RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
डॉली सन्न बैठी रह गयी ।
फिर उसके पास से उठी और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गयी ।
“क्या बात है डॉली !” राज फौरन उसके पीछे-पीछे खिड़की के पास पहुँचा-“क्या तुम मुझसे नाराज हो गयीं ?”
डॉली ने अपना चेहरा खिड़की के पल्ले से सटा लिया ।
“तुम कुछ बोलती क्यों नहीं डॉली ?”
राज ने डॉली का चेहरा झटके से अपनी तरफ किया, तो उसके दिल-दिमाग पर बिजली-सी गड़गड़ाकर गिरी ।
वो रो रही थी, उसका चेहरा आंसुओं से तर था ।
“म...डॉली !” तड़प उठा राज- “मैं जानता हूँ कि मैंने यह बात कहकर तुम्हारा दिल दुखाया है । ल...लेकिन तुम्हीं बताओ, मैं और क्या करता डॉली ?” राज की आंखों में भी आंसू छलछला आये- “उन शैतानों ने मुझे मजबूर किया कि मैं तुमसे आकर यह बात कहूँ । लेकिन चिन्ता मत करो, अब अगर उनकी छत्रछाया मेरे ऊपर से उठती है, तो उठ जाये । मुझे परवाह नहीं । मुझे किसी बात की परवाह नहीं ।”
“न...नहीं राज !” डॉली ने जल्दी से अपने आंसू साफ किये थे- “नहीं । इस समय तुम्हें उन लोगों की मदद की बहुत जरुरत है । अगर उन लोगों की छाया तुम्हारे ऊपर से उठ गयी, तो तुम नहीं जानते कि तुम कितने बड़े संकट में फंस जाओगे ।”
“ल...लेकिन... ।”
"बेफिक्र रहो राज ।” डॉली कसकर उसके सीने से लग गयी- “मैं तुम्हारे लिये यह काम करूंगी, तुम्हारी खुशियों के लिये यह काम करूंगी ।”
“य...यह बात तुम दिल से कह रही हो डॉली ?”
“ह...हाँ ।” डॉली की आवाज भावनाओं के वेग से कंपकंपायी- “द...दिल से ही तो कह रही हूँ ।”
रो पड़ा राज ।
डॉली भी उसके सीने से लिपटी धीरे-धीरे सुबक रही थी ।
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उस रात राज जब वापस सेठ दीवानचन्द के अड्डे पर लौटा, तो उसका मन भारी-भारी था ।
उस दिन भी दुष्यंत पाण्डे ने सोनपुर में उसकी आंखों पर पट्टी बांधी और तब वो उसे अपने अड्डे पर लेकर गया ।
उन लोगों का अड्डा कहाँ है, इस राज से राज अभी तक अनजान था ।
उसने कई बार रात को चोरी-छिपे अड्डे का गुप्त रास्ता पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन हर बार उसे अपने मकसद में नाकामी मिली ।
बेपनाह कोशिशों के बाद उसे सिर्फ इतना मालूम हो सका कि वह लोग कॉफ्रेंस हॉल के अंदर ही कहीं से प्रकट होते हैं और फिर वहीं से गायब हो जाते हैं ।
यानि आने-जाने का रास्ता उसी कॉफ्रेंस हॉल के अंदर से था ।
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बहरहाल उस रात के बाद से डॉली की परीक्षा की घड़ी शुरू हुई ।
वह अगले दिन ही नेशनल म्यूजियम की चीफ सिक्योरिटी ऑफीसर जगदीश पालीवाल की कोठी पर जा पहुँची थी ।
पहला झटका तो उसे यही देखकर लगा कि वहाँ उससे पहले ही तीन लड़कियां मौजूद थीं ।
डॉली का दिल धाड़-धाड़ करके बजने लगा ।
उसे वो नौकरी किसी भी हालत में चाहिये थी ।
किसी भी कीमत पर ।
चाहे कुछ भी ड्रामा क्यों न करना पड़े ।
डॉली का दिमाग एकाएक काफी तेजी से चलने लगा ।
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एक-एक करके तीनों लड़कियों को ड्राइंग हॉल में बुलाया गया ।
सबसे आखिर में डॉली की बारी आयी ।
डॉली डरती-डरती ड्राइंग हॉल में दाखिल हुई, वह काफी भव्य ढंग से सजा हुआ एक ड्राइंग हॉल था, जिसमें सामने दो अलग-अलग कुर्सियों पर मिस्टर एण्ड मिसेज पालीवाल बैठे थे ।
दोनों जवान थे, खूबसूरत थे, उनकी उम्र तीस-बत्तीस के आसपास थी और शक्ल-सूरत से ही काफी सभ्य नजर आ रहे थे ।
मिसेज पालीवाल की गोद में एक गोरा-चिट्टा बच्चा पड़ा किलौली-सी कर रहा था, वह भी अपने मम्मी-डैडी की तरह ही खूबसूरत था ।
“नमस्ते !” उन दोनों को देखते ही डॉली ने अपने हाथ जोड़ लिये ।
“नमस्ते !”
उन दोनों के हाथ भी ‘नमस्ते’ की मुद्रा में जुड़े ।
“बैठो ।” फिर जगदीश पालीवाल ने कहा ।
डॉली सिकुड़ी-सिमटी सी एक कुर्सी पर बैठ गयी ।
“तुम्हारा नाम क्या है ? पहला सवाल मिसेज पालीवाल ने पूछा था ।
“स...संध्या शर्मा ।” उसने जानबूझकर नकली नाम बताया ।
“तुम्हारी शादी हो गयी ?”
जी नहीं ।”
“ओह !” मिसेज पालीवाल ने राहत की सांस ली- “फिर तो किसी छोटे बच्चे के होने का भी सवाल नहीं उठता, कहाँ तक पढ़ी हो ?”
“बी० ए ० फाइनल ।”
“गुड, रहती कहाँ हो ?”
यही वो पल था, जब डॉली ने ड्रामा किया ।
मिसेज पालीवाल के उस सवाल के पूछते ही डॉली की आंखों में आंसू छलछला आये ।
उसने दोनों हथेलियों से अपना चेहरा छिपा किया और जोर से सुबक उठी ।
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