RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
उसी रात सेठ दीवानचन्द ने अपनी कार में सवार होकर नेशनल म्यूजियम के आगे से दो चक्कर काटे ।
यह देखने के लिये कि रात के समय वहाँ सिक्योरिटी का क्या इंतजाम रहता है ।
परन्तु यह देखकर उसे भारी निराशा हुई कि रात के समय वहाँ सिक्योरिटी और बढ़ा दी गयी थी ।
दिन में जहाँ नेशनल म्यूजियम के चारों तरफ सौ पुलिसकर्मी फैले थे, वहीं अब दो सौ के आसपास थे ।
लेकिन फिर भी सेठ दीवानचन्द ने हिम्मत नहीं हारी ।
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अड्डे पर लौटते ही उसने काफ्रेंस हॉल में मीटिंग बुलायी ।
हमेशा की तरह उस मीटिंग में तीन व्यक्ति शामिल हुए- खुद सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे ।
अपने सर्वेण्ट क्वार्टर जैसे कमरे में लेटा राज, जो बहुत देर से उसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था, वह भी कम्बली ओढ़े-ओढ़े दबे पांव दौड़ता हुआ कांफ्रेंस हॉल के दरवाजे पर जा पहुँचा और फिर वो अंदर होने वाले वार्तालाप को बड़े ध्यान से सुनने लगा ।
“इसमें कोई शक नहीं साईं !” सेठ दीवानचन्द बोला- “वह दुर्लभ ताज वाकई बड़े कमाल की चीज है, उस पर एक नजर डालते ही लगता है कि वो कोई मूल्यवान वस्तु हो सकती है । कुल मिलकर जितना शानदार वो दुर्लभ ताज है, भारत सरकार ने उतनी ही शानदार उसकी सिक्योरिटी कर रखी है ।”
सिक्योरिटी तो उसकी वैसे भी शानदार होती बॉस ।” दशरथ पाटिल बोला- “आखिर भारत सरकार की नाक का सवाल है । अगर कहीं वो दुर्लभ ताज चोरी हो गया, तो यहाँ की सरकार कजाखिस्तान के अधिकारियों को अपना क्या मुँह दिखायेगी ? क्या कहेगी उनसे ? आखिर उन लोगों ने यकीन के बलबूते पर ही तो अपनी इतनी महत्वपूर्ण चीज को प्रदशन के लिये इण्डिया भेजा है ।”
सेठ दीवानचन्द एकाएक हो-हो करके हँसने लगा ।
“वडी दशरथ साईं !” दीवानचन्द हँसते हुए ही बोला- “इण्डिया की नाक तो अब कटनी ही कटनी है ।”
“क्यों ?”
“क्यों क्या ? वडी जब ताज ही चोरी हो जायेगा, तो फिर नाक भी कैसे बची रहेगी नी ?”
दशरथ पाटिल के होठों पर भी मुस्कान थिरक उठी ।
“पाण्डे साईं !” सेठ दीवानचन्द ने दुष्यंत पाण्डे की तरफ देखा- “वडी क्या बात है ? तू कैसे खामोश है नी ? तू कुछ बोलता-बालता क्यों नहीं ?”
“ऐसे ही ।”
“कोई तो बात जरूर है साईं, वरना खामोश बैठने वाले आदमियों में तो नहीं तू ।”
“बॉस !” दुष्यंत पाण्डे थोड़ा शुष्क स्वर में बोला- “न जाने क्यों मेरा दिल उस दुर्लभ ताज को चुराने के लिये गवाही नहीं दे रहा है ।”
“क्यों, गवाही क्यों नहीं दे रहा ?”
“मुझे लगता है बॉस, अगर हमने उस दुर्लभ ताज को चुराने की योजना बनायी, तो यह तो ईश्वर जाने कि हम अपनी योजना में कामयाब हो पायेंगे या नहीं, लेकिन हमें बर्बाद जरूर हो जाना है, हमारा सर्वनाश जरूर हो जाना है ।”
“वडी यह क्या बकवास कर रहा है तू ?” दीवानचन्द गुर्रा उठा- “खोपड़ी खराब हो गयी है तेरी ?”
दुष्यंत पाण्डे ने दोबारा खामोशी धारण कर ली ।
“पागल आदमी, वडी यह बात तेरे दिमाग में आयी भी कैसे ?” सेठ दीवानचन्द उसे फटकार-सी लगाता हुआ बोला- “तुझे यह सूझा भी कैसे कि अगर हमने इस योजना पर काम किया, तो हमारा सर्वनाश हो जायेगा ? वडी इन्द्रलोक से तेरे को आकाशवाणी हुई या फिर जो मुँह में आया, बक दिया ।”
“नहीं ।” दुष्यंत पाण्डे ने धैर्यपूर्वक जवाब दिया- “मैंने ऐसे ही कुछ भी नहीं बका ।”
“यानि तुझे सर्वनाश होता दिखाई दे रहा है ?”
“हाँ ।”
“कैसे ?”
“आपने दुर्लभ ताज के उस विज्ञापन को तो पढ़ा ही था, जो अखबार के अंदर छपा था ।”
“बिलकुल पढ़ा था, सबने पढ़ा था ।”
“फिर तो आपने विज्ञापन में यह भी जरूर पढ़ा होगा ।” दुष्यंत पाण्डे बोला- “कि वह दुर्लभ ताज अपनी सिक्योरिटी खुद करता है, ऐसी कितनी ही कहानियां उस ताज के बारे में प्रसिद्ध हैं कि जब-जब किसी ने उस ताज को चुराने का प्रयास किया, तब-तब वही बर्बाद हुआ ।”
“वडी तू कहना क्या चाहता है साईं ? एकदम साफ-साफ बोल ।”
“मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि हमें आज से पहले घटी उन घटनाओं से कुछ सीखना चाहिये, कोई सबक लेना चाहिये !”
“और सबक हम यह लें साईं !” सेठ दीवानचन्द ने दुष्यंत पाण्डे को कहर बरपा करती आंखों से घूरा- “कि हम उस दुर्लभ ताज को चुराने का ख्याल भी अपने दिमाग से निकाल दें । वडी तू यही कहना चाहता है नी, हम अपने हाथों से अपनी किस्मत फोड़ लें । कुल्हाड़ी चला ले अपनी गर्दन पर ।”
दुष्यंत पाण्डे थोड़ा बौखलाया-सा नजर आने लगा ।
“जवाब दे पाण्डे साईं ! वडी तू चुप कैसे हो गया नी ?”
“म...मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ बॉस ।” दुष्यंत पाण्डे शुष्क स्वर में बोला- “किस्मत तो हमारी तभी बदलेगी, जब हमारे हाथ वह दुर्लभ ताज लगेगा । कहीं ऐसा न हो कि हमारे हाथ दुर्लभ ताज भी न लगे और हम बर्बाद भी हो जायें ?”
“तू गधा है ।” दीवानचन्द गुर्रा उठा- “वडी तू बिलकुल एक नम्बर का पग्गल आदमी है । यह हैरानी की बात है साईं, तू कजाखिस्तान सरकार द्वारा रचा गया इतना-सा नाटक नहीं समझ सका ।”
“न...नाटक, कैसा नाटक ?”
“वडी आज के सुबह के अखबार में उस दुर्लभ ताज के बारे में जो कुछ छपा था, वह सब झूठ-ही-झूठ है । किसी प्रोफेशनल राइटर द्वारा लिखी गयी वो एक ऐसे मनगढंत कहानी है, जिसे पढ़कर हर कोई आकर्षित हो सके । इतना ही नहीं, अगर कोई अपराधी उस दुर्लभ ताज को चुराने की कल्पना करे, तो उस सनसनीखेज स्टोरी को पढ़कर उसके हौंसले पस्त हो सकें, वो आतंकित हो जाये । तुझे नहीं मालूम पाण्डे साईं, आज सुबह के अखबार में जो स्टोरी छपी, वो उस दुर्लभ ताज की सबसे बड़ी सिक्योरिटी है ।”
“स...सिक्योरिटी ।” दुष्यंत पाण्डे के साथ-साथ अब दशरथ पाटिल की आंखों में भी हैरानी के भाव उभरे- “वो कैसे ?”
“वडी जब अपराधियों को यह मालूम होगा कि आज तक जिसने भी उस दुर्लभ ताज को चुराने का प्रयास किया, वही बर्बाद हो गया, फिर दुर्लभ ताज को चुराने का दुस्साहस ही कौन करेगा नी ? वडी जैसे उस बात को सोच-सोचकर अब तेरी पतलून गीली हो रही है, वह भी तो घबरा रहे होंगे । ऐसी परिस्थिति में वो स्टोरी उस दुर्लभ ताज की सबसे बड़ी सिक्योरिटी हुई कि नहीं हुई ?”
दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे, दोनों दंग रहे गये ।
दोनों के नेत्र हैरत से फैल गये ।
कितनी दूर की सूझी थी सेठ दीवानचन्द को ।
लेकिन अहम् सवाल ये था क्या उतनी दूर की कजाखिस्तान के अधिकारियों को भी सूझी थी ?
क्या उन्होंने सचमुच उस दुर्लभ ताज के बारे में वो भ्रमजाल फैलाया था ?
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