RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
उस विज्ञापन को पढ़कर सेठ दीवानचन्द ने थोड़ी भौंचक्की निगाहों से दुष्यंत पाण्डे की तरफ देखा ।
“वडी इस विज्ञापन में क्या खास बात है ?”
“आपको कोई खास बात नहीं दिखाई दी ?”
“नहीं ।”
“यह तो इस विज्ञापन से आप समझ ही गये होंगे ।” दुष्यंत पाण्डे बोला-“कि जगदीश पालीवाल नाम का यह व्यक्ति नेशनल म्यूजियम का चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर है और उसे अपने छः महीने के बच्चे की देखभाल के लिये एक गवर्नेस की जरुरत है । अब आप जरा मेरा आइडिये पर कल्पना कीजिये बॉस, अगर हम जगदीश पालीवाल के घर में अपनी तरफ से किसी लड़की को गवर्नेस बनाकर भेज दें, तब कैसा रहेगा ?”
“उससे क्या होगा ?”
“उससे यह होगा कि हमारे द्वारा भेजी गयी लड़की सबसे पहले जगदीश पालीवाल को अपने प्रेमजाल में फांसेगी, उसे अपने संगमरमरी जिस्म का दीवाना बनायेगी । और जब जगदीश पालीवाल उसके इश्क में पूरी तरह गिरफ्तार हो चुका होगा, जब उसे उस लड़की के अलावा इस दनिया में कुछ नजर नहीं आयेगा, तब वो उससे बड़ी सहूलियत के साथ दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के बारे में सब कुछ उगलवा लेगी ।”
“वडी लेकिन इस बात की क्या गारण्टी है कि पालीवाल उस लड़की की मोहब्बत में गिरफ्तार होगा ही होगा ?”
“गारण्टी है ।” दुष्यंत पाण्डे दृढ़तापूर्वक बोला- "अगर लड़की कोई स्वर्ग की अप्सरा हो, अलिफ लैला के किस्से-कहानियों की हूर हो, मर्द को फांसने में हुनरमंद हो, तो उस बेचारे जगदीश पालीवाल की तो औकात ही क्या है, ऐसी लड़की के सामने तो बड़े-बड़े देवताओं का ईमान भी डोल जाना है ।”
सेठ दीवानचन्द हक्का-बक्का सा दुष्यंत पाण्डे को देखता रह गया ।
“वडी तू कहता तो ठीक है साईं ।” दीवानचन्द बोला- “लेकिन सवाल ये है कि हमें जन्नत की ऐसी हूर कहाँ मिलेगी, जो हमारे लिये यह सब कुछ करे ?”
“वह हमें मिलेगी नहीं बॉस, बल्कि मिल चुकी है ।”
“क...क्या मतलब ?”
दीवानचन्द के साथ-साथ दशरथ पाटिल भी चौंका ।
“आपने डॉली को देखा है बॉस ?”
“म...डॉली, कौन डॉली ?”
“राज की प्रेमिका डॉली ! वही डॉली जो सोनपुर में रहती है और जिसके साथ राज का बड़ा जबरदस्त, बड़ा तगड़ा रोमांस चल रहा है ।”
“नहीं, वडी मैंने तो उसे नहीं देखा ।”
“बॉस, बाई गॉड अगर उस लड़की को देखोगे, तो बस देखते रह जाओगे । वह कीचड़ में खिला कमल है । वह महलों की वह शहजादी है, जिसने गलती से सोनपुर जैसे बस्ती में जन्म ले लिया है । वो साक्षात स्वर्ग की अप्सरा है, जन्नत की हूर है । उसका सरु-सा लम्बा कद, उसका छरहरा बदन, उसकी तनी हुई सुडौल भरपूर छातियां, उसके गोरे-चिट्टे हाथ-पांव, बॉस क्या लड़की है । कसम से आग का गोला है, गोला !” बोलते-बोलते दुष्यंत पाण्डे की सांसे तेज-तेज चलने लगीं- “वह जब चलती है, तो उसके पैरों की धमक से उसके कूल्हों में ऐसी थिरकन पैदा होती है, जैसे वो चल नहीं रही हो बल्कि संगीत की ताल पर थिरक रही हो ।”
“बस-बस ।” सेठ दीवानचन्द ने उसे फौरन टोका- “वडी पाण्डे साईं, तूने तो उस लड़की के जिस्म का पूरा भूगोल ही नाप डाला नी ।”
“वह लड़की है की इसी काबिल बॉस, बेपनाह तारीफ के काबिल ।”
“लेकिन जब वो इतनी ख़ूबसूरत है, तो राज के फंदे में कैसे फंस गयी ?”
“बस फंस गयी बॉस, इस राज की किस्मत किसी और मामले में तेज हो या न हो, लेकिन कम-से-कम लड़की के मामले में बड़ी किस्मत तेज है ।”
“बहरहाल अब तू यह चाहता है साईं ।” दीवानचन्द बोला- “कि डॉली को गवर्नेस बनाकर जगदीश पालीवाल के यहाँ भेजा जाये ।”
“बिलकुल बॉस ! मेरी गारण्टी है कि जगदीश पालीवाल उसके प्रेमजाल में फंसेगा ही फंसेगा । डॉली को देखते ही उसके सदाचार की चिता जल जानी है और बस वो भूखा कुत्ता बन जाना है । यह वो हथियार है बॉस, जिसका निशाना किसी भी हालत में खाली नहीं जायेगा ।”
“वडी पाण्डे साईं, लेकिन डॉली हमारे लिये काम क्यों करेगी ?”
“क्यों नहीं करेगी बॉस ! राज कहेगा, तो वह करेगी, हजार मर्तबा करेगी ।”
“राज कहेगा उससे ?”
“कैसे नहीं कहेगा ।” दुष्यंत पाण्डे के चेहरे पर एकाएक बड़े खूंखार भाव उभरे- “अगर उसने नहीं कहा, तो हमने उसे यहाँ से बाहर नहीं निकाल देना है ? उस हरामी को जहन्नुम नहीं पहुँचा देना है ?”
बात सेठ दीवानचन्द के दिमाग में भरी ।
“वडी तू कहता तो ठीक है ।” दीवानचन्द बोला- “अगर यह बात है, तो तू बुलाकर ला राज को ।”
राज, जो दरवाजे से कान लगाये खड़ा सारी बातचीत सुन रहा था, एकाएक उसके हाथ-पांव फूल गये ।
सांसे उसे अपने गले में फंसती महसूस हुई ।
वह वापस बड़ी तेजी से अपने कमरे की तरफ भागा ।
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जल्द ही राज अपने कमरे में इस तरह लेट चुका था, जैसे गहरी नींद सो रहा हो ।
तभी वहाँ दुष्यंत पाण्डे के कदम पड़े ।
राज फिर भी सोने का अभिनय करता रहा ।
दुष्यंत पाण्डे ने उसे झंझोड़कर उठाया ।
“क...कौन है ?” राज हड़बड़ाकर उठा ।
“जल्द खड़ा हो, तुझे बॉस बुला रहे हैं ।”
“ब...बॉस !” राज की आवाज कांपी- “ल...लेकिन क्यों ?”
“अब हिलेगा भी, बाकी कहानी तुझे वही बतायेंगे ।”
राज भीगी बिल्ली बना खामोशी से उसके पीछे-पीछे चल पड़ा ।
उसे ऐसा महसूस हो रहा था, जिसे वो बलि का बकरा हो और उसे अब कुर्बानी के लिये ले जाया जा रहा था ।
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