Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
12-05-2020, 12:39 PM,
#39
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
सेठ दीवानचन्द के अड्डे पर पहुँचने के बाद भी राज कितनी ही देर तक यूं हाँफता रहा था, जैसे सैंकड़ों मील लम्बी मैराथन दौड़ में हिस्सा लेकर अभी-अभी वहाँ आया हो ।
उसकी आंखों में दहशत-ही-दहशत थी ।
वहाँ राज का सबसे पहले सेल्समैन से सामना हुआ । उसका नाम दशरथ पाटिल था, वह पूना का रहने वाला था और एकदम ओरिजिनल मराठा था । लेकिन पिछले पांच साल से वो दिल्ली शहर में आकर बस गया था और अब दिल्ली के कुछ ऐसे गाढ़े रंग में रंग चुका था कि अपने सभी महाराष्ट्रियन संस्कारों को भूल चुका था ।
यहाँ तक कि वो जबान भी अब दिल्ली वाली बोलता था ।
अब तो उसकी जिंदगी में एक ही चीज का महत्व था, पैसा-पैसा और पैसा ।
☐☐☐
राज को इतनी बुरी तरह हाँफते देख दशरथ पाटिल भी चौंका ।
“क्या हुआ, तुम यूं हाँफ क्यों रहे हो ?”
तभी सेठ दीवानचन्द के आते ही दुष्यंत पाण्डे ने उन्हें आज इंस्पेक्टर योगी से हुई मुठभेड़ के बारे में बता दिया ।
सेठ दीवानचन्द के नेत्र आश्चर्य से फैले ।
“व...वडी इंस्पेक्टर योगी इसे गिरफ्तार क्यों करना चाहता था नी ?”
“साहब, वह बोलता था ।” राज ने भाव-विह्वल स्वर में बताया- “कि दिल्ली में आजकल दुर्लभ वस्तुओं की चोरी करने वाला जो गिरोह सक्रिय है, मैं उस गिरोह का सक्रिय सदस्य हूँ । किसी ने उसे यह बात फोन पर गुमनाम टिप देकर बतायी थी ।”
“ग...गुमनाम टिप !” सेठ दीवानचन्द चौंका- “व...वडी उसे यह गुमनाम टिप किसने दी ?”
“यह तो योगी को भी नहीं मालूम । लेकिन वह शख्स चाहे जो भी है साहब, वही इस सारे फसाद की जड़ है ।” राज ने आन्दोलित लहजे में कहा- “उसी ने मेरी हँसती-खेलती जिंदगी को यूं षड्यन्त्र रच-रचकर नरक के हवाले कर दिया है ।”
“धीरज रख राज साईं !” दीवानचन्द ने उसकी पीठ थपथपाई- “धीरज रख, वडी यूं आंदोलित होने से, यूं परेशान होने से कुछ नहीं होने वाला नी । तू यह बता, मूर्तियां लेकर आया ?”
“ह...हाँ ।”
“निकाल उन्हें ।”
राज ने पांचों मूर्तियां निकालने के मकसद से शर्ट ऊपर की ।
फिर उसकी नजर जैसे ही नटराज मूर्तियों पर पड़ी, वह सन्न रह गया ।
एकदम सन्न !
उनमें से एक मूर्ति गायब थी ।
“य...यह तो सिर्फ चार मूर्तियां हैं ।” दशरथ पाटिल के मुँह से सिसकारी छूटी ।
राज पसीनों से लथपथ हो गया ।
“ह...हाँ, ल...लेकिन मैं डॉली के घर से पांच मूर्तियां ही लेकर चला था ।”
“वडी फिर एक मूर्ति किधर है नी ?” सेठ दीवानचन्द झुंझला उठा-“साईं, एक मूर्ति को तेरा पेट निगल गया नी या फिर हवा खा गयी ?”
“ज...जरूर !” तभी राज आतंकित मुद्रा में बोला- “जरूर वह मूर्ति सोनपुर में उसी जगह गिर पड़ी है, जहाँ इंस्पेक्टर योगी और हमारी मुठभेड़ हुई थी ।”
“हे दाता !” दुष्यंत पाण्डे के शरीर में भी खौफ की लहर दौड़ गयी- “अगर वह मूर्ति योगी के हाथ लग गयी, तब क्या होगा ?”
सब स्तब्ध रह गये ।
☐☐☐
अगले दिन एक ऐसी हृदयविदारक घटना घटी, जिसने राज के रहे-सहे हौंसले भी पस्त कर दिये ।
सुबह का वक्त था ।
रात राज ने अड्डे में ही गुजारी थी ।
उस अड्डे के बारे में राज को अभी इतना ही मालूम हो सका था कि वो किसी इमारत के बेसमेंट में बना था ।
उसमें आठ विशालतम हॉल कमरे थे, बड़े-बड़े गलियारे थे, चार अटेच्ड बाथरूम थे, एक बातचीत करने के लिए बड़ा कॉफ्रेंस हॉल था, कुल मिलकर वहाँ सुख-सुविधा के तमाम साधन मौजूद थे ।
दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे वहीं सोते थे, जबकि सेठ दीवानचन्द की अशोक विहार के इलाके में बड़ी भव्य कोठी थी ।
उस वक्त तक सेठ दीवानचन्द भी वहाँ आ चुका था ।
तभी अखबार हाथ में लिये दुष्यंत पाण्डे वहाँ भागा-भागा आया ।
उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं ।
उसका हाल बुरा था ।
“क्या बात है, वडी घबरा क्यों रहा है नी ?”
“अ...आपने आज का अखबार पढ़ा बॉस ?”
“नहीं, अखबार तो नहीं पढ़ा, कोई ख़ास खबर छपी है साईं ?”
“खबर नहीं बल्कि तोप का गोला समझो बॉस, जो भी पढ़ेगा, उसी के चेहरे पर मेरी तरह हवाइयां उड़ने लगेंगी ।”
“वडी ऐसी भी क्या खबर छप गयी साईं, मैं भी तो देखूं ।”
सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल और राज, उसे देखकर वह तीनों वाकई बुरी तरह उछल पड़े ।
☐☐☐
अखबार के कवर पेज पर ही मोटी-मोटी सुर्खियों में छपा था:
दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले संगठन का सुराग पता चला
राज के पास से एक मूर्ति बरामद
दिल्ली । कल आधी रात के समय सोनपुर की एक गली के अंदर इंस्पेक्टर योगी और कुख्यात अपराधी राज के बीच हुई भीषण भिड़न्त में दिल्ली पुलिस को सोने की एक नटराज मूर्ति बरामद हो गयी ।
उल्लेखनीय है कि नेशनल म्यूजियम से पिछले दिनों सोने की छः बेशकीमती नटराज मूर्तियां चोरी हो गयी थीं, जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में दस करोड़ रुपये कीमत थी । जो नटराज मूर्ति बरामद हुई, वह सोने की छः नटराज मूर्तियों में से ही एक है ।
बताया जाता है कि कल रात इंस्पेक्टर योगी को टेलीफोन पर एक गुमनाम टिप मिली थी, जिसमें किसी अज्ञात व्यक्ति ने इंस्पेक्टर योगी को बताया कि कुख्यात अपराधी राज दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले गिरोह का सक्रिय सदस्य है और वो थोड़ी देर बाद ही सोने की नटराज मूर्तियां लेकर सोनपुर से फरार होने वाला है ।
टिप मिलते ही इंस्पेक्टर योगी ने फौरन सोनपुर पहुँचकर राज को जा दबोचा, लेकिन योगी उसे गिरफ्तार कर पाता, उससे पहले ही राज अपने एक साथी की मदद से उस पर हमला करके भाग खड़ा हुआ ।
सर्वविदित है कि विभिन्न संग्रहालयों से दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाला यह संगठन पिछले दो साल से दिल्ली शहर में सक्रिय है । इतना ही नहीं, यह संगठन अब तक लगभग बाईस करोड़ रुपये मूल्य की अनेक ऐतिहासिक वस्तुएं चोरी कर चुका है ।
इंस्पेक्टर योगी ने राज से बरामद मूर्ति पुरातत्व संग्रहालय को सौंप दी है । एण्टीक रिसर्च सेण्टर से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर यह साबित हो चुका है कि बरामद मूर्ति संग्रहालय से चोरी गयी असली नटराज मूर्ति ही है । दिल्ली पुलिस अब पूरी सरगर्मी से राज को तलाश कर रही है और राज को गिरफ्तार कराने वाले किसी भी व्यक्ति को एक लाख रुपये का नगद इनाम देने की घोषणा भी पुलिस की तरफ से कर दी गयी है ।
☐☐☐
उस खबर को पढ़कर सभी भौंचक्के रह गये ।
राज को तो जैसे सांप सूंघ गया था, वह दहशत से थर-थर कांपने लगा ।
“एक बात मेरी समझ में नहीं आयी ।” दशरथ पाटिल बोला ।
“क्या ?”
“यह कैसे संभव है कि पांच मूर्तियां जो राज ने हमें लाकर दीं, वह पीतल की है । जबकि जो नटराज मूर्ति इंस्पेक्टर योगी के हाथ लगी, वो सोने की है ?”
सब हैरान निगाहों से एक-दूसरे का चेहरा देखते रहे ।
कोई कुछ न बोला ।
“पाण्डे साईं !” सेठ दीवानचन्द ने उस सन्नाटे को भंग किया ।
“जी बॉस !”
“वडी तू जल्दी से वो सभी नटराज मूर्तियां और कसौटी लेकर आ ।”
दुष्यंत पाण्डे तुरन्त वहाँ से दौड़ पड़ा ।
जल्द ही जब वो वापस लौटा, तो उसके हाथ में नटराज मूर्तियां और एक कसौटी थी ।
सेठ दीवानचन्द ने एक-एक करके उन सभी पांचों मूर्तियों को कसौटी पर घिसा ।
लेकिन निराशा !
घोर निराशा !
वह सभी मूर्तियां पीतल की थीं ।
“म...मैं पहले ही बोलता था साहब !” राज उत्तेजित होकर बोला-“कोई मुझे फांसने की कोशिश कर रहा है, कोई मेरे चारों तरफ जाल बिछा रहा है ।”
“लेकिन कौन ?” दीवानचन्द झल्ला उठा- “वडी कौन हरामी तेरे को फंसाने की कोशिश कर रहा है नी ? वडी कौन तेरे चारों तरफ जाल बिछा रहा है ? मुझे उसका पता-ठिकाना तो बता और यह मूर्ति वाला करिश्मा कैसे हो गया ? राज साईं, अखबार में एकदम साफ-साफ लिखा है कि बरामद मूर्ति सोने की असली नटराज मूर्ति है । उसमें शक-शुबहे की तो कोई गुंजाइश ही नहीं बची ।”
“मेरे दिमाग में एक बात आ रही है साहब !”
“क्या ?”
“जरूर !” राज पुनः उत्तेजित हो उठा- “जरूर इंस्पेक्टर योगी के पास वो नटराज मूर्ति नहीं है, जो बेल्ट के पीछे से निकलकर गिरी थी ।”
“फिर वो कौन-सी मूर्ति है साईं ?”
“जरूर मेरे पास से मूर्ति नीचे गिरने और इंस्पेक्टर योगी द्वारा मूर्ति उठाये जाने के बीच किसी ने वह मूर्ति बदल दी ।”
“व...वडी !” दीवानचन्द के नेत्र फैले गये- “वडी तू यह कहना चाहता है कि किसी ने पीतल की वह मूर्ति उठाकर इसकी जगह असली सोने की मूर्ति रख दी ?”
“हाँ, म...मैं बिलकुल यही कहना चाहता हूँ साहब !”
“लेकिन ऐसा कौन करेगा साईं, वडी किसी को ऐसा करने की क्या जरूरत पड़ी है नी ?”
“जरुरत पड़ी है साहब !” राज बोला- “यह हरकत जरूर उसी रहस्यमयी व्यक्ति ने की है, जिसने इंस्पेक्टर योगी को मेरे बारे में गुमनाम टिप दी । इतना ही नहीं साहब, मुझे तो अब एक और रहस्य की गुत्थी भी सुलझती दिखाई दे रही है ।”
“कैसी गुत्थी ?”
“जरा सोचो साहब, जब उस रहस्य्मयी व्यक्ति के पास सोने की एक नटराज मूर्ती है, तो बाकि मूर्तियां भी उसी के पास होंगी । इसका मतलब उसी ने वो मूर्तियां हथियाई, इसे रहस्यमयी व्यक्ति ने चीना पहलवान का भी खून किया ।”
राज की बात सुनकर तीनों के दिमाग में धमाके हुए ।
“बॉस !” दशरथ पाटिल शुष्क लहजे में बोला-“मुझे तो उस रहस्यमयी व्यक्ति से ज्यादा इस सारे फसाद की जड़ खुद यह राज नजर आ रहा है । जबसे इसके कमबख्त कदम हमारे ठिकाने पर पड़े हैं, तभी से हमारे साथ भी अजीब-अजीब किस्म के हादसे हो रहे हैं । जरा सोचो बॉस, अगर कोई ऐसा रहस्यमयी व्यक्ति है भी, तो वह जरूर इससे अपनी पुरानी दुश्मनी निकाल रहा है, हम क्यों इसके चक्कर में पड़ें ? पहले ही नटराज मूर्तियां गायब होने की वजह से हमें दस करोड़ रुपये का थूक लग चुका है । हमारे हक में अब यही अच्छा है बॉस, हम इसे फौरन यहाँ से निकालकर बाहर खड़ा करें । यह भी दाता का लाख-लाख शुक्र है, जो इसने अभी हमारे अड्डे का गुप्त रास्ता नहीं देखा ।”
“दशरथ ठीक कहता है बॉस !” दुष्यंत पाण्डे ने भी दशरथ पाटिल की बात के प्रति समर्थन जाहिर किया- ‘इसका अब सचमुच यहाँ ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं, दिल्ली पुलिस वैसे ही इसका सम्बन्ध दुर्लभ वस्तु चुराने वाले गिरोह से जोड़ रही है और फिर इसके ऊपर एक लाख रुपये का इनाम भी रख दिया गया है, ऐसी परिस्थिति में यह ज्यादा दिन पुलिस के शिकंजे से बचा नहीं रहने वाला । यह पकड़ा जाये, उससे पहले ही हमें इससे पल्ला झाड़ लेना चाहिये ।”
राज बेचैन हो उठा ।
एक साथ कई सारी बातें उसके दिमाग में कौंधी ।
अगर इस वक्त उन लोगों का आसरा उसके ऊपर से उठ गया, तो फिर उसे दिल्ली पुलिस के फंदे से दुनिया की कोई ताकत नहीं बचा सकती ।
उनके अड्डे से बाहर निकलते ही उसने पकड़े जाना है ।
वह अब एक खतरनाक अपराधी साबित हो चुका है ।
उसके ऊपर एक लाख का इनाम घोषित है ।
एक लाख !
राज के शरीर में सिहरन दौड़ गयी ।
एक लाख का इनाम हासिल करने के लालच में तो दिल्ली शहर का एक-एक आदमी उसे पुलिस के हवाले करना चाहेगा ।
अपनी मौजूदा स्थिति और होने वाले अपने खौफनाक अंजाम की कल्पना करके राज का पूरा शरीर कांप गया ।
उसने सेठ दीवानचन्द की तरफ देखा ।
दीवानचन्द जो दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे की बातें सुनकर किसी गहरी सोच में डूब गया था ।
“वडी तुम दोनों शायद ठीक ही कहते हो ।” फिर सेठ दीवानचन्द काफी सोचने-विचारने के बाद हुंकार-सी भरकर बोला- “वाकई अब इसका और ज्यादा देर यहाँ रुकना हमारी सेहत के लिये ठीक नहीं है ।”
“य...यह आप क्या कर रहे हैं साहब ?” राज दहल उठा ।
“वडी यह हम सिर्फ कह नहीं रहे बल्कि यह हमारा अटल फैसला भी है, दुष्यंत पाण्डे तुम्हें अभी वापस सोनपुर छोड़ आयेगा ।”
“न...नहीं साहब ! म...मेरे ऊपर रहम करो साहब !” राज गिड़गिड़ा उठा- “अगर ऐसी हालत में, मैं सोनपुर पहुँच गया, तो समझो मैं जेल पहुँच गया साहब ! वहाँ के गुण्डे-मवाली बहुत डेन्जर हैं, वह इनाम के लालच में मेरे ऊपर इस तरह झपटेंगे, जैसे चील मांस के लोथड़े पर झपटती है । मैं बेगुनाह होकर भी मारा जाऊंगा, इ...इसलिये मेरे ऊपर रहम करो ।”
“वडी लेकिन हम तेरे ऊपर कैसे रहम करें नी ?” सेठ दीवानचन्द बोला-“अगर तू ज्यादा दिन तक यहाँ रहा, तो हम सब लोगों का यहाँ बिस्तरा गोल हो जाना है ।”
“नहीं होगा साहब !” राज पुनः गिड़गिड़ाया- “आपमें से किसी का भी यहाँ से बिस्तरा गोल नहीं होगा । आप जैसा कहोगे, मैं बिलकुल वैसा-वैसा करूंगा । मैं आप लोगों का गुलाम बनकर रहूँगा, लेकिन भगवान के लिये मुझे दिल्ली पुलिस के मुँह में मत धकेलो साहब !”
राज की आंखों में आंसू छलछला आये ।
जबकि सेठ दीवानचन्द के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे थे ।
“म...मैं उस रहस्यमयी व्यक्ति के षड्यंत्र का शिकार हो चुका हूँ साहब !” राज खून के आंसू रोता हुआ बोला- “म...मेरे सामने अब कोई रास्ता नहीं, कोई मंजिल नहीं, मैं अब सिर्फ कानून से भागा हुआ एक खतरनाक अपराधी हूँ ।”
सेठ दीवानचन्द ने दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे की तरफ देखा ।
उन लोगों के चेहरे पर भी हिचकिचाहट के भाव थे ।
“ठीक है साईं !” दीवानचन्द ने यूं धीरे-धीरे गर्दन हिलाई, जैसे उस पर बड़ा भारी अहसान कर रहा हो- “वडी हम सलाह मशवरा करने के बाद कल तेरे बारे में कोई फैसला करेंगे ।”
“ल...लेकिन... ।”
“चिन्ता मत कर राज साईं, जो होगा, अच्छा होगा । अब तू जाकर आराम कर ।”
राज के चेहरे पर संतोष के भाव उभर आये ।
लेकिन उसे कहाँ मालूम था, अभी उसके ऊपर से बुरे ग्रहों कोई छाया हटी नहीं है ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात - by desiaks - 12-05-2020, 12:39 PM

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