ रही है ।”
डॉली का चेहरा सुत गया ।
“अ...अपनी लाइट नहीं आयेगी राज !” डॉली बोली ।
“क...क्यों ?”
“आज दोपहर कट गयी ।”
“ल...लाइट कट गयी ।” राज इस तरह चौंका, मानो उसे बिच्छू ने काटा हो- “म...मगर क्यों ?”
“तू इस बात को छोड़ राज ! तू मुझे यह बता कि आज सुबह से कहाँ गायब था, मैं सारा दिन परेशान होती रही ।”
“मैं तेरे हर सवाल का जवाब दूंगा डॉली, लेकिन पहले मुझे यह बता कि लाइट कैसे कटी ?”
“कैसे कटती ।” डॉली थोड़ा कुपित होकर बोली- “मैंने पिछले दो महीने से बिजली का बिल नहीं भरा था, इस बृहस्पतिवार को बिल जमा करने की आखिरी तारीख थी, जिसे मैं नहीं जमा कर सकी । इसीलिए आज बिजली विभाग के दो कर्मचारी आये और लाइट काट गये ।”
“ब...बृहस्पतिवार बिल जमा करने की आखिरी तारिख थी ?” राज के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“हाँ ।”
“कहीं...कहीं तूने बिल की रकम से ही तो मेरी उधारी नहीं चुका दी डॉली ?”
डॉली नजरें झुकाये खड़ी रही ।
जबकि राज तड़प उठा था ।
“ल...लेकिन तू अपने ऑफिस के साथियों से भी तो रुपये लेकर बिल जमा कर सकती थी डॉली ?”
“वो अब मुझे कभी रुपये नहीं देंगे ।”
“क...क्यों ?”
“क्योंकि आज जब ऑफिस के बॉस को यह मालूम हुआ कि मैं तुम्हारे बच्चे की कुंवारी मां बनी थी, तो उन्होंने मुझे नौकरी से भी निकाल दिया ।”
हे भगवान !
राज का सीना छलनी होता चला गया ।
कैसा कहर टूट रहा था उसके ऊपर ।
“अब तू इन सब बातों को छोड़ राज !” डॉली बोली- “और मुझे यह बता कि अदालत में जब बल्ले ने तेरे ऊपर हमला किया था, तो तू जख्मी तो नहीं हुआ ? कैसा खतरनाक दरिन्दा बन गया था बल्ले एकाएक, तेरे वकील यशराज खन्ना को तो उसने वहीं जान से मार डाला ।”
“ख...खन्ना मर गया ?” राज के नेत्र दहशत से फटे ।
“तुझे क्या लगता है, वो इतने चाकू लगने के बाद भी जिंदा रह सकता था ? मैंने खुद उसकी लाश देखी थी ।”
“अ...और बल्ले का क्या हुआ ?”
“वह तो तभी इंस्पेक्टर योगी को धक्का देकर फरार हो गया था ।”
“तब तो पुलिस बल्ले के पीछे लगी होगी ?”
“वह तो लगी है, लेकिन बल्ले आज दोपहर मेरे पास भी आया था ।”
“त...तुम्हारे पास, क्यों ?”
“बोलता था, अगर उसने एक हफ्ते के अंदर-अंदर तेरा खून न कर दिया, तो वह अपने बाप से पैदा नहीं ।”
राज के शरीर में खौफ की लहर दौड़ गयी ।
उसके गले की घण्टी जोर से ऊपर उछली ।
“ल...लेकिन जो आदमी तुझे अदालत से लेकर भागा था राज !” डॉली ने पूछा- “वह कौन था ? और आज तू सारा दिन कहाँ रहा ?”
राज ने उस दिन घटी तमाम घटनायें डॉली को बता दीं ।
“हे मेरे परमात्मा !” डॉली के नेत्र हैरत से फटे- “न...नटराज की वो मूर्तियां पीतल की हैं ?”
“हाँ ।”
“दाता ! दाता !” डॉली सिर पकड़कर धम्म् से वहीं चारपाई पर बैठ गयी-“यह भगवान हमारी कैसी परीक्षा ले रहा है, कौन से पापों की सजा दे रहा है हमें ?”
“अब इस तरह मातम मानाने से कुछ नहीं होगा ।” राज बोला- “तू जल्दी से मुझे मूर्तियां लेकर दे, बाहर दुष्यंत पाण्डे मेरा इंतजार कर रहा है ।”
“तू...तू मूर्तियां लेकर अब वापस सेठ दीवानचन्द के पास जायेगा ?”
“हाँ ।”
“तू पागल हुआ है ।” डॉली गुर्रा उठी- “दिमाग खराब हो गया है तेरा । वह भले लोग नहीं हैं राज ! तुझे अब वहाँ किसी भी हालत में लौटकर नहीं जाना चाहिये ।”
“ल...लेकिन ।”
“मैं जैसा कह रही हूँ, वैसा कर राज ! इसी में तेरी भलाई है, एक बात बोलूं ?”
“क्या ?”
“मुझे तो ऐसा लगता है, जैसे बुद्धवार की रात से आज तक तेरे साथ जितनी भी घटनायें घटी हैं, वो सब इत्तफाक नहीं है राज ! वह जरूर किसी की साजिश का एक हिस्सा है, कोई किसी चक्रव्यूह में फांसना चाह रहा है तुझे ।”
“लेकिन कौन ? कौन फांसेगा मुझे ?”
“यह तो मैं भी नहीं जानती । लेकिन मेरा दिल चीख-चीखकर गवाही दे रहा है कि एक के बाद एक यह सनसनीखेज घटनायें ऐसे ही नहीं घट रही राज, इन घटनाओं के पीछे जरूर कोई गहरी साजिश है । मुझे तो इस सारी साजिश में अब सबसे बड़ा हाथ उस सेठ का ही नजर आता है ।”
“स...सेठ दीवानचन्द का ?”
“हाँ, वही ।”
राज सोच में डूब गया ।
पिछले एक घण्टे से यही बात उसके दिमाग में घूम रही थी ।
“लेकिन फिलहाल मुझे वो मूर्तियां लेकर तो सेठ के पास जरूर जाना पड़ेगा ।”
“क्यों ?”
“वरना दुष्यंत पाण्डे यहीं न आ जायेगा ।”
“उसका भी एक तरीका है ।”
“क्या ?”
“हम अभी सोनपुर छोड़कर कहीं भाग जाते हैं ।”
“न...नहीं ।” राज सहम गया- “य...यह नहीं हो सकता डॉली ! तू उन लोगों को नहीं जानती, वह बड़े खतरनाक लोग हैं, मैं यहाँ से भागकर चाहे कहीं भी जा छिपूं, वह मुझे जरूर ढूंढ निकालेंगे । इतना ही नहीं, इस समय वो मेरे ऊपर थोड़ा-बहुत जो यकीन कर रहे हैं, फिर वो भी नहीं करेंगे ।”
डॉली का चेहरा रुई की तरह सफेद पड़ गया ।
“फिर क्या करेगा तू ?”
“मुझे मूर्तियां देने जाना ही होगा ।”
“ठीक है ।” डॉली बोली- “अगर मूर्तियां देना इतना ही जरुरी है, तो तू दुष्यंत पाण्डे को दे आ । उसके साथ सेठ दीवानचन्द के अड्डे तक किसी हालत में नहीं जाना ।”
राज ने डॉली की वह बात मान ली ।
अगले ही पल डॉली बरामदे में बनी छोटी-सी क्यारी को जल्दी-जल्दी खोदकर उसमें से नटराज मूर्तियां निकाल रही थी ।
☐☐☐
वह पांचों नटराज मूतियां राज ने अपनी पैंट की बेल्ट के नीचे अच्छी तरह कसकर बांध लीं और ऊपर से शर्ट ढक ली ।
नटराज मूर्तियां दिखाई देनी बिलकुल बंद हो गयीं ।
फिर राज ने डॉली के घर से बाहर कदम रखा ।
“म...मैं भी तुम्हारे साथ चलूं ?” डॉली बोली ।
“नहीं, तू यहीं रह । मैं दुष्यंत पाण्डे को मूर्तियां देकर अभी दो मिनट में आता हूँ ।”
“ल...लेकिन... ।”
“चिन्ता मत कर, मुझे कुछ नहीं होगा ।”
राज लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ सड़क पर चल दिया ।
डॉली उसे डरी-डरी आंखों से तब तक जाते देखती रही, जब तक वह नजरों से पूरी तरह ओंझल न हो गया ।
☐☐☐
यह बड़ी हैरानी की बात थी कि बुद्धवार की रात के बाद से हर पल, हर सैकिण्ड कोई-न-कोई नई घटना घट रही थी ।
और हर घटना ऐसी होती, जिससे राज षड्यन्त्र के ‘चक्रव्यूह’ में और अधिक उलझ जाता ।
फिर एक घटना घटी ।
दरअसल राज जैसे ही सोनपुर की पहली सड़क का मोड़ काटा था, तभी उसके शरीर में बिजली-सी दौड़ी ।
वह यूं कांपा, मानों किसी ‘शैतान’ के दर्शन कर लिये हों ।
सामने बुलेट मोटरसाइकिल पर इंस्पेक्टर योगी खड़ा था ।
“हैलो राज ।”
“अ...आप !” योगी को देखते ही राज के शरीर में आतंक की लहर दौड़ी- “अ...आप इतनी रात को यहाँ क्या कर रहे हैं साहब ?”
“तुम्हारा ही इंतजार कर रहा हूँ राज ।”
“म...मेरा इंतजार ! म...मुझसे क्या फिर कोई गलती हो गयी ?”
“तुम्हें अभी, इसी वक्त मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना है ।”
“ल...लेकिन मेरा अपराध क्या है साहब ?” राज शुष्क लहजे में बोला- “चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम से तो कोर्ट ने मुझे सुबह ही बरी किया है ।”
“मैं तुम्हें चीना पहलवान की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार नहीं कर रहा ।”
“फ...फिर ।”
“मुझे अभी चंद मिनट पहले ही टेलीफोन पर एक ‘गुमनाम टिप’ मिली है, मुझे बताया गया है कि दिल्ली शहर में संग्रहालयों की दुर्लभ वस्तुओं की चोरी करने वाला जो गिरोह सक्रिय है, तुम उस गिरोह के मैम्बर हो ।”
“म...मैं !” राज के मुँह से चीख-सी खारिज हुई- “मैं उस गिरोह का मैम्बर हूँ ?”
“हाँ, और इसीलिये मैं तुम्हें मेटीरियल विटनेस (शक) की बिना पर पुलिस हिरासत में ले रहा हूँ, ताकि मामले की आगे जांच-पड़ताल कर सकूं । क्योंकि दुर्लभ वस्तुओं की चोरी का मामला काफी संगीन मामला है और आजकल इस तरह की चोरियों को लेकर दिल्ली पुलिस में काफी हड़कम्प मचा है ।”
राज की जान हलक में आ फंसी ।
उसे फौरन उन पांच नटराज मूर्तियों का ख्याल आया, जो उसकी बेल्ट की नीचे बंधी थी ।
दाता !
दाता !!
कौन उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गया था ।
उस वक्त उसे वो मूर्तियां टाइम-बम लगीं । ऐसा टाइम-बम जो किसी भी क्षण फट सकता था ।
“स...साहब !” राज ने आर्तनाद-सा करते हुए कहा- “जरूर किसी ने आपको गलत टिप दी है । मेरा किसी गिरोह से कोई सम्बन्ध नहीं । म....मैं किसी गिरोह का मैम्बर नहीं ।”
“तुम्हें अब जो कहना है ।” इंस्पेक्टर योगी सख्ती से बोला- “पुलिस स्टेशन जाकर कहना ।”
“ल...लेकिन... ।”
“बकवास बंद !” योगी ने उसे जबरदस्त फटकार लगायी । फिर वह उसके हाथों में हथकड़ियां पहनाने के उद्देश्य से जैसे ही बुलेट से नीचे उतरा, उसी क्षण गली में तूफानी गति से दौड़ती हुई सफ़ेद होंडा सिटी प्रकट हुई थी ।
उसकी हैडलाइटों की तीखी रौशनी सीधी योगी के चेहरे पर पड़ी ।
इंस्पेक्टर योगी दुर्घटना का अनुमान लगा पाता, उससे पहले ही कार धुंआधार रफ्तार से दौड़ती हुई योगी के एकदम नजदीक जा पहुँची थी ।
योगी आतंकित मुद्रा में पलटकर भागा ।
लेकिन वो कहाँ तक भागता ?
किधर भागता ?
उसका शरीर धड़ाक की तेज आवाज करता हुआ सफ़ेद कार के अगले हिस्से से इस तरह टकराया, जैसे सड़क पर कोई पत्थर टकरा गया हो ।
टकराते ही योगी का शरीर कई फुट ऊपर हवा में उछला ।
फिर वो तेज ध्वनि करता हुआ सड़क पर जा गिरा ।
नीचे गिरते ही इंस्पेक्टर योगी के कण्ठ से एक ऐसी हृदयविदारक करुणादायी चीख खारिज हुई कि वह उस रात के सन्नाटे में ‘नगाड़े’ की तरह दूर-दूर गूंजी ।
उसी पल कार के ब्रेक चरमराये ।
उसके पहिये चीखते हुए रुके ।
फिर धड़ाक से कार का डोर खुला ।
डोर खुलते ही राज एकदम चीते की तरह जम्प लगाकर कार के अंदर घुस गया ।
फौरन कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे दुष्यंत पाण्डे ने क्लच दबाया और कार को गियर में डाल दिया ।
तत्काल होंडा सिटी कार बन्दूक से छूटी गोली की तरह सोनपुर से भाग खड़ी हुई ।
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खून में बुरी तरह लथपथ योगी की जब बेहोशी टूटी, तो उसने खुद को एक चारपाई पर लेटे पाया ।
उसके शरीर पर जगह-जगह पट्टियां बंधी थीं ।
योगी ने हड़बड़ाकर खड़े होने की कोशिश की, तो फौरन किसी ने उसकी बांह पकड़ ली ।
“लेटे रहो इंस्पेक्टर साहब, डॉक्टर ने थोड़ी देर आराम करने के लिये कहा है ।”
योगी की दृष्टि खुद-ब-खुद आवाज की दिशा में उठ गयी ।
और !
अगले पल उसके जिस्म में करण्ट-सा प्रवाहित हो गया था ।
सामने ‘बल्ले’ खड़ा था ।
“त...तुम !”
“क्यों !” मुस्कराया बल्ले- “मुझे देखकर हैरानी हो रही है साहब ?”
“ल...लेकिन मैं यहाँ आया कैसे ?” योगी ने पूछा- “म...मेरा तो एक्सीडेंट हुआ था ।”
“दरअसल जिस वक्त आपका एक्सीडेंट हुआ, ठीक उसी वक्त मैं भी सोनपुर में आया था । आपको खून से लथपथ सड़क पर पड़े देखा, तो मुझसे रहा न गया, मैं फ़ौरन आपको अपने घर ले आया ।”
“त...तुम !” योगी की हैरानी और बढ़ी-“तुम मुझे उठाकर लाये ?”
“हाँ ।”
“लेकिन तुम कानून के मुजरिम हो । यशराज खन्ना के खूनी हो और इस समय पूरी दिल्ली की पुलिस तुम्हारे पीछे है ।” इंस्पेक्टर योगी के चेहरे पर दुविधा के भाव उभर आये थे- “मुझे बचाते समय तुमने यह नहीं सोचा बल्ले, होश में आते ही मैं तुम्हें अरेस्ट भी कर सकता हूँ ?”
“सोचा था साहब, सोचा था ।” बल्ले ने गहरी सांस ली- “आपको देखकर मेरे दिमाग में सबसे पहले यही सवाल कौंधा था । लेकिन आपकी हालत इतनी नाजुक थी कि मुझसे रहा न गया और मैं आपको उठाकर ले आया ।”
योगी अचरज से बल्ले को देख रहा था ।
“इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले भावनाओं के प्रवाह में बोला- “मैंने यशराज खन्ना का खून किया जरूर है, लेकिन आवेश में किया है, जुनून में किया है । और यकीन मानो, अभी मेरे दिमाग में जुनून उतरा नहीं है इंस्पेक्टर साहब ! मेरे अंदर आग धधक रही है, ज्वालामुखी धधक रहा है । राज ने सिर्फ मेरे चाचा का ही खून नहीं किया बल्कि उसने उस इंसान का खून किया है, जिसने बचपन से आज तक मेरी परवरिश की थी, अपनी गोद में खिलाया था उसने मुझे । चीना पहलवान ही वो इकलौता इंसान था इंसपेक्टर साहब-जिसने मेरे मां-बाप के स्वर्गवासी होने के बाद सारी दुनिया का प्यार मेरे ऊपर न्यौछावर कर दिया । इसीलिये मैं हर खून माफ कर सकता हूँ, लेकिन चीना पहलवान का खून माफ नहीं कर सकता । मेरे अंदर धधकती यह आग अब उसी दिन बुझेगी, जिस दिन मैं राज के खून से अपने हाथ रंग लूंगा और मेरा दावा है कि ऐसा करने से अब दिल्ली पुलिस भी मुझे नहीं रोक सकती ।”
योगी फटे-फटे नेत्रों से बल्ले को देखता रह गया ।
डॉक्टर उसके होश में आने से पहले ही जा चुका था और इस समय उस पूरे घर में इंस्पेक्टर योगी तथा बल्ले के अलावा कोई न था ।
योगी कुछ देर आराम करता रहा, फिर वो आहिस्ता से बिस्तर छोड़कर उठा-“मेरी मोटरसाइकिल कहाँ है ?”
“बाहर ही खड़ी है ।” बल्ले बोला- “मैं उसे भी ले आया था ।”
योगी संभल-संभलकर दरवाजे की तरफ बढ़ा ।
“मुझे गिरफ्तार नहीं करोगे इंस्पेक्टर साहब ?”
योगी के कदम ठिठक गये ।
वह आहिस्ता से पलटा ।
“एक पुलिस इंस्पेक्टर होने के नाते यह मेरा फर्ज बनता है बल्ले !” योगी बोला- “कि मैं तुम्हें अभी और इसी वक्त गिरफ्तार कर लूं । लेकिन अफसोस -इस समय मेरे सामने वकील यशराज खन्ना का हत्यारा नहीं बल्कि सिर्फ एक इंसान खड़ा है । एक ऐसा इंसान, जिसके सीने में भावनायें हैं, जज्बात हैं और जिसने अभी-अभी एक आदमी की जान बचायी है । मैं नहीं जानता बल्ले-तुम्हारा यह रूप सच्चा है या फिर तुम यह कोई नाटक खेल रहे हो । हाँ, एक बात जरूर कहूँगा- मैं तुम्हारे इस रूप से प्रभावित जरूर हुआ हूँ, लेकिन एक बात का ख्याल जरूर रखना बल्ले !” एकाएक योगी की आवाज में चेतावनी का पुट आ गया- “आज के बाद तुम्हें इंस्पेक्टर योगी कहीं भी मिले, तो इस गलतफहमी में हर्गिज मत रहना कि वह तुम्हें बख्श देगा । इंस्पेक्टर योगी का कहर तुम्हारे ऊपर बिलकुल उसी तरह टूटेगा, जिस तरह किसी अपराधी के ऊपर इंस्पेक्टर का कहर टूटता है । क्योंकि तुम्हारे और मेरे बीच सिर्फ एक ही रिश्ता हो सकता है और वो रिश्ता है, अपराधी और इंस्पेक्टर के बीच का रिश्ता !”
“मुझे उस पल का बेसब्री से इंतजार रहेगा इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले ने भी बे-खौफ जवाब दिया- “जब कानून के एक रखवाले से मेरी मुलाकात होगी, फिलहाल जाते-जाते अपनी एक अमानत ले जाइये ।”
“अ...अमानत !”
“हाँ-अमानत !”
बल्ले ने वहीं स्टूल पर रखी एक नटराज मूर्ति उठाकर योगी की तरफ बढ़ाई ।
‘नटराज मूर्ति’ को देखते ही योगी के दिमाग में धमाका हुआ ।
“य...यह मूर्ति तुम्हारे पास कहाँ से आयी ?”
“सोनपुर में जिस जगह आपका एक्सीडेण्ट हुआ था, वहीं यह मूर्ति भी पड़ी थी ।”
“ओह !”
“लेकिन बात क्या है, आप इस मूर्ति को देखकर इतना चौंके क्यों ?”
“जानते हो ।” योगी के होठों पर हल्की-सी मुस्कान दौड़ी- “यह मूर्ति किस धातु की बनी है ?”
“नहीं, किस धातु की है ?”
“इस सवाल का जवाब तुम्हें आज नहीं बल्कि कल देश के तमाम अखबारों में छपा मिलेगा । हो सकता है, तब तुम्हें इस बात का सख्त अफसोस भी हो कि तुमने मुझे यह मूर्ति सौंपी तो क्यों सौंपी ।”
वह शब्द कहने के बाद मुड़ा इंस्पेक्टर योगी !
फिर मूर्ति लेकर तेज-तेज कदमों से बाहर खड़ी बुलेट मोटरसाइकिल की तरफ बढ़ गया ।
बल्ले के होठों पर अब मुस्कान थी ।
जहरीली मुस्कान !
☐☐☐
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