RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
राज जैसे ही कांफ्रेंस हॉल में दाखिल हुआ, तो सेठ दीवानचन्द की एक भरपूर नजर उसके ऊपर पड़ी ।
कांप उठा राज ।
“अ...आपने मुझे याद किया साहब ?”
“हाँ, मैंने तुम्हें याद किया राज साईं ! आओ, मेरे पास आओ ।”
राज कंपकंपाते कदमों से चलता हुआ सेठ दीवानचन्द के नजदीक पहुँचा ।
“तुमने हमसे यह विनती की थी न राज साईं, तुम्हें कुछ दिन के लिये यहीं रहने दिया जाये ।”
“ह...हाँ, साहब ! म...मैंने विनती की थी ।”
“वडी हमने तुम्हारी इस विनती पर अच्छी तरह सलाह-मशवरा किया है ।” सेठ दीवानचन्द बोला- “और साईं, खूब सलाह-मशवरा करने के बाद हम लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि तुम यहाँ रह सकते हो । लेकिन तुम्हें उसके बदले हमारी एक शर्त पूरी करनी होगी ।”
“क...कैसी शर्त ?” राज फंसे-फंसे स्वर में बोला ।
उसे ऐसा लग रहा था, जैसे कोई दानव उसके सीने को अपनी मुट्ठी में जकड़कर जोर से भींच रहा हो ।
“दशरथ साईं !” दीवानचन्द, दशरथ पाटिल की तरफ घूमा- “वडी तू इसको शर्त के बारे में बता । इसे यह बता कि इसने क्या करना है नी ?”
दशरथ पाटिल ने गला खंखारा ।
फिर उसने राज को सबसे पहले दुर्लभ ताज की चोरी के बारे में बताया ।
फिर उसे यह बताया कि उस चोरी में डॉली को उन लोगों की किस प्रकार मदद करनी थी ।
राज सकते जैसी स्थिति में खड़ा रहा ।
खून उसकी कनपटी पर ठोकरें-सी मारने लगा ।
कितने घटिया इंसान थे वो ।
कितने नीच ।
एक लड़की को, एक लड़की की आबरू को, वह अपने मतलब के लिये दांव पर लगा देना चाहते थे ।
“राज साईं !” सेठ दीवानचन्द कुछ रुककर बोला- “वडी तूने अभी तक जवाब नहीं दिया, तू डॉली को गवर्नेस बनाकर जगदीश पालीवाल के घर भेजेगा या नहीं ?”
“म...मैं उसे कहीं भी कैसे भेज सकता हूँ साहब ।” राज डरे-डरे लहजे में बोला- “कहीं भी जाने या न जाने का फैसला तो खुद डॉली ही कर सकती है ।”
“वडी बकवास मत कर !” सेठ दीवानचन्द एकाएक नाग की तरह फुंफकार उठा- “हम लोग कोई दूध पीते बच्चे नहीं है कंजर ! याद रख-पुलिस तेरे पीछे भूखे कुत्ते की तरह घूम रही है । तू पुलिस के हत्थे चढ़ा और फौरन तेरी लुटिया डूबी । फौरन तेरी जिंदगी का दिया बुझा । इस समय तेरे ऊपर खतरा-ही-खतरा है और ऐसी स्थिति में डॉली तुझे खतरे से बचाये रखने के लिए कुछ भी कर सकती है । वडी वो प्रेमिका है तेरी । लवर है तेरी । फिर उसे मोहब्बत का एक नाटक ही तो करना होगा । एक ड्रामा ही तो खेलना होगा ।”
राज चुप खड़ा रहा ।
“साईं !” दीवानचन्द ने उसे साफ-साफ चेतावनी दी- “अगर तू हमारी छत्रछाया में रहना चाहता है, अगर तू चाहता है कि तू पुलिस के हत्थे न चढ़े, तो वडी तेरे को डॉली से यह काम कराना ही होगा ।”
राज फिर चुप ।
“यह सोचने का समय नहीं है राज !” इस बार दशरथ पाटिल गरजा- “जल्दी से हाँ या ना में जवाब दो, अगर ना करते हो तो दफा हो जाओ यहाँ से । हम लोग पागल नहीं हैं, जो तेरे जैसे दिल्ली पुलिस में वाण्टेड, इनामशुदा हुए इश्तिहारी मुजरिम को अपने यहाँ शरण दें और ख्वामखाह किसी बड़े झमेले में फंसे ।”
राज के चेहरे पर कशमकश के भाव छाये रहे ।
वो फैसला नहीं कर पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिये ?
“पाण्डे साईं !” एकाएक दीवानचन्द चिंघाड़ उठा ।
“यस बॉस !” दुष्यंत पाण्डे ने फौरन तत्परता से कहा ।
“वडी तू क्यों हम लोगों का भेजा खराब करता है नी, तू इस कमीने को वापस सोनपुर छोड़कर आ । यह हमारे किसी मतलब की दवा नहीं है ।”
“न...नहीं ।” राज आतंकित हो उठा- “म...मैं सोनपुर नहीं जाऊंगा ।”
“कैसे नहीं जायेगा ।” दुष्यंत पाण्डे ने अपनी शर्ट की बाहें चढ़ाई और रौद्र रूप में उसकी तरफ बढ़ा- “तेरा तो बाप भी जायेगा साले ! मादर… !!”
राज के पूरे शरीर में खौफ की लहर दौड़ गयी ।
वो जानता था कि वह उनके कई रहस्यों से वाकिफ हो चुका है ।
इसलिये ऐसी परिस्थिति में दुष्यंत पाण्डे उसे सोनपुर नहीं बल्कि कहीं और ही छोड़कर आने वाला था ।
शायद दूसरी दुनिया में !
ऐसी दुनियां में, जहाँ से वापसी को कोई रास्ता नहीं ।
इस बीच दुष्यंत पाण्डे ने उसकी बांह कसकर पकड़ ली थी, फिर वह उसे बुरी तरह घसीटता हुआ बोला- “बाहर निकल ! बाहर निकल सुअर के बच्चे !!”
“स...सुनो ।” राज चिल्ला उठा- “स...सुनो ।”
दुष्यंत पाण्डे ठिठक गया ।
“म... मैं तैयार हूँ साहब !” राज सेठ दीवानचन्द की तरफ देखता हुआ आहत् स्वर में बोला- “म...मैं तैयार हूँ, मैं आज ही डॉली के पास जाकर इस बात की कोशिश करता हूँ कि वो गवर्नेस बन जाये ।”
“कोशिश नहीं ।” दीवानचन्द चिंघाड़ा- “वडी कोशिश नहीं, तूने यह काम हर हालत में करना है । अगर डॉली, पालीवाल के घर गवर्नेस बनकर नहीं गयी, तो समझ तेरा और हमारा रिश्ता खत्म । वडी फिर हम तुझे नहीं जानते और तू हमें नहीं जानता ।”
“और उसे वहाँ जाकर सिर्फ बच्चा ही नहीं खिलाना है ।” तभी दशरथ पाटिल भी गुर्राया- “बल्कि उसने वहाँ जाकर बच्चे के बाप को भी खिलाना है । उसकी भी लल्ला-लल्ला लोरी करनी है । बच्चे से ज्यादा बच्चे के बाप की देखभाल करनी है । उससे दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के बारे में सारे राज उगलवाने हैं, तभी हमारा काम मुकम्मल होगा ।”
“म...मैं समझ गया ।” राज ने बेबसी की स्थिति में अपनी गर्दन हिलाई- “स...सब कुछ समझ गया ।”
उसकी हालत अब ऐसी हो रही थी, जैसे उसने किसी शेर की मूछें पकड़ ली हों ।
जिन्हें वो न छोड़ सकता था और न ज्यादा देर तक पकड़े रह सकता था ।
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